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वैश्विक अनिश्चितता के बीच स्वदेशी को बढ़ावा

Lokesh Pal August 05, 2025 02:45 26 0

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा वाराणसी में स्वदेशी की भावना को अपनाने और स्थानीय स्तर पर निर्मित उत्पादों को समर्थन देने हेतु किया गया आह्वान राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता तथा आर्थिक विकास पर जोर देता है।

प्रधानमंत्री के भाषण के मुख्य अंश

  • आर्थिक विकास और सतर्कता: भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।
    • वैश्विक अनिश्चितताओं के मध्य आर्थिक हितों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है।

  • वैश्विक आर्थिक परिदृश्य: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और अनिश्चितताएँ।
    • देश अपने-अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री मोदी का स्वदेशी आह्वान
    • स्वदेशी की परिभाषा: भारतीयों द्वारा निर्मित उत्पाद।
    • मंत्र: वोकल फॉर लोकल’ स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं को बढ़ावा।
    • संकल्प: नागरिकों को स्वदेशी (मेक इन इंडिया) उत्पाद खरीदने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
  • नागरिकों की जिम्मेदारियाँ: सुनिश्चित करना कि घरों में आने वाली नई वस्तुएँ स्वदेशी हों।
  • त्योहारों का आकर्षण: महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के रूप में भारतीय निर्मित उत्पादों का उपयोग करना।
  • व्यापारियों और दुकानदारों की भूमिका: केवल स्वदेशी उत्पाद बेचने का संकल्प लेना, जिसे सच्ची राष्ट्रीय सेवा कहा जाता है।

स्वदेशी आंदोलन (ऐतिहासिक संदर्भ)

  • उत्पत्ति: स्वदेशी, जिसका अर्थ है आत्मनिर्भर’ या ‘स्वदेशी’, पहली बार 20वीं सदी के आरंभ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress- INC) के सत्रों के दौरान लोकप्रिय हुआ था, विशेष रूप से बंगाल विभाजन (1905) के दौरान।
  • गांधी की भूमिका: गांधी जी ने अपने असहयोग आंदोलन (1920 के दशक) के तहत खादी को बढ़ावा देकर और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के माध्यम से स्वदेशी आंदोलन को पुनर्जीवित किया।
  • रबींद्रनाथ टैगोर: टैगोर ने जुलाई 1904 में एक भाषण के माध्यम से स्वदेशी समाज की अपनी अवधारणा को स्पष्ट किया।
    • उनकी अवधारणा भारतीय समाज और शासन की संरचना पर एक वैज्ञानिक विमर्श थी।
  • उद्देश्य: विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना और घरेलू उद्योगों, विशेष रूप से हस्तशिल्प, वस्त्र और स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना।

समकालीन भारत में स्वदेशी के प्रमुख पहलू

  • स्थानीय विनिर्माण और उद्योग को बढ़ावा: आत्मनिर्भर भारत अभियान भारत को विदेशी आयात पर निर्भरता कम करने और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय विनिर्माण पर है, जिसमें मेक इन इंडिया’ स्वदेशी उत्पादन के माध्यम से आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने का प्रमुख कार्यक्रम है।
    • इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और रक्षा विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को बढ़ाना है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता: जहाँ एक ओर वैश्वीकरण आर्थिक परिदृश्य को आकार दे रहा है, वहीं भारत स्वदेशी मूल्यों के अनुरूप अपनी रणनीति को पुनर्गठित कर रहा है और आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है।
    • यह राष्ट्रीय स्वायत्तता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मध्य संतुलन को दर्शाता है।
  • स्वदेशी बनाम आयात प्रतिस्थापन: समकालीन स्वदेशी आंदोलन, आयात प्रतिस्थापन औद्योगीकरण (Import Substitution Industrialization- ISI) रणनीति के समान है, जिसका उद्देश्य आयात को कम करके स्थानीय उद्योगों का विकास करना था।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत पैकेज (2020) ने स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देकर, बाह्य आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता कम करके और स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देकर एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने की भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
  • वोकल फॉर लोकल” अभियान: स्वदेशी पहल के तहतवोकल फॉर लोकल” मुहावरा अत्यधिक लोकप्रिय हुआ है, जो नागरिकों, व्यापारियों और व्यवसायों से स्थानीय उत्पादों का समर्थन तथा प्रचार करने का आग्रह करता है।
    • प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपनाया गया यह मंत्र लोगों को यह सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है कि क्या वे जो उत्पाद खरीदते हैं, वे भारतीयों द्वारा निर्मित हैं, और भारतीय श्रम, कौशल तथा संसाधनों से निर्मित उत्पादों के उपयोग के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: स्टार्ट-अप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी पहल स्वदेशी से जुड़ी हैं, जो तकनीकी उद्योगों, नवीकरणीय ऊर्जा और वित्तीय प्रौद्योगिकी में स्थानीय नवाचार तथा उद्यमिता को बढ़ावा देती हैं।
    • भारत का लक्ष्य विदेशी तकनीकी दिग्गजों पर निर्भरता कम करते हुए अपने स्वयं के तकनीकी समाधान तैयार करना है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: स्वदेशी भावना सांस्कृतिक विरासत तक विस्तृत है, जो पारंपरिक कलाओं, शिल्प और साहित्य के पुनरुद्धार तथा संवर्द्धन पर जोरदेती है।
    • खादी, जो कभी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक थी, का आधुनिकीकरण किया गया है और इसे एक सतत् तथा नैतिक विचार के रूप में प्रचारित किया गया है, जो भारत के ऐतिहासिक संघर्ष को समकालीन सामाजिक एवं आर्थिक आंदोलनों से जोड़ता है।

आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत)

  • परिभाषा: आत्मनिर्भरता, किसी राष्ट्र की अपने संसाधनों, कौशल और उद्योगों पर निर्भर रहने की क्षमता को संदर्भित करती है, जिससे विदेशी देशों पर निर्भरता कम होती है।
  • नीतिगत उद्देश्य: आत्मनिर्भरता की अवधारणा वैश्विक अनिश्चितताओं (जैसे- आर्थिक मंदी, आपूर्ति शृंखला व्यवधान) का सामना करने में आर्थिक स्वतंत्रता और लचीलेपन के साथ संरेखित होती है।
  • वर्ष 2020 के बाद की आर्थिक रणनीति
    • आत्मनिर्भर भारत: घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने, आपूर्ति शृंखला सुरक्षा सुनिश्चित करने और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू किया गया।
      • आयात कम करने, स्थानीय रोजगार सृजित करने और भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए विनिर्माण, प्रौद्योगिकी, कृषि तथा सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का महत्त्व

  • आर्थिक स्वतंत्रता: स्वदेशी स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देता है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होती है।
    • उदाहरण के लिए, मेक इन इंडिया ने मोबाइल विनिर्माण को बढ़ावा दिया है, वर्ष 2014 से इकाइयों में 50% की वृद्धि हुई है, जिससे विदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स पर निर्भरता कम हुई है।
  • रोजगार सृजन: स्थानीय उद्योगों को समर्थन देकर, स्वदेशी रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देता है, विशेष रूप से MSME (भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 30% का योगदान) में, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक पुनरुत्थान: खादी जैसे स्वदेशी भारतीय उत्पादों और स्वदेशी कलाओं को पुनर्जीवित करता है, सांस्कृतिक पहचान और एकता को मजबूत करता है।
  • नवाचार और तकनीकी विकास: स्टार्ट-अप इंडिया पहल ने भारत को तकनीक और विनिर्माण में स्थानीय नवाचार को बढ़ावा देते हुए वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बनने के लिए प्रेरित किया है।
  • स्थायित्व: स्वदेशी खादी जैसे पर्यावरण-अनुकूल स्थानीय उत्पादों का समर्थन करता है, जो पर्यावरणीय क्षरण को कम करता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: रक्षा में आत्मनिर्भरता महत्त्वपूर्ण रक्षा आपूर्ति के लिए विदेशी देशों पर निर्भरता को कम करती है। भारत की मेक इन इंडिया रक्षा पहल रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करती है।
  • आर्थिक लचीलापन: स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देकर, भारत वैश्विक आर्थिक व्यवधानों का सामना कर सकता है, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान प्रदर्शित हुआ, जहाँ भारत ने स्थानीय स्तर पर टीके और पीपीई का उत्पादन किया।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को समर्थन देने वाली सरकारी पहल

  • आत्मनिर्भर भारत अभियान: वर्ष 2020 में शुरू किया गया यह अभियान कृषि, रक्षा और MSME जैसे क्षेत्रों में आयात पर निर्भरता कम करने तथा घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
    • 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज ने कोविड-19 महामारी के दौरान महत्त्वपूर्ण उद्योगों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की।
  • मेक इन इंडिया: वर्ष 2014 में शुरू किए गए मेक इन इंडिया अभियान का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और रक्षा क्षेत्र में, में परिवर्तित करना है।
    • इसके परिणामस्वरूप मोबाइल विनिर्माण इकाइयों में 50% की वृद्धि हुई है और हजारों नौकरियों का सृजन हुआ है, जिससे विदेशी आयात पर निर्भरता कम हुई है।
  • स्टार्ट-अप इंडिया पहल (वर्ष  2016): यह पहल वित्तीय सहायता, नीतिगत सुधार और स्थानीय स्टार्ट-अप के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करके उद्यमिता तथा नवाचार को बढ़ावा देती है।
    • इसके कारण 80,000 से अधिक स्टार्ट-अप स्थापित हुए हैं, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बन गया है।
  • आत्मनिर्भर कृषि और ग्रामीण विकास पहल: पीएम-किसान, पीएम फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी योजनाओं का उद्देश्य किसानों को सशक्त बनाना, कृषि की स्थिरता में सुधार लाना तथा वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है।
    • पीएम-किसान सम्मान निधि के तहत किसानों को सीधे ₹3.75 लाख करोड़ से अधिक की राशि हस्तांतरित की गई है।
  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (National Policy on Electronics- NPE) (वर्ष 2019): वित्त वर्ष 2019-2025 के लिए शुरू की गई, यह नागरिकों को विश्व स्तरीय अवसंरचना प्रदान करने और उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए अपनी तरह की पहली, संपूर्ण सरकारी पहल है।
    • इसका उद्देश्य परियोजना तैयारी में सुधार करना और अवसंरचना में निवेश आकर्षित करना है।
  • कौशल भारत मिशन: वर्ष 2015 में एक राष्ट्रव्यापी पहल के रूप में शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य भारत के युवाओं को रोजगार और उद्यमिता के लिए आवश्यक कौशल से लैस करना है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति (National Policy on Electronics- NPE): NEP 2019, जो पिछली NEP-2012 का स्थान लेती है, का उद्देश्य भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण (Electronics System Design and Manufacturing- ESDM) के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
    • इसमें घरेलू विनिर्माण और निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कारोबार करना है।
    • भारत अब दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है, जिससे उसके व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद मिल रही है।

स्वदेशी में MSME क्षेत्र की भूमिका

  • आयात पर निर्भरता कम करना: MSME उन उत्पादों का स्थानीय स्तर पर निर्माण कर सकते हैं, जो मुख्यतः आयातित होते हैं, जिससे विदेशी वस्तुओं पर उनकी निर्भरता कम हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए, चीन से आयातित कार्बन उत्पादों का MSME द्वारा घरेलू स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है, जिससे आत्मनिर्भरता और आर्थिक लचीलापन बढ़ेगा।
  • स्थानीय उत्पादन और उद्यमिता को बढ़ावा देना: MSME स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए वोकल फॉर लोकल’ पहल का लाभ उठा सकते हैं।
    • पारंपरिक रूप से अन्य देशों से आयातित उत्पादों का निर्माण करके, MSME आर्थिक आत्मनिर्भरता में योगदान करते हैं और स्थानीय उद्यमियों के लिए अवसर प्रदान करते हैं।
  • निर्यात बाजार विस्तार: एक बार जब MSME स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं की घरेलू माँग को पूरा कर लेंगे, तो वे निर्यात बाजारों का पता लगा सकते हैं, जिससे भारत के व्यापार संतुलन तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में और वृद्धि होगी।
    • हस्तनिर्मित कागज, अगरबत्ती और शहद निर्यात क्षमता वाले MSME उत्पादों के उदाहरण हैं।
  • ग्रामीण और स्थानीय उद्योगों में रोजगार सृजन: ग्रामोद्योग और पारंपरिक हस्तशिल्प पर ध्यान केंद्रित करके, MSME विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • उदाहरण के लिए, बाँस के उत्पादों और हस्तनिर्मित वस्तुओं को बढ़ावा देने के खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के प्रयास हजारों ग्रामीण श्रमिकों के लिए रोजगार सृजित कर सकते हैं।
  • स्वदेशी उद्योगों को मजबूत करना: खादी और ग्रामोद्योग आयोग की पहल, जैसे कि CAPF कैंटीनों को उत्पादों की आपूर्ति, न केवल स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देती है, बल्कि स्वदेशी उत्पादों की पहुँच और पहचान को भी बढ़ाती है।
  • तकनीकी बाधाओं पर विजय: MSME शुरुआत में कम तकनीक वाले उत्पादों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिनके लिए न्यूनतम तकनीक की आवश्यकता होती है और बाद में धीरे-धीरे मध्यम तथा उच्च तकनीक वाले उत्पादन को अपना सकते हैं।
    • उच्च शुल्क संरक्षण और मानकीकरण उपायों के साथ, MSME नवाचार कर सकते हैं और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, जिससे उन्नत क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता में योगदान मिल सकता है।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के लिए चुनौतियाँ

  • वैश्वीकरण और परस्पर निर्भरता: आज की परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में, पूर्ण आत्मनिर्भरता भारत की वैश्विक व्यापार से लाभ उठाने की क्षमता में बाधा डाल सकती है, खासकर प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे क्षेत्रों में।
    • उच्च तकनीक वाले उत्पादों और कच्चे माल के लिए वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर भारत की निर्भरता, पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य को चुनौतीपूर्ण बनाती है।
  • गुणवत्ता और मूल्य प्रतिस्पर्द्धात्मकता: स्वदेशी उत्पाद प्रायः गुणवत्ता और लागत के मामले में विदेशी वस्तुओं से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे घरेलू और वैश्विक दोनों बाजारों में उनकी अपील सीमित हो जाती है।
    • हाथ से बने वस्त्र (जैसे- खादी) जैसे उत्पाद बड़े पैमाने पर उत्पादित विदेशी समकक्षों की तुलना में अधिक महंगे और कभी-कभी कम स्थायी होते हैं, जिससे उपभोक्ताओं के लिए स्वदेशी को अपनाना मुश्किल हो जाता है।
  • अवसंरचनात्मक और तकनीकी अंतराल: भारत प्रमुख क्षेत्रों में अवसंरचनात्मक सीमाओं का सामना कर रहा है, जो स्वदेशी विनिर्माण के विस्तार में बाधा डालता है।
    • भारतीय रक्षा विनिर्माण अभी भी प्रौद्योगिकी के मामले में अमेरिका और रूस जैसे उन्नत देशों से पीछे है, जिसके लिए उन्नत उपकरणों के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता होती है।
  • नौकरशाही और नीतिगत बाधाएँ: सरकारी नीतियाँ और नौकरशाही बाधाएँ कभी-कभी स्थानीय उद्योगों के विकास तथा आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा डालती हैं।
    • जटिल नियमों और कर ढाँचों ने लघु उद्योगों के विकास में बाधा डाली है, जिससे वैश्विक बाजार में विस्तार और प्रतिस्पर्द्धा करने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई है।
  • पूँजी और निवेश की बाधाएँ: स्थानीय उद्योगों में पर्याप्त निवेश की कमी उनके विकास और स्वदेशी समाधानों के विकास में बाधा बन सकती है।
    • भारतीय स्टार्ट-अप और लघु उद्यमों को प्रायः धन के अभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उन वैश्विक निगमों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है, जिनके पास अधिक पूँजी और उन्नत तकनीकों तक पहुँच है।
  • सांस्कृतिक और उपभोक्ता व्यवहार संबंधी चुनौतियाँ: कई भारतीय उपभोक्ता उच्च गुणवत्ता और प्रतिष्ठा के प्रतीक के कारण विदेशी ब्रांडों को प्राथमिकता देते रहते हैं।
    • ऐप्पल, नाइकी और सैमसंग जैसे ब्रांडों को अभी भी स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों की तुलना में अधिक पसंद किया जाता है, जो घरेलू उपभोग को बढ़ावा देने वाली स्वदेशी पहलों के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करता है।
  • बाहरी दबाव और व्यापार संबंध: अन्य देशों के साथ भारत के व्यापार संबंध संरक्षणवादी नीतियों से प्रभावित हो सकते हैं, जो तनाव पैदा कर सकते हैं और विकास के अवसरों को सीमित कर सकते हैं।
    • भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ तथा कृषि एवं डेयरी उत्पादों पर चल रहा व्यापार विवाद इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार वैश्विक व्यापार नीतियाँ स्वदेशी लक्ष्यों को चुनौती दे सकती हैं।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के लिए आगे की राह

  • नवाचार और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: स्थानीय उद्योगों में नवाचार और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
    • सरकारी वित्तपोषण और निजी भागीदारी, विशेष रूप से रक्षा तथा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में, प्रौद्योगिकी-आधारित आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे सकती है।
  • बुनियादी ढाँचे और कौशल विकास को मजबूत बनाना: लॉजिस्टिक्स, विनिर्माण केंद्रों और स्मार्ट शहरों में निवेश करना।
    • एक सक्षम कार्यबल तैयार करने और विदेशी विशेषज्ञता पर निर्भरता कम करने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना।
  • उपभोक्ता जागरूकता को बढ़ावा देना: स्थानीय उत्पादों के लाभों के बारे में जागरूकता अभियान चलाना।
    • सरकारी और निजी क्षेत्र की पहलों के माध्यम से उपभोक्ताओं को स्वदेशी वस्तुओं को चुनने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • MSME विकास के लिए नीतिगत सुधार: नियमों को सरल बनाना और MSME पर कर का बोझ कम करना।
    • लघु उद्योग क्षेत्र को मजबूत करने, रोजगार सृजन और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • डिजिटल और तकनीकी प्रगति का लाभ उठाना: स्थानीय व्यवसायों को डिजिटल तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • घरेलू और वैश्विक स्तर पर स्थानीय उत्पादों की पहुँच बढ़ाने के लिए एक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
  • एक मजबूत घरेलू आपूर्ति शृंखला विकसित करना: स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं में निवेश करना और आवश्यक वस्तुओं के लिए रसद व्यवस्था को सुव्यवस्थित करना।
    • वैश्विक व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिए एक आत्मनिर्भर आपूर्ति शृंखला बनाना।
  • रणनीतिक वैश्विक साझेदारियाँ: विशेषज्ञता की कमी वाले क्षेत्रों में वैश्विक साझेदारों के साथ सहयोग करना।
    • संप्रभुता से समझौता किए बिना घरेलू विकास को समर्थन देने के लिए द्विपक्षीय समझौतों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का उपयोग करना।

निष्कर्ष

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता, जो भारत के ऐतिहासिक संघर्ष में निहित है तथा आत्मनिर्भर भारत जैसी आधुनिक पहलों के माध्यम से पुनर्जीवित हुई है, का उद्देश्य आर्थिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक गौरव और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना है। चुनौतियों का समाधान करके और नवाचार का लाभ उठाकर, भारत सतत् विकास तथा लचीलापन प्राप्त कर सकता है।

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