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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal August 08, 2025 04:00 6 0

नेक्रोपॉलिटिक्स (Necropolitics)

गाजा बम विस्फोटों से लेकर भारत के कोविड-19 प्रवासी संकट तक, नेक्रोपॉलिटिक्स (Necropolitics) से पता चलता है कि सत्ता किस प्रकार यह तय करती है कि कौन सम्मान के साथ जिएगा और किसे मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा।

नेक्रोपॉलिटिक्स (Necropolitics) क्या है?

  • अकिल एमबेंबे (Achille Mbembe) द्वारा प्रतिपादित नेक्रोपॉलिटिक्स, इस बात की जाँच करती है कि सत्ता किस प्रकार व्यवस्थित रूप से यह तय करके मृत्यु को नियंत्रित करती है कि किन जीवनों को मूल्यवान माना जाए और किनको त्याग दिया जाए।
  • बायोपॉलिटिक्स (Biopolitics) के विपरीत, जो स्वास्थ्य और कल्याण के माध्यम से जीवन को अनुकूलित करता है, नेक्रोपॉलिटिक्स संरचनात्मक परित्याग, संस्थागत हिंसा और राज्य/सामाजिक उदासीनता के माध्यम से जानबूझकर मृत्यु को नियोजित करता है।
  • यह ‘मृत्यु लोक’ बनाता है, जहाँ आबादी ‘जीवित किंतु मृत शरीर के रूप में’ जैविक रूप से जीवित, लेकिन अधिकारों और मान्यता से वंचित के रूप में रहती है।
  • उदाहरण
    • बंगाल का अकाल (वर्ष 1943 में) जहाँ नीतियों ने भारतीयों के जीवन पर साम्राज्यवाद को प्राथमिकता दी।
    • HIV/एड्स संकट ने समलैंगिक अश्वेत और ‘ग्रे’ कम्युनिटीज को छोड़ दिया।
    • गाजा (2023), जहाँ बच्चों की मृत्यु को एक संपार्श्विक के रूप में देखा गया।

नेक्रोपॉलिटिक्स की मुख्य विशेषताएँ

  • ‘स्टेट’ और ‘नॉन स्टेट’ आधारित हिंसा: सत्ता असहमति को दबाने और मृत्युदण्ड देने के लिए सैन्य बल, निगरानी और यहाँ तक कि निजी सेना का भी प्रयोग करती है।
  • शत्रुओं का निर्माण: आविष्कृत धमकियों, आपातकालीन कानूनों को बनाए रखने और बहिष्कार को उचित ठहराने के जरिए भय को हथियार बनाया जाता है।
  • धीमी और संरचनात्मक मृत्यु: भुखमरी, विस्थापन और आर्थिक उपेक्षा भी बमों की तरह ही प्रभावी ढंग से मृत्यु और विनाश का कारण बनते हैं।
  • औपनिवेशिक और नस्लीय जड़ें: ऐतिहासिक रूप से गुलाम या उपनिवेशित रहे पूर्ण समुदाय, त्याज्यता स्थल बने हुए हैं।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस

भारत ने 7 अगस्त 2025 को पुरस्कारों, प्रदर्शनियों एवं कारीगरों को सशक्त बनाने हेतु ‘हाट ऑन व्हील्स” पहल के शुभारंभ के साथ 11वाँ राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के बारे में

  • परिचय: राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत की समृद्ध बुनाई विरासत का सम्मान करता है, कारीगरों के कौशल का प्रदर्शन करता है एवं सतत्, स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों को बढ़ावा देता है।
  • उत्पत्ति: वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा घोषित, यह स्वदेशी आंदोलन का स्मरण कराता है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: 7 अगस्त, 1905 को शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके एवं हथकरघा बुनकरों को प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में सशक्त बनाकर आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित किया।

वर्ष 2025 समारोह की मुख्य विशेषताएँ

  • पुरस्कार: भारत मंडपम में आयोजित वर्ष 2025 के कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 5 संत कबीर पुरस्कार एवं 19 राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए।
  • हैकथॉन (Hackathon): पारंपरिक तकनीकों को संरक्षित करते हुए हथकरघा के आधुनिकीकरण हेतु नवीन दृष्टिकोणों में युवाओं को शामिल करने के लिए एक डिजाइन हैकथॉन की शुरुआत की गई।
  • वर्ष 2025 का फोकस: ‘मेरा हथकरघा, मेरा गौरव; मेरा उत्पाद, मेरा गौरव’ स्वदेशी शिल्प के माध्यम से सांस्कृतिक पहचान एवं आर्थिक सशक्तीकरण को दर्शाता है।

‘हाट ऑन व्हील्स’ पहल

  • यह एक मोबाइल बाजार है, जो 116 प्रकार के बुने हुए उत्पादों को सीधे शहरी उपभोक्ताओं तक पहुँचाता है, कारीगरों एवं बाजारों के मध्य के अंतराल को पाटता है तथा साथ ही ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देता है।
  • नोडल मंत्रालय: वस्त्र मंत्रालय (भारत सरकार), राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम (National Handloom Development Corporation- NHDC) के सहयोग से क्रियान्वित कर रहा है।

ताइवान का ‘ग्रेट रिकॉल’ वोट

हाल ही में ताइवान के मतदाताओं ने विपक्षी कुओमितांग (Kuomintang- KMT) पार्टी के 24 सांसदों को वापस बुलाने के लिए मतदान किया।

ग्रेट रिकॉल मूवमेंट

  • यह ताइवान में नागरिकों द्वारा संचालित एक व्यापक अभियान है, जिसका उद्देश्य संवैधानिक रिकॉल वोटों के माध्यम से 31 विपक्षी कुओमितांग (KMT) सांसदों को विधायिका से हटाना है।

ग्रेट रिकॉल वोट के बारे में

  • ताइवान की रिकॉल प्रणाली मतदाताओं को लोक अधिकारी चुनाव एवं रिकॉल अधिनियम के तहत निर्वाचित विधायकों को हटाने की अनुमति देती है।
  • इस रिकॉल आंदोलन को सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (Democratic Progressive Party- DPP) एवं ‘ब्लूबर्ड मूवमेंट’ जैसे नागरिक समूहों का समर्थन प्राप्त था।

कार्बन सिंक

नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि यूरोपीय वनों की कार्बन सिंक के रूप में कार्य करने की क्षमता में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन से प्रेरित एवं मानवीय गतिविधियों द्वारा तीव्र होने वाली चरम मौसम की घटनाएँ हैं।

कार्बन सिंक क्या है?

  • यह किसी भी प्राकृतिक या कृत्रिम प्रणाली को संदर्भित करता है, जो वायुमंडल से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की तुलना में अधिक अवशोषित करती है, जिससे ग्रीनहाउस गैस के स्तर को कम करने में मदद मिलती है।
  • प्राकृतिक कार्बन सिंक: इसमें वन, मृदा एवं महासागर शामिल हैं, जो प्रकाश संश्लेषण, मृदा संचयन तथा महासागरीय अवशोषण के माध्यम से कार्बन का भंडारण करते हैं।
  • कृत्रिम कार्बन सिंक: यह वायु से CO₂ को ग्रहण करने एवं उसे भूमिगत जलाशयों या अन्य सुरक्षित स्थानों में संगृहीत करने के लिए तकनीकों का उपयोग करता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • वर्ष 2010-2014 एवं वर्ष 2020-2022 के मध्य, कार्बन संचयन क्षमता में 27% की गिरावट आई।
  • वर्ष 2025 के आँकड़े वनों की कार्बन सिंक क्षमता में और भी अधिक गिरावट दर्शाते हैं।

गिरावट के कारण

  • चरम जलवायु की सीमाएँ
    • सूखा, हीटवेब एवं मिश्रित घटनाओं में वृद्धि से प्रकाश संश्लेषण तथा वृक्षों की वृद्धि कम हो जाती है।
    • इससे बड़े पैमाने पर वनाग्नि, कीटों के प्रकोप एवं हीटवेब जैसे द्वितीयक प्रभाव पड़ते हैं, जो कई वर्षों तक वनों के पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • वन प्रबंधन पद्धतियाँ: औद्योगिक लकड़ी उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • 30% वनों में एक ही वृक्ष प्रजाति शामिल है, जिसमें से एक-तिहाई स्प्रूस है।
    • 27% असमान आयुकाल युक्तवन हैं, जो जैव विविधता एवं लचीलेपन को कम करते हैं।
  • भूमि उपयोग कारक
    • वनीकरण में कमी।
    • वनों की धीमी वृद्धि।
    • वन कटाई की दर में वृद्धि।
    • उच्च ऊपरी मृदा कार्बन भंडारण के साथ अस्थिर वन मृदा।

यूरोपीय संघ के जलवायु लक्ष्यों पर प्रभाव

  • कार्बन सिंक क्षमता में गिरावट, वर्ष 2030 तक शुद्ध ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 55% की कटौती एवं वर्ष 2050 तक जलवायु तटस्थता प्राप्त करने के यूरोपीय संघ के लक्ष्यों को खतरे में डाल देगी।

सिस्मिक माइक्रोजोनेशन (Seismic Micronozation)

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (भारत सरकार) ने राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (National Centre for Seismology- NCS) के माध्यम से प्रमुख भारतीय शहरों एवं क्षेत्रों का सिस्मिक माइक्रोजोनेशन (Seismic Micronozation) किया है।

सिस्मिक हजार्ड माइक्रोजोनेशन (Seismic Hazard Microzonation)

  • ‘सिस्मिक हजार्ड माइक्रोजोनेशन’ में भू-वैज्ञानिक, भूकंपीय एवं भू-तकनीकी कारकों के आधार पर किसी क्षेत्र को भूकंप के जोखिम के समान स्तरों वाले क्षेत्रों में विभाजित करना शामिल है।
  • यह भूकंप की तैयारी एवं जोखिम न्यूनीकरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, जो प्रभावी आपदा पूर्व तथा आपदा पश्चात् नियोजन के लिए GIS-आधारित, स्थल-विशिष्ट डेटा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) की भूकंपीय खतरा एवं जोखिम मूल्यांकन (Seismic Hazard and Risk Assessment- SHRA) इकाई ऐसे खतरे संबंधी जानकारी तैयार करने तथा प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार है।

डेटा साझाकरण

  • इसके परिणाम राज्य एवं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों तथा भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के साथ साझा किए जाते हैं।
  • भूकंपरोधी भवनों के लिए BIS-अनुमोदित निर्माण दिशा-निर्देशों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।

भूकंपीय सूक्ष्मक्षेत्रीकरण के अंतर्गत आने वाले शहर

  • आच्छादित: दिल्ली, बंगलूरू, कोलकाता, गुवाहाटी, जबलपुर, देहरादून, अहमदाबाद, गांधीधाम एवं सिक्किम राज्य।
  • चेन्नई, कोयंबटूर, भुवनेश्वर एवं बंगलूरू को भी शामिल किया गया है।

भारतीय मानक ब्यूरो

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने ई-कॉमर्स एवं त्वरित वाणिज्य प्लेटफार्मों के माध्यम से बेचे जाने वाले उत्पादों के अनुपालन की जाँच हेतु वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए एक बाजार निगरानी अभियान चलाया।

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के बारे में

  • स्थापित: BIS अधिनियम, 2016 के अंतर्गत स्थापित किया गया था।
  • नोडल मंत्रालय: उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • स्थिति: भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है।
  • उद्देश्य
    • वस्तुओं के मानकीकरण, गुणवत्ता आश्वासन एवं प्रमाणन को बढ़ावा देना।
    • उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करना एवं गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे के सामंजस्यपूर्ण विकास को सुगम बनाना।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) एवं अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रोटेक्निकल आयोग (International Electrotechnical Commission- IEC) में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
  • व्यापार में तकनीकी बाधाओं (TBT) समझौते के तहत भारत के WTO-TBT पूछताछ केंद्र के रूप में कार्य करता है।

प्रमुख प्रमाणन प्रकार

  • ISI मार्क: औद्योगिक एवं उपभोक्ता वस्तुओं के लिए उत्पाद प्रमाणन।
  • हॉलमार्क: स्वर्ण आभूषणों की शुद्धता का प्रमाणन।
  • विदेशी निर्माता प्रमाणन योजना (Foreign Manufacturers Certification Scheme-FMCS)।
  • अनिवार्य पंजीकरण योजना (CRS)- इलेक्ट्रॉनिक्स एवं IT वस्तुओं के लिए (केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा अनिवार्य)।
  • अनुरूपता की घोषणा: CRS के तहत सरलीकृत स्व-घोषणा प्रक्रिया।

अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (International Organization for Standardization- ISO) के बारे में

  • 167 सदस्य देशों वाला एक स्वतंत्र, गैर-सरकारी निकाय है।
  • स्वैच्छिक, आम सहमति-आधारित अंतरराष्ट्रीय मानक विकसित करता है।
  • नवाचार का समर्थन करता है एवं वैश्विक चुनौतियों का समाधान करता है।

अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रोटेक्निकल आयोग (International Electrotechnical Commission- IEC) के बारे में

  • 170 से अधिक सदस्य देशों वाला एक वैश्विक, गैर-लाभकारी निकाय है।
  • विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं पर केंद्रित है।
  • यह 4 अनुरूपता मूल्यांकन प्रणालियों का प्रबंधन करता है, जिनके सदस्य प्रमाणित करते हैं कि उपकरण, प्रणालियाँ, स्थापनाएँ, सेवाएँ एवं लोग आवश्यकतानुसार कार्य करते हैं।
  • IEC लगभग 10,000 IEC अंतरराष्ट्रीय मानक प्रकाशित करता है जो राष्ट्रीय गुणवत्ता अवसंरचना के लिए तकनीकी आधार तैयार करते हैं।

पशुपालन अवसंरचना विकास निधि

पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund- AHIDF) की स्थापना के बाद से, 402 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनकी कुल परियोजना लागत ₹14,413.88 करोड़ एवं सावधि ऋण ₹10,095.23 करोड़ है।

पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF) के बारे में

  • प्रकार: केंद्रीय क्षेत्रक योजना।
  • नोडल मंत्रालय: मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • उद्देश्य: पशुपालन क्षेत्र में अवसंरचना को बढ़ावा देना एवं निजी निवेश के माध्यम से धन सृजन को बढ़ावा देना।
  • लक्षित लाभार्थी: व्यक्तिगत उद्यमी, निजी कंपनियाँ, FPOs, MSMEs, धारा 8 कंपनियाँ, डेयरी सहकारी समितियाँ।
  • वित्तीय सहायता
    • ऋण गारंटी: MSMEs एवं डेयरी सहकारी समितियों के लिए ₹750 करोड़ के ऋण गारंटी कोष के माध्यम से ऋण का 25% तक।
    • ब्याज अनुदान: अनुसूचित बैंकों, NCDC, नाबार्ड एवं NDDB से लिए गए ऋण के 90% तक पर 8 वर्षों के लिए 3% ब्याज अनुदान (2 वर्ष की स्थगन अवधि सहित)।

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