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स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक भागीदारी

Lokesh Pal August 13, 2025 03:12 14 0

संदर्भ

तमिलनाडु की मक्कलाई थेडी मारुथुवम और कर्नाटक की गृह आरोग्य जैसी वर्तमान योजनाएँ गैर-संचारी रोगों के लिए घरेलू देखभाल की ओर परिवर्तन को दर्शाती हैं, किंतु साथ ही ये नागरिकों के स्वास्थ्य प्रशासन में सक्रिय रूप से शामिल होने और उसे प्रभावित करने की क्षमता पर एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाती हैं।

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गैर-संचारी रोग (NCD) के बारे में

  • परिभाषा: ये वे रोग हैं जो संक्रामक कारकों के कारण नहीं होते हैं और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित नहीं होते हैं। ये आमतौर पर लंबी अवधि के और धीमी गति से बढ़ने वाले होते हैं।
  • गैर-संचारी रोगों (NCD) के प्रमुख प्रकार (WHO वर्गीकरण): गैर-संचारी रोगों में प्रमुख रूप से हृदय रोग (Cardiovascular Diseases-CVD) जैसे-कोरोनरी हृदय रोग और स्ट्रोक, कैंसर, दीर्घकालिक श्वसन रोग (जैसे- COPD एवं अस्थमा) तथा मधुमेह शामिल हैं। अन्य उभरते गैर-संचारी रोगों में मानसिक स्वास्थ्य विकार, दीर्घकालिक गुर्दे की बीमारी और ऑस्टियोपोरोसिस प्रमुख हैं।

भारत में NCD संबंधी वर्तमान आँकड़े

  • व्यापकता-NFHS-5 निष्कर्ष: एक बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययन (NFHS-5, 30+ वयस्क) से पता चलता है कि तीन में से एक भारतीय को उच्च रक्तचाप है और लगभग पाँच में से एक को मधुमेह है।
    • इसके अलावा, 43% मधुमेह रोगियों को उच्च रक्तचाप भी है और 25% से अधिक उच्च रक्तचाप से ग्रस्त रोगियों को मधुमेह भी है, जो इस दोहरी महामारी को रेखांकित करता है।
  • बाजार संकेतक-दवाओं की बिक्री में वृद्धि: जून 2021 और जून 2025 के बीच, हृदय रोग संबंधी दवाओं की बिक्री में 50% की वृद्धि हुई, जो हृदय रोग के बढ़ते बोझ को दर्शाती है; हृदय रोग अब सभी मौतों का 27% हिस्सा कवर करता है।
  • सरकारी प्रतिक्रिया- 75/25 पहल: सरकार की ‘75/25’ पहल का उद्देश्य दिसंबर 2025 तक उच्च रक्तचाप और मधुमेह से पीड़ित 75 मिलियन व्यक्तियों को मानकीकृत देखभाल प्रदान करना है।
    • 5 मार्च, 2025 तक उच्च रक्तचाप से ग्रसित 42.01 मिलियन और मधुमेह से ग्रसित 25.27 मिलियन लोगों का उपचार किया जाएगा जिससे निर्धारित लक्ष्य का 89.7% पूरा हो जाएगा।

स्वास्थ्य शासन: राज्य की प्राथमिकता और संघ की भूमिका

  • स्वास्थ्य प्रशासन नियमों, नीतियों और संस्थाओं की वह व्यवस्था है जो स्वास्थ्य सेवाओं के नियोजन, वितरण और पर्यवेक्षण का मार्गदर्शन करती है, तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए जवाबदेही, समानता, गुणवत्ता और नागरिक भागीदारी सुनिश्चित करती है।
  • राज्य का विषय: ‘स्वास्थ्य’ भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि 6 के अंतर्गत आने वाला विषय है। यह राज्य सरकारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य, अस्पतालों, औषधालयों और स्वच्छता की प्राथमिक जिम्मेदारी प्रदान करता है।
  • केंद्र सरकार की भूमिका: स्वास्थ्य सेवा वितरण में राज्य अग्रणी भूमिका निभाते हैं, लेकिन केंद्र सरकार कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली भूमिका निभाती है
    • केंद्रीय स्वास्थ्य नीतियाँ एवं योजनाएँ: केंद्र सरकार राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण करती है और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) तथा आयुष्मान भारत जैसी व्यापक स्वास्थ्य योजनाओं को वित्तपोषित करती है, जो लाखों लोगों को वित्तीय सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच प्रदान करती हैं।
    • चिकित्सा शिक्षा और औषधियाँ: केंद्र सरकार चिकित्सा, दंत चिकित्सा और अन्य स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा का विनियमन करती है। यह दवाओं एवं औषधियों की गुणवत्ता एवं मानकों को भी नियंत्रित करती है।
    • अंतर-राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य मुद्दे: केंद्र सरकार उन स्वास्थ्य मामलों का प्रबंधन करती है जो कई राज्यों को प्रभावित करते हैं या जिनके अंतरराष्ट्रीय निहितार्थ हैं, जैसे स्वास्थ्य संबंधी व्यापार और रोग निगरानी समझौते
    • क्वारंटाइन और महामारी नियंत्रण: महामारी रोग अधिनियम, 1897 और हाल ही में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत, केंद्र सरकार देश भर में संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक उपाय कर सकती है।

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता के बारे में

  • स्वास्थ्य प्रणालियों के संबंध में निर्णय लेने, निगरानी और मूल्यांकन में नागरिकों, नागरिक समाज संगठनों (CSOs), सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, रोगी समूहों और स्थानीय शासन निकायों की सक्रिय भागीदारी।
  • कार्यक्षेत्र: इसमें स्वास्थ्य हस्तक्षेपों संबंधी योजना निर्माण, स्वास्थ्य सुविधाओं की सामुदायिक निगरानी, जन शिकायत निवारण और सरकार के साथ मिलकर सेवाओं का उत्पादन शामिल है।
  • भारत में प्रमुख तंत्र
    • रोगी कल्याण समितियाँ (रोगी कल्याण समितियाँ)
    • ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता एवं पोषण समितियाँ (Village Health Sanitation and Nutrition Committees- VHSNC)
    • जन सुनवाई
    • NHM के अंतर्गत समुदाय आधारित निगरानी एवं योजना (Community Based Monitoring and Planning- CBMP)

संवैधानिक एवं कानूनी आधार

  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSPs)
    • अनुच्छेद 38: जन कल्याण को बढ़ावा देना।
    • अनुच्छेद 39(e) और (f): श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करना, बच्चों का स्वस्थ विकास सुनिश्चित करना।
    • अनुच्छेद 47: पोषण स्तर को बढ़ाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना राज्य का कर्तव्य है।
  • 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन: पंचायतों एवं शहरी स्थानीय निकायों को स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं की योजना बनाने और उनकी निगरानी करने का अधिकार प्रदान करना।
  • स्वास्थ्य का अधिकार: अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) में निहित है, सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों द्वारा इसकी पुष्टि की गई है।
    • परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (1989): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि आपातकालीन चिकित्सा देखभाल का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है, जो सभी डॉक्टरों, सार्वजनिक या निजी, को तत्काल उपचार प्रदान करने के लिए बाध्य करता है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) फ्रेमवर्क: VHSNC, रोगी कल्याण समितियों और सामुदायिक निगरानी का प्रावधान करता है।
  • RTI अधिनियम, 2005: नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्राप्त करने और सेवा प्रदाताओं को जवाबदेह बनाने में सक्षम बनाता है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017: सामुदायिक भागीदारी को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में मान्यता देती है।

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता 

  • सहभागी नीति एवं योजना
    • समितियों में प्रतिनिधित्व: नागरिक, गैर-सरकारी संगठन और निर्वाचित प्रतिनिधि राज्य एवं जिला स्वास्थ्य समितियों में भाग लेते हैं।
    • स्वास्थ्य योजनाओं का सह-निर्माण: ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता एवं पोषण समितियाँ (VHSNCs) जैसे मंच स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण के लिए एकीकृत योजनाएँ विकसित करते हैं।
    • रोगी कल्याण समितियाँ (RKS): सामुदायिक सदस्यों वाली सुविधा-स्तरीय संस्थाएँ जो अस्पताल के संसाधनों का प्रबंधन करती हैं और सेवा वितरण में सुधार करती हैं।
    • एकीकृत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली: यह पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) द्वारा प्रस्तावित है, जिसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा, विकेंद्रीकृत शासन और स्वास्थ्य को एक अधिकार के रूप में सुनिश्चित करने वाला कानून शामिल है।
    • भारतीय चिकित्सा सेवा (IMS): इसने संरचित और जवाबदेह स्वास्थ्य प्रशासन के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के समान एक राष्ट्रीय संवर्ग का प्रस्ताव रखा, जिससे स्वास्थ्य नीति और सेवा वितरण में व्यवस्थित नागरिक-राज्य समन्वय संभव हो सके।

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता पर NGO केस स्टडी

  • सेवा (स्व-नियोजित महिला संघ) अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं को उनके स्वास्थ्य अधिकारों का समर्थन करके और उन्हें स्थानीय स्वास्थ्य योजना में शामिल करके सशक्त बनाता है, जिससे मातृ देखभाल और स्वच्छता तक उनकी पहुँच में उल्लेखनीय सुधार होता है।
  • जन स्वास्थ्य अभियान (JSA), एक राष्ट्रीय गठबंधन, सामुदायिक निगरानी, सामाजिक लेखा परीक्षा और जन सुनवाई के माध्यम से स्वास्थ्य के अधिकार को सक्रिय रूप से बढ़ावा देता है, और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 जैसी प्रमुख स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावित करता है।
  • वैश्विक स्तर पर, पार्टनर्स इन हेल्थ (PIH) सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के सशक्तीकरण और शासन में रोगियों के समावेशन पर जोर देता है, जिससे वंचित समुदायों में उपचार के प्रति बेहतर अनुपालन और विश्वास में वृद्धि करता है।

  • सामुदायिक निगरानी एवं जवाबदेही
    • समुदाय-आधारित निगरानी एवं योजना (CBMP): NRHM के अंतर्गत, समुदाय आधारित स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, गुणवत्ता और समता की निगरानी करते हैं और उच्च निकायों को रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
    • सामाजिक लेखा परीक्षा: सार्वजनिक स्वास्थ्य में निधि उपयोग और कार्यक्रम परिणामों का आकलन करने के लिए मनरेगा-शैली की समीक्षाओं का अनुकूलन।
    • नागरिक चार्टर: स्वास्थ्य सुविधाओं में अधिकारों, सेवाओं और शिकायत निवारण माध्यमों का सार्वजनिक प्रदर्शन।
    • जन सुनवाई: खुले मंच, जहाँ नागरिक अपनी शिकायतें प्रस्तुत करते हैं और कार्रवाई की माँग करते हैं।
    • बेनिफिट इंसीडेंस एनालिसिस (BIA): यह दर्शाता है कि विशेषतः शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में आंतरिक रोगी देखभाल व्यय गरीबों के लिए अधिक अनुकूल है, जबकि ‘बाह्य रोगी देखभाल’ (OPD) व्यय अमीरों के लिए अधिक अनुकूल है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र गरीबों के लिए आवंटन में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जो शहरी पूर्वाग्रह को दूर करने और समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने के लिए मजबूत स्थानीय निगरानी की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • जन-आंदोलन एवं समर्थन
    • स्वास्थ्य अभियान: पल्स पोलियो टीकाकरण और स्वच्छ भारत मिशन जैसी पहलों में नागरिक भागीदारी।
    • रोगी अधिकार आंदोलन: उपचार लागत, नैतिक चिकित्सा पद्धतियों और सूचित सहमति में पारदर्शिता का समर्थन।
    • नागरिक समाज की भागीदारी: गैर-सरकारी संगठन, स्वयं सहायता समूह और मीडिया नेटवर्क (जैसे- पथ, सेवा, प्रदान) स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं और समुदायों को संगठित करते हैं।
  • डिजिटल एवं फीडबैक प्लेटफॉर्म
    • डिजिटल जुड़ाव: नागरिक ई-संजीवनी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य हेल्पलाइन और सोशल मीडिया स्वास्थ्य अभियानों जैसे पोर्टल एवं मोबाइल ऐप के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया साझा करते हैं।
    • शिकायत पोर्टल: ऑनलाइन प्रणालियाँ, जो सेवा संबंधी समस्याओं की वास्तविक समय पर रिपोर्टिंग और समाधान की प्रगति की निगरानी करने में सक्षम बनाती हैं।

PWOnlyIAS विशेष

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यास

  • ब्राजील: सहभागी स्वास्थ्य परिषदें
    • तंत्र: राष्ट्रीय, राज्य और नगरपालिका स्वास्थ्य परिषदें, जिनमें नागरिक समाज का 50% प्रतिनिधित्व हो।
    • कार्य: स्वास्थ्य बजट स्वीकृत करना, एकीकृत स्वास्थ्य प्रणाली (SUS) के कार्यान्वयन की निगरानी करना और जनता के लिए समय-समय पर ‘स्वास्थ्य सम्मेलन’ आयोजित करना।
    • प्रभाव: संस्थागत नागरिक निगरानी बजट पारदर्शिता और गरीब-हितैषी आवंटन सुनिश्चित करती है।
  • थाईलैंड: राष्ट्रीय स्वास्थ्य सभा (NHA)
    • तंत्र: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों पर विचार-विमर्श के लिए सरकार, शिक्षा जगत और नागरिक समाज को एक साथ लाने वाला एक औपचारिक मंच।
    • कानूनी समर्थन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिनियम, 2007
    • प्रभाव: राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण की सिफारिशें स्वास्थ्य रणनीतियों में एकीकरण के लिए बाध्यकारी हैं, जिससे नीति सह-निर्माण सुनिश्चित होता है।
  • यूनाइटेड किंगडम: हेल्थवॉच इंग्लैंड और स्थानीय स्वास्थ्य निगरानी निकाय
    • तंत्र: राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर मरीजों की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वतंत्र वैधानिक निकाय।
    • कार्य: सर्वेक्षण करना, सुविधाओं का निरीक्षण करना और शिकायतों को सीधे ‘केयर क्वालिटी कमीशन’ (CQC) तक पहुँचाना।
    • प्रभाव: औपचारिक शिकायत निवारण और डेटा-संचालित समर्थन प्रदान करता है।
  • रवांडा: सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (CHW) सहकारी मॉडल
    • तंत्र: प्रत्येक गाँव निवारक देखभाल, मातृ स्वास्थ्य और रोग का शीघ्र पता लगाने के लिए जिम्मेदार स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का चुनाव करता है।
    • एकीकरण: स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को डिजिटल रिपोर्टिंग टूल के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ा जाता है।
    • प्रभाव: जमीनी स्तर पर स्वामित्व के माध्यम से मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है।
  • कनाडा: स्वदेशी स्वास्थ्य साझेदारियाँ
    • तंत्र: स्वदेशी समुदायों और प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्रालयों के बीच सह-शासन समझौते।
    • उदाहरण: ब्रिटिश कोलंबिया में प्रथम राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण।
    • प्रभाव: सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त देखभाल सुनिश्चित करना, पारंपरिक ज्ञान को मुख्यधारा की सेवाओं में एकीकृत करना।

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता पर वैश्विक पहल

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)- स्वास्थ्य संवर्द्धन और सामुदायिक सहभागिता: ओटावा चार्टर फॉर हेल्थ प्रमोशन (1986) और हेल्थ इन ऑल पॉलिसीज (HiAP) दृष्टिकोण जैसे ढाँचों के माध्यम से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने में समुदायों की भागीदारी को सशक्त बनाने का समर्थन करता है।
    • स्थानीय स्वामित्व और जवाबदेही को बढ़ाने के लिए वैश्विक स्तर पर सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (CHW) कार्यक्रमों का समर्थन करता है।
  • एड्स, क्षय रोग और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक कोष: निगरानी और संसाधन आवंटन के लिए देश समन्वय तंत्र (CCM) में समुदाय और नागरिक समाज की भागीदारी की आवश्यकता है।
    • यह कार्यक्रम के डिजाइन, कार्यान्वयन और निगरानी में रोगी और प्रमुख जनसंख्या की भागीदारी को बढ़ावा देता है।
  • Gavi, वैक्सीन एलायंस: टीकाकरण अभियानों और प्रतिक्रिया तंत्रों में समुदायों को शामिल करता है ताकि टीकाकरण में सुधार हो।
    • स्थानीय नेताओं और नागरिक समाज को शामिल करते हुए देश, नेतृत्व आधारित सामाजिक लामबंदी रणनीतियों का समर्थन करता है।
  • UHC2030 (सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज भागीदारी): बहु-हितधारक मंचों को बढ़ावा देकर समावेशी स्वास्थ्य प्रशासन को बढ़ावा देता है जहाँ नागरिक, सरकारें और साझेदार मिलकर स्वास्थ्य नीतियों का निर्माण करते हैं।
    • UHC प्रगति के केंद्रीय स्तंभों के रूप में जवाबदेही और पारदर्शिता पर जोर देता है।
  • जन स्वास्थ्य आंदोलन (PHM): स्वास्थ्य के अधिकार और स्वास्थ्य प्रणालियों पर सामुदायिक नियंत्रण का समर्थन करने वाला एक वैश्विक नेटवर्क।
  • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDGs): विशेष रूप से SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण) और SDG 16 (शांति, न्याय और मजबूत संस्थान) स्वास्थ्य प्रणालियों में समावेशी, सहभागी शासन और जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं।

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता की आवश्यकता

  • जन विश्वास को बढ़ाना: कई समुदाय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को भ्रष्ट, उपेक्षापूर्ण या दुर्गम मानते हैं। नियमित सार्वजनिक परामर्श, बजट प्रकटीकरण और VHSNC सदस्यों द्वारा सुविधाओं की निगरानी करके, शासन को पारदर्शी बनाकर विश्वसनीयता बहाल की जा सकती है।
  • सेवा वितरण में असमानताओं को कम करना: स्थानीय निगरानी, वंचित ग्रामीण, आदिवासी और हाशिए पर स्थित समूहों को संसाधनों का आनुपातिक आवंटन सुनिश्चित करती है, जिससे स्वास्थ्य सेवा व्यय में शहरी पूर्वाग्रह का निराकरण किया जाता है।
  • सेवा अंतराल का शीघ्र पता लगाना: इससे पहले कि वे प्रणालीगत संकट में बदल जाएँ, नागरिक निगरानी अनुपस्थित कर्मचारियों, दवाओं के स्टॉक की कमी और खराब उपकरणों की पहचान कर सकती है, जिससे समय पर हस्तक्षेप संभव हो सके।
  • स्वास्थ्य संबंधी गलत सूचनाओं का मुकाबला करना: समुदाय द्वारा संचालित अभियान (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं-आशा, स्वयं सहायता समूहों, प्रभावशाली लोगों के माध्यम से) टीकाकरण में कमी, पोषण संबंधी तथ्यों और असुरक्षित स्वास्थ्य प्रथाओं का प्रभावी ढंग से समाधान करते हैं, और प्रायः केंद्रीकृत परामर्शों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता सुनिश्चित करना: स्थानीय समुदायों की भागीदारी सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों (जैसे- आदिवासी क्षेत्रों में सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त मातृ देखभाल) के समानांतर स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को डिजाइन करने में मदद करती है।
  • लोकतांत्रिक अनिवार्यता: सहभागिता आत्म-सम्मान की पुष्टि करती है, ज्ञान-संबंधी अन्याय का प्रतिकार करती है, और निष्क्रिय लाभार्थियों के बजाय अधिकार-धारकों के रूप में नागरिकों की क्षमता को मजबूत बनाती है।
  • सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (Community Health Worker- CHW) मॉडल: प्रति 40,000 जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, 75-बिस्तर वाले जिला अस्पताल से जुड़ा हुआ है। मोबाइल तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड का उपयोग करके कमियों का शीघ्र पता लगाया जाता है और उन्हें उच्च स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँचाया जाता है।

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक भागीदारी का महत्त्व

  • बेहतर जवाबदेही: समुदाय-आधारित निगरानी एवं योजना (Community-Based Monitoring and Planning- CBMP) और रोगी कल्याण समितियाँ (Rogi Kalyan Samitis- RKS) जैसी प्रणालियाँ निरंतर फीडबैक लूप का निर्माण करती हैं, जिससे धन के दुरुपयोग को हतोत्साहित किया जाता है और जवाबदेही में वृद्धि होती है।
  • बेहतर संसाधन उपयोग: जमीनी स्तर पर फीडबैक यह सुनिश्चित करता है कि व्यय राजनीतिक रूप से प्रेरित योजनाओं के बजाय वास्तविक जरूरतों पर केंद्रित हो, जिससे लागत-प्रभावशीलता बढ़ती है।
  • मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा: VHSNC, आशा और महिला आरोग्य समितियाँ टीकाकरण, मातृ देखभाल और रोग की प्रारंभिक रिपोर्टिंग में सुधार करती हैं।
  • लचीली स्वास्थ्य प्रणालियाँ: समुदाय-नेतृत्व आधारित प्रतिक्रियाएँ (जैसे- आशा के नेतृत्व वाली कोविड-19 संपर्क अनुरेखण) संकट के दौरान अनुकूलनशीलता प्रदर्शित करती हैं।
  • समावेशी निर्णय-प्रक्रिया: महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों और हाशिए पर स्थित समूहों की सक्रिय भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि स्वास्थ्य नीतियाँ विविध आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करें।
  • व्यवहार परिवर्तन और स्वामित्व: स्वास्थ्य पहलों का सह-स्वामित्व, स्वच्छता प्रथाओं और संतुलित आहार जैसे स्थायी जीवनशैली परिवर्तनों को बढ़ावा देता है।
  • विश्वास निर्माण और सहयोग: यह सहभागिता समुदायों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के बीच संबंधों को मजबूत करती है, जिससे सेवाओं का उपयोग बेहतर होता है।
  • प्रौद्योगिकी एक ‘संयोजक’ के रूप में: सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, डॉक्टरों और अस्पतालों को जोड़कर निर्बाध और उत्तरदायी स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना।
  • जिले से राज्य स्तर तक रेफरल संपर्क प्रणाली: यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक राज्य में विश्व स्तरीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवा सुविधा (जैसे- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) हो, जिससे समन्वित नागरिक-नेतृत्व वाली स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं में सुधार हो।

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता के संबंध में चुनौतियाँ

  • मानसिकता संबंधी बाधाएँ: नीति निर्माता प्रायः समुदायों को भागीदार नहीं, बल्कि निष्क्रिय लाभार्थी मानते हैं। सहभागिता को केवल लक्ष्य प्राप्ति के लिए ही महत्त्व दिया जाता है।
  • परामर्श मानने में शिथिलता: परामर्श केवल कागजों पर ही हो सकते हैं, और सामुदायिक सिफारिशों का क्रियान्वयन न्यूनतम होता है।
  • क्षमता अंतराल: VHSNC तथा CSO सदस्यों में प्रायः स्वास्थ्य अधिकारों, बजट और निगरानी के बारे में जानकारी का अभाव होता है।
  • सूचना विषमता: कई नागरिक NHM, आयुष्मान भारत या राज्य स्वास्थ्य योजनाओं के तहत प्राप्त होने  वाली पात्रताओं से अनभिज्ञ हैं।
  • चिकित्साकृत शासन: नेतृत्व में जैव चिकित्सा पेशेवरों का वर्चस्व है, जिन्हें जन स्वास्थ्य का बहुत कम प्रशिक्षण प्राप्त है; वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति ‘टॉप-टू-बॉटम’ दृष्टिकोण को मजबूत करती है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: स्थानीय स्वास्थ्य समितियाँ कभी-कभी सामुदायिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं की तुलना में चुनावी लाभ को प्राथमिकता देती हैं।
  • संस्थागत समर्थन का अभाव: CBMP/VHSNC से प्राप्त फीडबैक को प्रायः अनदेखा कर दिया जाता है।
  • डिजिटल विभाजन: ग्रामीण/गरीब समुदायों को ई-स्वास्थ्य परामर्श, शिकायत पोर्टल और निगरानी उपकरणों से वंचित रखा जाता है।
  • स्वयंसेवकों की व्यस्ततता: अवैतनिक या कम वेतन वाले स्वयंसेवकों पर अत्यधिक निर्भरता निरंतर भागीदारी को कम करती है।
  • सामाजिक पदानुक्रम और बहिष्कार: समिति की चर्चाओं में हाशिए पर स्थित अभिव्यक्तियों को सत्ता की गहरी जड़ें जमाए रखने के कारण दबा दिया जा सकता है।
  • विखंडित जन स्वास्थ्य शिक्षा: मास्टर ऑफ पब्लिक हेल्थ (MPH) डिग्री के लिए कोई राष्ट्रीय मानक नहीं है।
    • लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, व्यवहार विज्ञान और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी के लिए प्रशिक्षण में कमियाँ हैं।
    • यह VHSNC, आशा कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज संगठनों (CSO) के स्वास्थ्य संबंधी डेटा की व्याख्या करने और शासन को प्रभावी ढंग से प्रभावित करने की क्षमता को सीमित करता है।

आगे की राह 

  • सामुदायिक निगरानी को संस्थागत बनाना: नियमित सार्वजनिक रिपोर्ट के साथ CBMP का विस्तार पायलट राज्यों (महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़) से आगे बढ़कर सभी NHM जिलों तक करना।
  • कानूनी समर्थन: नागरिक निगरानी, हाशिए पर स्थित समूहों के अनिवार्य प्रतिनिधित्व और शिकायत निवारण अधिकारों के प्रावधानों के साथ स्वास्थ्य का एक वैधानिक अधिकार के रूप में अधिनियमित करना।
  • क्षमता निर्माण: VHSNC  सदस्यों, आशा, स्वयं सहायता समूहों और CSO प्रतिनिधियों के लिए शासन, बजट और डेटा विश्लेषण पर संरचित प्रशिक्षण।
  • डेटा पारदर्शिता: सुविधा बजट, दवा स्टॉक, सेवा उपयोग और स्वास्थ्य परिणामों को दर्शाने वाले रीयल-टाइम सार्वजनिक डैशबोर्ड का निर्माण करना।
  • डिजिटल उपकरणों का समावेशी रूप से लाभ उठाना: कम कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में ऑफलाइन सुविधा के साथ मोबाइल-आधारित शिकायत और टेलीमेडिसिन प्रणालियाँ विकसित करना।
    • कम कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (CHW) प्रौद्योगिकी-सक्षम मॉडल अपनाना ताकि ग्रामीण भागीदारी से वंचित न रहें।
  • भागीदारी को प्रोत्साहित करना: मानदेय, सार्वजनिक मान्यता और जिला स्वास्थ्य योजना बोर्डों में समावेश प्रदान करना।
  • सामुदायिक प्रतिक्रिया को नीति में एकीकृत करना: वार्षिक स्वास्थ्य कार्य योजनाओं में कम-से-कम 50% इनपुट सामुदायिक मंचों और निगरानी रिपोर्टों से प्राप्त होने चाहिए।
  • स्वास्थ्य प्रशासन में मानसिकता परिवर्तन: अधिकारियों को समुदायों को सह-निर्माता के रूप में देखने के लिए संवेदनशील बनाना; स्वास्थ्य परिणामों के साथ-साथ सहभागी प्रक्रियाओं को प्राथमिकता देना।
  • स्थानीय स्वास्थ्य योजना में ‘बेनिफिट इंसीडेंस एनालिसिस’ (BIA) को एकीकृत करना: वार्षिक जिला स्वास्थ्य समीक्षाओं में समता ऑडिट को शामिल करना।
  • मास्टर ऑफ पब्लिक हेल्थ (MPH) पाठ्यक्रम में सुधार: जमीनी स्तर पर सहभागिता को मजबूत करने के लिए मानकीकृत, अंतःविषय प्रशिक्षण शुरू करना।
  • भारतीय चिकित्सा सेवा (IMS) संवर्ग को औपचारिक रूप देना: सामुदायिक सहभागिता तथा विकेंद्रीकृत स्वास्थ्य प्रशासन के लिए स्थायी, कुशल नेतृत्व सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष

स्वास्थ्य प्रशासन में नागरिक सहभागिता, जो अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), अनुच्छेद 47 (सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्तव्य) और 73वें एवं 74वें संशोधनों पर आधारित है, यह भागीदारीपूर्ण, पारदर्शी और न्यायसंगत स्वास्थ्य प्रणालियों को सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो असमानताओं को दूर करती हैं और स्वास्थ्य सेवा में अधिकार धारकों के रूप में नागरिकों की भूमिका को सशक्त करती हैं।

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