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हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र में स्वच्छ ऊर्जा क्षमता पर रिपोर्ट

Lokesh Pal September 09, 2025 02:35 33 0

संदर्भ

एक हालिया रिपोर्ट, टुगेदर वी हैव मोर पॉवर (2025), के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय (Hindu Kush Himalaya–HKH) क्षेत्र में विशाल अप्रयुक्त ऊर्जा भंडार होने के बावजूद, कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति का केवल 6.1% ही स्वच्छ ऊर्जा से प्राप्त होता है।

संबंधित तथ्य

  • यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD) द्वारा एशिया-प्रशांत स्वच्छ ऊर्जा सप्ताह के दौरान बैंकॉक, थाईलैंड में जारी की गई।

अंतरराष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD) के बारे में

  • अवलोकन: ICIMOD एक अंतर-सरकारी संगठन है, जो हिंदू कुश हिमालय की रक्षा के लिए वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है।
  • मुख्यालय: काठमांडू, नेपाल।
  • सदस्यता: इसमें आठ क्षेत्रीय देश शामिल हैं- अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्याँमार, नेपाल और पाकिस्तान।

हिंदू कुश हिमालय पर्वत के बारे में

  • भौगोलिक विस्तार: HKH पर्वत आठ देशों में लगभग 3,500 किलोमीटर तक विस्तृत है, जो लगभग 4.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है।

  • देश: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, नेपाल, म्याँमार और पाकिस्तान।
  • दिशा: उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक विस्तृत यह पर्वत शृंखला, उत्तर में अमु दरिया घाटी को दक्षिण में सिंधु नदी घाटी से अलग करती है।
  • जलवायु महत्त्व: तीसरे ध्रुव के रूप में जाना जाने वाला, हिंदू कुश हिमालय (HKH) उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाहर स्थायी हिम आवरण का सबसे बड़ा क्षेत्र है तथा क्षेत्रीय जलवायु में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • नदी प्रणालियाँ: ‘एशिया की जल मीनार’ के रूप में जाना जाने वाला, HKH क्षेत्र दस प्रमुख नदियों (अमु दरिया, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सालवीन, मेकांग, यांग्त्जी, येलो और तारिम) का स्रोत है, जिनकी घाटियाँ 1.9 बिलियन लोगों को जल प्रदान करती हैं, जो दुनिया की आबादी का लगभग एक-चौथाई है।
  • जैव विविधता: चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट (हिमालय, इंडो-बर्मा, मध्य एशिया के पर्वत और दक्षिण-पश्चिम चीन के पर्वत) और विविध पारिस्थितिकी तंत्रों का आवास, जिनमें ग्लेशियर, अल्पाइन घास के मैदान, जंगल, आर्द्रभूमि और घास के मैदान शामिल हैं।

HKH में नवीकरणीय ऊर्जा की स्थिति

  • वर्तमान हिस्सेदारी: स्वच्छ ऊर्जा, HKH देशों में कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति (Total Primary Energy Supply- TPES) का केवल 6.1% है।
  • जलविद्युत क्षमता: कुल चिह्नित जलविद्युत क्षमता 882 गीगावाट है, जिसमें 635 गीगावाट सीमापार नदियों से प्राप्त होती है; वर्तमान में केवल 49% का ही दोहन किया जा रहा है।
  • गैर-जलविद्युत क्षमता: इस क्षेत्र में सौर और पवन ऊर्जा क्षमता 3 टेरावाट है, जो HKH देशों के संयुक्त नवीकरणीय लक्ष्यों (1.7 टेरावाट) से अधिक है।
  • देश-वार विद्युत मिश्रण: भूटान और नेपाल 100% विद्युत नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न करते हैं; बांग्लादेश (98%), भारत (77%), पाकिस्तान (76%), चीन (67%), और म्याँमार (51%) में जीवाश्म ईंधन का प्रभुत्व है।
  • जैव ईंधन और अपशिष्ट: ग्रामीण क्षेत्रों की पारंपरिक ऊर्जा पर निर्भरता कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति (TPES) में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है: नेपाल में लगभग दो-तिहाई, म्याँमार में आधी, और भूटान तथा पाकिस्तान में लगभग एक-चौथाई।

ऊर्जा क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • जलविज्ञान संबंधी परिवर्तनशीलता: जलधाराओं के प्रवाह में बदलाव और मौसमी परिवर्तन, जलविद्युत उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
  • चरम घटनाएँ: हिमनद झीलों के फटने से आने वाली अत्यधिक गंभीर बाढ़ मौजूदा और नियोजित जलविद्युत परियोजनाओं के लिए बड़ा जोखिम उत्पन्न करती हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की भेद्यता: जलवायु-जनित क्षति, नवीकरणीय परियोजनाओं में आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों को एकीकृत करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

नवीकरणीय ऊर्जा विकास में बाधाएँ

  • वित्तीय बाधाएँ: उच्च पूँजीगत लागत और सीमित सार्वजनिक वित्त प्रगति को बाधित करते हैं।
  • निवेश एवं प्रौद्योगिकी: निजी निवेश आकर्षित करने में कठिनाई; तकनीकी विशेषज्ञता और अनुसंधान एवं विकास निवेश का अभाव।
  • नीतिगत कमियाँ: नए नियामक ढाँचों, भूमि की उपलब्धता, संचालन संबंधी ज्ञान और स्वास्थ्य प्रभावों पर विचार की आवश्यकता।
  • सामाजिक एवं पारिस्थितिकी चिंताएँ: बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं से विस्थापन, जैव विविधता की हानि और जल संघर्ष का खतरा होता है।

क्षेत्रीय सहयोग और अवसर

  • अवसंरचना एवं कौशल: SAARC ऊर्जा केंद्र और BIMSTEC ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन के माध्यम से अवसंरचना में निवेश और दक्षिण-दक्षिण प्रौद्योगिकी एवं कौशल आदान-प्रदान।
  • नवीकरणीय ऊर्जा व्यापार: सहयोग ऊर्जा व्यापार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, हरित विकास और रोजगार सृजन को सक्षम बनाता है।
  • बहुक्षेत्रीय लाभ: आपदा जोखिम न्यूनीकरण, कृषि उत्पादकता, औद्योगिक विकास, बेहतर जल नौवहन और सुदृढ़ कृषि व्यापार को बढ़ावा देता है।
  • सामरिक लाभ: हरित आर्थिक विकास को गति देने और उत्सर्जन-न्यूनीकरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत और चीन की स्वच्छ ऊर्जा क्षमताओं का लाभ उठाता है।

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