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भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025

Lokesh Pal August 18, 2025 04:46 14 0

संदर्भ

हाल ही में लोकसभा ने भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 पारित किया। इसने भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 का स्थान लिया।

विधेयक के उद्देश्य

  • प्रमुख एवं गौण बंदरगाहों के लिए एक समान कानूनी ढाँचा स्थापित करना।
  • पारदर्शी टैरिफ नीतियों के माध्यम से बंदरगाहों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि करना

  • बंदरगाह संचालन में पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को एकीकृत करना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी संघवाद को सुगम बनाना।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ

  • राज्य समुद्री बोर्ड (State Maritime Boards)
    • गैर-प्रमुख बंदरगाहों के प्रशासन और विनियमन के लिए वैधानिक मान्यता प्रदान करना।
    • कार्य
      • बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे की योजना बनाना और उसका विकास करना।
      • लाइसेंस प्रदान करना।
      • पारदर्शी ढाँचे के भीतर शुल्क निर्धारित करना।
      • सुरक्षा, संरक्षा और पर्यावरणीय मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
    • गौण बंदरगाहों के प्रभावी प्रबंधन के लिए प्राधिकरण को मजबूत किया गया।
  • समुद्री राज्य विकास परिषद (Maritime State Development Council- MSDC)
    • MSDC को वैधानिक मान्यता प्रदान करता है।
    • अध्यक्ष: केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री।
    • सदस्य: राज्य मंत्री, भारतीय नौसेना/तटरक्षक सचिव, केंद्रीय मंत्रालय सचिव।
    • कार्य
      • राष्ट्रीय बंदरगाह विकास रणनीतियों का समन्वय करना।
      • टैरिफ पारदर्शिता, डेटा संग्रह, भंडारण और प्रसार पर दिशा-निर्देश जारी करना।
      • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना, विधायी पर्याप्तता, बंदरगाह दक्षता और कनेक्टिविटी संबंधी सलाह देना।
      • समग्र बंदरगाह विकास के लिए सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।
  • विवाद समाधान समिति (Dispute Resolution Committee- DRC)
    • राज्य सरकारों द्वारा गौण बंदरगाहों, उपयोगकर्ताओं और सेवा प्रदाताओं के बीच विवादों को सुलझाने के लिए स्थापित।
    • उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है; सिविल न्यायालयों को DRC मामलों में ले जाने की अनुमति नहीं है।
    • मध्यस्थता या वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र की अनुमति देता है।
  • टैरिफ
    • प्रमुख बंदरगाह: प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण के बोर्ड या निदेशक मंडल (यदि कंपनी के रूप में पंजीकृत हो) द्वारा निर्धारित।
    • गौण बंदरगाह: राज्य समुद्री बोर्ड या अधिकृत रियायतग्राही द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
    • बंदरगाह संबंधी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए पारदर्शी टैरिफ नीतियों पर जोर दिया जाता है।
  • सुरक्षा और संरक्षण
    • असुरक्षित कार्यों [जैसे- बोया (समुद्री संकेत चिह्न) को नुकसान पहुँचाना, आग्नेयास्त्रों का प्रयोग] के लिए दंडात्मक विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।
    • पर्यावरणीय उपाय: MARPOL और बलास्ट जल प्रबंधन कन्वेंशन (Ballast Water Management Convention) के अनुपालन को अनिवार्य किया गया है।
      • बंदरगाहों को निम्नलिखित के लिए तैयार करना:-
        • अपशिष्ट संग्रहण एवं निपटान संयंत्र।
        • प्रदूषण नियंत्रण एवं आपातकालीन तैयारी योजना।
        • आपदा प्रबंधन योजनाएँ।
      • केंद्र सरकार समय-समय पर ऑडिट करेगी।
      • ग्रीन हाउस उत्सर्जन को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और तटीय विद्युत प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाएगा।
    • सुरक्षा मानक: सभी बंदरगाहों पर एक समान सुरक्षा प्रोटोकॉल स्थापित किया जाएगा।
  • अपराध एवं दंड
    • अपराधीकरण में कमी: कुछ अपराधों के लिए अब कारावास के बजाय आर्थिक दंड दिया जाएगा।
    • नए अपराध
      • बिना सूचना के बंदरगाह संचालन शुरू करना।
      • प्रदूषण की सूचना या प्रदूषण संबंधी सुविधाएँ उपलब्ध न कराना।
      • DRC के आदेशों का पालन न करना।
    • दंड
      • जहाज की सुरक्षा को खतरे में डालने या जल स्तर/भू-भौतिकीय संरचनाओं को नुकसान पहुँचाने पर कारावास (6 महीने तक), जुर्माना (₹1 लाख तक), या दोनों।
      • पहली बार उल्लंघन करने पर ‘कंपाउंडिंग’ की अनुमति है।
  • आर्थिक एवं परिचालन संवर्द्धन
    • डिजिटलीकरण: प्रक्रियाओं को सरल बनाता है और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (EODB) को बढ़ाता है।
    • लॉजिस्टिक्स लागत में कमी: माल की आवाजाही में तेजी लाता है और आंतरिक क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में सुधार करता है।
    • रोजगार सृजन: बंदरगाह संचालन, लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग और संबद्ध उद्योगों में अवसर प्रदान करना।
    • निर्यातकों और MSME के लिए समर्थन: सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ और बेहतर बुनियादी ढाँचा स्थापित करना।
    • वित्तपोषण में लचीलापन: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और विदेशी निवेश के लिए स्पष्ट प्रावधान।
    • तटीय नौवहन को बढ़ावा: अंतर्देशीय जलमार्गों और बहुविध परिवहन प्रणालियों के साथ एकीकरण करना।

भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 की प्रमुख चिंताएँ और आलोचनाएँ

  • दंड के विरुद्ध अपील तंत्र का अभाव: इस विधेयक में दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध अपराधों के लिए संरक्षक द्वारा लगाए गए दंड के विरुद्ध अपील करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
    • यह जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम, 2023 और भारतीय वायुयान अधिनियम, 2024 जैसे अन्य कानूनों के विपरीत है, जो उच्च पदस्थ अधिकारियों के समक्ष अपील की अनुमति देते हैं और जाँच-पड़ताल सुनिश्चित करते हैं।
  • प्रवेश और निरीक्षण शक्तियों के लिए सुरक्षा उपायों का अभाव: यह विधेयक, संरक्षक एवं स्वास्थ्य अधिकारी को बंदरगाह की सीमा के भीतर जहाजों में प्रवेश करने तथा उनका निरीक्षण करने की शक्तियाँ प्रदान करता है, किंतु इसके लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों का कोई प्रावधान निर्दिष्ट नहीं करता है।
    • अन्य कानून, जैसे व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थिति संहिता, 2020 और खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के अंतर्गत सुरक्षा उपाय शामिल करते हैं, जैसे- कारण दर्ज करना, इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजीकरण और साक्ष्यों की उपस्थिति सुनिश्चित करना।
  • ‘मेगा पोर्ट’ वर्गीकरण पर अस्पष्टता: यह विधेयक केंद्र सरकार को बंदरगाहों को ‘मेगा पोर्ट’ के रूप में अधिसूचित करने की अनुमति देता है, लेकिन उनके उद्देश्य को स्पष्ट नहीं करता है या उनके प्रशासन के लिए विशिष्ट प्रावधान प्रदान नहीं करता है।
    • ‘मेगा पोर्ट’ अपने मौजूदा वर्गीकरण को प्रमुख या गौण बंदरगाहों के रूप में बनाए रखते हैं, जिससे इस अतिरिक्त पदनाम की आवश्यकता के संबंध में भ्रम उत्पन्न होता है।

उपलब्धियाँ

  • पिछले दशक में बंदरगाह क्षमता 87% बढ़कर 2,500 MMTPA हो गई (लक्ष्य: वर्ष 2030 तक 3,300+ MMTPA)।
  • कार्गो हैंडलिंग: वित्त वर्ष 2024 में 819.22 मिलियन टन, जो पिछले वर्ष की तुलना में 4.45% अधिक है।
  • तटीय शिपिंग में 118% और अंतर्देशीय जलमार्गों में एक दशक में 700% की वृद्धि हुई।
  • टर्नअराउंड समय 93 घंटे से घटकर 48 घंटे हो गया (वैश्विक औसत: लगभग 23 घंटे)।
  • कंटेनर पोर्ट परफॉर्मेंस इंडेक्स (CPPI) वर्ष 2023 के शीर्ष 100 में 9 भारतीय बंदरगाह शामिल हैं, जिनमें विशाखापत्तनम 19वें स्थान पर है।

भारत की तटीय अर्थव्यवस्था

  • तटीय अर्थव्यवस्था, जो भारत की ब्लू इकॉनमी का एक प्रमुख घटक है, में समुद्री, नौवहन और तटीय क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ शामिल हैं, जैसे बंदरगाह, नौवहन, मत्स्यपालन, जलीय कृषि, पर्यटन, नवीकरणीय ऊर्जा और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी।
  • भौगोलिक दायरा: भारत की तटरेखा 11,099 किलोमीटर (भू-स्थानिक मानचित्रण के माध्यम से वर्ष 2024 में संशोधित) तक विस्तृत है, जिसमें शामिल हैं:-
    • नौ तटीय राज्य (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल)
    • चार केंद्रशासित प्रदेश (दमन और दीव, दादरा और नागर हवेली, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह)।
  • महत्त्व
    • मात्रा के हिसाब से, भारत के 95% व्यापार और मूल्य के हिसाब से 70% व्यापार का प्रबंधन करता है।
    • 40 लाख से अधिक मछुआरों और तटीय समुदायों को आर्थिक सहारा प्रदान करता है।
    • व्यापार, रसद और संबद्ध उद्योगों के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • नीतिगत ढाँचा
    • सागरमाला कार्यक्रम (वर्ष 2015): बंदरगाह-आधारित विकास, कनेक्टिविटी और तटीय समुदाय के उत्थान पर केंद्रित है।
    • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030: इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत को एक वैश्विक समुद्री केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
    • मैरीटाइम अमृत काल विजन (MAKV) 2047: इसका लक्ष्य जहाज निर्माण, बंदरगाह अवसंरचना और वित्तीय लचीलेपन के माध्यम से भारत को दुनिया की अग्रणी समुद्री शक्तियों में शामिल करना है।
    • भारत की ब्लू इकॉनमी के लिए राष्ट्रीय नीति (वर्ष 2021): सतत् समुद्री-आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।

भारत की तटीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ

  • समुद्री व्यापार और बंदरगाह
    • बंदरगाह: भारत में 12 प्रमुख बंदरगाह (जैसे- जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT), पारादीप, दीनदयाल) और 217 गौण बंदरगाह (66 माल-संचालन, 151 मत्स्यन) संचालित हैं।
    • वर्ष 2023-24 में
      • प्रमुख बंदरगाह: 819 मिलियन टन (कुल माल का 53%)।
      • गौण बंदरगाह: 724 मिलियन टन (47%), जिनमें मुंद्रा (173 मीट्रिक टन, 11%) और सिक्का (128 मीट्रिक टन, 8%) सबसे आगे हैं।
  • मत्स्यपालन और जलीय कृषि
    • भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जहाँ जलीय कृषि जलीय पौधों के उत्पादन में 96.5% का योगदान देती है।
    • पहल
      • सागरमाला के अंतर्गत मत्स्यन बंदरगाहों (जैसे- चेन्नई, कोच्चि) का आधुनिकीकरण करना।
      • सतत् आजीविका के लिए समुद्री शैवाल की कृषि  को बढ़ावा देना।
      • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY): वर्ष 2025 तक 22 मिलियन टन मत्स्यन उत्पादन का लक्ष्य, जिससे तटीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
    • प्रभाव: 4 मिलियन मछुआरों को सहायता प्रदान करता है, निर्यात क्षमता को बढ़ाता है, तथा सतत् प्रथाओं के माध्यम से पर्यावरणीय प्रभाव को कम करता है।
  • तटीय पर्यटन
    • क्रूज टर्मिनलों का विकास (जैसे- कोच्चि अंतरराष्ट्रीय क्रूज टर्मिनल, मुंबई अंतरराष्ट्रीय क्रूज टर्मिनल, जिसका लक्ष्य प्रतिवर्ष 10 लाख यात्रियों को आकर्षित करना है)।
    • उच्च-मूल्य वाले पर्यटन को बढ़ावा देना, रोजगार सृजन और तटीय अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा और स्थिरता
    • उत्सर्जन कम करने के लिए पवन ऊर्जा, तरंग ऊर्जा और तटीय विद्युत प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • आंध्र प्रदेश में हरित ऊर्जा गलियारा (₹28,436 करोड़) वर्ष 2029 तक 11,000 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा को जोड़ेगा।
    • प्रदूषण नियंत्रण के लिए MARPOL तथा बलास्ट वाटर मैनेजमेंट कन्वेंशन का अनुपालन करना।
    • हरित बंदरगाह पहल: विझिंजम और तूतीकोरिन जैसे बंदरगाहों पर नवीकरणीय ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना।
  • समुद्री जैव प्रौद्योगिकी
    • फार्मास्यूटिकल्स, जैव ईंधन और कृषि अनुप्रयोगों के लिए समुद्री जीवों की खोज।
    • नवाचार और आर्थिक विविधीकरण के लिए यह एक उभरता हुआ क्षेत्र है।
  • समुद्री विकास कोष (Maritime Development Fund- MDF)
    • उद्देश्य: जहाज अधिग्रहण के लिए धन जुटाना और भारतीय ध्वज वाले बेड़े का विस्तार करना।
    • निधि: ₹25,000 करोड़ (49% सरकारी, 51% बंदरगाह प्राधिकरणों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनियों से)।
    • लक्ष्य: वर्ष 2047 तक वैश्विक माल ढुलाई में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाकर 20% करना, जिससे विदेशी जहाजों पर निर्भरता कम हो।
    • प्रभाव: आत्मनिर्भरता को बढ़ावा, भुगतान संतुलन में सुधार और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा।

सरकारी पहल

  • हालिया विधायी सुधार
    • तटीय नौवहन विधेयक, 2025 (अगस्त 2025 में पारित)
      • यह अधिनियम मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 के भाग XIV का स्थान लेता है।
      • वर्ष 2030 तक 230 मिलियन मीट्रिक टन तटीय कार्गो का लक्ष्य रखता है।
      • लाइसेंसिंग को सरल बनाता है, विदेशी जहाजों को नियंत्रित करता है और विदेशी मुद्रा के बहिर्वाह को कम करने के लिए भारतीय जहाजों को बढ़ावा देता है।
      • पारदर्शिता और निवेश के लिए राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय नौवहन रणनीतिक योजना और तटीय नौवहन के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस को अनिवार्य बनाता है।
    • वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025 और समुद्री माल परिवहन विधेयक, 2025: वैश्विक कैबोटेज मानकों के अनुरूप समुद्री कानूनों को आधुनिक बनाने के लिए ‘विधायी त्रयी’ का हिस्सा है।
  • संशोधित तटरेखा की लंबाई: वर्ष 2024 में 11,099 किमी. तक बढ़ाई गई, जिससे समुद्री सुरक्षा और ब्लू इकॉनमी की रणनीतियों पर प्रभाव पड़ेगा।
  • सागरमाला कार्यक्रम (वर्ष 2015)
    • उद्देश्य: बंदरगाह आधारित विकास को बढ़ावा देना।
      • बंदरगाह आधुनिकीकरण: मौजूदा बंदरगाहों (जैसे- तूतीकोरिन, चेन्नई) का उन्नयन और नए बंदरगाहों (जैसे- वधावन, विझिंजम) का विकास।
      • बंदरगाह संपर्क: सड़क, रेल और अंतर्देशीय जलमार्ग नेटवर्क (जैसे- पश्चिमी DFC स्पर लाइनें, भारतमाला राजमार्ग) को बढ़ाना।
      • तटीय आर्थिक क्षेत्र (CEZ): बंदरगाह के निकट औद्योगीकरण के लिए 14 CEZ का विकास (जैसे- धोलेरा स्मार्ट सिटी, गुजरात)।
      • तटीय सामुदायिक विकास: मत्स्यन बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, कौशल विकास और पर्यटन को बढ़ावा देना।
    • प्रभाव
      • ₹5.79 लाख करोड़ मूल्य की 800 से अधिक परियोजनाओं की पहचान की गई है।
      • वर्ष 2025 तक लगभग 1 करोड़ रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।
      • लॉजिस्टिक्स लागत में वार्षिक रूप से ₹35,000-40,000 करोड़ की कमी आएगी।
  • विझिंजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह (मई 2025 में प्रारंभ)
    • भारत का पहला गहरे जल का ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह (18-20 मीटर ड्राफ्ट)।
    • अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड लिमिटेड द्वारा PPP के माध्यम से विकसित (केरल: 61.5%, केंद्र: 9.6%)।
    • इससे प्रति वर्ष 200-220 मिलियन डॉलर की बचत होती है, जो पहले विदेशी बंदरगाहों (कोलंबो, सिंगापुर, दुबई) पर खर्च होते थे।
    • इसमें 750 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं (67% केरल से, 57% तिरुवनंतपुरम् से), जिनमें महिला क्रेन ऑपरेटर भी शामिल हैं।
    • इससे प्रति कंटेनर रसद लागत 80-100 डॉलर और यात्रा समय 1-2 दिन कम हो जाता है।
  • वधावन बंदरगाह (महाराष्ट्र): JNPT पर दबाव कम करने के लिए ₹76,000 करोड़ के निवेश से मेगा बंदरगाह की योजना बनाई गई है।
  • तूतीकोरिन अंतरराष्ट्रीय कंटेनर टर्मिनल: वार्षिक रूप से 6 लाख TEU का संचालन करता है, जिससे क्षमता में 40 लाख TEU की वृद्धि होगी।
  • समुद्री वित्तपोषण शिखर सम्मेलन, 2025
    • निवेशक आधारित बंदरगाह अवसंरचना के लिए वित्तीय डिजिटल परिपक्वता मैट्रिक्स (Financial Digital Maturity Matrix- FDMM) का शुभारंभ किया गया।
    • स्वचालित मार्ग से शिपिंग में 100% FDI की अनुमति।
    • GIFT सिटी IFSC को जहाज पट्टे और वित्तपोषण के लिए सक्षम बनाया गया।
  • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030: इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत को एक वैश्विक समुद्री केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
  • मैरीटाइम अमृत काल विजन (MAKV) 2047: इसका लक्ष्य जहाज निर्माण, बंदरगाह अवसंरचना और वित्तीय लचीलेपन के माध्यम से भारत को विश्व की अग्रणी समुद्री शक्तियों में शामिल करना है।
  • भारत की ब्लू इकॉनमी के लिए राष्ट्रीय नीति (2021): समुद्र-आधारित सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।

प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ

  • पर्यावरणीय क्षरण: बंदरगाह विस्तार और ड्रेजिंग से तटीय कटाव, आर्द्रभूमि विनाश और समुद्री जैव विविधता हानि का खतरा (उदाहरण के लिए, कटाव की आशंकाओं को लेकर वर्ष 2022-23 में विझिंजम में विरोध प्रदर्शन) है।
    • तेल रिसाव (उदाहरण के लिए, MSC ELSA 3) प्रदूषण के खतरों को रेखांकित करते हैं।
  • समुदायों का विस्थापन: बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ पर्याप्त पुनर्वास के बिना मछुआरों और स्वदेशी समुदायों को विस्थापित कर सकती हैं।
  • उच्च रसद लागत: भारत की रसद लागत (GDP का 13-14%) वैश्विक औसत (8-9%) से अधिक है।
  • क्षेत्रीय असंतुलन: गुजरात और महाराष्ट्र बंदरगाह निवेश में अग्रणी हैं, संभवतः ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों की उपेक्षा कर रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन की भेद्यता: समुद्र-स्तर में वृद्धि, चक्रवात और बाढ़ तटीय बुनियादी ढाँचे के लिए खतरा हैं।
  • नियामक कमियाँ: भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 में संरक्षक दंड और निरीक्षण शक्तियों के लिए सुरक्षा उपायों हेतु अपील तंत्र का अभाव है, जिससे दुरुपयोग का खतरा है।
    • ‘मेगा पोर्ट्स’ के वर्गीकरण में अस्पष्टता नियामकीय भ्रम उत्पन्न कर सकती है।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: शैलो ड्राफ्ट, पुराने उपकरण और प्रमुख बंदरगाहों पर भीड़भाड़ (टर्नअराउंड समय: 50.7 घंटे बनाम वैश्विक 12 घंटे)।
  • वित्तीय चुनौतियाँ: उच्च निवेश आवश्यकताओं (सागरमाला के तहत ₹5.79 लाख करोड़) के लिए निरंतर सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की आवश्यकता है।
    • अब तक 45 में से केवल 31 सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं ने ₹45,973 करोड़ जुटाए हैं।

आगे की राह

  • मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी बढ़ाना: रेल, सड़क, अंतर्देशीय जलमार्ग और पाइपलाइन संपर्कों (जैसे- जल मार्ग विकास, वेस्टर्न DFC, भारतमाला राजमार्ग) को मजबूत बनाना।
    • वर्ष 2030 तक 10% माल सड़क/रेल से जलमार्गों की ओर मोड़ना।
  • हरित बंदरगाहों को बढ़ावा देना: उत्सर्जन कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा, तटीय विद्युत और ग्रीन ड्रेजिंग को अपनाना।
    • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 के अनुसार, शून्य-उत्सर्जन बंदरगाहों का विकास करना।
  • बंदरगाह-आधारित औद्योगीकरण को मजबूत बनाना: इस्पात, सीमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों के लिए 14 तटीय आर्थिक क्षेत्रों (Coastal Economic Zones- CEZ) में तेजी लाना।
    • औद्योगिक समूहों को बंदरगाहों से जोड़ना (जैसे- धोलेरा स्मार्ट सिटी से पीपावाव/कांडला)।
  • निजी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की भागीदारी बढ़ाना: भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंजूरियों को सरल बनाना।
    • वित्तपोषण के लिए शिपिंग और गिफ्ट सिटी IFSC में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लाभ उठाना।
  • डिजिटलीकरण और स्वचालन: पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम (PCS1x), एंटरप्राइज बिजनेस सिस्टम (EBS), और विझिंजम के VTMS जैसी AI-संचालित प्रणालियों को लागू करना ताकि ठहराव समय को वैश्विक मानकों (लगभग 12 घंटे) तक कम किया जा सके।
  • ट्रांसशिपमेंट क्षमता का विस्तार करना: विझिंजम, वधावन और एनायम जैसे केंद्र विकसित करना ताकि वर्तमान में विदेशी बंदरगाहों (जैसे- कोलंबो) द्वारा संचालित भारत के 45% ट्रांसशिपमेंट को कवर किया जा सके।
  • तटीय समुदायों को सशक्त बनाना: कौशल विकास, मछुआरा कल्याण और ब्लू इकोनॉमी पहलों (जैसे- सागरमाला के तहत 30,000 से अधिक लाभार्थी) में निवेश करना।
    • लैंगिक समावेशन को बढ़ावा देना (जैसे- विझिंजम में महिला क्रेन ऑपरेटर)।
  • नीति कार्यान्वयन: राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय नौवहन रणनीतिक योजना और भारत की ब्लू इकोनॉमी-2021 के लिए राष्ट्रीय नीति को क्रियान्वित करना।
    • वास्तविक समय परियोजना निगरानी के लिए पीएम गति शक्ति का उपयोग करना तथा वर्ष 2030 तक सागरमाला कौशल केंद्रों के माध्यम से 5 लाख श्रमिकों को कुशल बनाना।

निष्कर्ष

भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 तथा तटीय नौवहन विधेयक जैसे संबद्ध सुधार एक आधुनिक, सतत् समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो एकीकृत बंदरगाह विकास को बढ़ावा देगा और रसद लागत को कम करेगा। भारत का लक्ष्य सागरमाला और समुद्री विकास कोष जैसी पहलों का लाभ उठाकर, आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिए अपनी विशाल तटरेखा का दोहन करना है।

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