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बदलते युद्ध के दौर में, सुदर्शन चक्र क्रांतिकारी साबित हो सकता है

Lokesh Pal August 27, 2025 05:15 10 0

संदर्भ:

वर्ष 2024 के स्वतंत्रता दिवस पर, प्रधानमंत्री ने सुदर्शन चक्र मिशन की घोषणा की थी, जो 2035 तक एक व्यापक AI-संचालित मिसाइल रक्षा प्रणाली तैनात करने की भारत की योजना है। यह कदम इस रणनीतिक वास्तविकता को दर्शाता है कि बढ़ते मिसाइल खतरों के युग में पूर्ण सुरक्षा ही संप्रभुता का आधार है।

वर्तमान सुरक्षा संदर्भ:

  • क्षेत्रीय खतरे: पाकिस्तान ने 100 घंटे के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की सुरक्षा का परीक्षण किया, जबकि चीन का मिसाइल शस्त्रागार उत्तरी सीमाओं पर लगातार बढ़ रहा है।
  • रणनीतिक तात्कालिकता: चुनौती यह नहीं है कि भारत को सुरक्षा कवच की आवश्यकता है या नहीं, बल्कि यह है कि क्या क्षेत्रीय तनाव के संघर्ष में बदलने से पहले इसे पर्याप्त स्तर पर तथा तीव्र गति से बनाया जा सकता है

स्वदेशी प्रगति:

  • DRDO की प्रतिक्रिया: घोषणा के 10 दिनों के भीतर, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने 24 अगस्त, 2024 को एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली (IADWS) का परीक्षण किया
  • बहुस्तरीय रक्षा: यह प्रणाली सतह से हवा में मार करने वाली त्वरित मिसाइल प्रणाली (QRSAM), बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली मिसाइल (VSHORADS) और निर्देशित ऊर्जा हथियारों (DEW) को एकीकृत करती है
  • एकीकृत एकीकरण: सुदर्शन चक्र में तीन परतें शामिल हैं:
    • पुनः प्रवेश से पहले खतरों को समाप्त/बेअसर करने के लिए अंतरिक्ष आधारित इंटरसेप्टर।
    • उच्च ऊंचाई पर अवरोधन के लिए लंबी दूरी की मिसाइलें।
    • महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों की टर्मिनल सुरक्षा के लिए लेजर आधारित हथियार।
  • AI बैकबोन: 3.2 मिलियन वर्ग किमी में वास्तविक समय में खतरे का आकलन और निर्णय लेना इस प्रणाली को विशेष बनाता है।

वैश्विक तुलना:

  • इज़राइल: आयरन डोम (2011 से) 90% समय कम दूरी के रॉकेटों को निष्क्रिय कर देता है, लेकिन बैलिस्टिक मिसाइलों के विरुद्ध इसकी क्षमता सीमित है। डेविड स्लिंग सहित इज़राइल का बहुस्तरीय दृष्टिकोण एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।
  • रूस: S-400 ट्रायम्फ एक साथ 36 लक्ष्यों पर निशाना साध सकता है, तथा लंबी दूरी तक भी निशाना साधा जा सकता है। भारत ने इसकी 5 इकाइयाँ आयात की हैं
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) बैलिस्टिक मिसाइल अवरोधन में उत्कृष्ट है। हालाँकि, एजिस एशोर परियोजना की लागत 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाने के बाद जापान पीछे हट गया
  • चीन: HQ-9 से HQ-22 तक प्रगति हुई, जो निरंतर स्वदेशी उन्नति की संभावना को दर्शाता है।

चुनौतियां:

  • समयरेखा: इज़राइल को आयरन डोम के निर्माण में एक दशक से ज़्यादा का समय लगा; अमेरिकी प्रणालियों के निर्माण में दशकों लग गए। भारत के पास इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के लिए सिर्फ़ 11 साल हैं।
  • वित्तीय लागत: दशकों में यह लागत अरबों डॉलर तक पहुंच सकती है, तथा सफलता की कोई गारंटी नहीं है।
  • प्रणालीगत कमज़ोरियाँ: पिछली असफलताएँ नौकरशाही विलंब, सेवा प्रतिद्वंद्विता और संयुक्त एकीकरण की कमी से उत्पन्न हुईं
  • नागरिक भेद्यता: आधुनिक संघर्षों का लक्ष्य अस्पताल, विद्युत ग्रिड और शहरी केंद्र होते हैं; सुरक्षा को सैन्य परिसंपत्तियों से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
  • परमाणु आयाम: मिसाइल रक्षा प्रथम हमले के बाद जवाबी क्षमता की उत्तरजीविता सुनिश्चित करके बड़े पैमाने पर जवाबी कार्यवाही की विश्वसनीयता को मजबूत करता है।

सफलता के लिए रणनीतिक मार्ग:

  • त्रि-सेवा एकीकरण: अंतर-सेवा प्रतिद्वंद्विता से बचने के लिए प्रारंभ से ही सेना, नौसेना और वायु सेना को शामिल किया जाना चाहिए।
  • स्वदेशी विकास: प्रतिबंधों, निर्भरताओं और लागत वृद्धि से बचने के लिए स्वतंत्र क्षमताओं का निर्माण करना चाहिए।
  • नागरिक-सैन्य एकीकरण: रक्षा परिसंपत्तियों के साथ-साथ नागरिक बुनियादी ढांचे की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहिए।
  • दूसरों से सीखना: आयरन डोम, S-400, टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) से सबक लिया जा सकता है और जापान की एजिस एशोर विफलता जैसी गलतियों से बचें।
  • संतुलित महत्वाकांक्षा: चरणबद्ध तैनाती और स्थायी स्केलिंग पर ध्यान केंद्रित करके लागत का प्रबंधन करना।

आगे की राह:

  • विकास में तेजी लाना: समय भारत का सबसे दुर्लभ संसाधन है; परीक्षण और अनुमोदन में देरी को कम करना।
  • स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और निजी रक्षा उद्योग सहयोग को मजबूत करना।
  • सुरक्षित वित्तपोषण: दीर्घकालिक रक्षा नवाचार निधि का निर्माण
  • नागरिक लचीलापन: शहरी बुनियादी ढाँचे, ऊर्जा ग्रिड और संचार प्रणालियों को रक्षा योजना में एकीकृत करना।
  • अंतरराष्ट्रीय भागीदारी: रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता किए बिना चुनिंदा सहयोग का लाभ प्राप्त करना।

निष्कर्ष:

ऐसे युग में जहाँ मिसाइलें कूटनीति से भी तेज चलती हैं, भारत का सुदर्शन चक्र प्रौद्योगिकी से कहीं अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। यह इस सिद्धांत का प्रतीक है कि 21वीं सदी के युद्ध में, संप्रभुता, प्रतिरोध और अस्तित्व के लिए पूर्ण सुरक्षा ही पूर्वापेक्षा है

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ केवल तकनीकी चमत्कार ही नहीं, बल्कि रणनीतिक अनिवार्यताएँ भी हैं। 2035 तक सुदर्शन चक्र विकसित करने के भारत के प्रयासों के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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