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POSH में सुधार: महिलाओं के लिए कार्यस्थल सुरक्षा

Lokesh Pal September 25, 2025 02:37 27 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के अंतर्गत महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की याचिका को खारिज कर दिया।

संबंधित तथ्य 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी केरल उच्च न्यायालय के वर्ष 2022 के एक निर्णय के विरुद्ध अपील पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें कहा गया था कि कर्मचारी-नियोक्ता संबंध न होने की स्थिति में राजनीतिक दलों पर आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee-  ICCs) स्थापित करने की कोई बाध्यता नहीं है।
  • याचिकाकर्ता की ओर से पेश एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यद्यपि कई महिलाएँ राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हैं, केवल CPI(M) के पास ही आंतरिक शिकायत समिति है।

सर्वोच्च न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ

  • नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं: न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक गतिविधियाँ स्वैच्छिक हैं और इसमें नियोक्ता-कर्मचारी संबंध शामिल नहीं है।
    • राजनीतिक परिस्थितियों में “नियोक्ता” या “कर्मचारी” की स्पष्ट परिभाषा के बिना, POSH लागू करना कानूनी रूप से अव्यावहारिक होगा।
  • राजनीतिक दल, कार्यस्थल नहीं: राजनीतिक संगठन, अपनी प्रकृति से, अधिनियम के तहत परिभाषित पारंपरिक कार्यस्थल नहीं हैं।
    • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि POSH अधिनियम औपचारिक रोजगार स्थलों के लिए बनाया गया था, न कि राजनीतिक संघों या चुनावी गतिविधियों के लिए।
  • दुरुपयोग का जोखिम: न्यायिक पीठ ने चेतावनी दी कि राजनीतिक दलों को शामिल करने से कानून का दुरुपयोग हो सकता है, जैसे कि शिकायतें, ब्लैकमेलिंग या राजनीतिक प्रतिशोध, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अस्थिर कर सकता है।
    • इससे बहुत विकल्प उपलब्ध होंगे, जिससे प्रवर्तन अव्यावहारिक हो जाएगा।
  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका: न्यायालय ने सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग उपयुक्त प्राधिकारी है।
    • याचिकाकर्ताओं को सलाह दी गई कि वे दल-विशिष्ट आचार संहिता और शिकायत निवारण तंत्र तैयार करने के लिए चुनाव आयोग से संपर्क करें।
    • संस्थागत भूमिका के साथ विस्तार
      • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): राजनीतिक उत्पीड़न सुधारों की निगरानी और सिफारिश कर सकता है।
      • राजनीतिक वित्तपोषण और मान्यता: लैंगिक-सुरक्षा अनुपालन से जोड़ा जा सकता है।
      • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: पंजीकरण की शर्त के रूप में पार्टियों में शिकायत निवारण प्रकोष्ठों की स्थापना अनिवार्य कर सकता है।
  • विधायी क्षमता, न्यायिक विस्तार नहीं: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि संसद को यह तय करना होगा कि राजनीतिक परिस्थितियों को शामिल करने के लिए POSH के दायरे का विस्तार किया जाए या नहीं।
    • इस क्षेत्र में न्यायिक हस्तक्षेप विधायी नीति-निर्माण का विकल्प नहीं हो सकता है।

यौन उत्पीड़न पर न्यायिक उदाहरण

  • मेधा कोटवाल लेले बनाम भारत संघ (2013): सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव का निषेध) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत यौन उत्पीड़न से सुरक्षा को एक मौलिक अधिकार माना और कार्यस्थलों जैसे सभी स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा के संवैधानिक कर्तव्य पर जोर दिया।
    • इस निर्णय ने औपचारिक और अनौपचारिक कार्यस्थलों में व्यापक कानूनी सुरक्षा की नींव रखी।
  • वर्तमान निर्णय (महिला राजनीतिक कार्यकर्ता): महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को POSH अधिनियम, 2013 के तहत शामिल करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को नियोक्ता मानना ​​अधिक विकल्प प्रदान करेगा।
    • इसने व्यापक सुधारों को विधायिका पर छोड़ दिया, जिससे कार्यस्थल सुरक्षा को राजनीतिक क्षेत्र तक विस्तारित करने में न्यायिक संयम का संकेत मिलता है।

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) के बारे में

  • कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निवारण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के विरुद्ध भारत का पहला समर्पित कानून है।
  • यौन उत्पीड़न की परिभाषा
    • अर्थ: धारा 2(n) यौन उत्पीड़न को अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन प्रस्ताव, यौन अनुग्रह की माँग, यौन-केंद्रित टिप्पणियाँ, अश्लील साहित्य दर्शाना और यौन प्रकृति के अन्य अवांछित आचरण के रूप में परिभाषित करती है।
    • परिस्थितियाँ: धारा 3 उत्पीड़न की पहचान तब करती है, जब यह अधिमान्य व्यवहार की प्रतिबद्धता, हानिकारक व्यवहार की धमकी, रोजगार की स्थिति को खतरा, काम में हस्तक्षेप या प्रतिकूल वातावरण और स्वास्थ्य या सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अपमानजनक व्यवहार से जुड़ा हो।
  • उद्देश्य: महिलाओं के लिए सुरक्षा, लैंगिक समानता, सम्मान का अधिकार और सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना।
  • मूल
    • अन्य घटना: वर्ष 1992 में, राजस्थान की एक सामाजिक कार्यकर्ता भँवरी देवी द्वारा बाल विवाह रोकने की प्रतिक्रियास्वरूप सामूहिक दुष्कर्म किया गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय की कार्रवाई: वर्ष 1997 में, सर्वोच्च न्यायालय ने कानून के अभाव में विशाखा दिशा-निर्देश जारी किए, जिससे उन्हें सभी कार्यस्थलों पर लागू करना बाध्यकारी हो गया।
    • संवैधानिक आधार: अनुच्छेद-15 लैंगिक आधार पर भेदभाव का निषेध करता है, और अनुच्छेद-21 सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार की गारंटी देता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय आधार: भारत ने वर्ष 1993 में महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW) का अनुसमर्थन किया, जिसने राज्य को लैंगिक भेदभाव को रोकने के लिए बाध्य किया।
  • दायरा
    • कार्यस्थल: यह अधिनियम सरकारी, निजी, संगठित, असंगठित, अस्पतालों, खेल स्थलों, कार्यस्थल, परिवहन और घरेलू कार्यों को शामिल करता है।
    • नियोक्ता परिभाषा: यह अधिनियम पारंपरिक कार्यालयों औरगिग’ या ‘ऑनलाइन’ प्लेटफॉर्म दोनों को शामिल करता है।
    • प्रयोज्यता: यह अधिनियम सभी महिलाओं की रक्षा करता है, चाहे उनकी आयु या रोजगार की स्थिति कुछ भी हो।

विशाखा दिशा-निर्देश (1997)

  • प्रकृति: विशाखा दिशा-निर्देश कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रक्रियात्मक निर्देश थे।
  • दायित्व: नियोक्ताओं को उत्पीड़न की रोकथाम, शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और पूछताछ करने की आवश्यकता का दायित्व।
  • प्रासंगिकता: ये दिशा-निर्देश POSH अधिनियम, 2013 की नींव के रूप में कार्य करते हैं।

  • संस्थागत तंत्र
    • आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee- ICC): 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें एक पीठासीन अधिकारी (वरिष्ठ महिला कर्मचारी), कम-से-कम दो कर्मचारी सदस्य, एक बाहरी NGO/विशेषज्ञ सदस्य और 50% महिला सदस्य हों।
    • ICC का कार्यकाल और जाँच: सदस्य 3 वर्ष तक कार्यरत रहते हैं और जाँच गोपनीयता बनाए रखते हुए 90 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।
    • स्थानीय समिति (Local Committee- LC): जिला अधिकारी को उन जिलों में एक स्थानीय समिति का गठन करना होगा, जहाँ कार्यस्थलों पर 10 से कम कर्मचारी हों या जहाँ नियोक्ता ही प्रतिवादी हो।
      • स्थानीय समिति की अध्यक्षता एक प्रतिष्ठित महिला द्वारा की जाती है और इसमें सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
  • शिकायत, पूछताछ और राहत
    • शिकायत दर्ज करना: लिखित शिकायत 3 महीने के भीतर दर्ज की जानी चाहिए, जिसे 3 महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है; यदि महिला लिख ​​नहीं सकती है तो सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
    • समझौता: समझौता केवल शिकायतकर्ता के अनुरोध पर ही किया जा सकता है और मौद्रिक समझौता निषिद्ध है।
    • अंतरिम राहत: अंतरिम उपायों में स्थानांतरण, 3 महीने तक की छुट्टी या समकक्ष व्यवस्था शामिल हो सकती है।
    • समिति की रिपोर्ट: आंतरिक शिकायत समिति/स्थानीय समिति को जाँच पूरी होने के 10 दिनों के भीतर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने होंगे।
    • नियोक्ता की कार्रवाई: नियोक्ता को 60 दिनों के भीतर सिफारिशों पर कार्रवाई करनी होगी।
  • नियोक्ता के कर्तव्य
    • सुरक्षित कार्यस्थल: नियोक्ता को सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना होगा।
    • सूचना का प्रदर्शन: नियोक्ता को यौन उत्पीड़न के लिए दंड और ICC विवरण प्रदर्शित करना होगा।
    • जागरूकता कार्यक्रम: नियोक्ता को कर्मचारियों के लिए जागरूकता कार्यशालाएँ और ICC सदस्यों के लिए अभिविन्यास कार्यक्रम आयोजित करने होंगे।
    • ICC को सहायता: नियोक्ता को पक्षों/गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करनी होगी और समिति के कार्य के लिए सुविधाएँ प्रदान करनी होंगी।
    • कानूनी सहायता: नियोक्ता को भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आपराधिक मामले दर्ज करने में सहायता करनी होगी।
    • सेवा नियम: नियोक्ता को सेवा नियमों के तहत यौन उत्पीड़न को कदाचार मानना ​​होगा।
    • वार्षिक रिपोर्टिंग: नियोक्ता को वार्षिक रिपोर्ट में मामलों का विवरण शामिल करना होगा या यदि कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की जाती है तो जिला अधिकारी को सूचित करना होगा।
  • दंड
    • अनुपालन न करना: अनुपालन न करने पर ₹50,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
    • दोहरा गए अपराध: बार-बार उल्लंघन करने पर अधिक जुर्माना लगाया जा सकता है और लाइसेंस या पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
  • झूठी शिकायतों के विरुद्ध सुरक्षा उपाय
    • धारा 14: झूठी या दुर्भावनापूर्ण शिकायतों या झूठे साक्ष्यों के विरुद्ध कार्रवाई का प्रावधान करती है, लेकिन केवल तभी जब दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य सिद्ध हो।
    • वास्तविक शिकायतकर्ताओं का संरक्षण: शिकायत सिद्ध न कर पाना दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य नहीं माना जाता।

यौन उत्पीड़न से संरक्षण का’ बहिष्कार और कार्यान्वयन में व्यावहारिक अंतराल

  • कार्यस्थल की संकीर्ण परिभाषा: राजनीतिक दल, बार एसोसिएशन, गैर-सरकारी संगठन और गिग प्लेटफॉर्म इसमें शामिल नहीं हैं।
    • उदाहरण: बॉम्बे उच्च न्यायालय (2025) ने यूएनएस महिला लीगल एसोसिएशन बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया मामले में नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के अभाव का हवाला देते हुए बार काउंसिल में IC गठित करने की याचिका को खारिज कर दिया।
  • कार्यान्वयन की कमी: यहाँ तक कि शामिल किए गए कार्यस्थलों (जैसे- अस्पताल) में भी, जागरूकता और जवाबदेही की कमी के कारण सुरक्षा उपाय प्रायः विफल हो जाते हैं।
  • न्यायिक संयम बनाम संवैधानिक नैतिकता: न्यायालय अपनी भूमिका को सीमित कर रहे हैं और कार्यक्षेत्र का विस्तार विधायी कार्रवाई पर छोड़ रहे हैं।
    • उदाहरण: मेधा कोतवाल लेले बनाम भारत संघ (2013) में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यौन उत्पीड़न से सुरक्षा एक मौलिक अधिकार है।
  • प्रति-उदाहरण: वर्ष 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक संयम दिखाते हुए और सुधार का काम संसद पर छोड़ते हुए, POSH का विस्तार राजनीतिक दलों तक करने से इनकार कर दिया।
  • राजनीति में महिलाओं की भेद्यता: वैधानिक सुरक्षा उपायों का अभाव सार्वजनिक जीवन में भागीदारी और सुरक्षा को कम करता है।
    • उदाहरण: कई महिला राजनेताओं ने सार्वजनिक रूप से पार्टी सहयोगियों द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाया है, लेकिन POSH तंत्र का उपयोग नहीं कर सकीं, क्योंकि राजनीतिक दलों को कानूनी रूप से कार्यस्थल नहीं माना जाता है।
      • इसके अतिरिक्त, महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पार्टी से जुड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रोलिंग, साइबरस्टॉकिंग, डॉक्सिंग और ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। साइबर उत्पीड़न से निपटने के लिए POSH कानून को आईटी अधिनियम और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम से जोड़ने की आवश्यकता है।
  • अन्य चुनौतियाँ
    • उपेक्षा और कॅरियर पर प्रतिकूल प्रभाव के डर से कम रिपोर्टिंग।
    • असंगठित क्षेत्र, लघु उद्यमों और राजनीतिक दलों में कमजोर कार्यान्वयन।
    • कार्यस्थल परिभाषाओं के विस्तार में न्यायिक संयम।
    • महिला कार्यकर्ताओं में शी-बॉक्स (She-Box) और IC तंत्र के बारे में जागरूकता की कमी।

कार्यस्थल पर उत्पीड़न पर वैश्विक मानक

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) फ्रेमवर्क
    • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW) (1979): राज्यों को कार्यस्थल पर भेदभाव और उत्पीड़न, जिसमें राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन भी शामिल है, को रोकने के लिए बाध्य करता है।
    • बीजिंग घोषणा-पत्र और कार्य मंच (Beijing Declaration and Platform for Action) (1995): राजनीति में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और उत्पीड़न को लैंगिक समानता में बाधा माना गया।
    • ILO अभिसमय 190 (ILO Convention 190) (2019): हिंसा और उत्पीड़न अभिसमय, हिंसा और उत्पीड़न से मुक्त कार्यस्थल के अधिकार को मान्यता देने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसमें राजनीतिक भागीदारी वाले स्थानों को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।
    • संयुक्त राष्ट्र महिला पहल – सुरक्षित शहर और सुरक्षित सार्वजनिक स्थान (UN Women Initiatives – Safe Cities and Safe Public Spaces) (वर्ष 2010 से आगे): इसे शहरी कार्यस्थलों में उत्पीड़न को कम करने के लिए क्विटो, काहिरा, दिल्ली और किगाली जैसे शहरों में आरंभ किया गया। साथ ही यह पहल लैंगिक रूप से संवेदनशील शहरी नियोजन और सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा देती है।
  • अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union- IPU) पहल
    • IPU संसदों में आचार संहिता, अनिवार्य आचार समितियों और राजनीतिक भूमिकाओं में महिलाओं के लिए गोपनीय रिपोर्टिंग चैनलों की सिफारिश करता है।
    • IPU रिपोर्ट (2016, 2018): इस रिपोर्ट में पाया गया कि 80% से अधिक महिला सांसदों को मनोवैज्ञानिक या यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।

राजनीति में महिला सुरक्षा पर वैश्विक प्रथाएँ

  • यूनाइटेड किंगडम: स्वतंत्र शिकायत एवं शिकायत निवारण योजना (2018) वेस्टमिंस्टर में सांसदों, कर्मचारियों और राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को कवर करती है।
    • गोपनीय सलाह सेवाएँ और एक स्वतंत्र जाँच प्रणाली प्रदान करती है।
  • न्यूज़ीलैंड: संसदीय आचरण नीति (2019), राजनीति में डराना-धमकाना या जोर जबरजस्ती और यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए एक व्यापक नीति।
    • सांसदों के लिए एक स्वतंत्र आयुक्त और अनिवार्य प्रशिक्षण प्रदान करती है।
  • स्वीडन: राजनीतिक दलों ने उत्पीड़न की शिकायतों के लिए आंतरिक लैंगिक समानता चार्टर और लोकपाल को अपनाया है।
    • दलों के भीतर स्व-नियमन की संस्कृति कानूनी सुरक्षा को पूरक बनाती है।
  • रवांडा: विश्व स्तर पर महिला सांसदों के उच्चतम अनुपात (>60%) के लिए जाना जाता है।
    • चुनावी कानूनों और पार्टी नियमों में महिलाओं की सुरक्षित भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए लैंगिक-संवेदनशील शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं।

भारत में कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा

  • POSH अधिनियम, 2013 (POSH Act, 2013): कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला एक ऐतिहासिक कानून है।
    • 10+ कर्मचारियों वाले संगठनों में आंतरिक समितियों (ICs) का गठन अनिवार्य है।
    • सार्वजनिक, निजी, संगठित और असंगठित क्षेत्रों को शामिल करता है।
  • शी-बॉक्स पोर्टल (She-Box Portal) (2017): केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया।
    • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की महिलाओं के लिए ‘सिंगल विंडो’ ऑनलाइन शिकायत तंत्र प्रदान करता है।
    • मंत्रालयों की शिकायत निवारण प्रणालियों के साथ एकीकृत करता है।

आगे की राह

  • कार्यस्थल की परिभाषा का विस्तार करना: POSH अधिनियम की ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा को राजनीतिक दलों, बार एसोसिएशनों, गैर-सरकारी संगठनों और गिग इकोनॉमी प्लेटफॉर्म को शामिल करते हुए व्यापक बनाया जाना चाहिए और उन्हें संरचित पदानुक्रम वाले अर्द्ध-पेशेवर स्थलों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय संरेखण: भारत को कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न संबंधी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के कन्वेंशन 190 का अनुसमर्थन करना चाहिए और घरेलू कानून को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना चाहिए, जिससे औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही क्षेत्रों में सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • जवाबदेही और प्रवर्तन: कार्यान्वयन में कमियों को दूर करने के लिए, अस्पतालों और विश्वविद्यालयों जैसे पहले से ही शामिल क्षेत्रों में भी निगरानी, ​​रिपोर्टिंग और दंड की सुदृढ़ प्रणालियाँ स्थापित की जानी चाहिए।
  • न्यायिक-विधायी सामंजस्य: यहाँ तक कि न्यायालयों को समानता और सम्मान के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए, विधायिका को वैधानिक अंतराल को पाटने और POSH ढाँचे के सुरक्षात्मक दायरे का विस्तार करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करना चाहिए।

PWOnlyIAS विशेष

एक नैतिक दुविधा- लोकतांत्रिक बहुलवाद बनाम संवैधानिक नैतिकता

  • लोकतांत्रिक बहुलवाद: राजनीतिक दलों को स्वैच्छिक संघ माना जाता है, जिन्हें कार्यशीलता, उम्मीदवार चयन और आंतरिक अनुशासन में आंतरिक स्वायत्तता का अधिकार प्राप्त है।
    • POSH जैसे बाहरी कानूनी ढाँचे का विस्तार उनकी संघटन की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप माना जा सकता है (अनुच्छेद-19(1)(c)
  • संवैधानिक नैतिकता: हालाँकि, महिलाओं के समानता (अनुच्छेद-14), भेदभाव-मुक्ति (अनुच्छेद-15) और सम्मान (अनुच्छेद-21) के मौलिक अधिकारों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
    • संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत, संस्थाओं (जिनमें राजनीतिक दल भी शामिल हैं) को अपने आचरण को संविधान की भावना के अनुरूप ढालने के लिए बाध्य करता है।
  • दुविधा: क्या राजनीतिक दलों की आंतरिक स्वतंत्रता को महिलाओं के सम्मान और सुरक्षित भागीदारी के मौलिक अधिकार पर प्रभावी होने दिया जाना चाहिए? या क्या संसद को यह सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाना चाहिए कि संवैधानिक मूल्य दलीय स्वायत्तता पर हावी हों?

नैतिक दुविधा का संभावित समाधान

  • विधायी सुधार: संसद POSH का विस्तार कर सकती है या राजनीतिक कार्यस्थलों के लिए एक अलग कानून बना सकती है, जिससे लोकतांत्रिक बहुलवाद को कम किए बिना महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित किया जा सके।
  • नियामक निरीक्षण: भारतीय चुनाव आयोग (ECI) पार्टी की मान्यता के लिए आंतरिक शिकायत समितियों या लैंगिक सुरक्षा संहिताओं को अनिवार्य बना सकता है।
  • जवाबदेही के साथ स्व-नियमन: राजनीतिक दल स्वैच्छिक आचार संहिता और शिकायत प्रकोष्ठ अपना सकते हैं, साथ ही विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए बाह्य रूप से ऑडिट भी करवा सकते हैं।

संवर्द्धन के लिए केस स्टडीज

  • निर्भया मामला (2012): दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म के बाद न्यायमूर्ति वर्मा समिति और आपराधिक कानून संशोधन (2013) का गठन हुआ। दुष्कर्म से निपटने वाले कानूनों को तो मजबूत किया गया, लेकिन कोई भी समानांतर सुधार व्यवस्थित कार्यस्थल या राजनीतिक उत्पीड़न पर केंद्रित नहीं था, यह दर्शाता है कि भारत के प्रतिक्रियात्मक सुधार संरचनात्मक मुद्दों पर नहीं, बल्कि अत्यधिक हिंसा पर केंद्रित हैं।
  • पंचायतों में महिलाएँ (वर्ष 1993 के बाद): 73वें संविधान संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य कर दिया। प्रतिनिधित्व बढ़ा, लेकिन कई महिला सरपंचों को अभी भी उत्पीड़न, धमकी और छद्म नियंत्रण (‘सरपंच पति’ अवधारणा) का सामना करना पड़ता है।
    • यह दर्शाता है कि सुरक्षा तंत्र के बिना प्रतिनिधित्व कैसे वास्तविक सशक्तीकरण को कमजोर करता है।
  • ब्रिटिश संसद (वर्ष 2018 से आगे): सांसदों, कर्मचारियों और सहायकों को कवर करने वाली स्वतंत्र शिकायत और शिकायत निवारण योजना (Independent Complaints and Grievance Scheme- ICGS) को अपनाया गया। स्वतंत्र जाँचकर्ता, गोपनीय सलाह और लागू करने योग्य प्रतिबंध प्रदान करता है।
    • शिकायतों के बाद कई सांसदों ने इस्तीफा दे दिया, यह दर्शाता है कि विश्वसनीय प्रणालियाँ जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं।
    • हालाँकि, भारत में राजनीति में ऐसी निष्पक्ष शिकायत प्रणाली का अभाव है।

निष्कर्ष

“POSH अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के अधिकार की रक्षा करने वाला एक ऐतिहासिक कानून है। फिर भी, राजनीतिक दलों और अन्य अर्द्ध-व्यवसायिक स्थानों को इसके दायरे से बाहर रखने से एक गंभीर सुरक्षा अंतराल उत्पन्न होता है। उचित लैंगिक न्याय और समावेशिता के लिए, भारत को कार्यस्थल की परिभाषा पर पुनर्विचार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि राजनीति तथा सार्वजनिक जीवन में महिलाएँ कानूनी सुरक्षा उपायों के दायरे से बाहर न रहें।

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