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जन विश्वास 2.0

Lokesh Pal August 25, 2025 05:00 10 0

संदर्भ:

हाल ही में लोकसभा में जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2025, पेश किया गया, जो कुछ अपराधों एवं दंडों को गैर-अपराधीकरण और तर्कसंगत बनाने के लिए 16 केंद्रीय अधिनियमों में संशोधन करने का प्रावधान करता है।

  • यह सरकार द्वारा  पेश किया गया  दूसरा जन विश्वास कानून है।
  • पहला, जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम, 2023, 19 मंत्रालयों/ विभागों द्वारा प्रशासित 42 केंद्रीय अधिनियमों में 183 प्रावधानों को अपराधमुक्त करता है।

जन विश्वास 2.0 की आवश्यकता:

  • अति-अपराधीकरण: भारत कानूनों के  व्यापक भार से दबा हुआ है।
    • विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा किए गए एक अध्ययन से ज्ञात होता है कि 882 केंद्रीय कानूनों में से 370 में आपराधिक प्रावधान शामिल हैं, जो 7,305 अपराधों को परिभाषित करते हैं। 
    • इनमें से 75% से अधिक अपराध चोरी या हत्या जैसे “मुख्य अपराध” नहीं हैं, बल्कि शिपिंग, कराधान, वित्तीय संस्थानों एवं व्यापार अनुपालन जैसे नियामक क्षेत्रों से संबंधित हैं। 
    • इससे छोटी-छोटी गलतियों का “अति-अपराधीकरण” हो जाता है। 
  • असंगत दंड: कई कानून मामूली प्रतीत होने वाले अपराधों के लिए अनुचित रूप से कठोर दंड का निर्धारण करते हैं, जो अपराध एवं दंड के बीच आनुपातिकता की कमी को दर्शाता है। 
    • ऐसे कानून प्रायः औपनिवेशिक युग की सोच और अत्यधिक पितृसत्तात्मक राज्य से उत्पन्न होते हैंजो प्राधिकारियों को अत्यधिक विवेकाधीन शक्ति प्रदान करते हैं। 
    • “कानून छोटी-छोटी बातों से सरोकार नहीं रखता” (डी मिनिमिस नॉन क्यूरेट लेक्स) यह विधिक सिद्धांत का खंडन करता है।
  • व्यवसायों पर बोझ: वर्तमान विधिक ढाँचा उद्यमिता के लिए बाधाएँ उत्पन्न करता है। 
    • भारत में व्यवसायों को 69,233 अनुपालनों का पालन करना होता है, तथा इनमें से लगभग 37% में कारावास संबंधी धाराएँ शामिल हैं। 
    • इससे उद्यमियों में एक “भय मनोविकृति” जन्म लेती है, जिससे उनका ध्यान नवाचार से हटकर अनुपालन और कारावास के भय की ओर चला जाता है।
  • न्यायपालिका पर दबाव: आपराधिक प्रावधानों वाले छोटे अपराधों की बड़ी संख्या भारत की पहले से ही बोझिल न्यायिक प्रणाली पर और अधिक बोझ डालती है। 
    • 24 अगस्त, 2024 तक अकेले जिला अदालतों में 3.6 करोड़ से अधिक आपराधिक मामले लंबित थे। 
    • इनमें से कई छोटे तकनीकी मामले हैं जो न्यायालयों के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, जिससे वे गंभीर अपराधों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते तथा न्याय में विलंब होता है।

जन विश्वास 2.0 विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • अपराधों का गैर-अपराधीकरण: विधेयक में 16 केंद्रीय अधिनियमों के 355 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। 
    • इनमें से 288 प्रावधानों का व्यापार सुगमता के लिए गैर-अपराधीकरण,  जबकि 67 प्रावधानों को जीवनयापन में आसानी के लिए संशोधित किया जाएगा। 
    • इस संशोधन के माध्यम कई छोटे उल्लंघनों के लिए कारावास के दंड को समाप्त कर दिया जाएगा।
  • चेतावनी और सुधार नोटिस की शुरूआत: विधेयक, 10 अधिनियमों के तहत 76 निर्दिष्ट अपराधों के लिए, पहली बार अपराध करने वालों के लिए “चेतावनी” और “सुधार नोटिस” की अवधारणा प्रस्तुत करता है। 
    • उदाहरण के लिए, विधिक माप विज्ञान अधिनियम के तहत, यदि कोई दुकानदार गैर-मानक बाट का उपयोग करता है, तो उसे तत्काल दण्ड का सामना करने के बजाय, एक निश्चित समय-सीमा के भीतर समस्या को सुधारने के लिए पहले एक सुधार नोटिस दिया जाएगा। 
    • केवल अनुपालन न करने पर ही जुर्माना लगाया जाएगा।
  • मामूली चूक के लिए कारावास की धाराओं को हटाना: विधेयक में मामूली, तकनीकी या प्रक्रियात्मक त्रुटियों के लिए कारावास के प्रावधानों को स्पष्ट रूप से हटा दिया गया है। 
    • इनके स्थान पर मौद्रिक दंड या जुर्माना लगाया जाएगा। 
    • उदाहरण के लिए, विद्युत अधिनियम 2003, के तहत आदेशों का पालन न करने पर तीन महीने कारावास के दंड का प्रावधान था, जिसे संशोधित करके अब 10,000 रुपये से 10 लाख रुपये तक का आर्थिक दंड कर दिया जाएगा।
  • दंड का युक्तिकरण: जुर्माने को अधिक प्रभावी और वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक बनाने हेतु उसका युक्तिकरण किया जा रहा है। 
    • विधेयक में बार-बार अपराध की स्थिति में अधिक दंड का प्रावधान किया गया है। 
    • इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि जुर्माना समय के साथ निवारक बना रहे, विधेयक में प्रत्येक तीन वर्ष में जुर्माने की राशि में स्वतः 10% की वृद्धि का प्रावधान शामिल है। 
    • यह तंत्र मुद्रास्फीति को ध्यान में रखता है और जुर्माने की राशि को समायोजित करने के लिए बार-बार विधायी संशोधन की आवश्यकता को समाप्त करता है।
  • संशोधित अधिनियम और विजन: जन विश्वास 2.0 विधेयक कई महत्त्वपूर्ण कानूनों में संशोधन करने का प्रावधान करता है, जिनमें भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940, मोटर वाहन अधिनियम, 1988, विद्युत अधिनियम, 2003 और विधिक माप विज्ञान अधिनियम, 2009 आदि शामिल हैं।
    • यह पहल सरकार के न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन” के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है। 
    • यह सरकार के भीतर मूलभूत मानसिकता में परिवर्तन का प्रतीक है, जो एक सख्त नियामक की भूमिका से सुविधा प्रदाता की भूमिका में परिवर्तित हो रहा है। 
    • यह विधेयक जनता में नए विश्वास को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य नागरिकों को केवल दंडित करने के बजाय उनमें सुधार लाना है। 
    • इस सुधार से अनावश्यक कानूनी बाधाओं में कमी आने, नियामक वातावरण को सरल बनाने तथा अंततः जीवन एवं व्यापार सुगमता प्रदान करने में मदद मिलने की उम्मीद है।

वर्तमान स्थिति:

विधेयक को लोकसभा की प्रवर समिति को भेज दिया गया है, जिसे अगले सत्र के पहले दिन तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “छोटे अपराधों के अति-अपराधीकरण से न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ पड़ा है तथा राज्य की मनमानी कार्यवाही की गुंजाइश बढ़ गई है।” जन विश्वास 2.0 विधेयक के संदर्भ में, चर्चा कीजिए कि ऐसे विधायी सुधार भारत में व्यापार तथा जीवन जीने की सुगमता को कैसे बेहतर बना सकते हैं। इसके प्रभावी कार्यान्वयन में आने वाली संभावित चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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