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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal August 23, 2025 03:56 17 0

SASCI पहल

हाल ही में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने संपूर्ण भारत में कम प्रसिद्ध प्रतिष्ठित पर्यटन स्थलों के विकास हेतु SASCI पहल शुरू की है।

SASCI पहल के बारे में

  • इसका तात्पर्य है: उभरते पर्यटन स्थलों पर बुनियादी ढाँचे एवं पर्यटक अनुभवों के विकास हेतु राज्यों को पूँजी निवेश हेतु विशेष सहायता (Special Assistance to States for Capital Investment- SASCI) योजना।
  • लक्ष्य: सांस्कृतिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय मूल्य प्रदान करने वाले संपूर्ण पर्यटन अनुभव सृजित करना।
    • लोकप्रिय स्थलों पर भीड़भाड़ कम करने के लिए कम प्रसिद्ध स्थलों को बढ़ावा देना।
  • उद्देश्य
    • जिम्मेदार एवं सतत् पर्यटन को प्रोत्साहित करना।
    • समुदायों एवं कारीगरों के लिए रोजगार सृजित करके स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
    • उच्च मूल्य वाले घरेलू एवं विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करना।
    • समावेशी विकास एवं सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण एवं पर्यटन पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • चयन मानदंड: कनेक्टिविटी, पारिस्थितिकी तंत्र, वहन क्षमता, उपयोगिताओं, परियोजना प्रभाव, स्थिरता एवं निजी निवेश क्षमता का मूल्यांकन करते हुए एक चुनौती पद्धति के माध्यम से चयनित परियोजनाएँ।
    • वित्तपोषण तंत्र: विकास के लिए 100% केंद्रीय वित्तपोषण, संबंधित राज्य सरकारों द्वारा संचालन एवं रखरखाव।
    • कार्यान्वयन समय-सीमा: परियोजनाओं के मार्च 2026 तक पूरा होने की संभावना है।
    • समग्र दृष्टिकोण: व्यापक बुनियादी ढाँचे , ब्रांडिंग, स्थिरता एवं पर्यटन विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करना।
  • उल्लेखनीय परियोजनाएँ
    • बटेश्वर (उत्तर प्रदेश): ऐतिहासिक मंदिर
    • पोंडा (गोवा): सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक आकर्षण
    • गंडिकोटा (आंध्र प्रदेश): भारत का ‘ग्रांड कैन्यन’
    • पोरबंदर (गुजरात): महात्मा गांधी का जन्मस्थान
    • रंग घर (असम): हेरिटेज एंफीथिएटर
    • मत्स्यगंधा झील (बिहार): इको-टूरिज्म
    • ओरछा (मध्य प्रदेश): ऐतिहासिक स्मारक।
  • महत्त्व
    • आर्थिक सशक्तीकरण: स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं, आजीविका एवं पर्यटन राजस्व को बढ़ावा देता है।
    • सतत् विकास: पर्यावरण-अनुकूल एवं उत्तरदायी पर्यटन को बढ़ावा देता है।
    • सांस्कृतिक संरक्षण: विरासत स्थलों एवं स्थानीय परंपराओं की रक्षा करता है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत को विश्व स्तर पर एक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करता है।
    • सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय भागीदारी एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।

एशियन पाम सिवेट

केरल में मानव-सिवेट मुठभेड़ों की बढ़ती घटनाएँ देखी जा रही हैं, क्योंकि एशियाई पाम सिवेट तेजी से शहरी एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में प्रवेश कर रहा है, जिससे पारिस्थितिकी, सांस्कृतिक तथा कानूनी चिंताएँ बढ़ रही हैं।

एशियाई पाम सिवेट के बारे में

  • प्रजाति: एशियाई पाम सिवेट (पैराडॉक्सुरस हेर्मैफ्रोडिटस), जिसे ‘टोडी कैट’ भी कहा जाता है।
  • विशेषताएँ: पतला शरीर, नुकीला थूथन एवं सफेद चेहरे वाला छोटा, निशाचर स्तनपायी।
  • आवास एवं विस्तार: भारत सहित दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है।
  • आहार: सर्वाहारी—फलों, कीड़ों एवं छोटे जानवरों को खाता है, बीज प्रसार का प्रमुख कारक।
  • विशेषता: पचे हुए बीजों से कोपी लुवाक कॉफी का उत्पादन करता है।
  • संरक्षण स्थिति
    • कम चिंताग्रस्त (Least Concern) (IUCN  की रेड लिस्ट)
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के अंतर्गत संरक्षित।
  • पारिस्थितिक महत्त्व
    • बीज प्रकीर्णन: वन पुनर्जनन एवं जैव विविधता के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • कीट नियंत्रण: कीटों एवं कृंतकों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करता है।
    • सांस्कृतिक महत्त्व: ऐतिहासिक रूप से केरल में ताड़ी निकालने से संबंधित है, इसलिए इसे ‘टोडी कैट’ कहा जाता है।

सिवेट प्रजातियों के बारे में

  • अफ्रीकी सिवेट (सिवेटिक्टिस सिवेटा) उप-सहारा अफ्रीका में पाया जाता है, जिसे IUCN  की रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concern) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, एवं यह भारत में नहीं पाया जाता है।
  • अफ्रीकी पाम सिवेट (नंदिनिया बिनोटाटा) भूमध्यरेखीय अफ्रीका में पाया जाता है, जिसे IUCN  की रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concern) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है एवं यह भारत में मौजूद नहीं है।
  • एशियाई पाम सिवेट (पैराडॉक्सुरस हेर्मैफ्रोडिटस), जिसे ‘टोडी कैट’ भी कहा जाता है, भारत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक रूप से पाया जाता है, इसे IUCN  की रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concern) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, तथा यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित है।
  • ब्राउन पाम सिवेट (पैराडॉक्सुरस जेरडोनी) भारत के पश्चिमी घाट में स्थानिक है, इसे IUCN  की रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concern) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, एवं यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित है।
  • गोल्डन पाम सिवेट (पैराडॉक्सुरस जेलोनेंसिस) श्रीलंका में स्थानिक है, इसे IUCN की रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concernके रूप में सूचीबद्ध किया गया है एवं यह भारत में अनुपस्थित है।
  • स्माल इंडियन सिवेट (विवेरिकुला इंडिका) भारत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक रूप से वितरित है, इसे IUCN  की रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concern)  के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, तथा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के अंतर्गत संरक्षित है।
  • लार्ज इंडियन सिवेट (विवेरा जिबेथा) पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत, तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है, इसे IUCN  की रेड लिस्ट में निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, तथा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I (उच्चतम संरक्षण) के अंतर्गत संरक्षित है।
  • मलय सिवेट (विवेरा तंगालुंगा) मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस में वितरित है, इसे रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concern)  के रूप में सूचीबद्ध किया गया है एवं यह भारत में नहीं पाया जाता है।
  • लार्ज-स्पॉटेड सिवेट (विवेरा मेगास्पिला) दक्षिण-पूर्व एशिया (थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया) में पाया जाता है, इसे IUCN की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त (Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, एवं यह भारत में अनुपस्थित है।
  • ओवस्टन सिवेट (क्रोटोगेल ओवस्टोनी) वियतनाम, लाओस एवं दक्षिणी चीन में पाया जाता है, इसे IUCN की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त (Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन यह भारत में नहीं पाया जाता है।
  • होज सिवेट (डिप्लोगेल होसी) बोर्नियो में स्थानिक है, इसे IUCN की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त (Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, एवं यह भारत में अनुपस्थित है।
  • ओटर सिवेट (सिनोगेल बेनेट्टी) मलेशिया, सुमात्रा एवं बोर्नियो में पाया जाता है, इसे  IUCN  की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त (Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है तथा यह भारत में मौजूद नहीं है।

इंडियन सिवेट के बारे में

  • भारत में चार सिवेट प्रजातियाँ पाई जाती हैं- एशियाई पाम सिवेट, ब्राउन पाम सिवेट, स्मॉल इंडियन सिवेट एवं लार्ज इंडियन सिवेट।
  • लार्ज इंडियन सिवेट भारत में अनुसूची-I की एकमात्र प्रजाति है।
  • अन्य तीन – एशियाई पाम सिवेट, ब्राउन पाम सिवेट एवं स्मॉल इंडियन सिवेट वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के अंतर्गत संरक्षित हैं।
  • लार्ज इंडियन सिवेट निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) को छोड़कर, सभी भारतीय सिवेट प्रजातियाँ कम चिंताग्रस्त (Least Concern) (IUCN) हैं।
  • ब्राउन पाम सिवेट पश्चिमी घाट में स्थानिक है एवं बीज प्रसार के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रमुख खतरे: आवास की हानि, कस्तूरी का शिकार एवं जूनोटिक रोग संबंध।
  • संरक्षण प्रयास: कानूनी संरक्षण, आवास संरक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वृक्षारोपण से जलवायु पर सबसे अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है: अध्ययन

NPJक्लाइमेट एक्शन में प्रकाशित एक नए अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वृक्षारोपण से सबसे अधिक जलवायु लाभ प्राप्त होते हैं, जबकि उच्च अक्षांशों में, कुछ मामलों में वृक्षारोपण से थोड़ा तापन प्रभाव पड़ सकता है।

अध्ययन के निष्कर्ष

  • उष्णकटिबंधीय लाभ: उष्णकटिबंधीय क्षेत्र वृक्षारोपण से सबसे अधिक जलवायु लाभ प्रदान करते हैं।
  • वर्ष भर वृद्धि: गर्म, आर्द्र क्षेत्रों में, वृक्ष वर्ष भर बढ़ते रहते हैं, जिससे अधिक शीतलन लाभ मिलते हैं।
  • अक्षांश सीमाएँ: उच्च अक्षांशों पर वृक्षारोपण से कम या थोड़ा गर्म प्रभाव देखने को मिल सकता है।

शीतलन तंत्र

  • वाष्पोत्सर्जन: वृक्ष मृदा से जल प्राप्त करते हैं, पत्तियों के माध्यम से वाष्पोत्सर्जन करते हैं, जिससे वृक्ष एवं आस-पास की वायु दोनों ठंडी हो जाती हैं।
  • आर्द्रता एवं बादल निर्माण: अधिक जलवाष्प आर्द्रता बढ़ाती है, जिससे बादल बनते हैं एवं पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली सूर्य की रोशनी कम हो जाती है।
  • अग्नि शमन प्रभाव: उष्णकटिबंधीय सवाना वन में, वृक्ष घास की तुलना में अग्नि का बेहतर प्रतिरोध करते हैं, जिससे आग लगने का खतरा कम हो जाता है।
  • कार्बन अवशोषण: वृक्ष वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

  • स्थिति: भौगोलिक दृष्टि से, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र कर्क रेखा (23.5° उत्तरी अक्षांश) एवं मकर रेखा (23.5° दक्षिणी अक्षांश) के मध्य स्थित हैं।
  • सूर्य का प्रकाश: इस क्षेत्र में वर्ष भर सीधी धूप मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ की जलवायु सामान्यतः गर्म होती है एवं मौसमी परिवर्तन न्यूनतम होते हैं।
  • वर्षा एवं वनस्पतियाँ: यह क्षेत्र आमतौर पर उच्च तापमान, अलग-अलग आर्द्र एवं शुष्क मौसमों, तथा उष्णकटिबंधीय वर्षावनों एवं सवाना जैसी सघन वनस्पतियों से आच्छादित है।

मर्केटर प्रोजेक्शन

अफ्रीकी संघ (African Union- AU) ने व्यापक रूप से प्रयुक्त मर्केटर प्रोजेक्शन को एक अधिक सटीक मानचित्र से बदलने का आह्वान करते हुए “करेक्ट द मैप” अभियान (Correct the Map campaign) का समर्थन किया है, जो अफ्रीका के वास्तविक आकार को दर्शाता है।

मर्केटर प्रोजेक्शन के बारे में

  • उत्पत्ति: मानचित्रकार जेरार्डस मर्केटर द्वारा वर्ष 1569 में प्रस्तुत किया गया।
  • प्रकार: गणितीय रूप से व्युत्पन्न होने के बावजूद, इसे बेलनाकार प्रोजेक्शन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • विशेषताएँ: इसमें समकोण अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं का एक ग्रिड होता है, जिससे कंपास आधारित दिशाओं का अनुसरण करना आसान हो जाता है।
    • मध्याह्न रेखाएँ: समान दूरी पर स्थित, समानांतर ऊर्ध्वाधर रेखाओं के रूप में दर्शाई जाती हैं।
    • अक्षांश के समांतर: क्षैतिज सीधी रेखाओं के रूप में दर्शाई जाती हैं, जो भूमध्य रेखा से लगातार दूर होती जाती हैं।
  • सीमाएँ:
    • सटीक विश्व मानचित्रों के लिए उपयुक्त नहीं।
    • ध्रुवों की ओर पैमाने का विरूपण बढ़ता जाता है।
    • ग्रीनलैंड (वास्तविक आकार: DRC के बराबर) पूरे अफ्रीकी महाद्वीप जितना बड़ा दिखाई देता है।
    • यूरोप, उत्तरी अमेरिका एवं रूस अनुपातहीन रूप से बड़े दिखाई देते हैं।
    • भारत अपने वास्तविक भू-भाग से छोटा दिखाई देता है।

विकल्प

  • गैल-पीटर्स प्रोजेक्शन (1970 के दशक में): कुछ स्कूलों में अपनाया गया (जैसे, वर्ष 2017 में बोस्टन)। यह महाद्वीपों को उनके वास्तविक सापेक्ष आकार में दर्शाता है।
  • इक्वल अर्थ प्रोजेक्शन (वर्ष 2018): AU द्वारा एक प्रतिस्थापन के रूप में प्रस्तावित। अत्यधिक विकृति के बिना बेहतर आनुपातिकता प्रदान करता है।

E1 सेटलमेंट प्लान 

इजरायल ने हाल ही में पूर्वी येरुशलम के निकट विवादास्पद E1 सेटलमेंट प्लान को मंजूरी दी है, जिसकी वैश्विक आलोचना हो रही है क्योंकि यह फिलिस्तीनी क्षेत्रीय निरंतरता के लिए खतरा है एवं ‘टू स्टेट’ समाधान की संभावनाओं को कमजोर करता है।

E1 सेटलमेंट प्लान के बारे में:

  • यह E1 क्षेत्र (ईस्ट-1) में निर्माण को संदर्भित करता है, जो पूर्वी येरुशलम एवं पश्चिमी तट पर मा’आले अदुमिम बस्ती के बीच लगभग 12 वर्ग किलोमीटर का एक गलियारा है।
  • उद्देश्य: येरुशलम को मा’आले अदुमिम (Ma’ale Adumim) से जोड़ना, जिससे इजरायली नियंत्रण मजबूत हो।
  • विवाद: यह पश्चिमी तट को प्रभावी रूप से उत्तरी एवं दक्षिणी भागों में विभाजित कर देगा, जिससे एक संलग्न फिलिस्तीनी राज्य अव्यावहारिक हो जाएगा।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
    • संयुक्त राष्ट्र एवं यूरोपीय संघ ने इस कदम की निंदा अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से चौथे जिनेवा कन्वेंशन के उल्लंघन के रूप में की।
    • अमेरिका: शांति प्रक्रिया की व्यवहार्यता पर चिंताओं का हवाला देते हुए विरोध व्यक्त किया।
    • फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने इसे ‘टू स्टेट’ समाधान के लिए एक “गहरा झटका” (Death Blow) कहा।

इजरायल – सीमावर्ती देश एवं जल निकाय

  • सीमावर्ती देश
    • उत्तर: लेबनान
    • उत्तर-पूर्व: सीरिया

    • पूर्व: जॉर्डन (अधिकांशतः जॉर्डन नदी द्वारा अलग)
    • दक्षिण-पश्चिम: मिस्र
    • फिलिस्तीनी क्षेत्र: पश्चिमी तट (इजरायल के पूर्व में) एवं गाजा पट्टी (दक्षिण-पश्चिम, मिस्र की सीमा से लगा हुआ)।

जल निकाय

  • पश्चिम: भूमध्य सागर (तटरेखा लगभग 270 किमी.)।
  • पूर्व: मृत सागर (पृथ्वी का सबसे निम्नतम बिंदु, समुद्र तल से लगभग 430 मीटर नीचे; जॉर्डन एवं पश्चिमी तट के साथ साझा)।
  • उत्तर: गैलिली सागर (तिबेरियास झील/किनेरेट), मीठे पानी की झील, इजरायल के लिए प्रमुख जल स्रोत; जॉर्डन नदी द्वारा पोषित।
  • नदियाँ: जॉर्डन नदी, गैलिली सागर से मृत सागर में प्रवाहित होती है।

सौदा बे क्रेते, ग्रीस

हाल ही में नवीनतम स्टील्थ फ्रिगेट INS तमाल, रूस में कमीशनिंग के बाद भारत लौटते समय ‘सौदा बे क्रेते’ (ग्रीस) [Souda Bay, Crete (Greece)] पहुँचा।

INS तमाल के बारे में

  • प्रकार: भारतीय नौसेना का नवीनतम स्टील्थ फ्रिगेट।
    • स्टील्थ फ्रिगेट एक प्रकार का युद्धपोत (फ्रिगेट-क्लास) है, जिसे विशेष रूप से दुश्मन की पहचान प्रणालियों जैसे रडार, इन्फ्रारेड सेंसर, सोनार एवं यहाँ तक कि दृश्य अवलोकन के लिए अपनी दृश्यता कम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • कमीशनिंग: हाल ही में रूस में कमीशन किया गया (वर्ष 2025)।
  • भूमिका: ब्लू-वाटर ऑपरेशन, समुद्री सुरक्षा, रक्षा कूटनीति।

सौदा बे क्रेते के बारे में

  • अवस्थिति: उत्तर-पश्चिम क्रीट द्वीप, ग्रीस, भूमध्य सागर में खुलता है।

  • महत्त्व
    • भूमध्य सागर के सबसे सुरक्षित प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक।
    • हेलेनिक नौसेना बेस एवं अमेरिकी नौसेना सहायता गतिविधि (Naval Support Activity- NSA) ‘सौदा बे क्रेते’ का प्रयोग करते हैं।
    • NATO समुद्री अभियानों के लिए रणनीतिक स्थान।

डल झील पर ‘खेलो इंडिया जल खेलों’ का आगाज

जम्मू एवं कश्मीर के श्रीनगर स्थित डल झील में अगस्त 2025 में पहली बार खेलो इंडिया जल खेलों का आयोजन किया जाएगा, जो भारत में साहसिक तथा जल खेलों को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

आयोजन के बारे में

  • आयोजक: खेलो इंडिया योजना के तहत केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्रालय।
    • केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्रालय (Ministry of Youth Affairs and Sports- MoYAS) द्वारा वर्ष 2018 में खेलो इंडिया योजना की शुरुआत भारत में जमीनी स्तर पर खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करने एवं भारत को एक खेल राष्ट्र बनाने के लिए की गई थी।
      • राजीव गांधी खेल अभियान, शहरी खेल अवसंरचना योजना, राष्ट्रीय खेल प्रतिभा खोज प्रणाली आदि जैसी पूर्व योजनाओं को समेकित किया गया।
  • शामिल खेल: कैनोइंग, कयाकिंग, रोइंग, ड्रैगन बोट रेसिंग एवं पारंपरिक कश्मीरी शिकारा रेस
  • प्रतिभागी: 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से 409 एथलीट (202 महिलाएँ)।
    • मध्य प्रदेश (44), हरियाणा (37), ओडिशा (34), केरल (33) ने सबसे बड़े दल भेजे।
  • पहल का महत्त्व
    • जल क्रीड़ाओं को बढ़ावा: भारत में पहला समर्पित राष्ट्रीय स्तर का जल क्रीड़ा खेल।
    • पर्यटन को बढ़ावा: वैश्विक खेल एवं पर्यटन केंद्र के रूप में कश्मीर की छवि को मजबूत करता है।
    • स्थानीय युवाओं की भागीदारी: जम्मू-कश्मीर से प्रतिभाओं की पहचान एवं भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
    • खेलो इंडिया विजन के साथ एकीकरण: खेल संस्कृति बनाने एवं विश्व स्तरीय एथलीटों को विकसित करने के लक्ष्य के साथ संरेखित।

डल झील के बारे में

  • अवस्थिति: श्रीनगर, जम्मू एवं कश्मीर (जबरवान पर्वतमाला की तलहटी में)।
  • उपनाम: ‘द ज्वेल इन द क्राउन ऑफ कश्मीर
  • विशेषताएँ: हाउसबोट, शिकारे, तैरते हुए बगीचों के लिए प्रसिद्ध, जिन्हें “राड़” (Raad) के नाम से जाना जाता है।
  • महत्व: कश्मीर के पर्यटन, अर्थव्यवस्था एवं सांस्कृतिक पहचान के लिए महत्त्वपूर्ण।

प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर

सरकार ने राज्यसभा में घोषणा की कि भाविनी (BHAVINI) द्वारा चालू किए जा रहे 500 मेगावाप्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (Prototype Fast Breeder Reactor- PFBR) के मार्च 2026 तक क्रिटिकैलिटी (Criticality) एवं दिसंबर 2026 तक पूर्ण विद्युत उत्पादन प्राप्त करने की संभावना है।

फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के बारे में

  • एक परमाणु रिएक्टर, जो अपनी खपत से अधिक ईंधन उत्पन्न करने के लिए फास्ट न्यूट्रॉन का उपयोग करता है।
  • “ब्रीडर” शब्द संचालन के दौरान अतिरिक्त परमाणु ईंधन उत्पन्न करने की इसकी क्षमता को दर्शाता है।
  • फास्ट न्यूट्रॉन: FBRs यूरेनियम-238 को प्लूटोनियम-239, एक विखंडनीय ईंधन में परिवर्तित करने के लिए थर्मल न्यूट्रॉन की तुलना में तेज न्यूट्रॉन का उपयोग करते हैं।
  • ईंधन का प्रकार: यूरेनियम-प्लूटोनियम मिश्रित ऑक्साइड (MOX) ईंधन का उपयोग करता है, जो यूरेनियम एवं प्लूटोनियम का मिश्रण है।

प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR)

  • अवलोकन: भारत का पहला स्वदेशी फास्ट ब्रीडर रिएक्टर। त्रि-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का प्रमुख घटक।
  • संचालक: परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) के अंतर्गत BHAVINI द्वारा प्रबंधित।
  • स्थान: कलपक्कम, तमिलनाडु।

क्रिटिकैलिटी (Criticality) क्या है? 

  • एक परमाणु रिएक्टर में, क्रिटिकैलिटी (Criticality) तब होती है, जब विखंडन द्वारा उत्पन्न न्यूट्रॉन, रिसाव या अवशोषण के माध्यम से विलोपित न्यूट्रॉन के बिल्कुल बराबर हो जाते हैं, जिससे न्यूट्रॉन की संख्या स्थिर रहती है।
  • यह वह बिंदु है, जहाँ एक परमाणु विखंडन अभिक्रिया शुरू होती है, जिससे फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) विद्युत उत्पन्न करने में सक्षम होता है।

भारत के परमाणु कार्यक्रम के तीन चरण

  • चरण 1- प्राकृतिक यूरेनियम युक्त दाबित जल रिएक्टर, दाबित भारी जल रिएक्टरों (PHWRs) में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग।
  • चरण 2- तीव्र प्रजनक रिएक्टर: दाबित भारी जल रिएक्टरों के पुनर्संसाधित अपशिष्ट ईंधन से प्लूटोनियम-239 एवं मिश्रित ऑक्साइड (MOX) ईंधन में U-238 का उपयोग।
  • चरण 3- यूरेनियम-233 युक्त उन्नत रिएक्टर

भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड (BHAVINI) के बारे में

  • स्वामित्व: BHAVINI परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) के अंतर्गत एक सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है।
  • स्थापना: भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए वर्ष 2003 में स्थापित।
  • मुख्य उपलब्धि: कलपक्कम में 500 मेगावाट क्षमता का प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) विकसित किया।

सुपारी विकास

केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में सुपारी विकास पर एक उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की गई।

सुपारी के बारे में

  • ताड़ के वृक्ष से चबाने वाला एक प्रसिद्ध अखरोट प्राप्त होता है, जिसे आमतौर पर सुपारी कहा जाता है।
  • भारत में इसका गहरा सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व है।
  • जलवायु परिस्थितियाँ
    • क्षेत्र: भूमध्य रेखा के 28° उत्तर एवं दक्षिण में उगता है।
    • इष्टतम तापमान: 14°C-36°C; 10°C से नीचे या 40°C से ऊपर वृद्धि बाधित होती है।
    • ऊँचाई सीमा: 1000 मीटर तक।
    • प्रचुर, सुवितरित वर्षा (750-4500 मिमी प्रति वर्ष) की आवश्यकता होती है।
    • लंबे समय तक सूखे के दौरान सिंचाई आवश्यक है।
  • मौसम: जून-दिसंबर का मौसम इष्टतम माना जाता  है।
  • मृदा की आवश्यकताएँ
    • मुख्यतः दक्षिणी केरल एवं तटीय कर्नाटक की बजरी युक्त लैटेराइट लाल चिकनी मृदा में इसकी कृषि की जाती है।
    • लैटेराइट, लाल दोमट एवं जलोढ़ मृदा इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
  • उत्पादन: भारत विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 63% है।
  • शीर्ष उत्पादक: कर्नाटक (40%)
    • अन्य उत्पादक राज्य: केरल, असम, मेघालय, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु।

सुपारी का वर्गीकरण

  • गुठलियों को उबाला जाता है, छिलका उतारा जाता है, सुखाया जाता है एवं वर्गीकृत किया जाता है।
  • बाजार में उपलब्ध किस्मों में नुली, हासा, राशि, बेट्टे एवं गोराबालु शामिल हैं।

सुपारी की किस्में

  • सफेद किस्म- पूरी तरह से पके हुए मेवों को तोड़कर एवं लगभग 2 महीने तक धूप में सुखाकर उत्पादित की जाती है।
  • लाल किस्म – हरे मेवों को उबालकर, छिलका उतारकर एवं सुखाकर उत्पादित की जाती है।

प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म “बंगाल फाइल्स” ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स को दर्शाती है जो 16 अगस्त, 1946 से शुरू होकर चार दिनों तक चले कोलकाता के सांप्रदायिक दंगे थे, जिसे मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण के लिए दबाव बनाने हेतु “प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” (डायरेक्ट एक्शन डे) के रूप में मनाया था।

“प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” (डायरेक्ट एक्शन डे) के बारे में

  • मुस्लिम लीग का आह्वान: मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग करने एवं कांग्रेस के नेतृत्व को अस्वीकार करने का आह्वान किया था।
  • हड़ताल एवं दंगों का केंद्र: एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल के रूप में चिह्नित; मुस्लिम लीग के नेतृत्व में कलकत्ता इसका केंद्र बन गया।
  • अशांति का प्रसार: हिंदू-मुस्लिम विभाजन गहरा गया, जो बंबई, नोआखली, बिहार, तिप्परा एवं संयुक्त प्रांत तक फैल गया।
  • राजनीतिक परिणाम: व्यवस्था बनाए रखने में ब्रिटिश विफलता को उजागर किया, जिससे जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार (सितंबर 1946) का मार्ग प्रशस्त हुआ।

मद्रास दिवस

मद्रास (अब चेन्नई) शहर के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में, 22 अगस्त को प्रतिवर्ष मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता है।

संबंधित तथ्य

  • इसी दिन वर्ष 1639 में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company- EIC) ने स्थानीय राजाओं से मद्रासपट्टनम शहर खरीदा था।

मद्रासपट्टनम के बारे में

  • नाम की उत्पत्ति: मद्रास नाम की उत्पत्ति विवादास्पद रही है, जिसकी उत्पत्ति मद्रेसन (एक मछुआरा), एक मदरसा, या ‘माद्रे दे देउस’ नामक चर्च से मानी जाती है जबकि पटनम का अर्थ है “तटीय शहर”।
  • ब्रिटिश शासन से पूर्व: यह क्षेत्र पहले पल्लवों, चोलों एवं विजयनगर साम्राज्य के अधीन था।
  • भूमि अनुदान (वर्ष 1639): विजयनगर के सरदार दमारला वेंकटपति नायक ने अंग्रेजों को कूम एवं एग्मोर नदियों के बीच की भूमि प्रदान की।
  • फोर्ट सेंट जॉर्ज: वर्ष 1639-40 में स्थापित, वर्ष 1641 में, एंड्रयू कोगन ने ईस्ट इंडिया कंपनी की एजेंसी को मसुलीपट्टनम से मद्रास स्थानांतरित कर दिया।
  • चेन्नापट्टनम एवं चेन्नई: निकटवर्ती बस्ती, चेन्नापट्टनम (चेन्नप्पा नायक के नाम पर), बाद में मद्रासपट्टनम में विलय हो गई, जिससे इसका नाम चेन्नई पड़ा।
  • ब्रिटिश शासन के दौरान विकास: शहर का विस्तार फोर्ट सेंट जॉर्ज के आस-पास हुआ, जिसमें “व्हाइट टाउन” (यूरोपीय) एवं “ब्लैक टाउन” (भारतीय) शामिल थे, गवर्नर एलिहू येल (वर्ष 1687-92) ने एक मेयर तथा निगम की स्थापना की, बाद में एग्मोर एवं टोंडियारपेट जैसे क्षेत्रों को इसमें शामिल किया गया।

लिपुलेख दर्रा

भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि लिपुलेख दर्रे से व्यापार पर नेपाल की आपत्ति उचित नहीं है एवं इस बात पर जोर दिया कि लिपुलेख दर्रे से व्यापार लंबे समय से होता आ रहा है तथा यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।

लिपुलेख दर्रे के बारे में

  • अवस्थिति: भारत (उत्तराखंड – पिथौरागढ़ जिला), नेपाल (दार्चुला जिला) एवं चीन (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र) का त्रि-जंक्शन।
  • ऊँचाई: लगभग 5,000 मीटर, कुमाऊँ हिमालय में।

  • सामरिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व
    • उच्च हिमालय का प्रवेश द्वार, भारतीय उपमहाद्वीप को तिब्बती पठार से जोड़ता है।
    • सदियों से एक प्राचीन व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता रहा है।
    • चीन के साथ व्यापार के लिए पहली भारतीय सीमा चौकी (1992) खोली गई।
      • इसके बाद शिपकी ला (हिमाचल प्रदेश, 1994) एवं नाथू ला (सिक्किम, 2006) खोले गए।
    • धार्मिक महत्त्व: व्यास घाटी, पिथौरागढ़ में पुराना लिपुलेख दर्रा कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
  • भारत-नेपाल विवाद
    • नेपाल का दावा: लिपुलेख-कालापानी-लिंपियाधुरा (372 वर्ग किमी.) को अपना क्षेत्र बताता है।
      • इसे वर्ष 2020 के संशोधित राजनीतिक मानचित्र में शामिल किया गया है।
    • भारत का रुख: नेपाल के दावों को एकतरफा एवं अनुचित बताते हुए उनका खंडन करता है।
      • यह क्षेत्र उत्तराखंड का अभिन्न अंग है।
      • लिपुलेख के माध्यम से व्यापार एवं तीर्थयात्रा एक समय-परीक्षित प्रथा है, जिसमें कोई नया परिवर्तन नहीं किया गया है।
  • भारत के लिए सामरिक महत्त्व
    • सुरक्षा: चीनी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भारत-नेपाल-चीन त्रि-जंक्शन पर एक महत्त्वपूर्ण सुविधाजनक स्थान।
    • संपर्क: सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) ने धारचूला-लिपुलेख सड़क (वर्ष 2020) का विकास किया, जिससे पहुँच में सुधार हुआ है।
    • तीर्थयात्रा: कैलाश मानसरोवर का सबसे छोटा एवं सबसे सुरक्षित मार्ग।
    • व्यापार द्वार: आवश्यक एवं पारंपरिक वस्तुओं के भारत-चीन सीमा व्यापार को सुगम बनाता है।

ब्रोलिगार्क्स

कैंब्रिज डिक्शनरी (2025 संस्करण) ने स्किबिडी, ब्रोलिगार्की, डेलुलु एवं ट्रेडवाइफ जैसे कई इंटरनेट-मूल के शब्दों को जोड़ा है, जिससे डिजिटल युग में भाषा के विकास पर बहस छिड़ गई है।

नए जोड़े गए शब्दों के बारे में

  • ट्रेडवाइफ: पारंपरिक पत्नी से व्युत्पन्न; एक महिला जो गृहिणी एवं माँ के रूप में पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को अपनाती है।
  • ब्रोलिगार्की: ब्रो + कुलीनतंत्र, राजनीतिक/आर्थिक प्रभाव वाले शक्तिशाली, धनी “टेक ब्रोस”।
  • डेलुलु: भ्रमपूर्ण का संक्षिप्त रूप, वास्तविकता से विमुख लोगों के लिए प्रयुक्त।
  • स्किबिडी: एक निरर्थक इंटरनेट स्लैंग, YouTube “स्किबिडी टॉयलेट” वीडियो द्वारा लोकप्रिय, अब “कूल/बैड/जोक” के लिए एक लचीले शब्द के रूप में उपयोग किया जाता है।

ये शब्द क्यों?

  • शब्दकोशकारों के मानदंड: आवृत्ति, संदर्भ प्रसार, स्थायित्व।
  • वैश्विक सामाजिक रुझानों को दर्शाते हैं:
    • पहचान-आधारित समुदायों (ट्रेडवाइव्स, फैंडम्स) का उदय।
    • बढ़ती तकनीकी शक्ति एवं डिजिटल कुलीन वर्ग।
    • अराजक समय में पलायन के रूप में बेतुका हास्य (स्किबिडी)।
  • एल्गोरिदम संस्कृति: टिकटॉक/इंस्टाग्राम एल्गोरिदम के कारण शब्दों का प्रचलन बढ़ा: संस्कृति के AI-संचालित विकास को दर्शाता है।
  • व्यापक महत्त्व
  • समाजशास्त्रीय आयाम: सांस्कृतिक युद्धों को प्रतिबिंबित करता है: लैंगिक भूमिकाएँ, तकनीकी शक्ति, पलायनवादी हास्य।
    • डिजिटल समाजशास्त्र का विस्तार: भाषा सामाजिक चिंताओं का मानदण्ड है।
  • भाषायी आयाम: इस विचार को पुष्ट करता है कि भाषा गतिशील है, स्थिर नहीं।
    • इंटरनेट एक नई भाषायी प्रयोगशाला है, जो पोर्टमैंटो, संक्षिप्ताक्षर एवं मीम्स का निर्माण करती है।
    • सैपिर-वॉर्फ परिकल्पना से जुड़ते हुए, भाषा विचारों को प्रभावित करती है।
  • राजनीतिक एवं आर्थिक प्रासंगिकता: ‘ब्रोलिगार्की’ जैसे शब्द शासन एवं लोकतंत्र में बिग टेक की भूमिका को लेकर बढ़ती बेचैनी का संकेत देते हैं।
  • नैतिक आयाम: ऐसे प्रश्न उठाता है जैसे क्या शब्दकोशों को तटस्थ रूप से प्रयोग को दर्ज करना चाहिए, या भाषायी शुद्धता के रूप में कार्य करना चाहिए?
    • ज्ञान प्रणालियों में स्वतंत्रता बनाम उत्तरदायित्व की बहस को दर्शाता है।

मानसून सत्र 2025

संसद का मानसून सत्र वर्ष 2025 लगातार व्यवधानों के बीच 15 विधेयक पारित करने के बाद एक दिन पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया।

मानसून सत्र 2025 के प्रमुख परिणाम

  • विधायी कार्य संपन्न: महत्त्वपूर्ण विधेयकों में आयकर (संख्या 2) विधेयक, 2025, राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025, ऑनलाइन गेमिंग संवर्द्धन एवं विनियमन विधेयक, 2025 एवं पाँच प्रमुख शिपिंग विधेयक शामिल थे।
    • सदन ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने को भी मंजूरी दी एवं राज्य का बजट पारित किया।
      • अनुच्छेद-356 संसद को राष्ट्रपति शासन के दौरान बजट सहित राज्य विधेयक पारित करने का अधिकार देता है।
  • विशेष चर्चाएँ एवं वाद-विवाद: ऑपरेशन सिंदूर पर बहस हुई।
  • उत्पादकता एवं व्यवधान: लोकसभा में केवल 31% उत्पादकता दर्ज की गई, जबकि राज्यसभा में 33% उत्पादकता रही।
    • उपलब्ध 120 घंटों में से, लोकसभा केवल 37 घंटे ही चली, जो बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण पर विपक्ष के निरंतर विरोध प्रदर्शनों के प्रभाव को दर्शाता है।

विधायी उत्पादकता क्या है?

  • विधायी उत्पादकता, एक सत्र के कुल निर्धारित घंटों की तुलना में विचार-विमर्श, बहस एवं कानून निर्माण में बिताए गए वास्तविक घंटों के अनुपात को संदर्भित करती है।
  • पिछले दशक में, लोकसभा में औसत उत्पादकता 45-65% के बीच रही, सिवाय अत्यधिक बाधित सत्रों के, जहाँ यह 40% से नीचे गिर गई थी।

संसदीय सत्रों के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-85(1): राष्ट्रपति संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय एवं स्थान पर बुलाता है जो उचित समझे।
  • स्थगन: पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer- PO) द्वारा किसी बैठक को एक निश्चित समय, जैसे कुछ घंटे या दिन, के लिए अस्थायी रूप से निलंबित करना।
    • अनिश्चित काल के लिए स्थगन: अगली बैठक की तिथि निर्धारित किए बिना PO द्वारा सत्र की समाप्ति।
    • सत्रावसान: अनिश्चित काल के लिए स्थगन के बाद राष्ट्रपति द्वारा सत्र की औपचारिक समाप्ति, जिससे सभी लंबित कार्य समाप्त हो जाते हैं।
  • आवृत्ति: अनुच्छेद-85 के अनुसार, दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए।
  • सत्रों के प्रकार: संसद सत्रों का आयोजन आमतौर पर वर्ष में तीन बार किया जाता है।
    • बजट सत्र: फरवरी-मई में आयोजित जो केंद्रीय बजट एवं वित्तीय कार्य पर केंद्रित होता है।
    • मानसून सत्र: जुलाई-अगस्त में आयोजित,  जिसमें विधायी कार्य एवं समसामयिक मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
    • शीतकालीन सत्र: नवंबर-दिसंबर में आयोजित, लंबित विधेयकों एवं अत्यावश्यक राष्ट्रीय मामलों की समीक्षा।
  • विशेष सत्र: इन नियमित सत्रों के अलावा, सामान्य सत्र कैलेंडर के बाहर तत्काल या असाधारण मामलों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद-85 के तहत एक विशेष सत्र बुलाया जा सकता है।

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