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ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन ने 50 वर्षीय जिलॉन्ग संधि पर हस्ताक्षर किए

Lokesh Pal August 23, 2025 03:37 13 0

संदर्भ

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम ने AUKUS समझौते के तहत 50-वर्षीय रक्षा समझौते, जिलॉन्ग संधि पर हस्ताक्षर किए हैं।

जिलॉन्ग संधि (Geelong Treaty) के बारे में

  • अवलोकन: ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम के बीच AUKUS स्तंभ-I के अंतर्गत हस्ताक्षरित एक द्विपक्षीय परमाणु-संचालित पनडुब्बी साझेदारी और सहयोग संधि।
  • अवधि: 50 वर्षों के रणनीतिक रक्षा सहयोग की स्थापना।
  • फोकस: अगली पीढ़ी की परमाणु-संचालित, पारंपरिक रूप से सशस्त्र पनडुब्बियों (SSN-AUKUS) के डिजाइन, निर्माण, संचालन, रखरखाव और निपटान को शामिल करता है।
  • समर्थन
    • कार्मिकों, कार्यबल, बुनियादी ढाँचे और नियामक प्रणालियों का विकास।
    • बंदरगाहों का दौरा और HMAS स्टर्लिंग में एक ब्रिटिश एस्ट्यूट-श्रेणी की पनडुब्बी की रोटेशनल उपस्थिति।
  • महत्त्व: यह ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच सबसे विस्तृत और दीर्घकालिक रक्षा विनिर्माण और प्रौद्योगिकी-साझाकरण समझौते का प्रतिनिधित्व करता है।
  • परमाणु अप्रसार के प्रति प्रतिबद्धता: यह संधि निम्नलिखित अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है:
    • परमाणु अप्रसार संधि (NPT)।
    • दक्षिण प्रशांत परमाणु मुक्त क्षेत्र संधि और प्रोटोकॉल।
    • IAEA सुरक्षा समझौते।
    • AUKUS नेवल न्यूक्लियर प्रोपल्शन एग्रीमेंट (AUKUS Naval Nuclear Propulsion Agreement- ANNPA)।

एक्सचेंज ऑफ नेवल न्यूक्लियर प्रोपल्शन इनफॉरमेशन एग्रीमेंट  (Exchange of Naval Nuclear Propulsion Information Agreement- ENNPIA) का आदान-प्रदान, वर्ष 2021 में हस्ताक्षरित एक कानूनी रूप से बाध्यकारी त्रिपक्षीय समझौता है, जो AUKUS भागीदारों के बीच महत्त्वपूर्ण नौसेना परमाणु प्रणोदन प्रौद्योगिकी को साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।

AUKUS के बारे में

  • उत्पत्ति: ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य वर्ष 2021 में स्थापित एक त्रिपक्षीय सुरक्षा और रक्षा साझेदारी।
  • उद्देश्य: रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना, तकनीकी एकीकरण में तेजी लाना और औद्योगिक क्षमता का विस्तार करना, जिसका व्यापक लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देना है।
  • संरचना: AUKUS दो मुख्य स्तंभों पर आधारित है:
    • स्तंभ I- पनडुब्बी सहयोग: ऑस्ट्रेलिया को पारंपरिक रूप से सशस्त्र, परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियों (SSN) का पहला बेड़ा प्राप्त करने में सहायता करता है।
    • स्तंभ II- उन्नत क्षमताएँ: खुफिया जानकारी साझा करने और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों में सहयोग को गति प्रदान करता है, जिसमें शामिल हैं:
      • साइबर क्षमताएँ
      • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI)
      • क्वांटम प्रौद्योगिकियाँ
      • समुद्री प्रौद्योगिकियाँ
      • इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और नवाचार
      • अन्य उभरते नवाचार

हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific region)

  • “हिंद-प्रशांत” शब्द ने हाल के वर्षों में एक भू-राजनीतिक अवधारणा के रूप में प्रमुखता प्राप्त की है, जो परस्पर जुड़े हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सामरिक तथा आर्थिक महत्त्व को उजागर करता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र व्यापक रूप से अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर हिंद महासागर, दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर से होते हुए अमेरिका के पश्चिमी तट तक विस्तृत है।
  • समुद्री व्यापार केंद्र: वैश्विक समुद्री व्यापार का 60% से अधिक और अधिकांश ऊर्जा प्रवाह (तेल, गैस) इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है।
  • सामरिक अवरोध बिंदु: होर्मुज, मलक्का, लोंबोक, सुंडा जलडमरूमध्य, ये सभी वैश्विक ऊर्जा और व्यापार सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत पर AUKUS का प्रभाव

भारत के लिए सामरिक महत्त्व

  • चीन को संतुलित करना: AUKUS हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विरुद्ध रणनीतिक क्षमता को मजबूत करता है। भारत को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ होता है, क्योंकि वह चीन से सीधे टकराव के बिना स्थिति नियंत्रित रखना चाहता है।
  • क्वाड का पूरक: ऑस्ट्रेलिया की सैन्य क्षमताओं को उन्नत करके, AUKUS क्वाड की रणनीतिक भूमिका को और मजबूत बनाता है। यह हिंद महासागर में क्षमता की कमियों को दूर करता है, खासकर जहाँ ऑस्ट्रेलिया और जापान की नौसैनिक क्षमता कम है।
  • यूरोपीय साझेदारियाँ: जहाँ फ्राँस के साथ एक प्रमुख पनडुब्बी सौदा निरस्त हुआ है, वहीं AUKUS भारत को फ्राँस के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। भारत, रक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में फ्राँस के साथ सहयोग को और गहरा कर सकता है।
  • रणनीतिक गतिशीलता: भारत को लचीलापन मिला है। AUKUS से संबद्ध हुए बिना, यह अपनी स्वतंत्र हिंद-प्रशांत रणनीति को आगे बढ़ाते हुए क्वाड, नाटो और यूरोपीय साझेदारों के बीच संतुलन बना सकता है।

भारत के लिए चिंताएँ

  • क्षेत्रीय प्रभाव: पूर्वी हिंद महासागर में परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियों के आगमन से भारत का सापेक्षिक नौसैनिक भार कम हो सकता है।
  • तकनीकी पहुँच की सीमाएँ: अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि ऑस्ट्रेलिया का परमाणु प्रणोदन समझौता अद्वितीय है। इससे भारत की ऐसी ही तकनीक हासिल करने की उम्मीदें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
  • कूटनीतिक परिणाम: फ्राँस ने कई त्रिपक्षीय वार्ताओं (भारत-फ्राँस-ऑस्ट्रेलिया) से दूरी बना हैं और संयुक्त नौसैनिक अभ्यास जैसी पहलों को स्थगित कर दिया है। इस अविश्वास को दूर करने में समय लगेगा।

QUAD

AUKUS

  • सदस्य: संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया।
  • प्रकृति: अनौपचारिक रणनीतिक संवाद / लघुपक्षीय सहयोग।
  • मुख्य उद्देश्य: एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देना, व्यापक क्षेत्रीय चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • भारत की भूमिका: अवस्थिति और समुद्री क्षमताओं के कारण क्वाड की रणनीति का केंद्र, हिंद महासागर के चोक पॉइंट्स तक पहुँच प्रदान करता है।
  • सदस्य: संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम।
  • प्रकृति: औपचारिक सुरक्षा और रक्षा साझेदारी।
  • मुख्य उद्देश्य: कठोर सैन्य क्षमताओं को बढ़ाना, विशेष रूप से चीन के विरुद्ध समुद्री प्रतिरोध।
  • भारत इसका सदस्य नहीं है; अप्रत्यक्ष रूप से इससे लाभान्वित होता है क्योंकि AUKUS क्वाड का पूरक है।

क्वाड और AUKUS के बीच समानताएँ

  • चीन-केंद्रित: दोनों समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता, विशेष रूप से उसके नौसैनिक विस्तार और दबावपूर्ण रणनीति के विरुद्ध संगठन हैं।
  • सुरक्षा सहयोग: दोनों ढाँचे संयुक्त अभ्यास, प्रौद्योगिकी साझाकरण और रणनीतिक संवादों के माध्यम से रक्षा सहयोग को बढ़ाते हैं।
  • हिंद-प्रशांत स्थिरता: उनका सामूहिक उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों में शांति, स्थिरता और नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है।

SSN – न्यूक्लियर पॉवर अटैक सबमरीन 

SSBN – न्यूक्लियर पॉवर  बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन 

  • जहाजों, पनडुब्बियों और खुफिया भूमिकाओं के लिए पारंपरिक हथियारों (टॉरपीडो, क्रूज मिसाइल) से लैस।
  • लंबे समय तक कार्यरत रहने के लिए परमाणु ऊर्जा से संचालित, लेकिन परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस नहीं।
  • पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBM) से युक्त, जो प्रायः परमाणु हथियार ले जाती हैं।
  • यह सामरिक परमाणु निवारक के रूप में कार्य करता है तथा द्वितीय-आक्रमण क्षमता सुनिश्चित करता है।

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