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जलवायु-लचीले भारत का शहरी विकास

Lokesh Pal September 10, 2025 02:32 30 0

संदर्भ

भारी मानसून के कारण पंजाब में हाल ही में आई शहरी बाढ़, जीवन, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए जलवायु-प्रतिरोधी शहरों के निर्माण की तात्कालिकता को उजागर करती है।

  • अगले 25 वर्षों में शहरी जनसंख्या 1 अरब तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे कुछ देशों से भी बड़े महानगर बनेंगे।

वर्तमान शहरी सुभेद्यता (Current Urban Vulnerabilities)

  • बाढ़: जैसे-जैसे शहरों का विस्तार होगा, भारत की दो-तिहाई से अधिक शहरी आबादी सतही बाढ़ की चपेट में आ जाएगी, जिससे वर्ष 2030 तक 5 अरब डॉलर और वर्ष 2070 तक 30 अरब डॉलर का अनुमानित नुकसान होगा।
  • अत्यधिक गर्मी: नगरीय ऊष्मन द्वीप, रात्रि के तापमान में 3-5°C की वृद्धि करते हैं, जिससे मृत्यु दर में वृद्धि और उत्पादकता कम होती है।
  • परिवहन व्यवधान: एक-चौथाई सड़कें बाढ़-प्रवण हैं, जहाँ सीमित जलभराव भी आवाजाही को बाधित कर देता है।
  • आवास जोखिम: वर्ष 2070 तक आधे से अधिक आवासों का निर्माण अभी शेष है; यदि इनका डिजाइन त्रुटिपूर्ण रहा तो यह भावी शहरी ढाँचों में गंभीर कमजोरियों को जन्म दे सकता है।
  • सेवाओं में कमी: अपर्याप्त अपशिष्ट, जल और ऊर्जा प्रणालियाँ बाढ़, प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी तनावों को और बदतर बना देती हैं।

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शहरीकरण (Urbanization) के बारे में 

  • परिभाषा: शहरीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसके द्वारा जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित होती है, जिससे जनसंख्या, बुनियादी ढाँचे और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में कस्बों एवं शहरों का विकास होता है।
  • भारत में शहरीकरण के प्रेरक
    • उद्योग और सेवाओं में आर्थिक अवसर।
    • कृषि क्षेत्र में संकट के कारण ग्रामीण-शहरी प्रवास।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास (परिवहन, आवास, IT केंद्र)।
    • ग्रामीण क्षेत्रों का शहरी क्षेत्रों में प्रशासनिक पुनर्वर्गीकरण।
  • रुझान (भारत)
    • भारत की शहरी जनसंख्या: लगभग 35% (वर्ष 2021, विश्व बैंक); वर्ष 2050 तक लगभग 50% तक पहुँचने का अनुमान।
    • महानगर (1 करोड़ से अधिक): दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, कोलकाता, चेन्नई।
    • शहरी विस्तार में वृद्धि हो रही है, जिससे अर्द्ध-शहरी चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।

जलवायु-लचीले शहरों की आवश्यकता

  • तीव्र शहरीकरण: भारत की शहरी जनसंख्या 48 करोड़ (वर्ष 2020) से बढ़कर लगभग 95 करोड़ (वर्ष 2050) हो जाने का अनुमान है।
    • वर्ष 2070 तक आधे शहरी बुनियादी ढाँचे का निर्माण अभी बाकी है, इसलिए यह योजना में अनुकूलन को शामिल करने का सही समय है। लचीलेपन के बिना, भविष्य के शहर आपदाओं और असमानता के केंद्र बनने का जोखिम उठाते हैं।
    • वर्ष 2070 तक, भारत को बढ़ती आबादी का समर्थन करने के लिए 14.4 करोड़ नए घर बनाने होंगे, जो वर्तमान संख्या से दोगुने से भी अधिक हैं, साथ ही परिवहन और नगरपालिका सेवाएँ भी बढ़ानी होंगी।
  • जलवायु जोखिम में वृद्धि: शहरों को बाढ़, लू, चक्रवात और समुद्र-स्तर में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
    • चेन्नई बाढ़ (वर्ष 2015) और पंजाब बाढ़ (वर्ष 2023) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे बिना तैयारी के शहर तनाव के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हो जाते हैं। IPCC ने चेतावनी दी है कि भारतीय शहर वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील शहरों में से हैं।
  • आर्थिक अनिवार्यताएँ: जलवायु संबंधी शहरी आपदाओं के कारण भारत को प्रतिवर्ष अरबों डॉलर का नुकसान होता है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि यदि सहनशीलता की उपेक्षा की गई तो वर्ष 2030 तक तापीय आपदा के कारण 3.4 करोड़ नौकरियाँ समाप्त हो सकती हैं। जलवायु-रोधी बुनियादी ढाँचा, पुनर्प्राप्ति लागत को कम करता है, विदेशी निवेश को आकर्षित करता है और व्यावसायिक निरंतरता सुनिश्चित करता है।
    • भारत को 30 वर्षों में जलवायु-रोधी शहरी बुनियादी ढाँचे के लिए 10.95 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है, यह एक ऐसा निवेश है, जो अरबों डॉलर की बचत कर सकता है, नौकरियाँ उत्पन्न कर सकता है, नवाचार को बढ़ावा दे सकता है और राष्ट्रीय क्षमता को उजागर कर सकता है।
  • सामाजिक न्याय और समता: लगभग 35% शहरी निवासी झुग्गी-झोपड़ियों या अनौपचारिक बस्तियों में रहते हैं, जो प्रायः असुरक्षित क्षेत्रों में होते हैं।
    • सुभेद्य समूह (महिलाएँ, बच्चे, बुजुर्ग और प्रवासी) असमानुपातिक जोखिमों का सामना करते हैं। लचीले शहर इन समूहों की रक्षा करते हैं, समावेशी विकास सुनिश्चित करते हैं और जलवायु-जनित गरीबी के जाल को रोक सकते हैं।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: आर्द्रभूमि, बाढ़ के मैदानों और हरित आवरण पर अतिक्रमण ने शहरों को अत्यधिक असुरक्षित बना दिया है।
    • लचीला योजना तंत्र जल अवशोषण, कार्बन पृथक्करण और तापमान नियंत्रण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की सुरक्षा करती है। यह नवीकरणीय ऊर्जा, अपशिष्ट से ऊर्जा प्रणालियों और सतत् गतिशीलता को भी बढ़ावा देती है, जिससे जलवायु जोखिमों के अनुकूल होते हुए उत्सर्जन में कमी आती है।
  • शासन और संस्थागत सुदृढ़ीकरण: कमजोर शहरी स्थानीय निकाय (ULB) और खंडित शासन व्यवस्था तैयारी को सीमित करती है।
    • लचीलापन बनाने के लिए संस्थागत सुधार, वित्तीय हस्तांतरण और एकीकृत योजना की आवश्यकता है, जिससे शहरों की शासन क्षमता में वृद्धि हो।
  • वैश्विक और राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: जलवायु-सहिष्णु शहर भारत की पंचामृत प्रतिबद्धताओं (वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा; वर्ष 2070 तक नेट जीरो) के अनुरूप हैं।
    • वे सतत् विकास लक्ष्य 11 (सतत् शहर और समुदाय) और सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) को आगे बढ़ाते हैं, साथ ही पेरिस समझौते में भारत की भूमिका को मजबूत करते हैं।

जलवायु-अनुकूल शहरों का महत्त्व

  • जीवन और आजीविका की सुरक्षा: जलवायु-अनुकूल शहर भीषण बाढ़, चक्रवात, लू और प्रदूषण संबंधी खतरों से होने वाली मौतों को कम करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, अहमदाबाद हीट एक्शन प्लान ने पूर्व चेतावनी और जागरूकता के माध्यम से हीटवेव से होने वाली मौतों में उल्लेखनीय कमी लाई।
    • यह आवास, भोजन और आय की निरंतरता सुनिश्चित करके शहरी गरीबों, प्रवासियों और अनौपचारिक श्रमिकों की आजीविका को भी सुरक्षित करता है, जिससे विस्थापन और सामाजिक अशांति को रोका जा सकता है।
  • आर्थिक स्थिरता और विकास: स्टॉर्म वाटर निकासी और उन्नत परिवहन गलियारों जैसे लचीले बुनियादी ढाँचे आपदा से होने वाले नुकसान को कम करते हैं।
    • श्रमिकों को गर्मी के तनाव से बचाने से उत्पादकता स्थिर होती है, जबकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने चेतावनी दी है कि ऐसा न करने पर वर्ष 2030 तक 3.4 करोड़ नौकरियाँ समाप्त हो जाएँगी।
    • विश्वसनीय, जलवायु-सुरक्षित बुनियादी ढाँचा वैश्विक निवेश को आकर्षित करता है, जिससे आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की भूमिका मजबूत होती है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: लचीले शहर आर्द्रभूमि, मैंग्रोव, झीलों और हरित पट्टियों का संरक्षण करते हैं, जो बाढ़ और तापमान को नियंत्रित करते हैं।
    • पूर्वी कोलकाता आर्द्रभूमि की पुनर्स्थापना के बाद बाढ़ अवशोषण क्षमता में सुधार हुआ है। ये आर्द्रभूमियाँ नवीकरणीय ऊर्जा, हरित सार्वजनिक परिवहन और ऊर्जा-कुशल आवास को भी बढ़ावा देती हैं, उत्सर्जन को कम करती हैं और शहरी स्वास्थ्य में सुधार लाती हैं।
  • सामाजिक समानता और समावेशन: जलवायु संबंधी तनाव झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और प्रवासियों पर असमान रूप से प्रभाव डालते हैं।
    • जलवायु-अनुकूल योजना समावेशी आवास, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा जाल सुनिश्चित करती है। अनुकूलन को PMAY-शहरी और AMRUT जैसी कल्याणकारी योजनाओं से जोड़कर, जलवायु निवेश को बढ़ाया जा सकता है और यह जलवायु शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि को रोकता है।
  • शासन और संस्थागत सुदृढ़ीकरण: लचीलेपन के लिए मजबूत शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULBs) की आवश्यकता होती है, जिनके पास जोनिंग, भवन संहिता और आपदा योजनाओं को लागू करने का अधिकार हो।
    • एकीकृत नियोजन शासन संबंधी कमियों को दूर करता है, जैसा कि मुंबई जलवायु कार्य योजना में देखा गया है।
    • प्रभावी जलवायु प्रबंधन नागरिकों का विश्वास बढ़ाता है और लोकतांत्रिक वैधता को मजबूत करता है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताओं और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को पूरा करना: लचीले शहर भारत के पंचामृत लक्ष्यों का समर्थन करते हैं, सतत् विकास लक्ष्य 11 और सतत् विकास लक्ष्य 13 को पूरा करते हैं, तथा पेरिस समझौते को सुदृढ़ करते हैं, जिससे जलवायु वित्त एवं न्याय के लिए भारत का पक्ष मजबूत होता है।
  • भविष्य-सुरक्षित शहरीकरण: भारत में वर्ष 2070 तक आधे आवास का निर्माण अभी भी बाकी हैं, ऐसे में यह शुरुआत से ही स्थिरता को आत्मसात् करने का अवसर प्रदान करता है।
    • खराब जल निकासी या ऊष्मा द्वीपों जैसी विफलताओं से बचने से यह सुनिश्चित होता है कि शहर वर्ष 2050 तक लगभग 95 करोड़ शहरी निवासियों का भरण-पोषण कर सकें।

जलवायु-लचीले शहरों के निर्माण में प्रमुख चुनौतियाँ

  • कमजोर शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Bodies- ULBs)
    • कुशल कर्मचारियों की कमी: अधिकांश शहरी स्थानीय निकायों में प्रशिक्षित शहरी योजनाकारों, पर्यावरण इंजीनियरों और आपदा विशेषज्ञों का अभाव है।
      • उदाहरण के लिए, भारत में लगभग 4,000 शहरी स्थानीय निकायों में से बहुत कम के पास आंतरिक GIS विशेषज्ञ या जलवायु विश्लेषक हैं।
    • राज्य सरकारों पर निर्भरता: नगरपालिकाएँ परियोजनाओं के लिए राज्य की मंजूरी पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं, जिससे जलवायु-अनुकूल कार्रवाई धीमी हो जाती है।
    • क्षमता की कमी: अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) और स्मार्ट सिटी मिशन के तहत प्रशिक्षण मॉड्यूल शुरू हो गए हैं, लेकिन अभी भी सीमित हैं।
    • परिणाम: अपर्याप्त क्षमता भवन संहिताओं, जोनिंग नियमों और जलवायु जोखिम आकलन के प्रवर्तन में बाधा डालती है।
  • खंडित शासन (Fragmented Governance)
    • संस्थागत अतिव्यापन: राज्य के शहरी विभाग, नगर निगम, विकास प्राधिकरण और अर्द्ध-सरकारी एजेंसियाँ (जैसे- जल बोर्ड, परिवहन निगम) प्रायः परस्पर विरोधी अधिदेशों के साथ कार्य करती हैं।
    • विलंबित कार्रवाई: बाढ़ के दौरान, कई प्राधिकरण ‘स्टॉर्म वाटर’ प्रबंधन के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं, जिससे स्थानांतरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, उदाहरण के लिए, वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़।
    • कमजोर जवाबदेही: शहरी अनुकूलन के लिए एक भी नोडल प्राधिकरण न होने के कारण कार्यान्वयन कमजोर हो जाता है।
    • परिणाम: असंबद्ध शासन, दक्षता को कम करता है, संसाधनों की बर्बादी करता है और दीर्घकालिक योजना को कमजोर करता है।
  • वित्तीय बाधाएँ
    • कम राजस्व आधार: नगरपालिकाओं का राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का 0.75-1% है, जो वैश्विक मानक 3-4% से काफी कम है। अधिकांश शहरों में संपत्ति कर संग्रह दक्षता 40% से कम बनी हुई है।
    • सीमित जलवायु वित्त: हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund-GCF) जैसे अंतरराष्ट्रीय कोषों तक पहुँचने के लिए तकनीकी क्षमता की आवश्यकता होती है, जिसका अधिकांश शहरी स्थानीय निकायों में अभाव है।
    • बॉन्ड और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का कम उपयोग: कुछ ही शहरों (जैसे– पुणे, इंदौर) ने नगरपालिका बॉण्ड या हरित बॉण्ड का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।
    • परिणाम: स्थायी वित्त के बिना, शहरी स्थानीय निकायों को अल्पकालिक प्रतिक्रियाशील व्यय पर निर्भर रहकर, लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश करने में कठिनाई होती है।
  • अनियोजित विकास
    • प्राकृतिक बफर जोन का अतिक्रमण: आर्द्रभूमि, झीलों और बाढ़ के मैदानों पर तेजी से हो रहा निर्माण, प्राकृतिक जल निकासी को बाधित करता है। उदाहरण के लिए, बंगलूरू की आर्द्रभूमि का क्षरण।
    • अव्यवस्थित शहरीकरण: इस योजना के स्थान पर रियल एस्टेट से प्रेरित विस्तार, हीट आइलैंड, यातायात में वृद्धि और सेवा घाटे का कारण बनता है।
    • कमजोर प्रवर्तन: भवन संहिता का बड़े पैमाने पर उल्लंघन, अवैध कॉलोनियाँ और कमजोर भूमि-उपयोग नियमन जोखिमों को बढ़ाते हैं।
    • परिणाम: शहर अपने निर्माण तंत्र में ही जलवायु जोखिमों को समाहित कर लेते हैं, जिससे वे संरचनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं।
  • सामाजिक असमानता
    • झुग्गी-झोपड़ियों की संवेदनशीलता: भारत की 35% से अधिक शहरी आबादी अनौपचारिक बस्तियों में रहती है, जो प्रायः नदी-तटों, नालों या निचले इलाकों में स्थित होती हैं।
    • प्रवासी और अनौपचारिक कामगार: दैनिक मजदूरी पर निर्भर और सामाजिक सुरक्षा के अभाव में; चरम गर्मी या बाढ़ सीधे तौर पर आजीविका के लिए खतरा बन जाती है।
    • स्वास्थ्य असमानताएँ: स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ जल और स्वच्छता तक सीमित पहुँच आपदा के परिणामों को और गंभीर बना देती है।
    • परिणाम: जलवायु जोखिम शहरी गरीबों पर असमान रूप से बोझ डालते हैं, असमानता को बढ़ाते हैं और गरीबी-आपदा चक्र को मजबूत करते हैं।

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वैश्विक समस्या के रूप में जलवायु परिवर्तन और भारत पर इसका प्रभाव

  • समस्या की वैश्विक प्रकृति: जलवायु परिवर्तन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और पारिस्थितिकी असंतुलन के कारण उत्पन्न एक साझा संकट है। यह समुद्र स्तर में वृद्धि, चरम मौसम की घटनाओं, खाद्य असुरक्षा और जैव विविधता के नुकसान के माध्यम से सभी देशों को प्रभावित करता है।
  • भारत की कमजोरियाँ: भारत जलवायु के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील देशों में से एक है, जो लगातार हीट वेव, चक्रवातों, बाढ़ और सूखे का सामना करता है। इसकी विशाल जनसंख्या और कृषि पर निर्भरता जोखिम को बढ़ा देती है।

हिमालयी राज्यों पर प्रभाव

  • हिमनद पिघलना: हिमालय के हिमनदों के तेजी से पिघलने से गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र नदियों पर निर्भर लाखों लोगों की जल सुरक्षा खतरे में है।
  • भूस्खलन और बाढ़: संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र भूस्खलन, अचानक बाढ़ और पारिस्थितिकी तंत्र क्षरण का सामना करते हैं, जैसा कि उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश में देखा गया है।

तटीय राज्यों पर प्रभाव

  • समुद्र-स्तर में वृद्धि: ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्य बढ़ते समुद्र-स्तर, लवणता के अतिक्रमण और तटीय अपरदन का सामना कर रहे हैं।
  • चक्रवात: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बार-बार आने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवात बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचाते हैं और समुदायों को विस्थापित करते हैं।

जलवायु- अनुकूल शहरों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं हेतु वैश्विक पहल

  • पेरिस समझौता (2015): जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के अंतर्गत कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि।
    • इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे रखना और इसे 1.5°C तक सीमित रखने के प्रयास करना है।
    • विशेष रूप से संवेदनशील शहरी क्षेत्रों के लिए अनुकूलन, शमन और जलवायु वित्त पर देता है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030): जापान के सेंडाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया।
    • कमजोरियों को कम करने, पूर्व चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने और शहरी आपदा तैयारियों को बढ़ाने को प्राथमिकता देता है।
  • नया शहरी एजेंडा (New Urban Agenda) (वर्ष 2016, क्विटो): आवास और सतत् शहरी विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Housing and Sustainable Urban Development) (हैबिटेट III) में अपनाया गया।
    • एकीकृत योजना और शासन के माध्यम से सतत्, सघन, समावेशी और लचीले शहरों को बढ़ावा देता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDGs, 2015-2030)
    • सतत् विकास लक्ष्य 11 (SDG 11): शहरों को समावेशी, सुरक्षित, लचीला और सतत् बनाना।
    • सतत् विकास लक्ष्य 13 (SDG 13): जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई।
  • 100 लचीले शहर (100 Resilient Cities- 100RC) पहल (2013-2019)
    • रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा 100 शहरों को लचीलापन रणनीतियाँ बनाने में मदद करने के लिए शुरू किया गया।
    • न्यूयॉर्क सिटी (संयुक्त राज्य अमेरिका), रॉटरडैम (नीदरलैंड), मेडेलिन (कोलंबिया) जैसे शहरों को सहायता प्रदान की गई।
  • C40 शहर जलवायु नेतृत्व समूह: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मिलकर कार्य करने वाले लगभग 100 प्रमुख वैश्विक शहरों का एक नेटवर्क
    • निम्न-कार्बन विकास, सुदृढ़ अवसंरचना और सतत् शहरी गतिशीलता को बढ़ावा देता है।
  • स्थानीय पर्यावरण पहलों के लिए अंतरराष्ट्रीय परिषद (International Council for Local Environmental Initiatives- ICLEI)- स्थायित्त्व के लिए स्थानीय सरकारें: 2,500 से अधिक शहरों, कस्बों और क्षेत्रों का वैश्विक नेटवर्क।
    • सतत् शहरी विकास, जलवायु अनुकूलन और सुदृढ़ता रणनीतियों पर केंद्रित है।

जलवायु-अनुकूल शहरों के लिए विश्व की सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • रॉटरडैम, नीदरलैंड – ‘वाटर प्लाजा’ और ‘अनुकूलित शहरी योजना’: इसके अंतर्गत‘वाटर प्लाजा’ (Water Plazas) बनाए गए, जो बाढ़ के दौरान अतिरिक्त वर्षा जल का भंडारण करते हैं और शुष्क मौसम में सार्वजनिक पार्क के रूप में कार्य करते हैं।
    • बढ़ते समुद्र स्तर को नियंत्रित करने के लिए अनुकूलित डेल्टा प्रबंधन अपनाया गया।
  • कोपेनहेगन, डेनमार्क – क्लाउडबर्स्ट प्रबंधन योजना: नील-हरित गलियारे, पारगम्य फुटपाथ और भूमिगत स्टॉर्म वाटर सुरंगों की शुरुआत की गई।
    • वर्ष 2025 तक दुनिया की पहली कार्बन-तटस्थ राजधानी बनने का लक्ष्य स्थापित करना।
  • सिंगापुर – शहरी हरियाली और स्मार्ट जल प्रबंधन: सक्रिय, सुंदर, स्वच्छ (Active, Beautiful, Clean- ABC) जल कार्यक्रम जल निकायों को शहरी परिदृश्य में एकीकृत करता है।
    • ऊर्ध्वाधर उद्यान, छतों पर हरियाली और विस्तृत शहरी वन नगरीय ऊष्मण द्वीप प्रभाव को कम करते हैं।
    • न्यूवाटर परियोजना जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपचारित अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण करती है।
  • टोक्यो, जापान – हीट आइलैंड शमन और आपदा तैयारी: भूकंपरोधी बुनियादी ढाँचे, व्यापक पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ और शीतल छत तकनीकें लागू की गईं।
    • बड़े पैमाने पर शहरी हरित परियोजनाएँ शहर के तापमान को कम करने में मदद करती हैं।
  • न्यूयॉर्क शहर, संयुक्त राज्य अमेरिका – PlaNYC और लचीलापन योजनाएँ: हरिकेन सैंडी (2012) के बाद, शहर ने तटीय अवरोधों, लचीले पॉवर ग्रिड और बाढ़-रोधी बुनियादी ढाँचे में निवेश किया।
    • 100 लचीले शहरों की पहल का हिस्सा।
  • मेडेलिन, कोलंबिया – सामाजिक शहरीकरण और केबल कार: समावेशी शहरी परिवहन (केबल कार), सार्वजनिक पार्क और हरित पट्टी को अपनाया गया।
    • पर्वतीय मलिन बस्तियों में सेवा वितरण और पहुँच में सुधार करके लचीलापन बढ़ाया गया।
  • शंघाई, चीन – स्पंज सिटी कार्यक्रम: वर्षा जल को अवशोषित करने के लिए पारगम्य फुटपाथ, आर्द्रभूमि और हरित छतों का उपयोग किया गया।
  • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक, 80% शहरी क्षेत्र 70% वर्षा जल का पुन: उपयोग करने में सक्षम होने चाहिए।
  • पेरिस, फ्राँस – जलवायु कार्य योजना: वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य।
    • हरित गलियारों, साइकिलिंग अवसंरचना का विस्तार, और ऊर्जा दक्षता के लिए भवनों का नवीनीकरण।

जलवायु-अनुकूल शहरों के लिए भारत की पहल

  • नीतिगत कार्रवाई की रूपरेखा
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change- NAPCC) 2008: आठ राष्ट्रीय मिशनों वाली एक व्यापक नीति, जिसमें भवनों में ऊर्जा दक्षता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और शहरी परिवहन पर केंद्रित राष्ट्रीय सतत् आवास मिशन भी शामिल है।
    • जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाएँ (State Action Plans on Climate Change- SAPCCs): स्थानीय आवश्यकताओं को NAPCC के उद्देश्यों के साथ संरेखित करने वाली राज्य-स्तरीय रूपरेखाएँ।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund on Climate Change- NAFCC), 2015): शहरी लचीलेपन सहित जलवायु अनुकूलन से संबंधित परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • शहरी विकास मिशन (Urban Development Missions)
    • स्मार्ट सिटी मिशन (Smart Cities Mission) (2015): ऊर्जा-कुशल आवास, स्मार्ट परिवहन और एकीकृत शहरी नियोजन सहित सतत् और लचीले शहरी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देता है।
    • अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation) (अमृत, 2015): लचीलापन बढ़ाने के लिए शहरी जल आपूर्ति, सीवरेज नेटवर्क और हरित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY- शहरी, 2015): आपदा-रोधी सुविधाओं को एकीकृत करने की संभावना के साथ किफायती आवास प्रदान करता है।
  • जलवायु-विशिष्ट मिशन और योजनाएँ
    • राष्ट्रीय सतत् आवास मिशन (National Mission on Sustainable Habitat): हरित भवनों, ऊर्जा दक्षता, अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों और सतत् परिवहन को प्रोत्साहित करता है।
    • राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना (National Electric Mobility Mission Plan- NEMMP), 2013 और हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अभिग्रहण एवं विनिर्माण (फेम-II, 2019): उत्सर्जन में कमी लाने और शहरी वायु प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना।
    • राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक बस कार्यक्रम (2022): शहरी परिवहन लचीलेपन के लिए इलेक्ट्रिक बस के समूहीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • आपदा जोखिम प्रबंधन
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP, 2016, अद्यतन 2019): शहरों में आपदा तैयारी और लचीलेपन के लिए एक समग्र ढाँचा प्रदान करती है।
    • हीट एक्शन प्लान (Heat Action Plans- HAP): पहली बार अहमदाबाद (2013) में शुरू किया गया और सभी राज्यों में लागू किया गया; इसमें पूर्व चेतावनी, जन जागरूकता और शीतलन केंद्र शामिल हैं।
    • तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone- CRZ) नियम: चक्रवातों और समुद्र-स्तर में वृद्धि से बचाव के लिए संवेदनशील तटीय क्षेत्रों में निर्माण कार्य प्रतिबंधित करना।
  • शहरी पारिस्थितिकी और पर्यावरण
    • राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन और सोलर रूफटॉप कार्यक्रम: शहरी बुनियादी ढाँचे में नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करना।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga-NMCG): नदी तटीय शहरों में लचीलापन बढ़ाने के लिए नदी पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार।
    • नगर वन योजना (2020) के अंतर्गत शहरी वानिकी: नगरीय ऊष्मण द्वीप प्रभाव को कम करने के लिए शहरी वनों को बढ़ावा देना।
  • वित्त और प्रौद्योगिकी
    • ग्रीन बॉण्ड: पुणे और इंदौर जैसे शहरों द्वारा जलवायु-अनुकूल शहरी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए जारी किए जाते हैं।
    • राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक वाहन नीति और प्रोत्साहन: कम उत्सर्जन वाले परिवहन में निवेश को प्रोत्साहित करते हैं।
    • नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स (National Institute of Urban Affairs- NIUA) के अंतर्गत भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का मानचित्रण: जोखिम मानचित्रण और स्मार्ट योजना निर्माण में सहायता करता है।

जलवायु-अनुकूल शहरों के लिए भारत बनाम वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

आयाम भारत की पहल वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ
शहरी नियोजन एवं आवास प्रधानमंत्री आवास योजना – शहरी (Pradhan Mantri Awas Yojana – Urban – PMAY-Urban) किफायती आवास को बढ़ावा देती है; स्मार्ट सिटी मिशन डिजाइन में लचीलेपन को एकीकृत करता है; राष्ट्रीय भवन संहिता (National Building Code – NBC) में आपदा संबंधी प्रावधान शामिल हैं। नया शहरी एजेंडा (संयुक्त राष्ट्र, 2016) सतत् और समावेशी शहरों को बढ़ावा देता है; मेडेलिन, कोलंबिया हाशिए पर स्थित समुदायों को एकीकृत करने के लिए सामाजिक शहरीकरण और केबल कारों का उपयोग करता है।
बाढ़ प्रबंधन आर्द्रभूमि पुनर्स्थापन (पूर्वी कोलकाता आर्द्रभूमि), कोलकाता बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल, चेन्नई की एकीकृत तूफान जल निकासी परियोजना। रॉटरडैम, नीदरलैंड: वाटर प्लाजा में अतिरिक्त जल संगृहीत किया जाता है; शंघाई, चीन: स्पंज सिटी कार्यक्रम जिसमें पारगम्य फुटपाथ, आर्द्रभूमि और हरित छतें शामिल हैं।
तापीय अनुकूलन अहमदाबाद हीट एक्शन प्लान (Heat Action Plan- HAP) को पूरे देश में लागू किया गया; राष्ट्रीय सतत् आवास मिशन शीतल छतों और हरित आवरण को बढ़ावा देता है। टोक्यो, जापान: कूल रूफ तकनीकें और शहरी हरियाली; सिंगापुर: वर्टिकल गार्डन, रूफटॉप हरियाली, और सक्रिय, सुंदर, स्वच्छ (Active, Beautiful, Clean- ABC) जल कार्यक्रम।
परिवहन लचीलापन दिल्ली मेट्रो बाढ़-रोधी सुविधाओं को एकीकृत करती है; FAME-II (हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तेजी से अपनाना और विनिर्माण) के तहत इलेक्ट्रिक बसों और गैर-मोटर चालित परिवहन को बढ़ावा देती है। कोपेनहेगन, डेनमार्क: नील-हरित गलियारों के साथ क्लाउडबर्स्ट प्रबंधन योजना; पेरिस, फ्राँस: व्यापक साइकिलिंग अवसंरचना और हरित गलियारे।
नगरपालिका सेवाएँ इंदौर का अपशिष्ट पृथक्करण मॉडल (सर्वाधिक स्वच्छ शहर का पुरस्कार); कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत) जल और स्वच्छता में सुधार करता है। सिंगापुर: NEWater परियोजना अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण करती है; न्यूयॉर्क शहर, अमेरिका: तूफान सैंडी के बाद लचीले बिजली ग्रिड और बाढ़-रोधी सेवाओं में निवेश।
शासन और वित्त जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाएँ (State Action Plans on Climate Change- SAPCC); जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund on Climate Change- NAFCC); हरित बॉण्ड की शुरुआत (पुणे, इंदौर)। C40 सिटीज क्लाइमेट लीडरशिप ग्रुप ने 100 से अधिक शहरों को प्रथाओं को साझा करने में सक्षम बनाया; 100 रेसिलिएंट सिटीज इनिशिएटिव (रॉकफेलर फाउंडेशन) ने रणनीति और वित्तीय रूपरेखा प्रदान की।
प्रौद्योगिकी और डेटा भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems- GIS) आधारित जोनिंग, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स (National Institute of Urban Affairs- NIUA) शहरी लचीलापन अनुसंधान को बढ़ावा देता है; आपदा अलर्ट के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का शीघ्र उपयोग। रॉटरडैम अनुकूली डेल्टा प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है; सिंगापुर बाढ़ निगरानी और जल प्रबंधन के लिए इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things -IoT) सेंसर का उपयोग करता है; कोपेनहेगन AI के साथ पूर्वानुमानित जलवायु जोखिमों का मॉडल तैयार करता है।

आगे की राह

  • शहरी नियोजन और आवास
    • आपदा-प्रतिरोधी संहिताएँ: जलवायु-संवेदनशील भवन संहिताओं को लागू करना, जो भूकंप क्षेत्रों, बाढ़ के मैदानों और ताप-प्रतिरोधक क्षमता को ध्यान में रखना।
      • उदाहरण: राष्ट्रीय भवन संहिता (National Building Code- NBC) को सशक्त जलवायु एकीकरण की आवश्यकता है।
    • कॉम्पैक्ट सिटी डिजाइन: भूमि और परिवहन प्रणालियों पर दबाव कम करने के लिए मिश्रित भूमि उपयोग, ऊर्ध्वाधर आवास और पारगमन-उन्मुख विकास (Transit-Oriented Development- TOD) को बढ़ावा देना।
      • ग्रीन-ब्लू इन्फ्रास्ट्रक्चर: गर्मी और बाढ़ के विरुद्ध प्राकृतिक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करने के लिए पार्कों, शहरी वनों और जल निकायों का विस्तार करना।
  • बाढ़ प्रबंधन
    • तूफानी जल प्रणालियाँ: तीव्र वर्षा को प्रबंधित करने के लिए सेंसर और पंपिंग स्टेशनों वाली स्मार्ट जल निकासी प्रणालियों में अपग्रेड करना।
    • आर्द्रभूमि और नदी पुनरुद्धार: शहरी आर्द्रभूमि, झीलों और बाढ़ के मैदानों को प्राकृतिक स्पंज की तरह संरक्षित करना तथा बंगलूरू की झील पुनरुद्धार परियोजनाओं से प्रेरणा लेना।
    • बाढ़ पूर्वानुमान और अलर्ट: कोलकाता के वास्तविक समय बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल जैसी पूर्वानुमानित बाढ़ चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित करना ताकि समय रहते निकासी अलर्ट प्रदान किए जा सकें।
    • प्रकृति-आधारित समाधान: भूजल पुनर्भरण और जलभराव को कम करने के लिए पारगम्य फुटपाथ, बायोस्वेल और वर्षा उद्यान के रूप में स्थापित करना।
  • ताप लचीलापन
    • ताप कार्य योजनाएँ (HAPs): अहमदाबाद के HAP को देश भर में लागू करना और उसका विस्तार करना, जिसमें पूर्व चेतावनी, सार्वजनिक शीतलन केंद्र और जल कियोस्क शामिल होना।
    • हरित गलियारे: नगरीय ऊष्मण द्वीप प्रभाव को कम करने के लिए शहरी वृक्ष पट्टिका, छायादार फुटपाथ और छत पर उद्यान बनाना।
    • ठंडी छतें और भवन डिजाइन: आंतरिक भागों को ठंडा रखने के लिए परावर्तक पेंट, हवादार डिजाइन और पारंपरिक वास्तुकला तत्त्वों को बढ़ावा देना।
    • जल-संवेदनशील डिजाइन: सूक्ष्म जलवायु ताप स्तर को कम करने के लिए वर्षा जल संचयन और फव्वारों का विस्तार करना।
  • परिवहन लचीलापन
    • जोखिम-मानचित्रण: जलवायु-संवेदनशील सड़कों, रेल और मेट्रो लाइनों की पहचान के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (Use Geographic Information Systems- GIS) का उपयोग करना।
    • एलिवेटेड कॉरिडोर: बाढ़-रोधी फ्लाईओवर और मेट्रो ट्रैक का निर्माण बैकअप सिस्टम के साथ करना। उदाहरण: दिल्ली मेट्रो भूमिगत खंडों में बाढ़ सुरक्षा सुविधाएँ शामिल करती है।
    • मल्टी-मॉडल रेजिलिएशन: नेटवर्क (मेट्रो, बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (BRTS) और साइकिलिंग लेन) को प्रोत्साहित करना ताकि यदि एक सिस्टम विफल हो जाए, तो वैकल्पिक प्रणालियाँ कार्यात्मक बनी रहें।
    • सतत् गतिशीलता: उत्सर्जन और संवेदनशील ईंधन आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक बसों, साझा गतिशीलता और पैदल यात्री-अनुकूल डिजाइनों को बढ़ावा देना।
  • नगरपालिका सेवाएँ
    • अपशिष्ट प्रबंधन: स्रोत पर पृथक्करण, वैज्ञानिक लैंडफिल प्रबंधन और अपशिष्ट से ऊर्जा (Waste-To-Energy- WTE) संयंत्रों को अपनाना। उदाहरण: इंदौर का शून्य-अपशिष्ट मॉडल एक मानक स्थापित करता है।
    • जल आपूर्ति: पीने योग्य और पुनर्चक्रित जल के लिए दोहरी जल पाइपलाइन सुनिश्चित करना। तटीय शहरों में विलवणीकरण और भूजल पुनर्भरण परियोजनाओं को एकीकृत करना।
    • ऊर्जा प्रणालियाँ: आपदाओं के दौरान निर्बाध आपूर्ति के लिए वितरित नवीकरणीय ग्रिड (सौर छत, माइक्रो-ग्रिड) स्थापित करना।
    • जन स्वास्थ्य तैयारी: शहरी स्वास्थ्य केंद्रों का विस्तार ऊष्मा आश्रयों, शीतलन क्षेत्रों और वेक्टर जनित रोग प्रबंधन के साथ करना।
  • शासन और वित्त
    • शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULB) को मज़बूत बनाना: ULB को सशक्त बनाने के लिए वित्तीय हस्तांतरण, तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public–Private Partnerships- PPP): बुनियादी ढाँचागत लचीलापन परियोजनाओं, स्मार्ट ग्रिड और हरित भवनों में निजी फर्मों को शामिल करना।
    • हरित बांड और जलवायु निधि: म्युनिसिपल ग्रीन बॉण्ड जारी करना और हरित जलवायु निधि (Public–Private Partnerships- PPP) जैसे अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त तंत्रों का उपयोग करना।
    • जलवायु बजट: अनुकूलन और शमन व्यय की निगरानी करने के लिए शहर-स्तरीय जलवायु बजट लागू करना।
      • अगले तीन दशकों में, जलवायु-अनुकूल और कम कार्बन उत्सर्जन वाले शहरी बुनियादी ढाँचे और सेवाओं के विकास की लागत 10.95 ट्रिलियन डॉलर तक हो सकती है।
  • प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण
    • भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems- GIS): खतरों का मानचित्रण, जोनिंग और वास्तविक समय की निगरानी करना।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): बाढ़, यातायात व्यवधान और हीटवेब की घटनाओं के पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग के लिए AI का उपयोग करना।
    • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things- IoT): जोखिमों का शीघ्र पता लगाने के लिए नालियों, वायु गुणवत्ता मॉनिटरों और जल की पाइपलाइनों में आईओटी सेंसर लगाना।
    • क्षमता विकास: शहरी योजनाकारों, इंजीनियरों और आपदा प्रबंधकों का नियमित प्रशिक्षण।
    • ज्ञान साझा करने के लिए विश्वविद्यालयों और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के साथ सहयोग।

निष्कर्ष

अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार), अनुच्छेद-48A (पर्यावरण संरक्षण) और अनुच्छेद-243W (सशक्त स्थानीय शासन) के संवैधानिक प्रावधानों के आलोक में भारत के लिए यह आवश्यक है कि उसकी शहरी रणनीति, सतत् विकास लक्ष्य 6 (स्वच्छ जल एवं स्वच्छता), सतत् विकास लक्ष्य 11 (स्थायी शहर) तथा सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप हो। इस प्रकार जलवायु-अनुकूल शहरों का निर्माण न केवल एक संवैधानिक कर्तव्य है, बल्कि एक वैश्विक जिम्मेदारी भी है, जो विकास, समानता एवं स्थिरता की दिशा में सुनिश्चित प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है।

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