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महिलाओं की कार्यबल में भूमिका तथा व्यावसायिक और घरेलू कार्यों का दुहरा बोझ

Lokesh Pal September 09, 2025 05:15 27 0

संदर्भ:

महिलाओं के नेतृत्व में विकास और नारी शक्ति जैसे नारों के बावजूद, घरेलू वास्तविकताएँ – हिंसा, अवैतनिक कार्य और प्रतिगामी दृष्टिकोण – बनी हुई हैं, हाल ही में बड़े परिवारों के लिए किए गए समर्थन ने महिलाओं को चुनने की स्वतंत्रता की बजाय सभ्यतागत अस्तित्व के साधन तक सीमित कर दिया है

घरेलू हिंसा की समस्या:

  • दहेज़ मृत्यु का स्तर: दहेज़ संबंधी हिंसा के कारण प्रति वर्ष लगभग 7,000 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है, फिर भी किसी प्रकार को कोई सार्वजनिक आक्रोश या विरोध नहीं होता।
  • अंतरंग साथी हिंसा की व्यापकता: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 से पता चलता है, कि 30% महिलाएँ साथी हिंसा का सामना करती हैं, जिनमें से केवल 14% ही पुलिस को रिपोर्ट करती हैं।
  • पंजीकृत अपराधों में असमानता: महिलाओं के विरुद्ध एक तिहाई अपराध घरेलू हिंसा से संबंधित हैं।
  • नेताओं की चुप्पी: राजनीतिक नेता अंतरधार्मिक संबंधों की निंदा करते हैं, लेकिन घरों के भीतर होने वाली हिंसा पर बात करने से बचते हैं।

एक अकथनीय मौन:

  • सुधारों का ऐतिहासिक विरोध: मनुवादी शक्तियों ने तलाक के अधिकार देने और जाति-आधारित विवाह नियमों को कमजोर करने के लिए अंबेडकर के ‘हिंदू कोड बिल’ का विरोध किया।
  • समायोजन हेतु सांस्कृतिक दबाव: महिलाओं को धार्मिक विवाह के बहाने हिंसक विवाह में बने रहने के लिए बाध्य किया जाता है।
  • कानूनी सुरक्षा उपायों की कमजोर प्रवृत्ति: घरेलू हिंसा कानूनों को ‘दुरुपयोग’ का हवाला देकर कमजोर करने के प्रयास चल रहे हैं।
  • वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का विरोध: सरकार का तर्क है, कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना भारतीय संस्कृति और विवाह के विरुद्ध है।

महिलाओं का कार्य और समय उपयोग सर्वेक्षण, 2024:

  • सवेतन कार्य में भागीदारी: केवल 25% महिलाएँ (15-59 वर्ष की आयु) रोज़गार-संबंधी गतिविधियों में लगी हैं तथा प्रतिदिन पाँच घंटे कार्य करती हैं।
  • पारिवारिक उद्यमों में भूमिका: लगभग 23% महिलाएँ प्रतिदिन दो घंटे से भी कम समय तक पारिवारिक उद्यमों में योगदान देती हैं।
  • पुरुषों की उच्चतर भागीदारी: 75% पुरुष औसतन प्रतिदिन आठ घंटे रोजगार में लगे रहते हैं तथा पारिवारिक उद्यमों में उनका योगदान कम होता है।

महिलाओं का अवैतनिक कार्य बोझ:

  • घरेलू सेवाएँ: 93% महिलाएँ प्रतिदिन खाना पकाने, सफाई और घरेलू कामों में सात घंटे बिताती हैं।
  • अवैतनिक देखभाल: 41% महिलाएँ देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों पर ढाई घंटे खर्च करती हैं।
  • पुरुषों का नगण्य योगदान: 70% पुरुष कोई घरेलू कार्य नहीं करते, जबकि जो करते हैं वे प्रतिदिन 90 मिनट से भी कम समय व्यतीत करते हैं।
  • समग्र लैंगिक अंतर: औसतन, पुरुष घरेलू कार्यों में केवल 26 मिनट और देखभाल में 16 मिनट का योगदान देते हैं।

असमान अवकाश और आराम:

  • कुल कार्यभार: महिलाएँ, भुगतान और अवैतनिक श्रेणियों में पुरुषों की तुलना में अधिक घंटे कार्य करती हैं।
  • आराम और अवकाश में कमी: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में खाने, सोने और अवकाश में कम समय बिताती हैं, जिसके कारण महिलाओं के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • समय की कमी: भुगतान किए गए कार्य और अवैतनिक देखभाल जिम्मेदारियों के दोहरे बोझ के कारण विवेकाधीन समय की दीर्घकालिक कमी, जिससे आराम, अवकाश या व्यक्तिगत विकास के लिए बहुत कम संभावना बचती है।
  • जाति और वर्ग आधारित आयाम: अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति श्रमिक वर्ग की महिलाओं पर उच्च जाति की महिलाओं की तुलना में अधिक कार्यभार होता है।

समय के उपयोग पर सरकारी प्रयास:

  • विकृत प्रस्तुति: सरकार ने संतुलित पारिवारिक संरचना के प्रमाण के रूप में पुरुषों के छोटे योगदान को उजागर किया।
  • असमानता का महिमामंडन: प्रेस सूचना ब्यूरो ने महिलाओं पर पड़ने वाले तिहरे बोझ को भारतीय सामाजिक परिदृश्य का हिस्सा बताया।
  • नीति विस्तार: आँगनवाड़ी, आशा और मध्याह्न भोजन जैसी योजनाओं में देखभाल कार्य को स्वैच्छिक माना जाता है, इसके लिए कम वेतन मिलता है और इसे सरकारी रोजगार के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है।

महिलाओं के काम का आर्थिक अवमूल्यन:

  • सकल घरेलू उत्पाद में योगदान: एसबीआई ने अनुमान लगाया है, कि महिलाओं का अवैतनिक कार्य सकल घरेलू उत्पाद का 7% (वार्षिक ₹22.5 लाख करोड़) है।
  • श्रमबल में अदृश्य सब्सिडी: महिलाओं के अवैतनिक कार्य के कारण श्रम लागत और न्यूनतम मजदूरी कम रहती है।
  • श्रम का सामाजिक पुनरुत्पादन: घरेलू कार्य श्रमिकों की दैनिक जीविका सुनिश्चित करता है, फिर भी श्रमिक नीतियों में इसे मान्यता नहीं दी जाती है।

आगे की राह:

  • महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की समाप्ति: सांस्कृतिक, सामाजिक और नीतिगत सुधारों से घरेलू हिंसा का उन्मूलन होना चाहिए।
  • काम करने का समान अधिकार: पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन वाले समान श्रमिक के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
  • राज्य समर्थित देखभाल: सार्वभौमिक बाल और वृद्ध देखभाल सेवाएँ राज्य द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।
  • गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक सेवाएँ: महिलाओं के बोझ को कम करने के लिए सुलभ स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा आवश्यक है।
  • साझा घरेलू उत्तरदायित्व: सामाजिक मानदंडों को पुरुषों को घरेलू तथा देखभाल संबंधी कार्यों को समान रूप से साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • योजना कर्मियों के लिए न्याय: आँगनवाड़ी, आशा और मध्याह्न भोजन कर्मियों को न्यूनतम वेतन, लाभ तथा सरकारी कर्मचारी के रूप में मान्यता प्राप्त होनी चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

चर्चा कीजिए, कि भारत में ‘घरेलू क्षेत्र’ की उपेक्षा और महिलाओं के अवैतनिक कार्यों का कम मूल्यांकन किस प्रकार लैंगिक असमानता को बढ़ावा देता है। लैंगिक न्याय और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु कौन-से उपाय आवश्यक हैं?

(10 अंक, 150 शब्द)

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