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साइबरस्पेस संचालन और एम्फीबियस ऑपरेशन के लिए संयुक्त सिद्धांत

Lokesh Pal August 11, 2025 03:23 7 0

संदर्भ

हाल ही में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने नई दिल्ली में चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी की बैठक के दौरान साइबरस्पेस ऑपरेशंस और एम्फीबियस ऑपरेशंस के लिए संयुक्त सिद्धांतों के सार्वजनिक संस्करण औपचारिक रूप से जारी किए।

  • इन सिद्धांतों का उद्देश्य तीनों सेनाओं के संचालन को मानकीकृत करना, अंतर-संचालन में सुधार करना तथा बहु-क्षेत्रीय खतरों के लिए भारत की तैयारी को बढ़ाना है।

साइबरस्पेस संचालन के लिए संयुक्त सिद्धांत

  • उद्देश्य: भारत के राष्ट्रीय साइबरस्पेस हितों की रक्षा के लिए एकीकृत दृष्टिकोण।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • आक्रामक और रक्षात्मक साइबर क्षमताओं का एकीकरण।
    • तीनों सेनाओं में समन्वित संचालन।
    • संभावित खतरों का आकलन कर रणनीति और लचीलापन विकसित करना।
    • तीव्र प्रतिक्रिया के लिए वास्तविक समय में खुफिया जानकारी का एकीकरण करना।
    • संयुक्त साइबर क्षमताओं का विकास करना।

एम्फीबियस ऑपरेशंस के लिए संयुक्त सिद्धांत

  • उद्देश्य: तटवर्ती वातावरण में एकीकृत समुद्री, वायु और स्थलीय संचालन हेतु रूपरेखा तैयार करना
  • मुख्य विशेषताएँ
    • सेनाओं के बीच अंतर-संचालन को बढ़ावा देना।
    • तटीय और द्वीपीय अभियानों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता सुनिश्चित करना।
    • तट पर संचालन को प्रभावित करने के लिए संयुक्त बल का प्रयोग करना।

साइबरस्पेस संचालन के बारे में

  • साइबरस्पेस IT नेटवर्क, संचार प्रणालियों और एम्बेडेड उपकरणों की एक अंतर्संबंधित प्रणाली है, जो बड़े पैमाने पर एक ‘नॉन-फिजिकल डोमेन’ का निर्माण करती है, जहाँ सैन्य और नागरिक गतिविधियाँ संचालित की जा सकती हैं, ताकि किसी की कार्रवाई की स्वतंत्रता को सुरक्षित किया जा सके और विरोधियों को इससे वंचित किया जा सके।

साइबरस्पेस की विशेषताएँ

  • क्रॉस-डोमेन प्रभाव: ये प्रभाव भौतिक और संज्ञानात्मक क्षेत्रों तक फैल सकते हैं।
  • नागरिक-सैन्य ओवरलैप: नागरिक और सैन्य लक्ष्यों के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं है।
  • संचालन क्षमता: बढ़ते जोखिमों के साथ वास्तविक दुनिया में भौतिक क्षति पहुँचा सकती है।
  • आरोपण कठिनाई: हमलावरों की पहचान करना कठिन, जिससे प्रतिक्रियाएँ जटिल हो जाती हैं।
  • तटस्थता के मुद्दे: हमले तटस्थ देशों के बुनियादी ढाँचे का उपयोग कर सकते हैं।
  • विषमता: कमजोर घटकों को अनुपातहीन प्रभाव डालने में सक्षम बनाती है।

भारत में साइबरस्पेस क्षमताओं को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदम

  • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति: साइबरस्पेस की सुरक्षा, रोकथाम और प्रतिक्रिया क्षमताओं का निर्माण, और विभिन्न संस्थानों एवं प्रौद्योगिकियों में प्रयासों का समन्वय करने के उद्देश्य निर्धारित करती है।
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023: व्यक्तिगत डेटा के उपयोग को विनियमित करता है, स्पष्ट सहमति अनिवार्य करता है, सुरक्षा लागू करता है, और अनुपालन हेतु एक डेटा सुरक्षा बोर्ड की स्थापना करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (NCCC): CERT-In द्वारा कार्यान्वित, देश में साइबरस्पेस की जाँच और साइबर सुरक्षा खतरों का पता लगाने के लिए नियंत्रण कक्ष के रूप में कार्य करता है।
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): साइबर अपराध से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन के लिए एक एकीकृत ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें खतरे के विश्लेषण, रिपोर्टिंग, प्रशिक्षण, अनुसंधान, फोरेंसिक प्रयोगशालाएँ और संयुक्त जाँच के लिए इकाइयाँ शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC): राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले साइबर खतरों से बिजली, बैंकिंग और दूरसंचार जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की रक्षा करता है।
  • साइबर स्वच्छता केंद्र: बॉटनेट संक्रमणों का पता लगाता है और साइबरस्पेस को सुरक्षित करने के लिए उपयोगकर्ताओं को संक्रमित ‘सिस्टम’ को साफ करने में मदद करता है।
  • रक्षा साइबर एजेंसी (DCyA): एक त्रि-सेवा कमान जो हैकिंग, निगरानी और प्रतिवाद सहित साइबर अभियान  है।
  • साइबर कूटनीति प्रभाग, विदेश मंत्रालय: यह साइबरस्पेस मुद्दों से संबंधित भारत के राजनयिक संबंधों और वार्ताओं के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है।

एम्फीबियस ऑपरेशंस के बारे में

  • एक समन्वित संयुक्त सैन्य कार्रवाई, जिसमें नौसेना बल, वायु सेना के सहयोग से, थल सेना को समुद्र के रास्ते एक परिचालन क्षेत्र में पहुँचाते हैं, उन्हें तट पर बनाए रखते हैं, और थल सेना पर निर्णायक प्रभाव डालते हैं।
  • इसके लिए व्यापक योजना एवं तीनों सेनाओं के बीच एकीकृत समन्वय की आवश्यकता होती है, साथ ही यह नए विकल्पों के सृजन हेतु लचीलापन प्रदान करता है।

एम्फीबियस ऑपरेशन की विशेषताएँ

  • जटिल समन्वय: सभी सेवाओं में कमान की एकता आवश्यक है।
  • मापनीय: सामरिक प्रभाव के लिए सामरिक संचालन को परिचालन स्तर तक विस्तारित किया जा सकता है।
  • विशिष्ट परिसंपत्तियाँ: संगत और अंतर-संचालनीय उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  • बहुराष्ट्रीय सीमा: बदलते भू-राजनीतिक संदर्भों के कारण इसमें कई राष्ट्र शामिल हो सकते हैं।
  • समुद्री भूमि संपर्क: समुद्र-आधारित क्षमताओं को जमीनी उद्देश्यों से जोड़ता है।

पूर्व सिद्धांत

  • भारतीय सशस्त्र बलों का संयुक्त सिद्धांत (Joint Doctrine of the Indian Armed Forces- JDIAF), 2017: पहला त्रि-सेवा रणनीतिक सिद्धांत।
  • संयुक्त प्रशिक्षण सिद्धांत, 2017: सामान्य अंतर-सेवा प्रशिक्षण सिद्धांत।
  • स्थल युद्ध के लिए संयुक्त सिद्धांत, 2018: भूमि-वायु एकीकरण पर ध्यान केंद्रित।

साइबरस्पेस संचालन और एम्फीबियस ऑपरेशन के लिए संयुक्त सिद्धांतों की आवश्यकता

  • एकीकृत कमान एवं समन्वय: तीनों सेनाओं को जटिल, बहु-क्षेत्रीय मिशनों की निर्बाध योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए एक साझा ढाँचा प्रदान करता है।
    • राज्य प्रायोजित साइबर जासूसी (जैसे- वर्ष 2021 में भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट को निशाना बनाने वाला चीनी समूह APT10) जैसे साइबर खतरे एक एकीकृत साइबर रक्षा ढाँचे की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को दर्शाते हैं।
    • वर्ष 2020 में मुंबई में बिजली गुल होना चीनी साइबर हमलों से संबंधित था।
  • परिचालन मानकीकरण: मिशन की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए साझा प्रक्रियाएँ, रणनीतियाँ और अंतर-संचालनीयता मानक स्थापित करता है।
  • क्षमता विकास: संसाधन नियोजन, प्रौद्योगिकी समावेशन, विशेष प्रशिक्षण और दीर्घकालिक सैन्य तैयारी का मार्गदर्शन करता है।
    • मैलवेयर (इमोटेट ट्रोजन, वानाक्राई रैंसमवेयर) और ‘रैंसमवेयर ऐज अ सर्विस’ (RaaS) जैसे उभरते खतरों का लाभ उठाने वाले उन्नत साइबर हमलों के प्रति संवेदनशीलता।
  • रणनीतिक लचीलापन और निवारण: भौतिक और डिजिटल दोनों क्षेत्रों में खतरों के लिए त्वरित, समन्वित प्रतिक्रिया को सक्षम बनाता है, जिससे निवारण को मज़बूती मिलती है।
  • अंतरराष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय सहयोग: सहयोगी देशों के साथ संयुक्त अभ्यास, साझेदारी और सहयोगात्मक अभियानों को सुगम बनाता है।

सैन्य एकजुटता की वैश्विक तुलना

  • ब्रिटिश सशस्त्र बलों ने वर्ष 1964 से सैन्य एकजुटता को संस्थागत रूप दिया है।
  • कनाडाई सशस्त्र बलों के एकीकरण को वर्ष 1968 में एक विधायी अधिनियम के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया था।
  • ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल (ADF) वर्ष 1970 के दशक से सैन्य एकजुटता विकसित कर रहा है।
  • अमेरिकी सशस्त्र बलों ने वर्ष 1986 में गोल्डवाटर-निकोल्स अधिनियम के माध्यम से सैन्य एकजुटता की शुरुआत की।
  • रूसी सशस्त्र बल वर्तमान में सैन्य एकजुटता की दिशा में परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं।
  • चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने वर्ष 1998 से सक्रिय रूप से सैन्य एकजुटता को मजबूत किया है, जिसमें रसद का पुनर्गठन, नए युद्ध नियम लागू करना और एकीकृत थिएटर स्थापित करना शामिल है।

भारतीय सेना में समन्वय की चुनौतियाँ

  • परिचालन संयुक्तता: अलग-अलग सेवा मुख्यालयों और सीमित संयुक्त कमानों वाली खंडित कमान।
    • चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (Chiefs of Staff Committee- COSC) के अध्यक्ष और नवनियुक्त चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के पास परिचालन संबंधी अधिकार कमजोर हैं।
  • संगठनात्मक संयुक्तता: रक्षा ढाँचे में नौकरशाही की खामियाँ और प्रक्रियागत दोहराव अब भी बने हुए हैं। अधिकांश सुधार केवल औपचारिक या प्रतीकात्मक हैं, हालाँकि रक्षा योजना प्रकोष्ठ और CDS कार्यालय ने कुछ सार्थक सुधार लागू किए हैं।”
  • व्यावसायिक सैन्य शिक्षा (PME): संयुक्त PME संस्थान कम हैं; सेवा-विशिष्ट प्रशिक्षण का प्रभुत्त्व है।
  • सैद्धांतिक संयुक्तता: कई संयुक्त सिद्धांत मौजूद हैं, लेकिन वे असंगत और सेवा-पक्षपाती हैं।
  • साइबर सुरक्षा में कमियाँ: भारत की रक्षा साइबर एजेंसी को अभी तक एक पूर्ण साइबर कमान में अपग्रेड नहीं किया गया है, जिससे समन्वित साइबर अभियानों का पैमाना सीमित हो गया है।
  • संरचनात्मक परिवर्तन का प्रतिरोध: पारंपरिक कमान व्यवस्था से एकीकृत थिएटर मॉडल में बदलाव के लिए सेवाओं के भीतर संस्थागत अनिच्छा होना।
  • सीमित एम्फीबियस लिफ्ट क्षमता: बड़े पैमाने पर एम्फीबियस ऑपरेशंस के लिए अपर्याप्त जहाज, लैंडिंग क्राफ्ट और सहायक अवसंरचना।
  • विशेषज्ञ कर्मियों की कमी: साइबर युद्ध, एम्फीबियस ऑपरेशंस और अन्य विशिष्ट क्षेत्रों में प्रशिक्षित विशेषज्ञों की अपर्याप्त संख्या।
  • विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता: आयातित महत्त्वपूर्ण प्लेटफार्मों और प्रणालियों पर निर्भरता, जिससे आपूर्ति और रखरखाव में कमजोरियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • संचालन समन्वय चुनौतियाँ: संयुक्त अभियानों के दौरान स्थल, समुद्र, वायु और साइबर परिसंपत्तियों के निर्बाध वास्तविक समय एकीकरण को प्राप्त करने में कठिनाइयाँ होती हैं।

सैन्य एकजुटता और एकीकरण के लिए की गई पहल

  • संयुक्त अभ्यास: एकीकृत योजना और कार्यान्वयन प्लेटफॉर्म के साथ तीनों सेनाओं के अभ्यास (जैसे- AMPHEX एम्फीबियस ऑपरेशन) आयोजित करना।
  • साझा रसद: तीनों सेनाओं के लिए साझा ईंधन डिपो, रखरखाव केंद्र और परिवहन बेड़े सुलभ करना।
  • डिजिटल नेटवर्क: एकीकृत कमान और नियंत्रण के लिए रीयल-टाइम डेटा-शेयरिंग के साथ एकीकृत युद्धक्षेत्र संचार प्रणालियाँ।
  • मानक उपकरण: सेनाओं के बीच ‘क्रॉस-सर्विस’ संगतता सुनिश्चित करने के लिए इंटरऑपरेबल रेडियो, UAV और सॉफ्टवेयर की संयुक्त खरीद आवश्यक है।
  • एकीकृत कमान: उदाहरण के लिए, अंडमान और निकोबार कमान, एकीकृत नेतृत्व में भूमि, वायु और समुद्री तत्वों का संयोजन।
  • संयुक्त प्रशिक्षण: प्रशिक्षण चरण में एकीकृत सोच को बढ़ावा देने के लिए तीनों सेनाओं के युद्ध महाविद्यालयों में NDA मॉडल का अनुकरण।
  • संयुक्त योजना इकाइयाँ: संयुक्त परिचालन रणनीतियों के लिए सैन्य मामलों के विभाग (DMA) के नेतृत्व वाली टीमें।
  • साझा मानव संसाधन: चिकित्सा इकाइयों, रसद कर्मियों और साइबर युद्ध टीमों का सेनाओं के बीच ‘क्रॉस-सर्विस’ उपयोग।

सशस्त्र बलों के बीच सरकार के नेतृत्व में प्रमुख समन्वय प्रयास

  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS): वर्ष 2019 में प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करने, सैन्य मामलों के विभाग का नेतृत्व करने, तीनों सेनाओं की देखरेख करने, सैन्य एकजुटता को बढ़ावा देने, तीनों सेनाओं के संगठनों का नेतृत्व करने और संसाधन अनुकूलन एवं युद्ध तत्परता के लिए सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए बनाया गया।
  • एकीकृत थिएटर कमांड (ITC): सशस्त्र बलों को भूगोल/कार्य के आधार पर परिसंपत्तियों में पुनर्गठित करना, बहु-क्षेत्रीय संचालन को सक्षम बनाना और परिचालन भूमिकाओं को प्रशासनिक भूमिकाओं से अलग करना।
  • सैन्य मामलों का विभाग (DMA): CDS के तहत वर्ष 2020 में स्थापित, ताकि इष्टतम संयुक्त अभियानों के लिए खरीद, प्रशिक्षण, स्टाफिंग और पुनर्गठन कमांडों को एकीकृत किया जा सके।
  • अंतर-सेवा संगठन अधिनियम, 2023: तीनों सेनाओं के गठन कमांडरों को सभी सेनाओं के कर्मियों पर अधिकार प्रदान करता है, कमांड को सुव्यवस्थित करता है और भविष्य के थिएटर कमांडों की नींव रखता है।
  • संयुक्त लॉजिस्टिक्स नोड्स (JLN): वर्ष 2021 से मुंबई, गुवाहाटी और पोर्ट ब्लेयर में एकीकृत लॉजिस्टिक्स सहायता प्रदान करने, जनशक्ति, संसाधनों और लागतों की बचत करने के लिए स्थापित किए जा रहे हैं।
  • संयुक्त प्रशिक्षण और अभ्यास: इसमें भविष्य युद्ध पाठ्यक्रम, रक्षा सेवा तकनीकी स्टाफ पाठ्यक्रम, ‘परिवर्तन चिंतन’ सम्मेलन, समुद्री-वायु शक्ति सेमिनार और प्रचंड प्रहार 2025 और डेजर्ट हंट 2025 जैसे तीनों सेनाओं के अभ्यास शामिल हैं।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: सुरक्षित, नेटवर्क-केंद्रित कनेक्टिविटी के लिए रक्षा संचार नेटवर्क (DCN) की तैनाती और वास्तविक समय में तीनों सेनाओं के बीच समन्वय के लिए एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS) की तैनाती।
  • रक्षा सुधारों का वर्ष 2025: रक्षा मंत्रालय की पहल, सशस्त्र बलों को एकीकृत, बहु-क्षेत्रीय अभियानों के लिए आधुनिक बनाने की, जिसमें संयुक्तता और थिएटर कमांड तत्परता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

आगे की राह

  • एकीकृत क्षमताओं का निर्माण: तीनों सेनाओं के लिए एक साइबर कमान स्थापित करना और लैंडिंग प्लेटफ़ॉर्म डॉक, लैंडिंग क्राफ्ट एयर कुशन एवं मानव रहित हवाई वाहनों जैसी ‘एम्फीबियस एसेट्स’ का विस्तार करना।
  • अंतर-संचालन क्षमता में वृद्धि: नियमित संयुक्त अभ्यासों के माध्यम से थलसेना, नौसेना और वायु सेना में प्रक्रियाओं, संचार प्रणालियों और उपकरणों का मानकीकरण करना।
  • स्वदेशी अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना: रक्षा अनुसंधान और विकास व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के लगभग दो प्रतिशत तक बढ़ाना और साइबर तथा एम्फीबियस प्रौद्योगिकियों में निजी क्षेत्र और स्टार्ट-अप नवाचार को बढ़ावा देना।
  • मानव पूंजी को मज़बूत करना: उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रमों और युद्ध-अभ्यासों के साथ, साइबर युद्ध और एम्फीबियस ऑपरेशंस के लिए विशेष ‘त्रि-सेवा कैडर’ विकसित करना।
  • सामरिक अवसंरचना का उन्नयन: रक्षा संचार नेटवर्क की लचीलापन क्षमता में सुधार करना और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण तटीय और द्वीपीय क्षेत्रों में अग्रिम परिचालन अड्डे निर्मित करना।
  • वैश्विक साझेदारियों को गहरा करना: साझेदार देशों के साथ अधिक संयुक्त साइबर और एम्फीबियस अभ्यास करना और खतरे की खुफिया जानकारी साझा करने के लिए तंत्र स्थापित करना।

निष्कर्ष

साइबरस्पेस संचालन और जल-थल अभियानों के लिए संयुक्त सिद्धांतों का प्रकाशन, 21वीं सदी में भारत की रक्षा स्थिति को परिभाषित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। एकीकृत क्षमताओं का निर्माण, अंतर-संचालन को सुदृढ़ करना, स्वदेशी अनुसंधान में निवेश, और वैश्विक साझेदारियों को गहरा करना—इन पहलों के माध्यम से भारत पारंपरिक और अपरंपरागत दोनों प्रकार के खतरों के विरुद्ध अपनी तत्परता को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकता है।

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