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भारत की संलयन शक्ति के लिए रोडमैप

Lokesh Pal September 25, 2025 04:15 18 0

संदर्भ

गांधीनगर स्थित प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान (Institute for Plasma Research- IPR) के शोधकर्ताओं ने भारत के संलयन ऊर्जा कार्यक्रम के लिए एक रोडमैप प्रस्तावित किया है।

संबंधित तथ्य

  • इस योजना में भारत के पहले नाभिकीय संलयन-विखंडन हाइब्रिड रिएक्टर, स्टेडी-स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामक-भारत (SST-भारत) के निर्माण की परिकल्पना की गई है, जो वर्ष 2060 तक पूर्ण रूप से इस नाभिकीय संलयन रिएक्टर को चालू करने की दिशा में एक कदम है।

नाभिकीय संलयन के बारे में 

  • प्रक्रिया: नाभिकीय संलयन में दो हल्के नाभिकों को मिलाकर एक भारी नाभिक का निर्माण किया जाता है, जिससे चरम ऊर्जा (जैसे- तारों का ऊर्जा स्रोत) उत्सर्जित होती है।
  • आवश्यक परिस्थितियाँ: तारों के आंतरिक भाग के समान चरम तापमान और दाब का होना अनिवार्य है।
  • नाभिकीय विखंडन बनाम नाभिकीय संलयन
    • नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) से भारी परमाणुओं का विखंडन होता है; इससे अधिक मात्रा में रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
    • नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) से बहुत कम दीर्घकालिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे यह अधिक उपयुक्त हो जाता है।

नाभिकीय संलयन की तकनीकें

  • जड़त्वीय परिरोध (Inertial confinement): इस तकनीक में फ्यूल कैप्सूल को संपीडित करने के लिए लेजर/एक्स-रे का उपयोग किया जाता है।
  • चुंबकीय परिरोध (Magnetic confinement): इस तकनीक में प्लाज्मा को लगभग 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने के लिए प्रबल चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग किया जाता है।
    • भारत, फ्राँस की इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) परियोजना में भाग ले रहा है, जो चुंबकीय परिरोध (टोकामक डिजाइन) का उपयोग करता है।

नाभिकीय संलयन ऊर्जा प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  • अत्यधिक तापमान आवश्यकताएँ: प्लाज्मा को अत्यधिक ताप पर गर्म और बनाए रखना आवश्यक है।
  • निरंतर अभिक्रिया: लंबे समय तक प्लाज्मा के बंद रहने से यह प्रक्रिया अस्थिर हो सकती है।
  • उच्च प्रारंभिक लागत: अनुसंधान और रिएक्टर निर्माण में अरबों डॉलर की आवश्यकता होती है।
  • अभी तक कोई व्यावसायिक नाभिकीय संलयन नहीं: वर्तमान नाभिकीय संलयन प्रयोगों से अभी तक विद्युत उत्पन्न नहीं होती है।

भारत का रोडमैप

  • स्टेडी-स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामक-भारत (SST-भारत)
    • अवलोकन: प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान ने स्टेडी-स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामक-भारत के निर्माण का प्रस्ताव रखा है, जो एक नाभिकीय संलयन-विखंडन आधारित हाइब्रिड रिएक्टर के रूप में कार्य करेगा।
    • उत्पादन: इससे आउटपुट-इनपुट शक्ति अनुपात (5) उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिसमें नाभिकीय विखंडन से 100 मेगावाट और नाभिकीय संलयन से 30 मेगावाट विद्युत उत्पन्न होगी।
    • अनुमानित लागत: ₹25,000 करोड़।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य: वर्ष 2060 तक 20 के शक्ति अनुपात (Q मान)  और कुल 250 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाले एक प्रदर्शनात्मक रिएक्टर का चालू होना, जिसे व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य माना जाता है,।
  • वर्तमान क्षमता
    • IPR में SST-1 टोकामक: इसने लगभग 650 मिलीसेकंड तक प्लाज्मा को बनाए रखा है और इसे 16 मिनट तक बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • वैश्विक रिकॉर्ड: इसके विपरीत, फ्राँस स्थित वेस्ट टोकामक ने फरवरी 2025 में 22 मिनट तक प्लाज्मा बनाए रखकर वैश्विक रिकॉर्ड बनाया।

टोकामक (Tokamak)

  • परिभाषा: टोकामक एक ऐसा उपकरण है, जो नाभिकीय संलयन के लिए प्लाज्मा को नियंत्रित करने और उसे नियंत्रित करने के लिए चुंबकीय परिरोध का उपयोग करता है।
  • डिजाइन: डोनट के आकार का (टोरोइडल) कक्ष, जो शक्तिशाली अतिचालक चुंबकों से सुसज्जित है।

  • कार्यप्रणाली
    • प्लाज्मा को अत्यधिक तापमान (लगभग 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस) तक गर्म किया जाता है।
    • चुंबकीय क्षेत्र प्लाज्मा को सीमित कर देते हैं, जिससे वह रिएक्टर की दीवारों को स्पर्श नहीं कर पाता है।
    • नाभिकीय संलयन तब होता है, जब हाइड्रोजन के समस्थानिक (जैसे- ड्यूटेरियम और ट्राइटियम) मिलकर हीलियम बनाते हैं, जिससे अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
  • वैश्विक उदाहरण: ITER (फ्राँस), EAST (चीन), WEST (फ्राँस), SST-1 (भारत)।

प्रस्तावित नवाचार 

  • डिजिटल ट्विन्स: शोधकर्ताओं ने डिजिटल ट्विन्स बनाने का प्रस्ताव रखा है, जो एक टोकामक की आभासी प्रतिकृतियाँ हैं, जो वास्तविक समय में प्लाज्मा व्यवहार का अनुकरण करती हैं और भौतिक निर्माण से पूर्व डिजाइन परीक्षण की अनुमति देती हैं।
  • मशीन लर्निंग एकीकरण: प्लाज्मा परिरोधन और पूर्वानुमानित नियंत्रण में सहायता के लिए मशीन लर्निंग को एक उपकरण के रूप में सुझाया गया है, जिससे नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं की स्थिरता में सुधार होगा।
  • विकिरण-प्रतिरोधी सामग्री: इस रोडमैप में रिएक्टरों में तीव्र विकिरण को सहन करने में सक्षम सामग्रियों के विकास की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिससे स्थायित्व और परिचालन सुरक्षा में वृद्धि होगी।
  • अतिचालक चुंबक और प्लाज्मा मॉडलिंग (Superconducting Magnets and Plasma Modelling): भारत के नाभिकीय संलयन कार्यक्रम में दक्षता एवं विश्वसनीयता प्राप्त करने के लिए उन्नत अतिचालक चुंबकों और अधिक परिष्कृत प्लाज्मा मॉडलिंग तकनीकों का विकास आवश्यक माना जाता है।

वैश्विक तुलना

  • ITER (फ्राँस): विश्व की सबसे बड़ी चुंबकीय परिरोध परियोजना का लक्ष्य 10 का Q मान प्राप्त करना है।
  • STEP (यूनाइटेड किंगडम): ब्रिटेन वर्ष 2040 तक एक प्रोटोटाइप फ्यूजन प्लांट का प्रदर्शन करने की योजना बना रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका (निजी क्षेत्र): कई निजी कंपनियों का दावा है कि वे 2030 के दशक तक ग्रिड-कनेक्टेड फ्यूजन हासिल कर लेंगी।
  • चीन (EAST टोकामाक): चीन ने प्लाज्मा की अवधि के मामले में पहले ही रिकॉर्ड बना लिया है, जो इसकी तीव्र प्रगति को दर्शाता है।
  • भारत की समय-सीमा: भारत का वर्ष 2060 का लक्ष्य अधिक प्रभावकारी है। साथ ही इसे वैश्विक अग्रणी देशों से पीछे रखता है, लेकिन यह एक दीर्घकालिक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करता है।

चुनौतियाँ

  • तकनीकी चुनौतियाँ: लंबे समय तक प्लाज्मा को सीमित रखना तथा वाणिज्यिक रिएक्टरों तक इसका विस्तार करना कठिन कार्य बना हुआ है।
  • आर्थिक व्यवहार्यता: 25,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत और उच्च अनुसंधान एवं विकास व्यय बड़ी चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं तथा अन्य स्रोतों की तुलना में नाभिकीय संलयन ऊर्जा की सामर्थ्य अनिश्चित बनी हुई है।
  • नीतिगत और फंडिंग संबंधी बाधाएँ: भारत के प्रयास बड़े पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित हैं तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी बहुत कम है, जबकि अमेरिका और यूरोप में स्टार्ट-अप्स प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा से प्रतिस्पर्द्धा: वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लिए भारत की प्रतिबद्धताओं में सौर, पवन और परमाणु विखंडन को प्राथमिकता दी गई है, जो वित्तपोषण और नीतिगत फोकस के लिए नाभिकीय संलयन के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।

नाभिकीय संलयन अनुसंधान एवं विकास का रणनीतिक मूल्य

  • तकनीकी लाभ: नाभिकीय संलयन में अनुसंधान से विकिरण-प्रतिरोधी पदार्थों, अतिचालक चुंबकों, प्लाज्मा मॉडलिंग और उच्च-तापमान इंजीनियरिंग में प्रभावी आउटपुट की संभावना है।
  • औद्योगिक क्षमता: ये विकास भारतीय उद्योग को उन्नत बना सकते हैं, नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं और तकनीकी स्वायत्तता को मजबूत कर सकते हैं।
  • वैश्विक साझेदारियाँ: ITER में भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय फर्मों के साथ सहयोग से भारतीय प्रयोगशालाओं में परियोजना प्रबंधन विशेषज्ञता और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

आगे की राह

  • अधिक निवेश: भारत को नाभिकीय संलयन अनुसंधान के लिए वर्तमान में सीमित आवंटन से आगे भी अन्य माध्यमों से वित्तपोषण बढ़ाना होगा।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका: सार्वजनिक क्षेत्र के प्रयासों को पूरक बनाने के लिए निजी उद्योग और स्टार्ट-अप की अधिक भागीदारी की आवश्यकता है।
  • वैश्विक सहयोग: STEP (यू. के.) और EAST (चीन) जैसे उन्नत कार्यक्रमों के साथ साझेदारी से प्रौद्योगिकी-साझाकरण लाभ मिल सकता है।
  • मैटेरियल और AI पर ध्यान: विकिरण-प्रतिरोधी सामग्रियों का विकास, अतिचालक चुंबकों का विकास तथा AI के साथ डिजिटल ट्विन्स का उपयोग, प्रमुख तकनीकी बाधाओं को दूर कर सकता है।
  • नीतिगत तालमेल: नवीकरणीय ऊर्जा और नाभिकीय विखंडन के साथ पूरकता सुनिश्चित करने के लिए नाभिकीय संलयन अनुसंधान को भारत की व्यापक ऊर्जा सुरक्षा और नेट-जीरो रणनीति में एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • कौशल विकास: प्लाज्मा भौतिकी, पदार्थ विज्ञान और परमाणु सुरक्षा में विशेषज्ञता विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण तथा अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप का सृजन आवश्यक है।

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