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भारत: विभिन्न ग्रामीण संकट व उनके प्रमुख कारक

Lokesh Pal July 31, 2025 05:15 19 0

संदर्भ:

भारत में ग्रामीण संकट एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है, जिसमें कृषि क्षेत्र में वृद्धि के बावजूद ग्रामीण श्रमिकों को पर्याप्त रोजगार पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है

ग्रामीण संकट उत्पन्न करने वाले कारक:

  • ग्रामीण मजदूरी में संकुचन या स्थिरता: कृषि श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी में स्थिरता आई है, जिसका सीधा असर बड़े ग्रामीण कार्यबल की कमाई करने की क्षमता पर पड़ रहा है।
    • इसका अर्थ यह है कि ग्रामीण मजदूरों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ रही है, जिससे उनकी वित्तीय कठिनाई बढ़ रही है।
  • उच्च ग्रामीण मुद्रास्फीति: ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी हुई मुद्रास्फीति दर अल्प आय के मूल्य को कम कर देती है, जिससे परिवारों के लिए बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करना कठिन हो जाता है।
  • मनरेगा योजना (MGNREGS) के तहत रोजगार की उच्च मांग: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) में काम की मांग में वृद्धि देखी जा रही है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की कमी को दर्शाता है।
    • मनरेगा के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि जून 2024 और जून 2025 के बीच मनरेगा के तहत काम की मांग करने वाले परिवारों में 4.5 प्रतिशत की वृद्धि होगी, और यह संख्या 26.39 मिलियन से बढ़कर 27.59 मिलियन हो जाएगी।
    • महामारी के बाद से, मनरेगा कार्य की मांग करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है
    • हालाँकि, काम की मांग और इसकी उपलब्धता के बीच बढ़ता अंतर एक बड़े ग्रामीण संकट को रेखांकित करता है, जहाँ लॉकडाउन के बाद से रोजगार पाना मुश्किल हो गया है।
  • सुस्त ग्रामीण उपभोग: ग्रामीण उपभोग में गिरावट क्रय शक्ति में कमी तथा इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों में सामान्य मंदी को दर्शाती है, जिससे रोजगार सृजन में और बाधा उत्पन्न होती है।

मनरेगा योजना का अवलोकन:

  • मनरेगा (MGNREG अधिनियम, 2005 पर आधारित) गरीबी उन्मूलन और पूंजी निर्माण के लिए बनाई गई ग्रामीण विकास नीतियों की पृष्ठभूमि के आधार पर प्रकाश में लाया गया।
  • इसके तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को प्रतिवर्ष कम से कम 100 दिन का मजदूरी रोजगार सुनिश्चित किया जाता है।
  • इस योजना को मांग-आधारित कार्यक्रम के रूप में तैयार किया गया है – जिसमें श्रमिकों की मांग के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराया जाता है।
  • यह योजना वर्षों तक जारी रही, और विशेष रूप से कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में वापस लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों को इसमें शामिल किया गया।

मनरेगा से संबंधित चुनौतियाँ:

  • इस योजना को अपर्याप्त बजट आवंटन और विलंबित वेतन वितरण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • इससे वर्ष 2018-19 तक, केवल 4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को औसतन 100 दिन का काम मिला। इसके अलावा वर्ष 2023-24 में, एक औसत मनरेगा परिवार केवल 52 दिन ही काम कर पाया।
  • अतः स्पष्ट है कि काम की मांग और इसकी उपलब्धता के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है, जहां कोविड-19 के लॉकडाउन के बाद से रोजगार पाना और भि मुश्किल हो गया है।

कृषि क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

कृषि क्षेत्र, जो भारत का सबसे बड़ा नियोक्ता उद्योग बना हुआ है, परंतु इसमें अंतर्निहित अनेक कमजोरियां हैं जो ग्रामीण संकट में योगदान दे रही हैं:

  • असंगत रोजगार हिस्सेदारी: वर्ष 2023-24 में कृषि में रोजगार का 46.1 प्रतिशत हिस्सा था, फिर भी इसने देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 16 प्रतिशत का योगदान दिया
    • इससे ज्ञात होता है कि बड़ी संख्या में लोग ऐसे क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिसकी उत्पादकता और आय सृजन क्षमता अपेक्षाकृत कम है।
  • कृषि कार्यबल में वृद्धि: कृषि में काम करने वाले लोगों की हिस्सेदारी वर्ष 2018-19 में 42.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 46.1 प्रतिशत हो गई
    • इस वृद्धि का मुख्य कारण कोविड-19 महामारी और उससे संबंधित लॉकडाउन है, जिसने कई शहरी प्रवासी श्रमिकों को अपने गांवों में लौटने और अन्य विकल्पों के अभाव में “जीवन रक्षक” या “बैक-ऑप्शन” के रूप में कृषि कार्य करने के लिए मजबूर किया।
    • इससे गैर-कृषि रोजगार अवसरों की कमी उजागर होती है।
  • अपर्याप्त नीतिगत फोकस: सरकारी नीतियों ने मुख्य रूप से आपूर्ति-पक्ष उपायों पर ध्यान केंद्रित किया है, जैसे कि ऋण पहुंच को आसान बनाना, कॉर्पोरेट करों को कम करना और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना।
    • हालाँकि, ये उपाय रोजगार सृजन और ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपलब्ध रोजगार की गुणवत्ता जैसी बुनियादी चिंताओं को दूर करने में विफल रहे हैं।
  • खेती की बढ़ती लागत: श्रम, उर्वरक और मशीनरी सहित खेती की बढ़ती लागत के कारण किसान अपनी कृषि गतिविधियों के प्रबंधन के लिए तेजी से ऋण लेने पर निर्भर हो रहे हैं।
  • हरित क्रांति का असमान प्रभाव: 1970 के दशक में हरित क्रांति ने खाद्यान्न आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद की, लेकिन इसका प्रभाव असमान था, जिसके कारण क्षेत्रीय असमानताएं, वर्षा आधारित क्षेत्रों की उपेक्षा, पोषण फसलों और संसाधन-विहीन किसानों का बहिष्कार हुआ
    • इस योजना ने पारिस्थितिक क्षरण को लेकर भी चिंताएँ जताईं हैं। हालांकि ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार को बढ़ावा देने में हरित क्रांति की भूमिका पर बहस होती है; कुछ लोगों का तर्क है कि यह कई परिवारों के लिए संकट से प्रेरित विकल्प था।

निष्कर्ष:

भारत में व्याप्त ग्रामीण संकट एक बहुआयामी मुद्दा है, जो स्थिर मजदूरी, उच्च मुद्रास्फीति और गुणवत्तापूर्ण रोजगार अवसरों की कमी से प्रेरित है।

  • इस संकट को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए, भविष्य की नीतियों में कृषि में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है, विशेष रूप से सिंचाई, भंडारण और जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों जैसे क्षेत्रों में, तथा ग्रामीण आबादी के लिए आवश्यक विकल्प के रूप में मनरेगा और कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करना होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: मनरेगा भारत में ग्रामीण रोज़गार सुरक्षा और आर्थिक लचीलेपन की आधारशिला रहा है। ग्रामीण आजीविका को बनाए रखने में इसकी भूमिका का परीक्षण कीजिए। विश्लेषण कीजिए कि हाल ही में लागू की गई 60% व्यय सीमा इसके माँग-आधारित स्वरूप और समग्र प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित कर सकती है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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