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अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा (SPSB)

Lokesh Pal August 27, 2025 03:45 18 0

संदर्भ

किंग्स कॉलेज, लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नवीनतम अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा (Space-Based Solar Power- SBSP) वर्ष 2050 तक यूरोप की नवीकरणीय ऊर्जा आवश्यकताओं का 80% तक आपूर्ति कर सकता है।

अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा (SPSB) के बारे में

  • अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा (SPSB) में उपग्रहों का उपयोग करके भू-स्थिर कक्षा में सौर ऊर्जा को एकत्रित करना, इसे माइक्रोवेव या लेजर बीम में परिवर्तित करना, तथा इसे वायरलेस तरीके से ‘ग्राउंड बेस्ड रिसीविंग स्टेशन’ (रेक्टेना) तक पहुँचाना शामिल है, जहाँ इसे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है।

व्यवहार्यता एवं सहायक अध्ययन

  • किंग्स कॉलेज (लंदन) सिमुलेशन ने नासा (NASA) के दो मॉडलों का परीक्षण किया:-
    • हेलियोस्टेट स्वार्म डिजाइन (Heliostat Swarm Design) (परावर्तक उपकरणों का उपयोग करके निरंतर ऊर्जा का संग्रहण किया जाता है)।
    • प्लानर ऐरे डिजाइन (Planar Array Design) (आंतरायिक लेकिन मापनीय होता है)।
  • इस शोध से प्राप्त परिणामों से पता चला कि पृथ्वी की सौर सीमाओं को दरकिनार करते हुए लगभग निरंतर ऊर्जा वितरण संभव हुआ।

संभावित लाभ

  • सतत् विद्युत आपूर्ति: भू-सौर ऊर्जा के विपरीत, SPSB रात या मौसम के कारण होने वाली रुकावट से बचाता है।
  • उच्च दक्षता: अंतरिक्ष में सौर विकिरण पृथ्वी की सतह की तुलना में अधिक प्रबल होता है।
  • शून्य-कार्बन प्रेषण योग्य ऊर्जा (Zero-Carbon Dispatchable Energy): यह पवन एवं स्थलीय सौर ऊर्जा को पूरक बनाकर नवीकरणीय ग्रिडों को स्थिर कर सकती है।

SPSB की चुनौतियाँ

  • पैमाना एवं अवसंरचना: एक एकल SPSB उपग्रह का व्यास 1 किमी. से अधिक हो सकता है, जबकि भू-स्टेशन दस गुना बड़े होते हैं।
    • अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए 40 रॉकेट प्रक्षेपणों की तुलना में सैकड़ों रॉकेट प्रक्षेपणों की आवश्यकता होगी।
  • आर्थिक व्यवहार्यता: प्रक्षेपण लागत में गिरावट के बावजूद, तैनाती एवं रखरखाव अभी भी अत्यधिक महँगे हैं।
  • परिचालन जोखिम: इन मुद्दों में कक्षीय उपग्रहों का घनत्व, सिग्नल्स के प्रसारण में रुकावट एवं लेजर बीमिंग परिवर्तनशीलता शामिल हैं, जिनका अभी तक मॉडलों में समाधान नहीं किया गया है।
    • बड़े पैमाने पर अंतरिक्ष अवसंरचना को सुरक्षा एवं मलबे के जोखिमों का भी सामना करना पड़ सकता है।

भारत के लिए प्रासंगिकता

  • भारत का महत्त्वाकांक्षी नेट-जीरो वर्ष 2070 लक्ष्य SBSP को अन्वेषण के योग्य बनाता है।
  • इसरो की कम लागत वाली प्रक्षेपण क्षमताएँ और भारत का सौर नेतृत्व (अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन) इसे एक भविष्य की रणनीतिक तकनीक के रूप में विकसित कर सकता है।
  • वैश्विक पहलों (जैसे- यू.के., जापान, SPSP पर यूरोपीय संघ की परियोजनाएँ) के साथ सहयोग व्यवहार्यता को तेज कर सकता है।

निष्कर्ष

अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा, हालाँकि आज तकनीकी एवं आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण है, भविष्य के स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में अपार संभावनाएँ रखती है, जो भारत के नेट-जीरो लक्ष्यों तथा वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा नेतृत्व के अनुरूप है।

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