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भारत में अनुसंधान प्रशासन और वित्तपोषण

Lokesh Pal September 02, 2025 04:05 68 0

संदर्भ

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के बायोकेयर कार्यक्रम में विलंब होने के कारण 75 महिला वैज्ञानिकों को स्वीकृति-पत्र या वेतन नहीं मिल पाया है, भारत की अनुसंधान प्रशासन की खामियों को उजागर करती है।

बायोकेयर कार्यक्रम (महिला वैज्ञानिकों के लिए जैव प्रौद्योगिकी कॅरियर उन्नति और पुन: अभिविन्यास) के बारे में

  • भारत के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा भारत में बेरोजगार महिला वैज्ञानिकों को सहायता प्रदान करने हेतु एक योजना, जिसके तहत उन्हें जैव प्रौद्योगिकी और संबद्ध क्षेत्रों में बाह्य अनुसंधान अनुदान प्रदान किया जाता है ताकि विज्ञान में उनकी भागीदारी और कॅरियर में उन्नति को बढ़ावा प्रदान किया जा सके।
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MoST) के अधीन DBT, 2011 से बायोकेयर कार्यक्रम संचालित कर रहा है।
  • उद्देश्य: जैव प्रौद्योगिकी और संबद्ध क्षेत्रों में स्वतंत्र अनुसंधान के अवसर प्रदान करके महिला वैज्ञानिकों को सशक्त बनाना।
    • विशेष रूप से उन महिलाओं को सहायता प्रदान करना, जो अपने कॅरियर के शुरुआती चरण में हैं या एक अंतराल के बाद पुनः अनुसंधान में प्रवेश करना चाहती हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • अनुदान राशि: लक्ष्य समूह
      • 40 वर्ष से कम आयु की युवा महिला वैज्ञानिक।
      • वे महिलाएँ, जिन्होंने पारिवारिक/देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के कारण अपने कॅरियर से ब्रेक लिया है।
    • अनुसंधान क्षेत्र: राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से संबंधित जैव प्रौद्योगिकी और संबद्ध विषयों में परियोजनाओं का समर्थन करता है।
    • फेलोशिप सहायता: स्वतंत्र कार्य को सक्षम बनाने के लिए वेतन, आकस्मिकता, जनशक्ति और उपकरण अनुदान प्रदान करता है।
    • संस्थागत सहायता: परियोजनाओं का आयोजन विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में किया जाता है।
  • महत्त्व
    • STEM क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।
    • महिला वैज्ञानिकों के लिए स्वतंत्र नेतृत्व की भूमिकाओं को प्रोत्साहित करता है।
    • समावेशी भागीदारी के साथ भारत के जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान आधार को मजबूत करता है।

भारत में अनुसंधान और नवाचार की स्थिति

  • अनुसंधान और विकास पर सकल व्यय (Gross Expenditure on Research and Development- GERD): भारत का अनुसंधान और विकास पर सकल व्यय, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) (2020-21) का केवल 0.64% है, जो वैश्विक औसत 1.79% से काफी कम है और संयुक्त राज्य अमेरिका (2.8%), दक्षिण कोरिया (4.2%), एवं इजरायल (5.56%) से काफी पीछे है।
    • अनुसंधान और विकास पर सकल व्यय किसी देश के सभी क्षेत्रों – सरकार, उच्च शिक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम और निजी उद्योग द्वारा अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों पर किया गया कुल व्यय है।
    • यह सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष अनुसंधान एवं विकास निवेश की तीव्रता का आकलन करने का एक प्रमुख संकेतक है।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका: भारत के अनुसंधान और विकास पर सकल व्यय में निजी क्षेत्र का योगदान केवल 37% है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन जैसे देशों में निजी क्षेत्र 68-75% से अधिक का योगदान देता है। यह भारत में सरकारी प्रयोगशालाओं और संस्थानों पर भारी निर्भरता को दर्शाता है।
  • अनुप्रयुक्त अनुसंधान: भारत में अनुसंधान एवं विकास निधि का केवल 13% अनुप्रयुक्त अनुसंधान के लिए निर्देशित होता है, जो नवाचार और विचारों के व्यावसायीकरण को सीमित करता है। एक बड़ा हिस्सा अभी भी रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में बुनियादी तथा रणनीतिक अनुसंधान के लिए निर्देशित है।
  • मानव पूँजी: भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या पर केवल 15 शोधकर्ता हैं, जबकि यह संख्या चीन में 111 और इजरायल में 825 हैं। अनुसंधान एवं विकास कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 14 प्रतिशत है, जो वैश्विक औसत लगभग 30 प्रतिशत से काफी कम है।
  • अनुसंधान उत्पादन: भारत वैश्विक वैज्ञानिक प्रकाशनों में लगभग 4.8% का योगदान देता है, जो चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्पादन का केवल एक-चौथाई है।
  • वैश्विक नवाचार सूचकांक: भारत वर्ष 2024 में 39वें स्थान पर है, जो मामूली प्रगति दर्शाता है, लेकिन अभी भी अपनी क्षमता से काफी नीचे है।

PWOnlyIAS विशेष

भारतीय अनुसंधान में महिलाओं की स्थिति

  • महत्त्वपूर्ण आँकड़े
    • कार्यबल में कम भागीदारी: भारत के अनुसंधान एवं विकास कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 14-18% है, जो वैश्विक औसत 30% से काफी कम है।
    • उच्च ड्रॉपआउट दरें: विज्ञान स्नातकों में 43% महिलाएँ होने के बावजूद, बहुत कम सक्रिय अनुसंधान में बनी हुई हैं।
    • सकारात्मक वृद्धि: महिला शोधकर्ताओं की हिस्सेदारी 13.9% (2000-01) से बढ़कर 18.7% (2016-17) हो गई।
    • बाह्य परियोजनाएँ: बाह्य वित्तपोषित परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी 13% (2000-01) से बढ़कर 25% (2019-20) हो गई।
    • शैक्षणिक जगत में कम प्रतिनिधित्व: STEM संकाय में महिलाएँ केवल 16.7% हैं, शीर्ष शोध संस्थानों में 10% हैं, और 25% अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं का नेतृत्व करती हैं।
      • STEM का तात्पर्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित से है।
    • अनुसंधान: प्रति लाख जनसंख्या पर शोधकर्ताओं की कुल संख्या कम बनी हुई है, जिससे व्यापक समावेशन सीमित हो रहा है।
  • महिला शोधकर्ताओं के सामने आने वाली चुनौतियाँ
    • ड्रॉपआउट दर: पारिवारिक अपेक्षाओं, देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों और लचीली व्यवस्थाओं के कारण स्नातक स्तर की पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या अधिक है।
    • कॅरियर में रुकावटें: प्रसव या देखभाल के कारण आने वाली बाधा शोध संबंधी कॅरियर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे पुनः प्रवेश के अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • नेतृत्व और वित्तपोषण में कमी: प्रमुख अन्वेषक के रूप में महिलाओं की संख्या कम होना, प्रतिष्ठित संस्थानों में कम सहभागिता, और अनुदान/फेलोशिप तक धीमी पहुँच।
    • संरचनात्मक और सांस्कृतिक बाधाएँ: लैंगिक पूर्वाग्रह, पुरुष-प्रधान STEM संस्कृति और कमजोर प्रशिक्षण प्रणालियाँ प्रगति में बाधा डालती हैं।
  • अनुसंधान में महिलाओं के समावेशन का महत्त्व
    • गुणवत्ता और नवाचार: लैंगिक विविधता आधारित टीमें अधिक रचनात्मक और उच्च-गुणवत्ता आधारित विज्ञान का सृजन करती हैं।
    • समतामूलक विकास: महिलाओं की भागीदारी समग्र और सामाजिक रूप से प्रासंगिक अनुसंधान सुनिश्चित करती है।
    • वैश्विक प्रतिष्ठा: विविधता भारतीय संस्थानों की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता और रैंकिंग को बढ़ाती है।
    • आदर्श उदाहरण: कुछ महिलाएँ, जब अनुसंधान और STEM क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल करती हैं, तो वे दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती हैं।
  • विज्ञान में महिलाओं को समर्थन देने वाली योजनाएँ और पहल
    • विज्ञान एवं इंजीनियरिंग में महिलाएँ-किरण (Women in Science and Engineering-KIRAN) कार्यक्रम: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की एक पहल, जो कॅरियर के विभिन्न चरणों में फेलोशिप, प्रशिक्षण और अनुदान प्रदान करती है।
    • WOS-A (महिला वैज्ञानिक योजना-A): अवकाश के बाद महिलाओं के कॅरियर में पुनः प्रवेश का समर्थन करता है।
    • BioCARe (DBT): जैव प्रौद्योगिकी और संबद्ध क्षेत्रों में महिला वैज्ञानिकों को ₹40-60 लाख का अनुदान प्रदान करता है।
    • विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड- अन्वेषणात्मक अनुसंधान में महिलाओं के लिए अवसरों को बढ़ावा देना (SERB-POWER): विज्ञान और इंजीनियरिंग में वित्तीय असमानताओं को कम करता है।
    • नवाचार एवं उत्कृष्टता के लिए विश्वविद्यालय अनुसंधान का समेकन (Consolidation of University Research for Innovation and Excellence- CURIE) कार्यक्रम: केवल महिलाओं के विश्वविद्यालयों में अनुसंधान एवं विकास के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करता है।
    • अन्य पहल: विज्ञान ज्योति, STEMM में भारत-अमेरिका महिलाएँ, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) छात्रवृत्तियाँ, ACM-W ग्रैड कोहोर्ट जैसे परामर्श मंच और IIT कानपुर की पहल।

समय पर वित्तपोषण क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • विज्ञान की समय-संवेदनशील प्रकृति: कई वैज्ञानिक प्रयोग मौसमी चक्रों, जैविक प्रक्रियाओं, या सहयोगियों और उपकरणों की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। कुछ महीनों की देरी वर्षों की योजना को अप्रभावी बना सकती है।
  • विश्वसनीयता और साझेदारी: जब कागजों पर प्रगतिशील दिखने वाली योजनाएँ क्रियान्वयन में विफल हो जाती हैं, तो भारत घरेलू प्रतिभा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग, दोनों को खोने का जोखिम उठाता है। यह एक विश्वसनीय अनुसंधान केंद्र के रूप में देश की विश्वसनीयता को कमजोर करता है।
  • समानता संबंधी चिंताएँ: महिला वैज्ञानिक, प्रारंभिक अध्येता तथा कम प्रतिनिधित्व वाली पृष्ठभूमि से आने वाले शोधकर्ता अनियमित वित्तपोषण से असमान रूप से प्रभावित होते हैं, क्योंकि वे पहले से ही प्रणालीगत बाधाओं का सामना कर रहे होते हैं।
  • राष्ट्रीय प्राथमिकताएँ: स्वास्थ्य सेवा, कृषि, ऊर्जा सुरक्षा, जैव प्रौद्योगिकी, जलवायु लचीलापन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में भारत के लक्ष्यों के लिए एक विश्वसनीय और उत्तरदायी अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है।

भारत के अनुसंधान और विकास पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ

  • कम निवेश: भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय, सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.64% है, जो वैश्विक नेताओं की तुलना में बहुत कम है। इससे विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं और स्टार्ट-अप्स के लिए संसाधनों की भारी कमी पैदा होती है।
  • सरकार-केंद्रित अनुसंधान एवं विकास: वर्ष 2020-21 में, निजी क्षेत्र के उद्योगों ने अनुसंधान और विकास पर सकल व्यय में केवल 36.4% का योगदान दिया, जो दर्शाता है कि भारत का अनुसंधान एवं विकास सरकारी वित्तपोषण और संस्थानों पर अत्यधिक निर्भर है।
  • कमज़ोर शैक्षणिक-उद्योग संबंध: भारतीय विश्वविद्यालय और उद्योग प्रायः अलग-थलग होकर कार्य करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के स्टैनफोर्ड-सिलिकॉन वैली मॉडल के विपरीत, भारत ऐसा समन्वय विकसित नहीं कर पाया है, जिससे नवाचार सीमित हो जाता है।
  • प्रतिभा पलायन: बेहतर सुविधाओं, वित्तपोषण और अवसरों के कारण 85,000 से अधिक भारतीय मूल के शोधकर्ता विदेशों में काम करते हैं (OECD  डेटा), जिससे घरेलू अनुसंधान क्षमता कम हो जाती है।
  • खंडित पारिस्थितिकी तंत्र: भारत में अनुसंधान क्षेत्र कई सार्वजनिक संस्थानों जैसे वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा प्रेरित है, जिनका विश्वविद्यालयों या स्टार्ट-अप्स के साथ बहुत कम समन्वय है।
  • अवसंरचनात्मक सीमाएँ: कई राज्य विश्वविद्यालयों में आधुनिक प्रयोगशालाओं, उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग सुविधाओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर की मार्गदर्शन सुविधाओं का अभाव है।
  • असंतुलित अनुसंधान प्राथमिकताएँ: अनुसंधान एवं विकास निवेश का एक बड़ा हिस्सा रक्षा और अंतरिक्ष परियोजनाओं (जैसे- अग्नि और ब्रह्मोस मिसाइलें) की ओर निर्देशित होता है, जबकि अर्द्धचालक, गहन प्रौद्योगिकी और उन्नत विनिर्माण जैसे क्षेत्रों पर सीमित ध्यान दिया जाता है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण बाधाएँ: जब DRDO, इसरो या भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) उन्नत प्रौद्योगिकियाँ विकसित करते हैं, तब भी नौकरशाही बाधाएँ अक्सर व्यावसायिक उपयोग के लिए उद्योगों को उनके हस्तांतरण में बाधा डालती हैं।
  • प्रशासनिक अक्षमता: जटिल अनुदान प्रक्रियाएँ और ‘ट्रेजरी सिंगल अकाउंट’ जैसी प्रणालियों के अंतर्गत देरी शोधकर्ताओं के लिए अनिश्चितता पैदा करती है और वैज्ञानिक प्रगति को बाधित करती है।
  • नीतिगत चिंताएँ: पंचगव्य या भारतीय ज्ञान प्रणालियों जैसे विश्वास-आधारित विषयों को बढ़ावा देने से, यदि साक्ष्य-आधारित अनुसंधान पर प्राथमिकता दी जाती है, तो वैज्ञानिक विश्वसनीयता कम हो सकती है।

भारत में सकारात्मक नीतिगत सुधार और बजटीय घोषणाएँ

  • अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (Anusandhan National Research Foundation- ANRF): अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन अधिनियम, 2023 के तहत स्थापित, यह निजी संस्थानों में प्रारंभिक चरण के अनुसंधान को वित्तपोषित करने और अकादमिक-उद्योग संबंधों को मजबूत बनाने के लिए वार्षिक रूप से लगभग ₹2,800 करोड़ आवंटित करेगा।
  • केंद्रीय बजट 2025-26: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उन्नत विनिर्माण जैसे अग्रणी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र द्वारा संचालित अनुसंधान एवं विकास के लिए ₹20,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
  • सनराइज टेक्नोलॉजीज के लिए ₹1 लाख करोड़ का कोष (अंतरिम बजट 2024-25): उभरते क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 50 वर्षों का ब्याज-मुक्त ऋण।
  • ISRO के निजी अनुबंध: इसरो अब निजी फर्मों से प्रक्षेपण यान खरीदेगा, जिससे अंतरिक्ष अनुसंधान में निजी भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) की AI पहल: AI अनुसंधान को सहयोग देने के लिए 18,693 ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) खरीदे गए, जो फर्मों को 1 डॉलर प्रति घंटे की मामूली दर पर उपलब्ध कराए गए।
  • अन्य योजनाएँ
    • विज्ञान धारा योजना: प्रारंभिक चरण के शोधकर्ताओं को सहायता प्रदान करना।
    • राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (Rashtriya Vigyan Puraskar- RVP): राष्ट्रीय स्तर के विज्ञान पुरस्कार।
    • वैभव फेलोशिप: अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग।
    • विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड (Science and Engineering Research Board- SERB): अन्वेषक-नेतृत्व आधारित परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण।
    • अटल नवाचार मिशन (Atal Innovation Mission- AIM): अटल टिंकरिंग लैब और इनक्यूबेशन केंद्रों की स्थापना।
    • जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council- BIRAC): जैव प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप और सहयोगों को वित्तपोषण।
    • क्वांटम प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोगों पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Quantum Technologies and Applications- NMQTA): भारत को क्वांटम कंप्यूटिंग और क्रिप्टोग्राफी में अग्रणी के रूप में स्थापित करना।

वैश्विक पहल और सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी (DARPA, संयुक्त राज्य अमेरिका): एक सीईओ-नेतृत्व आधारित, परियोजना-संचालित एजेंसी, जिसने इंटरनेट और GPS जैसे परिवर्तनकारी नवाचारों का निर्माण किया है।
  • होराइजन यूरोप (यूरोपीय संघ): 95 बिलियन यूरो का एक कार्यक्रम, जो अंतःविषयक और समता-केंद्रित अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
  • दक्षिण कोरिया और इजरायल: निजी अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए कर प्रोत्साहन और सशक्त उद्यम पूँजी पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करते हैं।
  • जापान के विश्वविद्यालय: अनुसंधान निधियों के उपयोग में स्वायत्तता का लाभ उठाते हैं, जिससे उनका अधिक प्रभावी उपयोग संभव होता है।
  • स्टैनफोर्ड-सिलिकॉन वैली मॉडल (संयुक्त राज्य अमेरिका): मजबूत शैक्षणिक-उद्योग तालमेल का एक उत्कृष्ट उदाहरण, जिसे भारत अभी तक अपना नहीं पाया है।

PWOnlyIAS विशेष

निजी अनुसंधान के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा का मार्ग

  • सार्वजनिक निधियों को निजी अनुसंधान का समर्थन क्यों करना चाहिए?
    • निजी क्षेत्र की भूमिका: निजी क्षेत्र पहले से ही भारत में अनुसंधान एवं विकास निधि में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है और वैश्विक नेताओं के साथ अंतराल को पाटने के लिए इसकी भूमिका का विस्तार आवश्यक है।
    • विश्वविद्यालय और बौद्धिक संपदा सृजन: पेटेंट, प्रोटोटाइप और बौद्धिक संपदा निर्माण के मामले में निजी विश्वविद्यालय प्रायः सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
    • उद्योग प्रासंगिकता: निजी अनुसंधान बाजार की माँगों के साथ बेहतर तालमेल बिठाता है और प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण में तेजी ला सकता है।
    • सहयोग की संभावना: निजी क्षेत्र में मजबूत उद्योग-अकादमिक संबंध नवाचार और व्यावहारिक अनुप्रयोग को बढ़ावा देते हैं।
    • वैश्विक मानक: वैश्विक रैंकिंग में शीर्ष 300 में कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय नहीं होने के कारण, भारत के अनुसंधान उत्पाद और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए निजी भागीदारी में वृद्धि आवश्यक है।
  • निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाले अनुसंधान के लाभ
    • दक्षता और नवाचार: प्रतिस्पर्द्धी बाजार, निजी कंपनियों को तीव्र और अधिक व्यावहारिक परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
    • आर्थिक विकास: निजी नेतृत्व आधारित अनुसंधान व्यावसायीकरण, स्टार्ट-अप और रोजगार सृजन को बढ़ावा देता है।
    • शिक्षा-उद्योग सहयोग: उद्योग संबंध छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण, कौशल विकास और मार्गदर्शन के अवसरों में सुधार करते हैं।
    • जोखिम विविधीकरण: कई निजी कंपनियों को शामिल करने से सरकारी प्रयोगशालाओं पर अत्यधिक निर्भरता कम होती है।
    • सामाजिक प्रभाव: निजी अनुसंधान से प्राप्त ज्ञान GDP वृद्धि और तकनीकी आत्मनिर्भरता में योगदान देता है।

आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू व्यय (GERD)  में वृद्धि करना: भारत को वर्ष 2030 तक GERD को GDP के 1% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिए और लंबी अवधि में इसे 2% तक पहुँचाने का रोडमैप तैयार करना चाहिए।
  • ANRF को सशक्त बनाना: फाउंडेशन को कुशल कार्यक्रम प्रबंधकों, परिणाम-आधारित निगरानी और कम नौकरशाही हस्तक्षेप के साथ तेज, लचीला और नवाचार-उन्मुख अनुसंधान एवं विकास मॉडल का पालन करना चाहिए।
  • अनुप्रयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देना: व्यावसायीकरण और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अनुप्रयुक्त अनुसंधान पर व्यय को वर्तमान 13% से आगे बढ़ाना।
  • उद्योग-अकादमिक सहयोग: उत्कृष्टता केंद्र, नवाचार गलियारे और अनुसंधान क्लस्टर स्थापित करें, जो स्टार्ट-अप, विश्वविद्यालयों और उद्योग को जोड़ें।
  • कानूनी और वित्तीय सुधार: CSR निधियों और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश द्वारा समर्थित अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के लिए एक पारदर्शी ढाँचा बनाएँ।
  • प्रतिभा प्रतिधारण: प्रतिभा पलायन को कम करने के लिए युवा शोधकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन, स्थायी अवसर और बेहतर अनुसंधान अवसंरचना आवश्यक हैं।
  • समावेशिता: विज्ञान में महिलाओं, ग्रामीण शोधकर्ताओं और हाशिए पर स्थित समूहों का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर विविधता को बढ़ावा देना।
  • उद्यमिता और स्टार्ट-अप: विश्वविद्यालयों में इनक्यूबेटर और एक्सेलरेटर का विस्तार करना और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी, हरित प्रौद्योगिकी तथा क्वांटम कंप्यूटिंग में स्टार्ट-अप के लिए अनुदान प्रदान करना।

निष्कर्ष

भारत की अनुसंधान एवं विकास प्रगति में न्याय, समानता और बंधुत्व के संवैधानिक मूल्य प्रतिबिंबित होने चाहिए। समावेशिता, नवाचार और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देकर, भारत समतामूलक राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करते हुए तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है।

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