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ओडिशा की ‘लैंडरेसज’ को औपचारिक बीज प्रणालियों में मुख्यधारा में लाने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया

Lokesh Pal August 04, 2025 02:41 12 0

संदर्भ

हाल ही में ओडिशा सरकार ने अपने श्री अन्न अभियान (SAA) के अंतर्गत पारंपरिक फसल किस्मों (लैंडरेसज) को औपचारिक बीज प्रणाली में एकीकृत करने हेतु एक मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure – SOP) अधिसूचित की है।

बीज शासन (Seed Governance) के बारे में

  • बीज शासन (सीड गवर्नेंस) से तात्पर्य उन नीतियों, विनियमों, संस्थागत ढाँचों और प्रथाओं से है, जो फसल आनुवंशिक संसाधनों, प्रजनन, किस्मों के विमोचन, बीज गुणवत्ता, उत्पादन, वितरण तथा किसानों की पहुँच जैसे समस्त पहलुओं के प्रबंधन और निगरानी को नियंत्रित करते हैं।

 मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) की मुख्य विशेषताएँ

  • उद्देश्य: औपचारिक बीज प्रणालियों (उच्च उपज देने वाली, प्रमाणित किस्में) और अनौपचारिक, समुदाय प्रबंधित बीज प्रणालियों के बीच के अंतर को कम करना।
  • क्षेत्र विस्तार: यह पहल बाजरे की स्थानीय किस्मों से लेकर दालों, कंदों और अन्य अनाजों सहित विविध पारंपरिक फसलों को समाहित करती है।
  • किसान-केंद्रित बीज शासन: इस पहल का उद्देश्य आनुवंशिक संसाधनों पर किसानों के पारंपरिक ज्ञान, अधिकारों और संरक्षक भूमिका को मान्यता देना और उसे सुदृढ़ करना है।

श्री अन्न अभियान (Shree Anna Abhiyan- SAA) के बारे में

  • प्रवर्तक: कृषि एवं किसान सशक्तीकरण विभाग, ओडिशा सरकार।
  • प्रवर्तन वर्ष: वर्ष 2017
  • उद्देश्य: बाजरा संवर्द्धन हेतु विशेष कार्यक्रम के अंतर्गत ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में बाजरे की कृषि एवं खपत को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • मान्यता
    • संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) और संयुक्त राष्ट्र-FAO ने इस कार्यक्रम को कृषि-पारिस्थितिकी परिवर्तनों के लिए एक उपयुक्त मॉडल के रूप में मान्यता दी है।
    • भारत सरकार ने अन्य राज्यों को बाजरा, दलहन और तिलहन को बढ़ावा देने के लिए श्री अन्न अभियान के दृष्टिकोण को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है।

लैंडरेस (Landraces) क्या हैं?

  • किसानों के पीढ़ी दर पीढ़ी किए गए चयन और प्राकृतिक अनुकूलन से आनुवंशिक रूप से विविध फसलें  विकसित हुई हैं।
  • विशेषताएँ
    • स्थानीय कृषि-जलवायु उपयुक्तता
    • जलवायु लचीलापन और कीट सहनशीलता
    • कम इनपुट स्थितियों में पोषण संबंधी समृद्धि और उपज स्थिरता।
  • खतरा: हरित क्रांति के दौरान उच्च उपज देने वाली प्रजातियों पर अत्यधिक जोर दिए जाने के कारण पारंपरिक भूमि प्रजातियाँ सुभेद्य हो गईं, जिससे आनुवंशिक क्षरण की स्थिति उत्पन्न हुई।

रोडमैप के प्रमुख घटक

  • कृषि जैव विविधता सर्वेक्षण
    • स्वाद, अनुकूलनशीलता, जलवायु लचीलापन, कीट प्रतिरोध, पोषण आदि के आधार पर ओडिशा भर में मूल्यवान भूमि प्रजातियों की पहचान करना।
    • किसानों के ज्ञान को वैज्ञानिक सत्यापन के साथ जोड़ना।
  • संस्थागत संरचनाओं का निर्माण
    • फसल विविधता ब्लॉक (CDB): संरक्षण, शुद्धिकरण और गुणन हेतु परिचालन केंद्र।
    • सामुदायिक बीज केंद्र (CSC): CDB गतिविधियों को संचालित करने और पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम (PPVFRA) के अंतर्गत कानूनी पंजीकरण की सुविधा प्रदान करने के लिए FPO, किसान समूहों, महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित।
  • डिजिटल लैंडरेस रजिस्ट्री
    • राज्य-स्तरीय रजिस्ट्री का उद्देश्य कृषि-आकृति विज्ञान संबंधी विशेषताओं, जियो-टैग, नृवंशविज्ञान संबंधी जानकारी एवं पारंपरिक उपयोगों का व्यवस्थित दस्तावेजीकरण करना है।
  • सहभागी किस्म चयन
    • दो वर्षों की अवधि में कम-से-कम 10 किसानों की सहभागिता के साथ बहु-स्थानीय क्षेत्र परीक्षण एवं खेत-स्तरीय प्रदर्शन आयोजित किए जाएँगे।
    • मानदंड: उपज स्थिरता, जलवायु अनुकूलनशीलता, कीट प्रतिरोध, पोषण और पाककला/संस्कृति उपयुक्तता।
    • निर्णय लेने में किसानों की राय केंद्रीय होगी।
  • बीज मानक और किस्म विमोचन
    • लैंडरेस किस्म विमोचन समिति (Landrace Varietal Release Committee) बीज मानकों को अंतिम रूप देती है।
    • PPVFRA, ICAR संस्थानों, ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, नागरिक समाज और संरक्षक किसानों से प्राप्त सुझावों के आधार पर विकसित।
    • किसी भी औपचारिक सरकारी या कानूनी घोषणा से पूर्व, जारी किए गए डेटा, रिपोर्ट या दस्तावेज को दो वर्षों तक सत्यापन, परीक्षण या समीक्षा के लिए उपलब्ध रखा जाएगा।

सामुदायिक अधिकारों की मान्यता

  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) सुविधा के अंतर्गत संबंधित समुदायों या संरक्षक किसानों के नाम पर पंजीकृत सभी भू-प्रजातियाँ।
  • भू-प्रजातियों का मूल नाम यथावत रखा जाएगा और उनकी स्थान-विशिष्ट पहचान को आधिकारिक अभिलेखों में सुरक्षित रखा जाएगा।
  • यह किसानों के योगदान को औपचारिक मान्यता सुनिश्चित करता है और कानून के तहत उनके अधिकारों की रक्षा करता है।

SoP का महत्त्व

  • स्थायित्व: जलवायु-अनुकूल, कम लागत वाली कृषि को समर्थन प्रदान करता है।
  • समावेशिता: सामुदायिक बीज प्रणालियों को औपचारिक रूप देता है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से नीतिगत ढाँचों से बाहर रखा गया है।
  • कृषि जैव विविधता संरक्षण: यह पहल उच्च उपज आधारित प्रजातियों के प्रभुत्व के कारण उत्पन्न हुए आनुवंशिक क्षरण की प्रवृत्ति को परिवर्तित करने में सहायक सिद्ध होती है।
  • वैश्विक संरेखण: यह पहल खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा ओडिशा के कोरापुट क्षेत्र को प्रदान की गई GIAHS मान्यता पर आधारित है।

ग्लोबली इंपॉर्टेन्ट एग्रीकल्चरल हेरिटेज सिस्टम्स  (Globally Important Agricultural Heritage Systems- GIAHS)

  • उत्पत्ति: संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के सहयोग से वर्ष 2002 में प्रारंभ की गई।
  • उद्देश्य: उन पारंपरिक कृषि प्रणालियों की पहचान, संरक्षण और संवर्द्धन करना, जिन्होंने सदियों से जैव विविधता, सांस्कृतिक विरासत और लचीलेपन को बनाए रखा है।
  • मुख्य विशेषताएँ: ये जीवंत, विकसित प्रणालियाँ हैं, जिन्हें स्वदेशी समुदायों द्वारा समय आधारित एवं पारिस्थितिकी रूप से सुदृढ़ प्रथाओं का उपयोग करके बनाए रखा जाता है।
  • प्रमुख मानदंड: मान्यता प्राप्त प्रणालियों में कृषि जैव विविधता, लचीले पारिस्थितिकी तंत्र और सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रथाओं का स्थायी रूप से सम्मिश्रण होना चाहिए।
  • वैश्विक स्थिति: अब तक, 29 देशों की 99 प्रणालियों को GIAHS मान्यता प्राप्त हो चुकी है।
  • भारत में मान्यता प्राप्त GIAHS
    • कश्मीर की केसर विरासत
    • कोरापुट पारंपरिक कृषि प्रणाली – ओडिशा
    • कुट्टानाड समुद्र तल आधारित कृषि प्रणाली – केरल।

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