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आयकर विधेयक, 2025

Lokesh Pal August 23, 2025 03:25 14 0

संदर्भ

संसद ने आयकर अधिनियम, 1961 के स्थान पर आयकर विधेयक, 2025 को सरल प्रारूपण और विस्तारित डिजिटल युग प्रावधानों के साथ पारित कर दिया है।

नए आयकर विधेयक, 2025 के बारे में

  • उद्देश्य: यह विधेयक वर्ष 1961 के आयकर अधिनियम के अधिकांश मूल तत्त्वों को बरकरार रखते हुए, भाषा को सरल बनाकर और अनावश्यक प्रावधानों को हटाकर आयकर कानून को सुव्यवस्थित करता है।
  • दूसरा संस्करण: फरवरी 2025 में पेश किए गए आयकर विधेयक, 2025 के पहले मसौदे को बैजयंत पांडा की अध्यक्षता वाली एक प्रवर समिति को भेजा गया था, जिसने जुलाई में प्रमुख सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
    • भ्रम से बचने के लिए, सरकार ने पहले के मसौदे को वापस ले लिया और एक संशोधित संस्करण पेश किया।
  • यह विधेयक अध्यायों को 47 से घटाकर 23 और धाराओं को 819 से घटाकर 536 कर देता है, जिससे अनावश्यकता और जटिलता कम हो जाती है।
    • कुल शब्द संख्या 5.12 लाख से घटाकर 2.6 लाख कर दी गई, जिससे कानून को समझना और भी आसान हो गया।
    • स्पष्टता के लिए तालिकाओं की संख्या 18 से बढ़ाकर 57 और सूत्रों की संख्या 6 से बढ़ाकर 46 कर दी गई।

PW OnlyIAS विशेष

न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT): आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115JB के अंतर्गत, MAT यह सुनिश्चित करता है कि जिन कंपनियों का अपने बहीखातों में उच्च लाभ दर्ज है, लेकिन छूट/कटौतियों के कारण वे बहुत कम या बिल्कुल भी कर नहीं दे रही हैं, उन्हें न्यूनतम कर का भुगतान करना होगा, जिसकी गणना उनके “बहीखाते लाभ” के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में की जाती है।

वैकल्पिक न्यूनतम कर (AMT): धारा 115JC-115JF के अंतर्गत प्रस्तुत, AMT उन गैर-कॉरपोरेट करदाताओं (व्यक्ति, साझेदारी, LLP) पर लागू होता है, जो महत्त्वपूर्ण कटौतियों का दावा करते हैं। यह “समायोजित कुल आय” पर न्यूनतम कर का भुगतान अनिवार्य करता है, जिससे अत्यधिक कर-वंचना को रोका जा सकता है।

2025 आयकर विधेयक के प्रमुख प्रावधान

  • करदाता-अनुकूल उपाय (Taxpayer-Friendly Measures)
    • करदाता बिना किसी जुर्माने के आकलन वर्ष के बाद 4 वर्ष तक आयकर रिटर्न (ITR) अपडेट कर सकते हैं।
    • करदाताओं के लिए निश्चितता सुनिश्चित करने हेतु आकलन पुनः खोलने की सीमा 5 वर्ष तक सीमित है।
    • बेहतर स्पष्टता के लिए न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternate Tax- MAT) और वैकल्पिक न्यूनतम कर (Alternate Minimum Tax- AMT) प्रावधानों को उप-धाराओं में विभाजित किया गया है।
    • वित्तीय संस्थानों के माध्यम से वित्तपोषित शिक्षा के लिए उदारीकृत प्रेषण योजना (Liberalised Remittance Scheme- LRS) के तहत प्राप्त धन पर स्रोत आधारित कर संग्रहण (Tax Collected at Source0- TCS) शून्य प्रदान करके आधुनिक प्रेषण प्रथाओं को मान्यता दी गई है।
    • इसने औपचारिक रूप से “कर वर्ष” (1 अप्रैल – 31 मार्च) की एक नई अवधारणा शुरू की है।
      • कर निर्धारण वर्ष की अवधारणा को कर वर्ष द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
      • वर्तमान में, आयकर अधिनियम 1961, कर निर्धारण वर्ष (वर्ष के बाद वह वित्तीय वर्ष, जिसमें आय अर्जित की जाती है) की अवधारणा का पालन करता है।
  • डिजिटल और व्यावसायिक प्रावधान
    • 50 करोड़ रुपये से अधिक की प्राप्तियों वाले पेशेवरों को इलेक्ट्रॉनिक भुगतान विधियों का उपयोग करना होगा।
    • प्रतिबंधात्मक धाराओं को हटाकर, समय पर ITR दाखिल न करने पर भी रिफंड दावों की अनुमति दी गई है।
    • अघोषित आय की परिभाषा का विस्तार करके अब आभासी डिजिटल संपत्तियों (Virtual Digital Assets- VDA) को भी शामिल किया गया है।
    • यह ‘आभासी डिजिटल स्थान’ की परिभाषा का विस्तार करता है, जिसमें ईमेल सर्वर, सोशल मीडिया अकाउंट, ऑनलाइन बैंकिंग और क्लाउड प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
    • योजनाएँ निर्माण की शक्ति: यह केंद्र सरकार को अधिक दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए नई योजनाएँ बनाने का अधिकार भी प्रदान करता है।
      • केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • विवाद समाधान और कर संधियाँ
      • अब विवाद समाधान पैनल को अपने निर्देशों के साथ विस्तृत कारण भी बताने होंगे।
      • कर संधियाँ: यदि कोई शब्द अपरिभाषित है, तो उसका अर्थ अधिनियम या सरकारी अधिसूचनाओं के अलावा अन्य केंद्रीय कानूनों से लिया जाएगा।

वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (Virtual Digital Assets- VDA) 

  • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(47A) के अनुसार, VDA में क्रिप्टोकरेंसी, NFT और इलेक्ट्रॉनिक रूप से उत्पन्न या स्थानांतरित की गई अन्य डिजिटल संपत्तियाँ शामिल हैं।

कराधान का प्रावधान 

  • धारा 115BBH के तहत VDA के हस्तांतरण से होने वाली आय पर 30% की दर से कर लगाया जाता है, जिसमें कोई कटौती नहीं होती (अधिग्रहण की लागत को छोड़कर) तथा हस्तांतरण मूल्य पर धारा 194S के तहत 1% TDS लगाया जाता है।

आयकर विधेयक, 2025 का महत्त्व

  • कर कानून का आधुनिकीकरण: छ: दशक पुराने आयकर अधिनियम, 1961 को सरल, संक्षिप्त और नागरिक-अनुकूल प्रारूपण से प्रतिस्थापित किया गया है।
    • अनावश्यक प्रावधानों और पुरानी भाषा के स्थान पर, कानून की भाषा और लागू करने की प्रक्रिया को सरलीकृत किया गया है।
  • करदाताओं के लिए अधिक निश्चितता: रिफंड प्रतिबंधों जैसी विसंगतियों को दूर किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि विलंबित रिटर्न के लिए भी रिफंड का दावा किया जा सकता है।
    • स्थानांतरण मूल्य निर्धारण, कॉरपोरेट कर कटौती और LLP कराधान के नियमों को स्पष्ट किया गया है, जिससे मुकदमेबाजी की गुंजाइश कम हुई है।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ संरेखण: आयकर अधिकारियों को डिजिटल डेटा तक पहुँचने का अधिकार दिया गया है, साथ ही व्यक्तिगत डिजिटल जानकारी के प्रबंधन के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का वादा किया गया है।
  • निर्बाध संधियाँ: भारतीय अधिनियम में शब्दावली या प्रावधान के अभाव में अन्य देशों की परिभाषाओं को स्वीकार करने से दोहरे कराधान परिहार समझौते (Double Taxation Avoidance Agreement- DTAA) जैसी मौजूदा कर संधियों को सुगम बनाया जा सकेगा।
  • स्थिरता और निरंतरता: कर की दरों, व्यवस्थाओं और दंडों को अपरिवर्तित बनाता है, जिससे व्यक्तियों या निगमों को कोई व्यवधान न हो।
    • पूर्ववर्ती अधिनियम की प्रमुख परिभाषाओं को संरक्षित करता है, जिससे व्याख्या और अनुपालन में एकरूपता सुनिश्चित होती है।

नए प्रावधानों के संबंध में चिंताएँ

  • अनिवार्य पासवर्ड प्रकटीकरण: करदाता को कर अधिकारियों को “उचित तकनीकी और अन्य सहायता” प्रदान करनी होगी, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और खातों के पासवर्ड साझा करना भी शामिल है।
    • इससे व्यक्तिगत ईमेल, सोशल मीडिया और असंबंधित निजी जानकारी में घुसपैठ की संभावना बढ़ जाती है, जिससे गोपनीयता तथा डेटा सुरक्षा संबंधी मुद्दे उत्पन्न होते हैं।
  • डेटा तक विस्तारित पहुँच: कर अधिकारी कर निर्धारण के लिए कौन-सी इलेक्ट्रॉनिक जानकारी मांग सकते हैं, इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
    • यह अधिकारियों के लिए अत्यधिक विवेकाधिकार प्रदान करता है, जिससे करदाताओं के दुरुपयोग और उत्पीड़न का जोखिम होता है।
  • कर अधिकारियों द्वारा शक्तियों को ओवरराइड करना: यदि पासवर्ड प्रदान नहीं किए जाते हैं, तो कर अधिकारी किसी भी कंप्यूटर सिस्टम के एक्सेस कोड को ‘ओवरराइड’ कर सकते हैं।
    • व्यक्तिगत अधिकारों का संभावित उल्लंघन तथा राज्य की मनमानी कार्रवाई के विरुद्ध सुरक्षा उपायों का कमजोर होना।

आयकर क्या है?

  • आयकर एक प्रत्यक्ष कर है, जो सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष के दौरान व्यक्तियों और व्यवसायों द्वारा अर्जित आय पर लगाया जाता है, जो आयकर अधिनियम, 1961 द्वारा शासित होता है।
  • ‘आय’ की अवधारणा को अधिनियम की धारा 2(24) के तहत व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, जिसमें विभिन्न स्रोत शामिल हैं।
  • संसद को संविधान के अनुच्छेद-265 द्वारा समर्थित, संघ सूची की प्रविष्टि 82 के अंतर्गत आयकर (कृषि आय के अलावा) पर कानून बनाने का विशेष अधिकार है।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-265 यह आदेश प्रदान करता है कि कानून के प्राधिकार के बिना कोई भी कर न तो आरोपित किया जाएगा और न ही एकत्र किया जाएगा।

आयकर का महत्त्व

  • राष्ट्र निर्माण: स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और रक्षा के लिए धन उपलब्ध कराता है।
  • आर्थिक विकास: निवेश, रोजगार सृजन और कल्याणकारी योजनाओं के लिए पूँजी उपलब्ध कराता है।
  • समता और निष्पक्षता: धन वितरण को संतुलित करता है, सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देता है और सामाजिक अनुबंध को मजबूत करता है।
  • जवाबदेही: कराधान सरकार की वैधता और संस्थाओं में लोगों के विश्वास को बढ़ाता है।

आयकर रिटर्न और संग्रह के रुझान

  • बढ़ता रिटर्न: वित्त वर्ष 2024-25 में लगभग 9.19 करोड़ ITR दाखिल किए गए, जो वित्त वर्ष 2020-21 के 6.72 करोड़ की तुलना में 36% की वृद्धि है, जो स्वैच्छिक अनुपालन और बढ़ते कर आधार को दर्शाता है।
  • संग्रह में वृद्धि: यह आर्थिक अनुकूलन और कुशल कर प्रशासन दोनों को दर्शाता है।

कराधान में डिजिटल परिवर्तन के लिए पहल

  • स्थायी खाता संख्या (पैन): प्रत्येक करदाता को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करने के लिए इसे वर्ष 1972 में शुरू किया गया।
    • 10 अंकों का अल्फान्यूमेरिक पैन वर्ष 1995 में शुरू किया गया।
    • दोहराव को समाप्त करने के लिए इसे आधार (वर्ष 2017) से जोड़ा गया।

  • केंद्रीकृत प्रसंस्करण केंद्र (2009): ऑटोमैटिक होलसेल रिटर्न प्रोसेसिंग।
  • TDS समाधान विश्लेषण और सुधार सक्षम प्रणाली (TDS Reconciliation Analysis and Correction Enabling System- TRACES) 2012: TDS विसंगतियों के सुधार में सहायता।
  • कर सूचना नेटवर्क (TIN  2.0): करों का वास्तविक समय पर क्रेडिट और तीव्र रिफंड।
  • प्रोजेक्ट इनसाइट: 360-डिग्री करदाता प्रोफाइलिंग के लिए एक डेटा वेयरहाउसिंग और व्यावसायिक इंटेलिजेंस प्लेटफ़ॉर्म।
  • फेसलेस असेसमेंट (2019): करदाताओं और अधिकारियों के बीच भौतिक संपर्क समाप्त।
  • वार्षिक सूचना विवरण (2021): तृतीय पक्ष डेटा के साथ रिटर्न को पहले से भरता है, जिससे त्रुटियाँ कम होती हैं और अनुपालन को बढ़ावा मिलता है।
  • ई-सत्यापन योजना: विसंगतियों का डिजिटल समाधान संभव।

अनुपालन के लिए व्यवहारिक प्रेरणा

  • दर्शन: फिलॉसफी: “बिलीव फर्स्ट ऐंड वैरिफाइ लेटर,” यूजिंग नॉन-इंट्रूसिव डेटा यूटिलाइजेशन
  • नज अभियान: कटौतियों या छूटों में विसंगतियों को उजागर करके स्वैच्छिक सुधारों को प्रोत्साहित करना।
  • अद्यतन रिटर्न प्रावधान: वित्त अधिनियम, 2025 ने अद्यतन रिटर्न दाखिल करने की समय सीमा 2 वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष कर दी है, जिससे बिना जुर्माने के सुधार की अनुमति मिलती है।

निष्कर्ष

आयकर विधेयक, 2025, छ: दशक पुराने वर्ष 1961 के अधिनियम को एक सरलीकृत, डिजिटल-रूप से निर्मित कानून से निर्मित भारत के कर ढाँचे में एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक है। यह कर दरों में स्थिरता और करदाताओं के लिए निरंतरता सुनिश्चित करता है, लेकिन इसके विस्तारित डिजिटल पहुँच प्रावधान गोपनीयता संबंधी चिंताएँ उत्पान करते हैं। आधुनिकीकरण, निश्चितता और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन ही इस विधेयक की दीर्घकालिक सफलता का निर्धारण करेगा।

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