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छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश

Lokesh Pal July 31, 2025 02:44 18 0

संदर्भ

सुकदेब साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने बढ़ती छात्र आत्महत्याओं को रोकने के लिए औपचारिक कानून बनाए जाने तक शैक्षणिक संस्थानों में लागू 15 बाध्यकारी मानसिक स्वास्थ्य दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य नीति पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख दिशा-निर्देश

  • मानसिक स्वास्थ्य नीति: उम्मीद, मनोदर्पण और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति जैसी पहलों से प्रेरणा लेते हुए एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनाई और लागू की जानी चाहिए।
    • इस नीति को प्रतिवर्ष अद्यतन किया जाना चाहिए और संस्थागत वेबसाइट एवं सूचना पट्टों पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  • जागरूकता: हेल्पलाइन नंबर (टेली-मानस सहित) परिसरों और छात्रावासों में प्रमुखता से प्रदर्शित किए जाने चाहिए।
  • शैक्षणिक तनाव से बचना: संस्थानों को ऐसी किसी भी प्रवृत्ति से बचना चाहिए, जो छात्रों को अलग-थलग करे, सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करे या उन पर अत्यधिक शैक्षणिक दबाव डाले।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता
    • 100 से अधिक छात्रों वाले संस्थान
      • बाल एवं किशोर मानसिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षित कम-से-कम एक योग्य परामर्शदाता, मनोवैज्ञानिक या सामाजिक कार्यकर्ता की नियुक्ति करनी होगी।
    • 100 से कम छात्रों वाले संस्थान
      • बाहरी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ औपचारिक संबंध स्थापित करने चाहिए।
  • आवासीय संस्थानों के लिए
    • छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु सुरक्षा तंत्रों की स्थापना की जानी चाहिए।
    • आवेगपूर्ण आत्म-क्षति को रोकने के लिए छतों, बालकनियों और अन्य उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों तक पहुँच प्रतिबंधित की जानी चाहिए।
  • छात्र सुरक्षा के संबंध में: जाति, वर्ग, लिंग, यौन अभिविन्यास, दिव्यांग दिव्यांगता, धर्म या जातीयता के आधार पर यौन उत्पीड़न, उत्पीड़न, रैगिंग के विरुद्ध सुदृढ़, गोपनीय और सुलभ निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
  • प्रतिशोध के प्रति शून्य सहिष्णुता: शिकायतकर्ताओं या मुखबिरों के विरुद्ध कार्रवाई की निगरानी की जानी चाहिए और उसे रोका जाना चाहिए तथा प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के पास तत्काल रेफर किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • कानूनी दायित्व: ऐसे मामलों में पर्याप्त कार्रवाई न करने को संस्थागत दोष माना जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप प्रशासन को नियामक और कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ेगा।
  • राष्ट्रीय स्तर की पहल: उच्च शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के समाधान और छात्र आत्महत्याओं को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यबल का गठन किया जाएगा।

भारत में छात्र आत्महत्या दर

  • NCRB के अनुसार, वर्ष 2022 में 13,000 से अधिक छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 2,248 परीक्षा में असफलता से जुड़े थे।
  • वृद्धि का रुझान: पिछले दशक में 0-24 वर्ष के आयु वर्ग की जनसंख्या 58.2 करोड़ से घटकर 58.1 करोड़ हो गई, जबकि छात्रों द्वारा आत्महत्या की संख्या 6,654 से बढ़कर 13,044 हो गई।
  • प्रमुख कारक
    • शैक्षणिक दबाव और माता-पिता की अपेक्षाएँ।
    • अलगाव और साथियों के सहयोग का अभाव।
    • मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों तक अपर्याप्त पहुँच।
    • मनोवैज्ञानिक सहायता को लेकर उपेक्षा।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का महत्त्व 

  • नियामकीय कमी को पूरा करता है: छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या से निपटने के लिए किसी भी ढाँचे के अभाव में एक बाध्यकारी ढाँचा प्रदान करता है।
  • छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण: शीघ्र हस्तक्षेप, सुरक्षा और सहायता को प्रोत्साहित करता है।
  • संस्थागत जवाबदेही को बढ़ावा देता है: छात्र संकट से निपटने में लापरवाही के लिए प्रशासन को उत्तरदायी ठहराता है।
  • समग्र रोकथाम रणनीति: शारीरिक सुरक्षा, मनोवैज्ञानिक सहायता और समावेशी भेदभाव-विरोधी तंत्रों को एकीकृत करता है।

छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से निपटने में चुनौतियाँ

  • विधायी शून्यता: छात्रों की आत्महत्या से निपटने के लिए एक एकीकृत और लागू करने योग्य नियामक ढाँचे का अभाव।
  • सक्रिय उपायों का अभाव: अनेक संस्थान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी पहलों को तब तक प्राथमिकता नहीं देते, जब तक कि कोई गंभीर संकट उत्पन्न न हो जाए।
  • संस्थागत सहायता का अभाव: परिसरों में प्रशिक्षित परामर्शदाताओं या मनोवैज्ञानिकों की सीमित उपस्थिति।
    • भारत में प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 0.75 मनोचिकित्सक हैं, जबकि वांछनीय संख्या प्रति 1,00,000 पर 3 मनोचिकित्सकों से अधिक है।
  • सामाजिक कलंक: मानसिक संकट या अवसाद के लिए सहायता लेने में सांस्कृतिक अनिच्छा।
    • अध्ययन से पता चलता है कि एशियाई रोगियों में चक्कर आने जैसे शारीरिक लक्षणों की रिपोर्ट करने की संभावना अधिक होती है, जबकि भावनात्मक लक्षणों की रिपोर्ट करने की संभावना कम होती है।

छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को समर्थन देने के लिए सरकारी पहल

  • उम्मीद (2023): केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (MoE) ने छात्रों की आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या को रोकने के लिएप्रत्येक बच्चा मायने रखता है की अवधारणा को आधार बनाकर उम्मीद (समझना, प्रेरित करना, प्रबंधित करना, सहानुभूति रखना, सशक्त बनाना, विकसित करना) दिशा-निर्देशों का मसौदा तैयार किया है।
  • मनोदर्पण पहल (2020): केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई यह पहल एक टोल-फ्री हेल्पलाइन और डिजिटल संसाधनों के माध्यम से छात्रों को मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (2022): स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा भारत की पहली राष्ट्रीय रणनीति, जिसका लक्ष्य बहु-क्षेत्रीय हस्तक्षेपों के माध्यम से वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर को 10% तक कम करना है।
  • कलेक्टर के साथ रात्रिभोज” – कोटा मॉडल: संकटग्रस्त छात्रों को जिला अधिकारियों से सीधे बातचीत करने, भावनात्मक समर्थन और सुलभ शिकायत निवारण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014): विशेष रूप से शैक्षणिक परिवेश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, जागरूकता और बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने पर केंद्रित है।
  • टेली-मानस (2022): एक 24/7 निःशुल्क टेली-मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन, जो राष्ट्रव्यापी परामर्श सेवाएँ प्रदान करती है, विशेष रूप से दूरस्थ और वंचित आबादी को लक्षित करती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017: यह मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है और मानसिक बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है, वर्ष 1987 के कानून का स्थान ग्रहण करता है।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय के समयोचित दिशा-निर्देश छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा हेतु एक खाका प्रस्तुत करते हैं। नियामक निगरानी और सार्वजनिक जवाबदेही द्वारा समर्थित संस्थानों द्वारा इनका सक्रिय कार्यान्वयन, भारत के युवाओं के भविष्य की रक्षा करने वाले सुरक्षित, सहायक तथा लचीले शैक्षणिक वातावरण को पोषित करने के लिए आवश्यक है।

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