100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

सकारात्मक मानसून के मध्य उर्वरक उपलब्धता संकट

Lokesh Pal August 26, 2025 04:05 288 0

संदर्भ

सकारात्मक मानसून सीजन के बावजूद भारत गंभीर उर्वरक संकट का सामना कर रहा है। चीन से आयात में भारी गिरावट और घरेलू नीतिगत कमजोरियों तथा खराब योजना क्रियान्वयन के कारण कृषि उपज और खाद्य सुरक्षा पर संकट गहराता जा रहा है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2024-25 में, चीन ने यूरिया और डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) के अपने निर्यात में भारी कटौती की, जो भारत की आपूर्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है। भू-राजनीतिक तनावों से प्रभावित वैश्विक उर्वरक बाजार ने अच्छी मानसूनी वर्षा के बावजूद भारत में उर्वरक की उपलब्धता को बाधित किया।

वर्तमान उर्वरक की कमी – कारण और किसानों पर प्रभाव

  • आपूर्ति संबंधी समस्या: चीन, जो वर्ष 2023-24 में भारत का सबसे बड़ा उर्वरक आपूर्तिकर्ता है (21.5 लाख टन यूरिया और 22.9 लाख टन DAP), ने वर्ष 2024-25 में अपने निर्यात में भारी कमी की है और यह घटकर केवल 1 लाख टन यूरिया और 8.4 लाख टन DAP रह गया है।
    • भू-राजनीतिक तनाव और निर्यात प्रतिबंधों के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ बाधित हुई हैं।
  • घरेलू नीतिगत बाधाएँ: नवंबर 2012 से यूरिया का अधिकतम खुदरा मूल्य ₹266.5 प्रति बैग निर्धारित किया गया है, और आयात केवल सरकारी व्यापारिक उद्यमों के माध्यम से ही किया जाता है, जिससे निजी प्रतिस्पर्द्धा हतोत्साहित होती है।
    • चीन, पश्चिम एशिया, रूस और मोरक्को के अलावा अन्य स्रोतों में अपर्याप्त विविधीकरण।
    • नाइट्रोजन-प्रधान फसलों के अधिक रकबे के बावजूद माँग का अनुचित पूर्वानुमान।
  • किसानों पर प्रभाव: किसान घंटों पंक्तियों में खड़े रहते हैं, कालाबाजारी का सामना करते हैं और प्रायः अपनी न्यूनतम आवश्यकता के अनुसार भी खाद प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
    • पर्याप्त वर्षा के बावजूद अनाज की पैदावार में कमी की संभावना है।

मानसून के पूर्वानुमान के बावजूद योजना क्यों विफल रही?

  • ऐतिहासिक रुझानों पर अत्यधिक निर्भरता: धान और गन्ने जैसी नाइट्रोजन-प्रधान फसलों के वास्तविक समय के रकबे के आँकड़ों के बजाय पिछले उपभोग पैटर्न के आधार पर उर्वरक आवंटन।
  • विलंबित खरीद निर्णय: चीनी निर्यात प्रतिबंधों की प्रारंभिक चेतावनियों के बावजूद आयात अग्रिम रूप से सुनिश्चित नहीं किया गया।
  • केंद्रीकृत वितरण में कठोरता: केंद्रीकृत वितरण व्यवस्था की कठोरता ने राज्य व्यापार उद्यमों के माध्यम से लगाए गए प्रतिबंधों के कारण सोर्सिंग में निजी भागीदारी और लचीलेपन को सीमित कर दिया।
  • खराब अंतर-मंत्रालयी समन्वय: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) का मानसून पूर्वानुमान, कृषि मंत्रालय के बुवाई अनुमान और उर्वरक विभाग के माँग अनुमान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे।

उर्वरकों के बारे में

  • उर्वरक रासायनिक या प्राकृतिक पदार्थ होते हैं, जो फसल वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करने हेतु मृदा में मिलाए जाते हैं। ये मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं और कृषि उत्पादकता को बढ़ाते हैं।
  • उर्वरकों के प्रकार
    • उत्पत्ति के आधार पर
      • रासायनिक/अकार्बनिक उर्वरक: यूरिया, DAP (डाइअमोनियम फॉस्फेट), MOP ( म्यूरिएट ऑफ पोटाश)।
      • जैविक उर्वरक: गोबर की खाद (Farmyard Manure-FYM), कंपोस्ट, वर्मीकंपोस्ट, हरित खाद।
      • जैव-उर्वरक: सूक्ष्मजीव जो नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं या पोषक तत्त्वों को घुलनशील बनाते हैं (जैसे- राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, माइकोराइजा)।
    • पोषक तत्त्व सामग्री के आधार पर
      • प्राथमिक पोषक तत्त्व (NPK):
        • नाइट्रोजनयुक्त: यूरिया, अमोनियम सल्फेट।
        • फॉस्फेटयुक्त: DAP, SSP (सिंगल सुपर फॉस्फेट)।
        • पोटेशियमयुक्त: MOP (पोटेशियम क्लोराइड)।
      • द्वितीयक पोषक तत्त्व: कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg), सल्फर (S)।
      • सूक्ष्म पोषक तत्त्व: जिंक (Zn), बोरॉन (B), कॉपर (Cu), मैंगनीज (Mn), आयरन (Fe), मोलिब्डेनम (Mo)।

उर्वरक क्षेत्र और संबंधित महत्त्वपूर्ण आँकड़ों के बारे में

  • भारत और विश्व स्तर पर प्रयुक्त प्रमुख उर्वरक: यूरिया, डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) और म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MOP) भारत में सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले उर्वरक हैं। विश्व स्तर पर, यूरिया सबसे अधिक उत्पादित उर्वरक बना हुआ है और भारत इसके सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है।
  • उर्वरकों पर उच्च आयात निर्भरता: भारत अपनी आवश्यकता का लगभग 25-30% यूरिया और 90% फॉस्फेट उर्वरक आयात करता है, जो इस क्षेत्र की वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता को दर्शाता है।
  • उर्वरक सब्सिडी का बढ़ता राजकोषीय बोझ: वर्ष 2024-25 के लिए उर्वरक सब्सिडी ₹1.63 लाख करोड़ अनुमानित है, जिससे सरकारी वित्त पर दबाव बढ़ रहा है।
    • 21 जुलाई, 2025 तक वितरित वास्तविक सब्सिडी ₹49,329.88 करोड़ है, जिसका विवरण इस प्रकार है:
      • घरेलू यूरिया के लिए ₹30,940.82 करोड़
      • आयातित यूरिया के लिए ₹4,006.70 करोड़
    • संसदीय स्थायी समिति ने शुरुआत में वित्त वर्ष 2025-26 में उर्वरक विभाग के लिए ₹1,84,704.63 करोड़ के उच्च परिव्यय का अनुमान लगाया था। बाद में वित्त मंत्रालय ने इसे 7.38% घटाकर ₹1,71,082.44 करोड़ कर दिया, जिससे यूरिया और NBS दोनों आवंटन प्रभावित हुए।

भारत के उर्वरक आयात से संबंधित जानकारी

यूरिया आयात

प्रमुख आपूर्तिकर्ता

  • चीन – हाल के वर्षों में सबसे बड़ा स्रोत
  • ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सऊदी अरब – पश्चिम एशियाई आपूर्तिकर्ता
  • नाइजीरिया – उभरता हुआ स्रोत

नोट: भारत के बढ़ते घरेलू यूरिया उत्पादन के साथ आयात में गिरावट आई है।

फॉस्फेटिक उर्वरक [Phosphatic Fertilisers (DAP/NPK)]

DAP के प्रमुख आपूर्तिकर्ता

  • चीन: लगातार सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता
  • सऊदी अरब: दीर्घकालिक अनुबंधों के माध्यम से बढ़ती हिस्सेदारी
  • जॉर्डन, मोरक्को: फॉस्फेट रॉक और DAP के प्रमुख निर्यातक
  • रूस: अल्प आपूर्तिकर्ता

पोटाश उर्वरक (MOP  – 100% आयात पर निर्भर)

मुख्य स्रोत

  • कनाडा – दुनिया का सबसे बड़ा पोटाश निर्यातक
  • रूस और बेलारूस – भू-राजनीतिक बाधाओं के बावजूद प्रमुख आपूर्तिकर्ता
  • इजरायल, जॉर्डन – द्वितीयक आपूर्तिकर्ता।

भारत के उर्वरक क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दे

  • उच्च आयात निर्भरता: भारत लगभग 25 से 30 प्रतिशत यूरिया और लगभग 90 प्रतिशत फॉस्फेट उर्वरकों का आयात करता है।
  • सब्सिडी का बोझ: वर्ष 2024-25 के लिए उर्वरक सब्सिडी ₹1.63 लाख करोड़ अनुमानित है, जिससे राजकोषीय तनाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • नियामक नियंत्रण: मूल्य सीमा, लाभ सीमा और पूर्वव्यापी निगरानी उद्योग के प्रोत्साहन को कम करते हैं।
    • धीमा पंजीकरण: भारत में नए उर्वरकों के लिए औसतन 804 दिन लगते हैं, जबकि यूरोपीय संघ में 30 दिन लगते हैं।
  • मृदा-उर्वरक सामंजस्य: वर्तमान ‘नाइट्रोजन-फास्फोरस-पोटेशियम-सल्फर’ (NPKS) ग्रेड क्षेत्रीय मृदा आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं, जिससे किसानों को अनुकूलित मिश्रणों के लिए अतिरिक्त भुगतान करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

सब्सिडी संरचना संतुलित उर्वरक उपयोग को कैसे हतोत्साहित करती है?

  • वर्ष 2012 से यूरिया की स्थिर कीमत: DAP और MOP की तुलना में यूरिया कृत्रिम रूप से सस्ता बना हुआ है, जिससे नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग बढ़ रहा है।
  • विषम NPK अनुपात: अनुशंसित अनुपात 4:2:1 है, लेकिन कई राज्यों में वास्तविक उपयोग 8:3:1 के निकट है।
  • कठोर पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS): फॉस्फोरस और पोटेशियम के लिए सब्सिडी दरों में नियमित रूप से संशोधन नहीं किया जाता है, जिससे निजी आयात हतोत्साहित होते हैं।
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का बहिष्कार: सब्सिडी समर्थन की कमी से जिंक, बोरॉन और अन्य की लागत बढ़ जाती है, जिससे मृदा स्वास्थ्य असंतुलन बिगड़ता है।

‘नॉन-सब्सिडाइज्ड’ उर्वरकों और विनियमन के बारे में

  • पृष्ठभूमि: भारत का उर्वरक क्षेत्र, दोहरे विनियमन के अंतर्गत संचालित होता है:
    • सब्सिडी वाले उर्वरक (यूरिया, DAP, MOP, कुछ NPK): यूरिया सब्सिडी योजना या पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) योजना के अंतर्गत मूल्य-नियंत्रित।
    • ‘नॉन-सब्सिडाइज्ड’ उर्वरक: सब्सिडी फ्रेमवर्क से बाहर, बाजार-निर्धारित कीमतों पर बेचे जाते हैं।
  • ‘नॉन-सब्सिडाइज्ड’ उर्वरकों के उदाहरण
    • NBS (अनुकूलित NPK मिश्रण) के अंतर्गत न आने वाले जटिल उर्वरक।
    • द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्व: जिंक सल्फेट, बोरॉन, जिप्सम, सल्फर, आदि।
    • विशेष उर्वरक: जल-घुलनशील उर्वरक (Water Soluble Fertilisers- WSF), नैनो-उर्वरक।
    • जैविक और जैव-उर्वरक: शहरी खाद, सूक्ष्मजीवी इनोक्युलेंट, जैव-उत्तेजक।
  • भारत में विनियमन
    • नीतिगत परिवर्तन (वर्ष 1992 से): फॉस्फेटिक और पोटाशिक (P&K) उर्वरकों का नियंत्रण समाप्त; केवल यूरिया ही वैधानिक मूल्य नियंत्रण के दायरे में है।
    • NBS (2010) के अंतर्गत: सरकार ने पोषक तत्त्वों (N, P, K, S) के लिए प्रति किलोग्राम सब्सिडी तय की, जबकि निर्माताओं को अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) तय करने की अनुमति दी।
    • ‘नॉन-सब्सिडाइज्ड’ उर्वरकों को पूरी तरह से नियंत्रण मुक्त कर दिया गया है, न कोई सब्सिडी, न कोई मूल्य नियंत्रण।
  • विनियमन क्यों हटाया जाए?
    • सब्सिडी का बोझ कम करना: ग्रामीण बुनियादी ढाँचे, सिंचाई और कृषि विकास के लिए वित्तीय संभावना पैदा करना।
    • प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना: बाजार-संचालित मूल्य निर्धारण, निजी निवेश और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना।
    • तीव्र पहुँच: जल में घुलनशील उर्वरकों (Water Soluble Fertilisers- WSF), नैनो-उर्वरकों और विशिष्ट उत्पादों तक तीव्र पहुँच को सुगम बनाना।
    • दक्षता: उर्वरक के उपयोग को बाज़ार के संकेतों के अनुरूप बनाना,, जिससे भारी सब्सिडी वाले यूरिया के दुरुपयोग में संभावित रूप से कमी आए।
  • विनियमन-मुक्ति के जोखिम
    • सामर्थ्य संबंधी समस्याएँ: उच्च लागत लघु और सीमांत किसानों को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • असमान लाभ: उच्च मूल्य वाली फसलें (फल, सब्जियाँ, फूलों की खेती) अधिक लाभ देती हैं, जबकि मुख्य फसलें (गेहूँ, चावल) कम लाभदायक रहती हैं।
    • सूचना विषमता: मार्गदर्शन के बिना, किसान इनपुट का दुरुपयोग या अति प्रयोग कर सकते हैं, जिससे मृदा स्वास्थ्य विकृत हो सकता है।
    • मूल्य अस्थिरता: किसानों को वैश्विक कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है।
  • उठाए जा सकने वाले कदम
    • मृदा स्वास्थ्य कार्ड और किसान जागरूकता के माध्यम से संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देना।
    • कमी-ग्रस्त क्षेत्रों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के लिए लक्षित सब्सिडी प्रदान करना।
    • विशेष और जैव-उर्वरकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना।
    • सतत् कृषि नीतियों के तहत जैविक और जैव-उर्वरकों को प्रोत्साहित करना।
    • सूचना के अंतराल को कम करने के लिए विस्तार सेवाओं को सुदृढ़ करना।
    • नवोन्मेषी मॉडल
      • जल-घुलनशील उर्वरक मॉडल (2015 दिशा-निर्देश): WSF 100% जल-घुलनशील होना चाहिए और इसे ड्रिप सिंचाई या छिड़काव के माध्यम से लगाया जा सकता है।
      • WSF के लिए विनिर्देश
        • न्यूनतम 30% कुल पोषक तत्त्व (25% प्राथमिक पोषक तत्त्व NPK)।
        • द्वितीयक (सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम) और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों (जस्ता, बोरॉन, मैंगनीज, लोहा, तांबा, मोलिब्डेनम) का संतुलन।
        • संदूषकों (सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक, कुल क्लोराइड और सोडियम) की अधिकतम सीमा।
        • कंपनियाँ 30 दिन पूर्व अधिकारियों को सूचित करने के बाद इन मानकों को पूरा करने वाले WSF का विपणन कर सकती हैं।
      • नैनो उर्वरक: नैनो यूरिया और नैनो DAP ने मटर (8 प्रतिशत), गन्ना (4 प्रतिशत) जैसी फसलों की पैदावार में सुधार किया है।
        • बड़े पैमाने पर खेत परीक्षण और किसान जागरूकता अभियान की आवश्यकता है।

भारत में उर्वरकों के लिए प्रमुख योजनाएँ और नीतियाँ

  • पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) योजना (2010): 4:2:1 के अनुपात में संतुलित उर्वरक उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रति किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर पर सब्सिडी प्रदान करती है।
  • नीम-लेपित यूरिया (2015): 100% उत्पादन के लिए अनिवार्य बनाया गया; डायवर्जन कम करता है, पोषक तत्त्व दक्षता बढ़ाता है और पर्यावरणीय स्थिरता का समर्थन करता है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (2015): किसानों को प्रत्येक दो वर्ष में अनुकूलित उर्वरक सिफारिशें प्रदान करती है, जिससे कुशल और संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है।
  • उर्वरकों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) (2016): उर्वरक खुदरा विक्रेताओं पर ‘पॉइंट-ऑफ-सेल’ (PoS) मशीनों के माध्यम से किसानों को वास्तविक बिक्री के बाद ही कंपनियों को सब्सिडी जारी की जाती है।
  • नैनो यूरिया (2021 – IFFCO): विश्व का पहला तरल नैनो-उर्वरक व्यावसायिक रूप से लॉन्च किया गया; पोषक तत्त्व दक्षता में सुधार करता है, आयात निर्भरता कम करता है और सब्सिडी का बोझ कम करता है।
  • प्रधानमंत्री-प्रणाम योजना (2023): यह राज्यों को उर्वरक की खपत कम करने और जैविक एवं जैव-उर्वरकों जैसे वैकल्पिक, सतत् उर्वरकों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • गैर-यूरिया उर्वरकों पर नए दिशा-निर्देश (2023, पूर्वव्यापी):
    • लाभ सीमा: 8 प्रतिशत (आयातकर्ता), 10 प्रतिशत (निर्माता), 12 प्रतिशत (एकीकृत फर्म)।
    • अतिरिक्त लाभ उर्वरक विभाग को वापस कर दिया जाएगा।

वैश्विक पहल एवं कार्यवाहियाँ

  • अंतरराष्ट्रीय साझेदारियाँ: रूस, मोरक्को और जॉर्डन जैसे देश फॉस्फेट उर्वरकों के प्रमुख स्रोत हैं। इन देशों के साथ साझेदारी आयात निर्भरता को कम करने में मदद कर सकती है।
  • सतत् व्यवहार: यूरोपीय संघ जैसे देश पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने और पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारों को बढ़ावा देने के लिए जैव-उर्वरक और नैनो-उर्वरक पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

उर्वरक संकट के व्यापक निहितार्थ

  • खाद्य मुद्रास्फीति: चावल, गेहूँ और दालों की कम पैदावार से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ रही हैं, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सब्सिडी का बोझ बढ़ रहा है।
  • किसान विरोध और ग्रामीण असंतोष: पंक्तियाँ, कालाबाजारी और माँग की पूर्ति न होने से कृषि संकट और राजनीतिक अशांति बढ़ रही है।
  • ग्रामीण आय में गिरावट: कम पैदावार और कालाबाजारी की ऊँची कीमतों से किसानों का लाभ कम हो रहा है।
  • खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा: अच्छे मानसून के बावजूद, उर्वरक की अपर्याप्त उपलब्धता से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के बफर स्टॉक में कमी का खतरा है।
  • रणनीतिक भेद्यता: कुछ आपूर्तिकर्ता देशों पर निर्भरता भारत को भू-राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील बनाती है, जिससे आत्मनिर्भर भारत को नुकसान पहुँचता है।
  • शासन और स्थिरता संबंधी चिंताएँ
    • समता: लघु और सीमांत किसानों के लिए वहनीय पहुँच सुनिश्चित करना।
    • पारदर्शिता: कालाबाजारी और सब्सिडी के दुरुपयोग से निपटना।
    • स्थायित्व: मृदा और जल की सुरक्षा के लिए नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग पर अंकुश लगाना।
    • आत्मनिर्भर भारत: आयात पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू उत्पादन को मजबूत करना।

आगे की राह

  • अल्पकालिक उपाय
    • आयात स्रोतों में विविधता लाना: कई देशों से आपूर्ति सुनिश्चित करके और द्विपक्षीय समझौतों की संभावनाएँ तलाशकर चीन और मोरक्को के प्रति संवेदनशीलता कम करना।
    • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) निगरानी को मजबूत बनाना: आधार-लिंक्ड बिक्री, रियल-टाइम ट्रैकिंग और गोदामों की जियोटैगिंग का उपयोग करके माल का हस्तक्षेप और कालाबाजारी पर अंकुश लगाना।
    • लॉजिस्टिक्स की कमी: व्यस्त मौसम में होने वाली कमी से बचने के लिए रेल यातायात को प्राथमिकता देना और अंतिम-मील डिलीवरी को सुव्यवस्थित करना।
  • मध्यम अवधि के उपाय
    • घरेलू उर्वरक संयंत्रों को पुनर्जीवित करना: यूरिया और DAP संयंत्रों के आधुनिकीकरण में तेजी लाना और उत्पादन में सार्वजनिक-निजी भागीदारी बढ़ाना।
    • सब्सिडी संरचना को युक्तिसंगत बनाना: उत्पाद-आधारित सब्सिडी से पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) प्रणाली की ओर परिवर्तन लाना, जो संतुलित उर्वरक उपयोग को प्रोत्साहित करे।
    • नैनो और जैव-उर्वरकों को बढ़ावा देना: पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के लिए अनुसंधान, किसान प्रशिक्षण और सब्सिडी बढ़ाना।
  • दीर्घकालिक उपाय
    • मृदा स्वास्थ्य-केंद्रित कृषि: मृदा स्वास्थ्य कार्ड, परिशुद्ध कृषि और अनुकूलित पोषक तत्त्व अनुशंसाओं को संस्थागत रूप देना।
    • स्थायित्व और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन: जैविक खाद, फसल विविधीकरण और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को कृषि नीतियों में एकीकृत करना।
    • आयात पर निर्भरता कम करना: घरेलू अनुसंधान एवं विकास और स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देते हुए उर्वरकों और कच्चे माल के रणनीतिक भंडार का निर्माण करना।

निष्कर्ष

उर्वरक की कमी भारतीय कृषि के उस विरोधाभास को उजागर करती है, जिसमें अच्छे मानसून के बावजूद उर्वरक प्रबंधन कमजोर सिद्ध होता है। खाद्य सुरक्षा और किसान कल्याण सुनिश्चित करने के लिए बेहतर माँग पूर्वानुमान, आपूर्ति के विविधीकरण तथा नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है। घरेलू उत्पादन क्षमता का निर्माण, नवीन विकल्पों को बढ़ावा और तर्कसंगत सब्सिडी का संयोजन भारतीय कृषि को अधिक लचीला और सतत् बना सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.