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बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025

Lokesh Pal August 02, 2025 02:51 14 0

संदर्भ

1 अगस्त, 2025 से बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 के प्रमुख प्रावधान लागू हो गए हैं।

बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान

  • पर्याप्त हित (Substantial interest) की पुनर्परिभाषा: किसी बैंकिंग कंपनी में पर्याप्त हित” (Substantial interest) निर्धारित करने की सीमा ₹5 लाख से बढ़ाकर ₹2 करोड़ कर दी गई है।
    • पर्याप्त हित का अर्थ है किसी बैंक में उसके निर्णयों को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त शेयर रखना। यह निदेशकों और हितधारकों की पात्रता तथा संभावित हितों के टकराव का निर्धारण करता है।
  • सहकारी बैंक प्रशासन में परिवर्तन: सहकारी बैंकों में निदेशकों (अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशकों को छोड़कर) का अधिकतम कार्यकाल 8 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है।
    • यह शासन मानदंडों को 97वें संविधान संशोधन के अनुरूप बनाता है, जो सहकारी स्वायत्तता और लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को अनिवार्य बनाता है।
  • लेखापरीक्षा पद्धतियों में सुधार: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अब वैधानिक लेखा परीक्षकों के पारिश्रमिक का निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है।
  • दावा रहित वित्तीय परिसंपत्तियों का हस्तांतरण: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को दावा रहित शेयरों, ब्याज और बॉण्ड राशि को इन्वेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड (Investor Education and Protection Fund) में स्थानांतरित करने की अनुमति है।
  • संशोधित रिपोर्टिंग दायित्व: यह संशोधन बैंकों की रिपोर्टिंग समय-सीमा को साप्ताहिक (प्रत्येक शुक्रवार) से बढ़ाकर पखवाड़े, मासिक या तिमाही आधार पर करने की अनुमति देता है, जिससे अनुपालन प्रक्रिया सरल हो जाती है, जबकि नियामक निगरानी से कोई समझौता नहीं होता।

संशोधन के अंतर्गत प्रभावित अधिनियम

अधिनियम का नाम

प्रावधान प्रस्तुत किया गया

भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 बैंकों के लिए रिपोर्टिंग समय-सीमा को साप्ताहिक से बदलकर पाक्षिक/मासिक/तिमाही कर दिया गया।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 पर्याप्त हित (Substantial interest) सीमा को ₹5 लाख से बढ़ाकर ₹2 करोड़ कर दिया गया।
भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955

SBI को इन्वेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड (Investor Education and Protection Fund) में दावा रहित शेयरों और निधियों को स्थानांतरित करने में सक्षम बनाया गया।

बैंकिंग कंपनियाँ (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वैधानिक लेखा परीक्षकों के पारिश्रमिक का निर्णय लेने का अधिकार दिया गया।
बैंकिंग कंपनियाँ (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980 राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए बेहतर प्रशासन और लेखापरीक्षा प्रावधानों की अनुमति दी गई।

ग्राहकों के लिए परिवर्तन

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बेहतर लेखा परीक्षा और पारदर्शिता: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बेहतर लेखा परीक्षा मानक जमाकर्ताओं का विश्वास बढ़ाते हैं और सुरक्षित बैंकिंग प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं।
  • IEPF के माध्यम से बेहतर दावा तंत्र: दावा न की गई संपत्तियों का IEPF में स्थानांतरण कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए एक केंद्रीकृत और सुलभ दावा प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
  • सहकारी बैंकों में बेहतर प्रतिनिधित्व: निदेशकों का विस्तारित कार्यकाल संस्थागत स्थिरता और बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करता है, जिससे समुदाय-आधारित सहकारी बैंकों में सेवा वितरण की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होता है।
  • कम प्रणालीगत जोखिम: उन्नत निगरानी और शासन तंत्र बैंकिंग क्षेत्र की प्रणालीगत कमजोरियों को प्रभावी रूप से कम करते हैं तथा सार्वजनिक धन की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

निष्कर्ष

बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 शासन को मजबूत करने, पारदर्शिता सुनिश्चित करने, सहकारी बैंकों को संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप बनाने और अधिक लचीले एवं समावेशी भारतीय बैंकिंग पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जमाकर्ताओं की सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।

इन्वेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड (Investor Education and Protection Fund)

इन्वेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड (IEPF) भारत सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना निवेशक जागरूकता को बढ़ावा देने और दावा न की गई वित्तीय परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिए की गई है।

स्थापना: IEPF की स्थापना कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 205(C) के तहत की गई थी और बाद में कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 125 के तहत इसे पुनर्स्थापित किया गया।

IEPF प्राधिकरण की स्थापना वर्ष 2016 में की गई थी।

भूमिका और कार्य

  • कंपनियों द्वारा हस्तांतरित दावा न किए गए लाभांश, शेयर, परिपक्व जमा आदि का प्रबंधन करके निवेशकों के हितों की रक्षा करता है।
  • यह प्रणाली वैध उत्तराधिकारियों सहित पात्र दावेदारों को ऑनलाइन धनवापसी प्रक्रिया के माध्यम से अवितरित राशि प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करती है।।
  • निवेशकों को उनके अधिकारों और कॉरपोरेट प्रशासन के बारे में शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है।
  • दावा न की गई संपत्तियों के समय पर हस्तांतरण से संबंधित नियमों के साथ कंपनियों के अनुपालन की निगरानी करता है।

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