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भारत को ‘उत्पाद आधारित राष्ट्र’ (प्रोडक्ट नेशन) में बदलना

Lokesh Pal August 27, 2025 02:30 10 0

संदर्भ

चुनिंदा भारतीय निर्यातों पर अमेरिकी शुल्कों ने शिक्षा जगत और उद्योग जगत में भारत को सेवा-संचालित अर्थव्यवस्था से उत्पाद आधारित राष्ट्र (प्रोडक्ट नेशन) में परिवर्तित करने की माँग को तीव्र कर दिया है।

उत्पाद आधारित राष्ट्र वह देश है, जो वैश्विक बाजारों में उच्च मूल्य प्राप्त करने, रणनीतिक लाभ को मजबूत करने और आर्थिक लचीलापन बढ़ाने के लिए नवाचार-आधारित उत्पादों के डिजाइन, निर्माण और निर्यात को प्राथमिकता देता है।

ऐतिहासिक संदर्भ: भारत का संरचनात्मक विकास परिवर्तन

सेवा क्षेत्र: निरंतर विकास का चालक

  • कुल सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2013-14 में 50.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 55.3% हो गई।
    • वित्त वर्ष 2022-25 के बीच, इस क्षेत्र ने महामारी-पूर्व के स्तर को बनाए रखते हुए 8.3% की औसत वृद्धि दर दर्ज की (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25)।
    • वैश्विक व्यापार मंदी के दौर में भी, जैसे कि कोविड-19 महामारी के बाद और वर्ष 2023 के भू-राजनीतिक तनावों के दौरान, सेवा क्षेत्र ने समग्र सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को बनाए रखा।
    • IT, फिनटेक, स्वास्थ्य सेवाओं और पर्यटन जैसे उप-क्षेत्रों ने इस प्रदर्शन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

विनिर्माण क्षेत्र: संरचनात्मक महत्त्वाकांक्षाओं के बीच ठहराव

  • “मेक इन इंडिया” अभियान के बावजूद, सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी स्थिर बनी हुई है, जो वित्त वर्ष 2013-14 में 16.7% थी और वित्त वर्ष 2023-24 में लगभग 17% थी।
  • विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, 6 करोड़ से अधिक श्रमिक, जिनमें से कई MSME और अनौपचारिक इकाइयों में हैं (MoSPI, 2023)।
  • इस क्षेत्र को प्रतिस्पर्द्धात्मक चुनौतियों, आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता और वैश्विक प्रतिस्थापन जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है, विशेषतः श्रम-प्रधान और असेंबली-आधारित निर्यातों (जैसे- कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स) में।

संक्रमण की आवश्यकता

  • रणनीतिक लाभ: महत्त्वपूर्ण उत्पाद बनाने वाले देशों को वार्ता की शक्ति प्राप्त होती है (उदाहरण के लिएताइवान के सेमीकंडक्टर, दक्षिण कोरिया के इलेक्ट्रॉनिक्स, चीन के दुर्लभ मृदा तत्त्व और उच्च-स्तरीय बैटरियाँ, सटीक मशीनरी में जर्मनी/जापान)।
  • वर्तमान अंतर: भारत के निर्यात (वस्त्र, जेनेरिक दवाएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेलफोन) अत्यधिक प्रतिस्थापन योग्य हैं, जिससे वैश्विक प्रभाव सीमित हो रहा है।
    • शीर्ष व्यापारिक निर्यातकों में इंजीनियरिंग सामान, इलेक्ट्रॉनिक सामान, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि शामिल हैं, जिनका वित्त वर्ष 2024-25 (PIB) में भारत के कुल निर्यात में 50% से अधिक का योगदान था।
  • आर्थिक तर्क: घरेलू विनिर्माण को मजबूत करने से वैश्विक तनावों और व्यापार व्यवधानों के प्रति लचीलापन बढ़ता है, प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होता है और उच्च मूल्यवर्द्धन सुनिश्चित होता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में भारत की उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना ने पहले ही निर्यात को बढ़ावा दिया है (उदाहरण के लिए, वित्त वर्ष 2024 में मोबाइल निर्यात ₹1.2 लाख करोड़ को पार कर गया)।

उत्पाद राष्ट्र के निर्माण का महत्त्व

  • आर्थिक लचीलापन: घरेलू विनिर्माण को मजबूत करने से भारत को वैश्विक आर्थिक तनावों और व्यापार व्यवधानों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: उच्च-मूल्य वाले, बौद्धिक संपदा-संचालित उत्पादों के विकास से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत की स्थिति मजबूत होती है।
  • रणनीतिक लाभ: बाह्य बाजारों पर निर्भरता कम होती है और दंडात्मक व्यापार उपायों से होने वाले जोखिम कम होते हैं।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • कम उत्पादकता और मूल्य संवर्द्धन: भारत में प्रति व्यक्ति विनिर्माण मूल्य संवर्द्धन $0.32K है, जो वैश्विक औसत $2K (विश्व बैंक, 2023) से काफी कम है।
  • सेमीकंडक्टर डिजाइन: भारत में दुनिया के लगभग 20% चिप डिजाइन इंजीनियर हैं, लेकिन यहाँ वैश्विक डिजाइन सुविधाओं का हिस्सा 10% से भी कम है और अधिकांश कार्य विदेशी विनिर्देशों के अनुसार किया जाता है।
  • अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास निवेश: सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.7% अनुसंधान एवं विकास पर खर्च किया जाता है, जबकि औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में यह 2-4% है।
  • कौशल अंतराल और शिक्षा-उद्योग बेमेल: केवल 48.7% कार्यबल ही रोजगार योग्य है (भारत कौशल रिपोर्ट 2023), और उद्योग 4.0 तकनीकों तक सीमित पहुँच है।
  • आयात पर निर्भरता: सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स और EV बैटरियों के लिए आयात पर निर्भरता व्यापार घाटे में योगदान करती है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: औद्योगिक पार्क विकास में देरी, उच्च रसद लागत और ‘प्लग-एंड-प्ले’ सुविधाओं का अभाव।

उत्पाद राष्ट्र बनाने के लिए सरकारी पहल

  • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना: 14 क्षेत्रों को शामिल करती है, जिसका लक्ष्य 500 अरब डॉलर का अतिरिक्त विनिर्माण उत्पादन प्राप्त करना है।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PM Kaushal Vikas Yojana- PMKVY): वैश्विक मानकों के अनुरूप उन्नत विनिर्माण कौशल विकास प्रदान करती है।
  • डिजाइन से जुड़ी प्रोत्साहन (Design Linked Incentive- DLI) योजना: IC, चिपसेट, IP कोर आदि सहित सेमीकंडक्टरों के विकास और परिनियोजन के सभी चरणों में वित्तीय सहायता तथा डिजाइन संबंधी बुनियादी ढाँचा प्रदान करती है।
  • अन्य नवाचार मिशन: राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, अटल नवाचार मिशन, IndiaAI मिशन आदि।
  • मेगा इन्वेस्टमेंट टेक्सटाइल्स पार्क (Mega Investment Textiles Parks- MITRA) योजना: मापदंड आधारित अर्थव्यवस्थाओं और इनके समूहन के माध्यम से वैश्विक उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए तीन वर्षों में सात विश्व स्तरीय टेक्सटाइल पार्क बनाने की योजना।
  • मेक इन इंडिया (2014): भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए 25 क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देता है।

आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश: अनुसंधान एवं विकास निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के कम-से-कम 2% तक बढ़ाना और उन्नत विनिर्माण तकनीकों के लिए मिशन-संचालित केंद्र स्थापित करना।
    • चीन का अनुसंधान एवं विकास व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.5% है; इसने चीन को इलेक्ट्रिक वाहनों (BYD), इलेक्ट्रॉनिक्स (Huawei) और सौर मॉड्यूल में वैश्विक रूप से अग्रणी बनाने में मदद की।
  • मानव पूँजी में निवेश: उत्पाद-संचालित अर्थव्यवस्था के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण, उत्पाद डिजाइन और प्रोटोटाइपिंग पर ध्यान केंद्रित करना।
    • जर्मनी की दोहरी व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रणाली कक्षा शिक्षण के साथ प्रशिक्षुता को एकीकृत करती है, जिससे कुशल विनिर्माण इंजीनियर तैयार होते हैं।
  • औद्योगिक क्लस्टर विकास: क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए अविकसित क्षेत्रों में औद्योगिक क्लस्टर और विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित करना।
    • शेन्जेन, चीन: विशेष आर्थिक क्षेत्रों की सहायता से मत्स्यन शहर से तकनीकी केंद्र में परिवर्तित, हुआवेई और टेनसेंट जैसी वैश्विक दिग्गज कंपनियों को उत्प्रेरित कर रहा है।
  • बुनियादी ढाँचा निवेश: ‘प्लग-एंड-प्ले’ औद्योगिक पार्कों, लॉजिस्टिक्स नेटवर्क और प्रमाणन प्रयोगशालाओं के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 1% आवंटित करना।
    • जापान का काइजन मॉडल: विश्व स्तरीय लॉजिस्टिक्स और लीन इन्फ्रास्ट्रक्चर ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाया है।
  • एमएसएमई सहायता: PLI योजना के तहत पूँजी सीमा कम करना और MSME को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता प्रदान करना।
    • ‘ऑटो कंपोनेंट’ उद्योग मॉडल का अनुकरण करना: पुणे और चेन्नई के MSME टोयोटा (Toyota) और हुंडई (Hyundai) जैसी वैश्विक प्रमुख कंपनियों को आपूर्ति करते हैं।
  • स्वदेशी डिजाइन और उत्पाद स्वामित्व: बौद्धिक मूल्य और लाभ को बनाए रखने के लिए भारतीय विशिष्टताओं के आधार पर उत्पादों का डिजाइन और विकास।
    • भारत का इसरो मॉडल: चंद्रयान-3 और PSLV शृंखला जैसे कम लागत वाले नवाचार दर्शाते हैं कि कैसे मिशन-संचालित अनुसंधान वैश्विक सफलताएँ प्रदान कर सकते हैं।
    • भारत बायोटेक का कोवैक्सिन: स्वदेशी वैक्सीन विकास पहलों ने बौद्धिक संपदा अधिकारों को बनाए रखा, जिससे भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा और वैश्विक विश्वसनीयता बढ़ी।

निष्कर्ष

वैश्विक मूल्य शृंखला में आगे बढ़ने, उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों पर अधिकार करने और आर्थिक एवं रणनीतिक लचीलापन बढ़ाने के लिए भारत को एक उत्पाद राष्ट्र में परिवर्तित करना अत्यंत आवश्यक है। नवाचार-आधारित, बौद्धिक संपदा-संचालित विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करके, भारत कम-लाभ आधारित निर्यात पर निर्भरता कम कर सकता है, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसी भू-राजनीतिक बढ़त हासिल कर सकता है और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी, नवाचार-संचालित विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर सकता है।

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