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भारत में जल संकट और प्रबंधन

Lokesh Pal August 21, 2025 02:47 18 0

संदर्भ

भारत अपने इतिहास के सबसे गंभीर जल संकटों में से एक का सामना कर रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन के दबाव और कृषि पर भारी निर्भरता ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है, जिससे नवीन और प्रभावी जल प्रबंधन एक अत्यावश्यक आवश्यकता बन गया है।

जल संकट (Water Crisis)

जल संकट से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जहाँ मीठे जल की उपलब्धता, गुणवत्ता या पहुँच, माँग की तुलना में काफी कम हो जाती है, जिसके कारण कृषि, घरों, उद्योगों और पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव पड़ता है।

भारत में जल संकट की स्थिति

  • सीमित संसाधन बनाम उच्च माँग: भारत के पास दुनिया के मीठे जल के संसाधनों का केवल 4% ही है, जबकि यह दुनिया की 17% आबादी का भरण-पोषण करता है।
  • उच्च जल संकट: नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) रिपोर्ट बताती है कि लगभग 60 करोड़ भारतीय उच्च से लेकर अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं, जिससे यह भारत के इतिहास का सबसे दुर्लभ जल संकट बन गया है।
  • प्रति व्यक्ति उपलब्धता में गिरावट: भारत की वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2021 में 1,486 घन मीटर थी, जो पहले से ही वैश्विक जल संकट सीमा (1,700 घन मीटर) से नीचे है।
    • इसके वर्ष 2025 तक 1,341 घन मीटर और वर्ष 2050 तक 1,140 घन मीटर तक और घटने का अनुमान है।
  • सुरक्षित पेयजल की कमी: सुरक्षित जल की अपर्याप्त पहुँच के कारण प्रतिवर्ष 2,00,000 लोgon मरते हैं।
    • लगभग 75% घरों में सुरक्षित पेयजल की कमी है और वर्ष 2030 तक, 40% भारतीयों के पास इसकी पहुँच ही नहीं होगी।
  • भू-जल दोहन: भारत वैश्विक स्तर पर भू-जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो वैश्विक भंडार का 25% से अधिक उपयोग करता है।
    • लगभग 70% भूजल दूषित है, जिससे जल गुणवत्ता सूचकांक (Water Quality Index) (विश्व बैंक) में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर है।

भारत में जल संकट के कारण

  • माँग-आपूर्ति असंतुलन: नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2030 तक जल की माँग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है।
    • अनुमान है कि 2060 के दशक की शुरुआत में भारत की जनसंख्या लगभग 1.7 अरब के शिखर पर पहुँच जाएगी।
  • अत्यधिक दोहन और कुप्रबंधन
    • कृषि के लिए भूजल का उपयोग: FAO के अनुसार, भारत के 90% मीठे जल संसाधनों का उपयोग कृषि में किया जाता है, जबकि भारतीय केंद्रीय जल आयोग के अनुसार यह 78% है।
      • पंजाब और हरियाणा में धान की खेती के कारण भूजल में भारी कमी आई है।
    • शहरीकरण: इसने संकट को और भी बदतर बना दिया है; उदाहरण के लिए, बंगलूरू की झीलों की संख्या वर्ष 1961 में 262 से घटकर लगभग 80 रह गई है।
  • प्रदूषण: जल निकाय अत्यधिक प्रदूषित हैं, जैसे बंगलूरू की बेलंदूर झील, जो अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के कारण उपयोग के लिए अनुपयुक्त है।
    • विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, अनुमान है कि भारत में लगभग 70% सतही जल उपभोग के लिए अनुपयुक्त है।
  • अतिक्रमण: बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए आर्द्रभूमि और झीलों को नष्ट किया जा रहा है, जिससे प्राकृतिक भंडारण कम हो रहा है। उदाहरण के लिए, चेन्नई और बंगलूरू जैसे शहरों में।
  • जलवायु और पर्यावरणीय तनाव: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित मानसून, बाढ़ और सूखा जल सुरक्षा पर और दबाव डालते हैं।
  • बुनियादी ढाँचा और प्रशासन में खामियाँ: खराब आपूर्ति नेटवर्क, पुराने उपचार संयंत्र और उच्च रिसाव के कारण पानी की बर्बादी होती है।
    • विखंडित जल प्रशासन और राजनीतीकरण वाले अंतरराज्यीय नदी विवाद प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालते हैं।
  • लोगों में जागरूकता की कमी: कई नागरिक अभी भी पानी को एक निशुल्क संसाधन मानते हैं, जिसके कारण संरक्षण के प्रयास कम होते हैं।

जल संकट के प्रभाव

  • कृषि और खाद्य सुरक्षा: जल की कमी का अर्थ है कृषि उत्पादन के लिए कम जल, जिसका अर्थ है कम खाद्य उपलब्धता, जिससे खाद्य सुरक्षा और पोषण को खतरा है।
  • आर्थिक: विश्व बैंक के अनुसार, जल की कमी वर्ष 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6% की कमी ला सकती है।
  • सामाजिक: असुरक्षित जल कुपोषण, बीमारी और उच्च चिकित्सा लागत का कारण बनता है, खासकर गरीबों के लिए।
  • पारिस्थितिकी: जल की कमी पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए खतरा बन सकती है। उदाहरण के लिए, आश्रित वनस्पतियों और जीवों का विलुप्त होना।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध: जल की कमी पड़ोसी देशों के साथ तनाव बढ़ा सकती है।
    • उदाहरण के लिए, ब्रह्मपुत्र पर चीन के बाँध भारत के जल प्रवाह को प्रभावित कर रहे हैं।

इस संकट के कारण जल प्रबंधन में प्रौद्योगिकी को अपनाना एक विकल्प नहीं बल्कि एक आवश्यकता बन गया है।

जल प्रबंधन और संरक्षण में प्रमुख पहल और प्रौद्योगिकी का उपयोग

(a) डिजिटल मानचित्रण, निगरानी और डेटा-संचालित योजना

  • जल शक्ति अभियान- कैच द रेन (2021)
    • राष्ट्रीय जल मिशन, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • पुराने राजस्व अभिलेखों, राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (National Remote Sensing Center- NRSC) से प्राप्त सुदूर संवेदन डेटा और भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems- GIS) मानचित्रण का उपयोग करके जल निकायों की गणना, भू-टैगिंग और सूचीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • जिला-स्तरीय जल संरक्षण योजनाओं के लिए राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र (National Water Informatics Centre- NWIC) के साथ एकीकरण किया गया है।
  • जल निकायों की पहली जनगणना (2018-19): वर्ष 2023 में 24.24 लाख जल निकायों (तालाब, टैंक, जलाशय, झीलें, चेकडैम, आदि) का डेटाबेस प्रकाशित किया जाएगा।
  • जल धरोहर पोर्टल (Jal Dharohar Portal) (2023): भारत-जल संसाधन सूचना प्रणाली (India-Water Resource Information System-India-WRIS) के अंतर्गत GIS-आधारित सब-पोर्टल, नियोजन और जागरूकता हेतु जल निकायों के आँकड़ों को समेकित करता है।

(b) भूजल प्रबंधन (Groundwater Management)

  • भारत-भूजल संसाधन आकलन प्रणाली (IN-GRES platform) (CGWB): मानकीकृत भूजल संसाधन आकलन हेतु एक वेब-आधारित अनुप्रयोग है।
  • डिजिटल जल स्तर रिकॉर्डर (Digital Water Level Recorders-DWLRs): वास्तविक समय निगरानी के लिए 5,260 उपकरण।
  • जलभृत मानचित्रण: पुनर्भरण क्षेत्रों और स्थानिक विश्लेषण के लिए GIS + सुदूर संवेदन।
  • उपग्रह सहायता
    • भूजल भंडारण आकलन के लिए ‘गुरुत्वाकर्षण पुनर्प्राप्ति और जलवायु प्रयोग’ (Gravity Recovery and Climate Experiment- GRACE) प्लेटफॉर्म।
    • नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar- NISAR) वृहद स्तर पर भूजल परिवर्तनों का पता लगाने के लिए।

(c) सिंचाई और कृषि

  • कमांड क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन आधुनिकीकरण (Modernization of Command Area Development and Water Management- MCAD) योजना (2025-26)
    • निगरानी के लिए पर्यवेक्षी नियंत्रण एवं डेटा अधिग्रहण (Supervisory Control and Data Acquisition- SCADA)/IoT आधारित प्रणालियों का उपयोग।
    • जल उपयोग मापन, जल उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency- WUE) ट्रैकिंग।
    • जल-बचत नवाचारों के लिए स्टार्ट-अप्स, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहभागिता।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत सतही लघु सिंचाई- हर खेत को पानी (Surface Minor Irrigation under Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana – Har Khet Ko Pani- PMKSY-HKKP) (2016)
    • लघु सिंचाई परियोजनाओं का GIS मानचित्रण।
    • परियोजना निगरानी के लिए विशिष्ट पहचान कोड (Unique Identification Codes- UICs)।

(d) शहरी जल प्रबंधन (Urban Water Management)

  • अमृत (AMRUT) (2015) और अमृत 2.0 (AMRUT 2.0) (2015) 
    • जल आपूर्ति और सीवरेज परियोजनाओं में SCADA जैसे स्मार्ट तत्त्वों को शामिल किया गया है।
    • शहरी जल निकाय सूचना प्रणाली (Urban Waterbody Information System- UWAIS): सूचित निर्णय लेने के लिए NRSC द्वारा GIS और रिमोट सेंसिंग आधारित मानचित्रण का उपयोग करके जल निकायों का मानचित्रण।

(e) ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल

  • जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission- JJM) (2019): ग्रामीण जल आपूर्ति निगरानी के लिए IoT-आधारित सेंसर समाधान।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • इजरायल: ड्रिप सिंचाई और सूक्ष्म सिंचाई में अग्रणी, जिससे कृषि में 40% तक जल की बचत हुई।
  • सिंगापुर: NEWater परियोजना- एडवांस्ड मेंबरेन टेक्नोलॉजी और UV कीटाणुशोधन का उपयोग उपचारित अपशिष्ट जल को उच्च-गुणवत्ता वाले पेयजल में पुनर्चक्रित करने के लिए किया जाता है।
  • ऑस्ट्रेलिया- मरे-डार्लिंग बेसिन: दुर्लभ नदी जल के प्रबंधन के लिए वास्तविक समय के जल विज्ञान डेटा, रिमोट सेंसिंग और डिजिटल आवंटन प्रणालियों का उपयोग करता है।
  • चीन: नदी बेसिन की निगरानी और बाढ़ का पूर्वानुमान के लिए AI, बिग डेटा और उपग्रह इमेजरी का उपयोग करता है।

प्रौद्योगिकी अपनाने में चुनौतियाँ

  • उच्च लागत: SCADA, IoT और उपग्रह-आधारित निगरानी जैसी उन्नत प्रणालियाँ महँगी हैं।
  • डिजिटल विभाजन: ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में तकनीकी क्षमता का अभाव है।
  • डेटा संबंधी समस्याएँ: खंडित डेटाबेस, अंतर-संचालन चुनौतियाँ और साइबर सुरक्षा जोखिम बना हुआ है।
  • संस्थागत बाधाएँ: जल राज्य सूची का विषय होने के कारण समन्वय संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • समानता संबंधी चिंताएँ: बड़े किसानों, उद्योगों और शहरी क्षेत्रों को छोटे किसानों और ग्रामीण गरीबों की तुलना में अधिक लाभ हो सकता है।

जल प्रबंधन में नीति उपकरण के रूप में प्रौद्योगिकी

  • डेटा-संचालित शासन: रियल-टाइम डैशबोर्ड (जैसे- JJM, NWIC) पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाते हैं।
  • एकीकृत निर्णय-निर्माण: इंडिया-WRIS जैसे प्लेटफॉर्म समग्र योजना के लिए विभिन्न योजनाओं के डेटा को एकीकृत करते हैं।
  • विनियमन एवं अनुपालन: IoT मीटर वॉल्यूमेट्रिक मूल्य निर्धारण को सक्षम बनाते हैं, SCADA शहरी सेवा मानकों को लागू करता है, ब्लॉकचेन जल व्यापार को पारदर्शी बना सकता है।

आगे की राह

  • स्मार्ट निगरानी का विस्तार करना: संदूषण, अति-निष्कर्षण और पाइपलाइन क्षति की पूर्व चेतावनी के लिए IoT-आधारित जल मीटर, रिसाव पहचान प्रणाली और AI-संचालित विश्लेषण का विस्तार करना।
    • सिंगापुर के स्तरीय मूल्य निर्धारण मॉडल को अपनाया जा सकता है।
  • जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: उद्योगों और नगर पालिकाओं को गैर-पेयजल संबंधी उद्देश्यों (शीतलन, भूनिर्माण, सिंचाई) के लिए अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • विकेंद्रीकृत तकनीकी समाधान: IoT-सक्षम भंडारण निगरानी के साथ कम लागत वाले विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार, ग्रेवाटर पुनर्चक्रण इकाइयों (Greywater Recycling Units) और स्मार्ट वर्षा जल संचयन संरचनाओं को बढ़ावा देना।
  • कम लागत वाले नवाचार: स्टार्ट-अप और स्थानीय उद्यमों को किफायती, मापनीय तकनीकें बनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • तकनीकी-सक्षम सामुदायिक भागीदारी: जल उपयोगकर्ता संघों और ग्राम पंचायतों को जल लेखा परीक्षा में सशक्त बनाने के लिए स्थानीय भाषाओं में मोबाइल ऐप और GIS डैशबोर्ड विकसित करना।
  • नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: जल निगरानी, संरक्षण और पुनर्चक्रण के लिए लागत-प्रभावी, मापनीय प्रौद्योगिकियों के विकास में स्टार्ट-अप्स, अनुसंधान संस्थानों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को सहायता प्रदान करना।
  • जलवायु लचीलापन: बाढ़ और सूखे के प्रबंधन के लिए पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और बड़े डेटा का उपयोग।

निष्कर्ष

भारत के बढ़ते जल संकट के लिए तत्काल, निरंतर और नवीन कार्रवाई की आवश्यकता है। आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ जैसे GIS, IoT, रिमोट सेंसिंग, AI और स्मार्ट मॉनिटरिंग जल प्रबंधन में दक्षता, पारदर्शिता और स्थिरता में उल्लेखनीय सुधार ला सकती हैं। हालाँकि, तकनीक एक सक्षमकर्ता है, विकल्प नहीं। दीर्घकालिक जल सुरक्षा एक संतुलित दृष्टिकोण पर निर्भर करेगी, जिसमें आधुनिक उपकरण, पारंपरिक ज्ञान, सामुदायिक भागीदारी और मजबूत शासन ढाँचे का एकीकरण हो।

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