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कोल्हान की मानकी-मुंडा प्रथा

Lokesh Pal September 16, 2025 03:24 130 0

संदर्भ

सितंबर 2025 में, झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में ‘हो’ जनजाति के आदिवासियों ने ग्राम प्रधानों (मुंडाओं) को हटाए जाने की खबरों के बाद, अपनी पारंपरिक मानकी-मुंडा व्यवस्था में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए, उपायुक्त के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया।

  • प्रशासन ने स्पष्ट किया कि मानकी और मुंडा जिले के राजस्व ढाँचे का अभिन्न अंग बने हुए हैं, लेकिन इस प्रकरण ने कोल्हान में पारंपरिक स्वशासन और राज्य प्रशासन के बीच तनाव को उजागर किया है।

‘हो’ जनजाति के बारे में

  • जातीय समूह: हो (जिन्हें कोल्हा, होडोको, होरो भी कहा जाता है) भारत का एक ऑस्ट्रोएशियाटिक मुंडा जातीय समूह है।
    • उनकी अपनी भाषा में ‘हो’ का अर्थ “मानव” होता है।
  • वितरण: झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में केंद्रित हैं, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में भी निवास करती है।
  • भाषा: वे ‘हो’ भाषा बोलते हैं।

समाज और व्यवसाय

  • आजीविका: मुख्यतः कृषि प्रधान समुदाय, जो जमींदार, किसान और मजदूर के रूप में कार्यरत हैं; कुछ लोग खनन क्षेत्र में भी काम करते हैं।
  • महिलाओं की स्थिति: कई अन्य जनजातियों की तुलना में महिलाओं का दर्जा अपेक्षाकृत ऊँचा है।
  • संस्कृति: गाँवों में एक सामुदायिक नृत्य स्थल (अखरा) होता है। पारंपरिक संगीत में दमा (ढोल), ढोलक, डुमेंग (मांदर) और रुतु (बाँसुरी) जैसे वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है।

मान्यता

  • धर्म: 90% से अधिक लोग ‘सरनावाद’ (स्वदेशी आस्था) का पालन करते हैं।
  • धार्मिक कार्यकर्ता: एक देउरी (गाँव का पुजारी) अनुष्ठान करता है, जबकि एक देववा (आत्मा का चिकित्सक) देवताओं और आत्माओं के लिए बलि चढ़ाता है।
  • पवित्र स्थान: अनुष्ठान प्रायः गाँव के बाहर एक पवित्र उपवन (सरना स्थल) में आयोजित किए जाते हैं।

वर्तमान संघर्ष

  • गैर-हो समुदायों की शिकायतें: ‘हो’ प्रभुत्व वाले गाँवों में अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों ने भेदभाव का आरोप लगाया, जैसे कि गोप समुदाय को गैर-पारंपरिक आजीविका से वंचित किया जा रहा था और अनुपस्थित ‘मुंडाओं द्वारा दस्तावेजों तक पहुँचने में देरी के कारण समस्याएँ उत्पन्न हो रही थीं।
    • प्रशासनिक प्रतिक्रिया: DC ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने और मुंडाओं को वर्ष 1837 के ‘हुकुकनामा’ के तहत उनके कर्तव्यों का स्मरण कराने हेतु नौ-सूत्रीय निर्देश जारी किए।
  • गलत व्याख्या और अफवाहें: ग्रामीणों ने निर्देश को मुंडाओं के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई समझ लिया, जिससे आधिकारिक इनकार के बावजूद प्रथागत कानूनों में राज्य के हस्तक्षेप की आशंकाएँ पैदा हो गईं।
  • रिक्तियाँ और प्रतिनिधित्व के मुद्दे: पश्चिमी सिंहभूम में मानकी-मुंडा के 1,850 पदों में से लगभग 200 रिक्त हैं; कुछ नियुक्तियाँ गैर-आदिवासी रैयतों को दे दी गई हैं, जिससे असंतोष पैदा हो रहा है।
    • संरक्षण के साथ सुधार की आवश्यकता: हालाँकि इस व्यवस्था का सांस्कृतिक महत्त्व है, ‘हो’ समुदाय के भीतर, विशेष रूप से युवा वर्ग, कठोर पारंपरिक प्रथाओं को समाप्त करने, शिक्षित काश्तकारों की भागीदारी सुनिश्चित करने तथा विवाद समाधान एवं कानूनी स्पष्टता के लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं के आधुनिकीकरण जैसे सुधारों की माँग कर रहे हैं।

विल्किंसन के नियम (1833-37)

  • कोल्हान सरकारी संपत्ति के राजनीतिक एजेंट, कैप्टन थॉमस विल्किंसन द्वारा तैयार किया गया।
  • 31 नियमों ने मानकी-मुंडा प्रथाओं को संहिताबद्ध किया।
  • प्रभाव
    • मानकी और मुंडाओं को मान्यता दी गई, लेकिन उन्हें ब्रिटिश सत्ता का एजेंट बना दिया गया।
    • कोल्हान को औपनिवेशिक राजस्व प्रणाली में शामिल किया गया।
    • बाहरी लोगों (दिक्कुओं) के आगमन को सुगम बनाया गया।
    • निजी संपत्ति की शुरुआत की गई: आदिवासी पट्टे (भूमि के दस्तावेज) के साथ रैयत (किराएदार) बन गए।

मानकी-मुंडा प्रणाली के बारे में

  • झारखंड के कोल्हान क्षेत्र की ‘हो’ जनजाति द्वारा अपनाया गया एक पारंपरिक, विकेंद्रीकृत स्वशासन मॉडल।
  • नेतृत्व संरचना
    • मुंडा: वंशानुगत ग्राम प्रधान; ग्राम स्तर पर विवादों का निपटारा।
    • मानकी: पीढ़ (8-15 गाँवों का समूह) का मुखिया; मुंडा के अधिकार क्षेत्र से बाहर की अपीलों का निपटारा।
  • इतिहास
    • ब्रिटिश-पूर्व युग: समुदाय-संचालित शासन प्रणाली के रूप में कार्य किया जाता था, जिसमें भूमि कर या बाहरी संप्रभु नियंत्रण की कोई अवधारणा नहीं थी।
    • ब्रिटिश काल की मान्यता: विस्तार: प्लासी (1757) और बक्सर (1764) युद्ध के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने दीवानी अधिकार (1765) प्राप्त किए और बाद में स्थायी बंदोबस्त अधिनियम (1793) लागू किया।
      • प्रभाव: जमींदारों ने ‘हो’ समुदाय की भूमि पर अधिकार कर लिया, जिससे ‘हो’ विद्रोह (1821-22) और कोल विद्रोह (1831-32) जैसे विद्रोह भड़क उठे।
      • रणनीतिक बदलाव: आदिवासियों को सैन्य रूप से नियंत्रण में करने में असमर्थ, अंग्रेजों ने पारंपरिक व्यवस्था को अपना लिया।
    • 1833 में: कैप्टन थॉमस विल्किंसन ने इस प्रणाली को 31 नियमों (विल्किन्सन नियम) में संहिताबद्ध किया, जिन्हें बाद में वर्ष 1837 में कोल्हान गवर्नमेंट एस्टेट (Kolhan Government Estate- KGE) में लागू किया गया।
    • स्वतंत्रता के बाद निरंतरता: कोल्हान गवर्नमेंट एस्टेट वर्ष 1947 में भंग हो गया, लेकिन विल्किंसन नियम बने रहे।
    • न्यायिक स्थिति: मोरा हो बनाम बिहार राज्य (2000) मामले तक न्यायालयों ने उन्हें बरकरार रखा, नियमों को औपचारिक कानून नहीं, बल्कि रीति-रिवाज कहा जाता था,  फिर भी उन्हें जारी रहने दिया गया।
    • हालिया उपाय: वर्ष 2021 में झारखंड ने राजस्व, भूमि और विवाद निपटान कार्यों के लिए न्याय पंच प्रणाली के तहत मान्यता दी।

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