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राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई

Lokesh Pal September 17, 2025 05:00 90 0

संदर्भ:

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह विधेयकों को मंजूरी देने में राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण संदर्भ पर दलीलें सुनने के बाद अपना मत सुरक्षित रख लिया था।

राज्यपाल के विकल्पों का आधार (अनुच्छेद 200):

जब किसी राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के पास भेजा जाता है, तो उनके पास चार विकल्प होते हैं:

  • स्वीकृति देना: राज्यपाल अपनी स्वीकृति दे सकते हैं, जिससे विधेयक अधिनियम बन जाता है।
  • स्वीकृति रोकना: राज्यपाल विधेयक को अस्वीकार कर सकते हैं
    • इस शक्ति का प्रयोग बहुत कम होता है और इसका मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता
    • संविधान निर्माताओं ने 1935 के अधिनियम में मौजूद “विवेकाधीन” खंड को हटा दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करें।
  • विधेयक वापस करना: राज्यपाल विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेज सकते हैं, संभवतः इसमें परिवर्तन संबंधित सुझाव भी दे सकते हैं।
    • हालाँकि, यदि विधानसभा विधेयक को पुनः पारित कर देती है, तो इसमें परिवर्तन के साथ या बिना परिवर्तन के, राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी होगी।
  • राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु आरक्षित (अनुच्छेद 201): राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है, विशेषकर यदि वह उच्च न्यायालय की शक्ति को कम करता हो या संविधान के विरुद्ध हो।

निष्क्रियता की समस्या (पॉकेट वीटो):

  • अनिश्चितकालीन विलंब का मुद्दा: एक बड़ा मुद्दा तब उठता है जब राज्यपाल इन चार विकल्पों में से किसी का भी प्रयोग नहीं करते हैं और विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोके रखते हैं
  • पॉकेट वीटो सादृश्य: यह प्रथा “पॉकेट वीटो” के समान है और लोकतंत्र को कमजोर करती है, क्योंकि निर्वाचित सरकार की इच्छा को नियुक्त राज्यपाल द्वारा विफल कर दिया जाता है।
  • राजनीतिक संदर्भ: यह निष्क्रियता विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु, पंजाब और तेलंगाना जैसे विपक्षी शासित राज्यों में प्रचलित है।

विधेयकों पर राज्यपाल की स्वीकृति पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • न्यायिक हस्तक्षेप: इस निष्क्रियता के संबंध में कई राज्यों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 8 अप्रैल 2025 को, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा गया कि राज्यपाल अनिश्चित काल के लिए विधेयकों में देरी नहीं कर सकते हैं और उन्हें “उचित समय” के भीतर निर्णय लेना होगा।
  • निर्णय की बाध्यकारी प्रकृति: अनुच्छेद 141 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय राष्ट्रपति और सरकार सहित सभी पर बाध्यकारी था।

केंद्र सरकार की समीक्षा/उपचारात्मक याचिका का विकल्प:

  • समीक्षा/उपचारात्मक याचिका के स्थान पर राष्ट्रपति के संदर्भ का विकल्प: समीक्षा या उपचारात्मक याचिका (जिसके परिणाम भी बाध्यकारी होंगे) दायर करने के बजाय, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर स्पष्टता प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपति के संदर्भ का विकल्प चुना।
  • अनुच्छेद 143 का दायरा: अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को कानूनी प्रश्नों पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह/राय लेने की अनुमति प्रदान करता है।
  • सलाह/राय की गैर-बाध्यकारी प्रकृति: महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई कोई भी राय राष्ट्रपति के लिए अनिवार्य या बाध्यकारी नहीं है।
  • इस कदम के पीछे राजनीतिक रणनीति: इस कदम को 8 अप्रैल 2025 के निर्णय की बाध्यकारी प्रकृति को दरकिनार करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक “चाल/योजना” के रूप में देखा गया।

राष्ट्रपति के संदर्भ पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई: 

  • संवैधानिक पीठ की संरचना और स्थिति: पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई की और अपना अंतिम निर्णय सुरक्षित रखा
  • लोकतांत्रिक प्रभाव पर मुख्य न्यायाधीश की चिंता: भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने सवाल किया कि जब राज्यपाल “सक्षम राज्य विधायिकाओं को बेकार” बना रहे हों तो क्या सर्वोच्च न्यायालय को “लाचार होकर बैठना” चाहिए।
  • राज्यपाल के अधिकार पर न्यायमूर्ति विक्रम नाथ: न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने टिप्पणी की कि क्या राज्यपाल विधानसभा की बुद्धिमत्ता से ऊपर” हैं।
  • राज्यपाल की निष्क्रियता की सीमाएं: उन्होंने कहा कि हालाँकि राज्यपाल संवैधानिक वैधता की जांच करने के लिए सुरक्षा वाल्व” के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन उन्हें निर्णय लेना चाहिए, क्योंकि निरंतर निष्क्रियता “लोकतंत्र का गला घोंटती है”
  • केंद्र सरकार का दृष्टिकोण: केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि राज्यपाल जल्दबाजी में कानून बनाने से रोकने के लिए सुरक्षा वाल्व ” के रूप में कार्य करते हैं।
  • राजनीतिक दुरुपयोग पर केरल का तर्क: केरल के वकील ने तर्क दिया कि मुद्दा संवैधानिक अस्पष्टता नहीं बल्कि “राजनीतिक दुरुपयोग” है, उन्होंने कहा कि राज्यपाल केवल विपक्षी शासित राज्यों में विधेयकों में देरी करते हैं 

लोकतंत्र और न्यायिक समीक्षा:

  • न्यायिक समीक्षा के लिए मिसाल: जब राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) लागू करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन होते हैं (जैसा कि 1994 के एसआर बोम्मई वाद द्वारा स्थापित किया गया है), तो किसी विधेयक पर राज्यपाल की निष्क्रियता (एक “छोटा” निर्णय) भी न्यायिक जांच के दायरे में आनी चाहिए
  • जनशक्ति की प्रधानता: किसी भी लोकतंत्र में, शक्ति मुख्य रूप से जनता के पास होनी चाहिए जो अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है
  • निर्वाचित प्रतिनिधियों की सर्वोच्चता: निर्वाचित प्रतिनिधियों के निर्णयों को राज्यपाल जैसे नियुक्त अधिकारी के निर्णयों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए

आगे की राह:

  • सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान: केंद्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के 8 अप्रैल 2025 के आदेश का सम्मान करना चाहिए और राज्यपालों को एक निश्चित, यद्यपि लचीली, समय-सीमा के भीतर विधेयकों पर निर्णय लेने का निर्देश देना चाहिए।
  • केंद्र-राज्य संतुलन बनाए रखना: भारत एक अर्ध-संघीय राज्य है, और केंद्र एवं राज्यों के बीच स्थापित शक्ति संतुलन को बिगाड़ा नहीं जाना चाहिए।
  • समय पर निर्णय लेने पर आयोग की सिफारिशें: सरकारिया आयोग और पुंछी आयोग जैसे आयोगों ने सिफारिश की है कि राज्यपालों को उचित समय” के भीतर विधेयकों पर निर्णय लेना चाहिए।
  • राज्यपाल की निष्पक्षता सुनिश्चित करना: इन आयोगों ने यह भी सुझाव दिया कि राज्यपाल की नियुक्तियों को “सक्रिय राजनीति” से दूर रखा जाना चाहिए, तथा कार्यालय की गरिमा और निष्पक्षता बढ़ाने के लिए सेवानिवृत्त सेना प्रमुखों, वैज्ञानिकों आदि जैसे व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: राष्ट्रपति संदर्भ पर सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई ने राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर स्वीकृति न देने के मुद्दे को रेखांकित किया है। राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियों और निर्वाचित राज्य विधानसभाओं के अधिदेश के बीच संवैधानिक संघर्ष की चर्चा कीजिए। लोकतांत्रिक शासन पर इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिए और इन शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के उपाय सुझाइए। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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