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अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में कटौती की

Lokesh Pal September 20, 2025 04:02 22 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बेंचमार्क ब्याज दर सीमा को 25 आधार अंकों से घटाकर 4-4.25% कर दिया, जो नौ महीनों तक स्थिर रहने के बाद पहली बार दरों में कटौती है।

फेड दर में कटौती क्या है?

  • फेडरल फंड्स दर वह ब्याज दर है, जिस पर अमेरिका में वाणिज्यिक बैंक एक-दूसरे को ओवरनाइट अवधि के लिए आरक्षित निधि उधार देते हैं।
  • यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) द्वारा निर्धारित की जाती है एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उधारी लागत के लिए बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है।

ब्याज दरों में कटौती के कारण: फेड के दोहरे अधिदेश, मूल्य स्थिरता और अधिकतम रोजगार के बीच संतुलन बनाना।

  • श्रम बाजार में कमी
    • अगस्त में गैर-कृषि वेतनभोगी रोजगार में केवल 22,000 की वृद्धि हुई, जो संभावना से कम है।
    • फेड ने कहा कि “नौकरियों में वृद्धि धीमी हो गई है” एवं बेरोजगारी बढ़ रही है, जिससे रोजगार के लिए नकारात्मक जोखिम बढ़ रहे हैं।
  • मुद्रास्फीति का दबाव
    • मुद्रास्फीति (PCI  सूचकांक) अप्रैल में 2.2% से बढ़कर जुलाई में 2.6% हो गई।
    • वर्ष 2025 के लिए मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान 3% पर अपरिवर्तित।
    • वर्ष 2026 के लिए पूर्वानुमान को 2.4% से संशोधित कर 2.6% कर दिया गया।
    • मुद्रास्फीति के वर्ष 2028 तक ही 2% के लक्ष्य तक पहुँचने की संभावना है।

व्यक्तिगत उपभोग व्यय (Personal Consumption Expenditures- PCE)

  • PCE मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का एक प्रमुख माप है, जो अमेरिकी उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में औसत परिवर्तन पर नजर रखता है।
  • इसे फेडरल रिजर्व का मुद्रास्फीति का मुख्य संकेतक माना जाता है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • पूँजी प्रवाह: अमेरिका में कम ब्याज दरें भारत को निवेशकों के लिए आकर्षक बनाती हैं, जिससे शेयरों एवं ऋण में FPI का प्रवाह बढ़ने, बाजार में तरलता में सुधार तथा बॉण्ड प्रतिफल में कमी आने की संभावना है।
  • रुपया एवं विनिमय दर: कमजोर डॉलर एवं मजबूत पूँजी प्रवाह के कारण रुपये की कीमत बढ़ सकती है, हालाँकि इससे निर्यात को नुकसान हो सकता है।
  • मुद्रास्फीति के प्रभाव: कमजोर डॉलर मूल्य आयातित मुद्रास्फीति (सस्ते कच्चे तेल एवं कमोडिटी) को सीमित कर सकता है, किंतु तरलता के अधिक प्रवाह से घरेलू स्तर पर मुद्रास्फीति का दबाव उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
  • निर्यात एवं IT क्षेत्र: मजबूत रुपया निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करता है एवं डॉलर में अर्जित IT राजस्व को प्रभावित करता है, हालाँकि कमजोर मौद्रिक नीति से वैश्विक व्यापार में सुधार कुछ प्रभाव को कम कर सकता है।
  • व्यापक प्रभाव: कम वैश्विक ऋण लागत, भारत के बाह्य उधारी बोझ (External borrowing burden) को कम करती है, विदेशों में कॉरपोरेट धन उगाहने को प्रोत्साहित करती है और भारत की विकास कहानी में निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है।

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