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भारत की जहाज निर्माण अवसंरचना

Lokesh Pal September 29, 2025 03:14 22 0

संदर्भ

भारत सरकार ने भारत के जहाज निर्माण और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए 69,725 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है, जो मार्च 2026 में समाप्त होने वाले वर्ष 2015 के पैकेज का स्थान लेगा।

संबंधित तथ्य

  • इस नीति का उद्देश्य ऊर्जा दक्षता, स्थिरता और रणनीतिक सुरक्षा लक्ष्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, एक वैश्विक समुद्री केंद्र के रूप में भारत की भूमिका को बढ़ाना है।
  • भारत का लगभग 95% विदेशी व्यापार (मात्रा के हिसाब से) समुद्री मार्गों से होता है, लेकिन भारत चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे वैश्विक अग्रणी देशों से पीछे है।

पैकेज के मुख्य स्तंभ

  • जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (Shipbuilding Financial Assistance Scheme- SBFAS): ₹24,736 करोड़ की निधि के साथ 31 मार्च, 2036 तक विस्तारित किया गया है।
  • शिपब्रेकिंग क्रेडिट नोट (Shipbreaking Credit Note): पुनर्चक्रण और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिए ₹4,001 करोड़ का पैकेज जारी किया गया है।
  • समुद्री विकास निधि (Maritime Development Fund- MDF): ₹25,000 करोड़ का कोष, जिसके दो घटक हैं:-
    • समुद्री निवेश कोष (Maritime Investment Fund): इस क्षेत्र के विकास में तेजी लाने के लिए नए जहाज निर्माण उपक्रमों और संबंधित समुद्री बुनियादी ढाँचे में निवेश का समर्थन करता है।
    • ब्याज प्रोत्साहन कोष (Interest Incentivization Fund): जहाज निर्माताओं के लिए ऋणों पर ब्याज दरों में सब्सिडी प्रदान कर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है, जिससे ऋण अधिक किफायती हो जाता है और उद्योग की अधिक भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।
  • बुनियादी ढाँचा स्थिति: बड़े वाणिज्यिक जहाजों के लिए दीर्घकालिक, कम लागत वाले वित्त तक पहुँच सक्षम करना।

क्षमता विस्तार

  • जहाज निर्माण विकास योजना (Shipbuilding Development Scheme- SbDS): ₹19,989 करोड़ का परिव्यय किया जाएगा।
  • प्रतिवर्ष 4.5 मिलियन सकल टन भार (Gross Tonnage- GT) जहाज निर्माण क्षमता के सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • बड़े जहाज निर्माण समूहों और ब्राउनफील्ड/ग्रीनफील्ड यार्ड विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • परियोजनाओं के लिए बीमा और जोखिम कवरेज सहायता के साथ बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना।

तकनीक और कौशल विकास

  • भारतीय समुद्री विश्वविद्यालय के अंतर्गत भारतीय पोत प्रौद्योगिकी केंद्र की स्थापना की गई है।
  • अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने (पूर्वनिर्मित ब्लॉक, उच्च क्षमता वाली क्रेन, हरित नौवहन) पर ध्यान केंद्रित करना।
  • इस क्षेत्र के लिए कुशल कार्यबल तैयार करने हेतु विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।

नीति, कानूनी और संस्थागत सुधार

  • समन्वित नीति कार्यान्वयन हेतु राष्ट्रीय जहाज निर्माण मिशन का शुभारंभ।
  • अनुमोदनों को सुव्यवस्थित करने, अनुपालन बोझ को कम करने और निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए कानूनी, कराधान और नियामक सुधार।
  • आत्मनिर्भर भारत के अनुरूप प्रोत्साहन, भारतीय जहाज मालिकों को घरेलू स्तर पर नए निर्माण के ऑर्डर देने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

इस व्यापक पैकेज का महत्त्व

  • आर्थिक प्रभाव: ₹4.5 लाख करोड़ के निवेश को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 30 लाख नौकरियाँ उत्पन्न होंगी।
    • विदेशी शिपिंग कंपनियों को जाने वाले भारत के ₹6 लाख करोड़ (लगभग 75 अरब डॉलर) के वार्षिक व्यय को कम किया जा सकेगा।
    • जहाज निर्माण, जिसे ‘मदर ऑफ हेवी इंजीनियरिंग’ कहा जाता है, रोजगार सृजन, निवेश और रणनीतिक स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • व्यापार केंद्र: हिंद महासागर के शिपिंग मार्गों पर स्थित भारत, रसद, पोत रखरखाव और निर्यात के केंद्र के रूप में उभर सकता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: वैश्विक शिपिंग और जहाज निर्माण बाजारों में भारत को एक मजबूत दावेदार के रूप में स्थापित करना।
    • भारत जहाज निर्माण में केवल 0.06% बाजार हिस्सेदारी के साथ वैश्विक स्तर पर 20वें स्थान पर है और वर्ष 2030 तक शीर्ष 10 और वर्ष 2047 तक शीर्ष 5 में शामिल होने का लक्ष्य रखता है।
  • समुद्री व्यापार: भारत के समुद्री क्षेत्र को मजबूत करता है, जो मात्रा के हिसाब से 95% और मूल्य के हिसाब से 70% व्यापार का प्रबंधन करता है।
  • भू-राजनीतिक सुरक्षा: स्वदेशी जहाज निर्माण क्षमता का विस्तार ऊर्जा, खाद्य और समुद्री सुरक्षा को बढ़ाता है।
  • स्थायित्व: हरित, ईंधन-कुशल, कम उत्सर्जन वाले जहाजों के निर्माण को बढ़ावा देना वैश्विक जलवायु नियमों के अनुरूप है।
  • आत्मनिर्भर भारत: घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देता है और विदेशी जहाज निर्माताओं पर निर्भरता कम करता है।

भारत के जहाज निर्माण में वर्तमान चुनौतियाँ

  • बड़े वाणिज्यिक जहाजों केनिर्माण की नगण्य क्षमता: पिछले दशक में, भारत ने अल्प मात्रा में लघु वाणिज्यिक जहाज निर्मित किए हैं, जबकि बड़े जहाजों के निर्माण की क्षमता नगण्य है।
  • तकनीकी कमियाँ: भारतीय जहाज निर्माण क्षेत्र में पूर्वनिर्मित ‘ब्लॉक असेंबली’, भारी-भरकम क्रेन (लगभग 1000 टन) और लंबी असेंबली लाइनों जैसी उन्नत क्षमताओं का अभाव है, जो कोरिया, जापान और चीन में सामान्य हैं।
  • लंबा टर्नअराउंड समय: भारत में जहाज निर्माण में 2-3 वर्ष  लगते हैं, जबकि वैश्विक रूप से जहाजों के निर्माण में लगभग 1 वर्ष का समय लगता है, जिससे पूँजी व्यय बढ़ जाता है और प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
  • सहायक पारिस्थितिकी तंत्र का कमजोर होना: अपर्याप्त आपूर्ति शृंखलाएँ और सहायक उद्योग निर्माण में देरी करते हैं और लागत बढ़ा देते हैं।
  • वित्तपोषण संबंधी अवरोध: लघु जहाज निर्माण (500 गीगाटन और उससे अधिक) को छोड़कर, नीतिगत लाभ (जैसे कम ब्याज दरें) केवल बड़े जहाजों पर लागू होते हैं।
  • माँग की स्पष्टता का अभाव: भारतीय जहाज मालिकों को दीर्घकालिक माँग में अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सब्सिडी के बावजूद घरेलू शिपयार्ड में निवेश हतोत्साहित हो रहा है।

वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियाँ

  • ‘प्रीफैब्रिकेशन’ और ‘असेंबली-लाइन’ आधारित जहाज निर्माण: कोरियाई, जापानी और चीनी शिपयार्ड में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जिससे लागत और निर्माण समय कम होता है।
  • संस्थागत समर्थन: चीन ने विशेष रूप से बड़े पैमाने पर जहाज निर्माण को समर्थन देने के लिए प्रशिक्षण संस्थान और अनुसंधान सुविधाएँ विकसित की हैं।

आगे की राह

  • प्रारंभिक प्रयास करना: बड़े व्यापारिक जहाजों के निर्माण की ओर बढ़ने से पूर्व, 500 गीगावाट और उससे अधिक क्षमता वाले जहाजों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना ताकि अतिरिक्त क्षमता का निर्माण किया जा सके।
  • बुनियादी ढाँचे का उन्नयन करना: लंबे डॉक, उच्च क्षमता वाले क्रेन और ‘प्रीफैब ब्लॉक’ तकनीक के साथ यार्ड का आधुनिकीकरण करना।
  • सहायक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना: जहाज निर्माण घटकों और आपूर्ति शृंखलाओं के लिए कारखानों के समूह विकसित करना।
  • हरित ईंधन नीति का लाभ उठाना: हरित ईंधन निर्यात केंद्रों (जैसे- काकीनाडा, कोच्चि) को हरित जहाज निर्माण पहलों के साथ जोड़ना।
  • दीर्घकालिक तंत्र लागू करना: जहाज मालिकों को सुनिश्चित माँग प्रदान करने के लिए राज्य उपयोगिताओं (कोयला, कच्चे तेल का आयात) के साथ अनुबंध/ चार्टर का निर्माण करना।
  • मानव पूँजी विकास: जहाज निर्माण इंजीनियरों और कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करने के लिए विशेष संस्थान स्थापित करना।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग: सार्वजनिक क्षेत्र के यार्ड (जैसे- कोचीन शिपयार्ड, हिंदुस्तान शिपयार्ड) संयुक्त उद्यमों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों और डिजाइन साझेदारी के लिए निजी फर्मों तथा वैश्विक प्रमुख कंपनियों के साथ सहयोग कर सकते हैं।
    • वैश्विक जहाज निर्माण मूल्य शृंखलाओं में भारत की भागीदारी सुनिश्चित करना।
  • स्पष्ट मानक: यार्ड प्रदर्शन ऑडिट शुरू करने और इन मानकों को प्राप्त करने के लिए सरकारी प्रोत्साहनों की संबद्धता से जवाबदेही और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित होगी।
    • उदाहरण: जहाँ चीन थोक वाहकों के निर्माण में अग्रणी है, जापान टैंकर निर्माण में उत्कृष्टता प्रदर्शित करता है और दक्षिण कोरिया LNG वाहकों के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाता है, भारत एक विशिष्ट क्षेत्र (जैसे- मध्यम आकार के जहाज या हरित जहाज) का चयन कर वैश्विक जहाज निर्माण उद्योग में अपनी एकीकृत पहचान बना सकता है।

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