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नीति आयोग ने कर नीति कार्य-पत्र जारी किया

Lokesh Pal October 07, 2025 04:15 33 0

संदर्भ

नीति आयोग ने भारत में विदेशी निवेशकों के लिए स्थायी प्रतिष्ठान (Permanent Establishment- PE) एवं लाभ निर्धारण पर कर नीति कार्य-पत्र जारी किया।

कर नीति कार्य-पत्र के बारे में

  • कार्य-पत्र में तर्क दिया गया है कि जैसे-जैसे भारत वर्ष 2047 तक विकसित भारत की ओर बढ़ रहा है, गुणवत्तापूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI)/विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI) को आकर्षित करने के लिए कर नियमों को पूर्वानुमानित, पारदर्शी एवं कुशल होना चाहिए।
  • यह एक निवेशक-अनुकूल कर व्यवस्था बनाने, मुकदमेबाजी को कम करने तथा राजस्व हितों की रक्षा करते हुए भारत की कर नीति को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाने पर केंद्रित है।

स्थायी प्रतिष्ठान (PE) एवं लाभ निर्धारण के बारे में

  • स्थायी प्रतिष्ठान व्यवसाय का एक निश्चित स्थान (कार्यालय, शाखा, निर्माण स्थल, या यहाँ तक कि एक डिजिटल उपस्थिति) होता है, जिसके माध्यम से कोई विदेशी उद्यम भारत में कार्य करता है।
  • यह उस विदेशी संस्था की व्यावसायिक आय पर कर लगाने के भारत के अधिकार को निर्धारित करता है।
  • आयकर अधिनियम, 1961 में व्यावसायिक संबंध (धारा 9) शब्द का प्रयोग किया गया है एवं भारत के दोहरे कर परिहार समझौतों (Double Tax Avoidance Agreements- DTAAs) में विस्तृत परिभाषाएँ दी गई हैं।
  • वर्ष 2018 में जोड़ा गया एवं वर्ष 2021 में लागू किया गया महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (Significant Economic Presence- SEP) नियम, भौतिक उपस्थिति के बिना डिजिटल गतिविधियों  पर भी कराधान का विस्तार करता है।
  • लाभ निर्धारण का अर्थ है यह निर्धारित करना कि किसी विदेशी कंपनी के कुल लाभ का कितना हिस्सा उसके भारतीय परिचालन (PE) से जुड़ा है एवं इसलिए उस पर भारत में कर लगाया जा सकता है।

अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौता (Advance Pricing Agreement- APA)

  • APA करदाता एवं आयकर विभाग के बीच एक पूर्व-सहमति वाला समझौता होता है, जो यह तय करता है कि भविष्य के अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए लाभ तथा करों की गणना कैसे की जाएगी।
  • यह 3-5 वर्षों (या उससे अधिक) के लिए स्थानांतरण मूल्य निर्धारण पर निश्चितता प्रदान करता है।

पारस्परिक समझौता प्रक्रिया (Mutual Agreement Procedure- MAP)

  • एक संधि-आधारित प्रक्रिया, जिसमें दो देशों के कर अधिकारी उन मामलों पर चर्चा एवं समाधान करते हैं, जहाँ एक करदाता की एक ही आय पर दो बार कर लगाया जा सकता है।
  • यह सीमा पार कर विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने में मदद करता है।

OECD की TRACE प्रणाली

  • TRACE (Treaty Relief and Compliance Enhancement)  (संधि राहत एवं अनुपालन संवर्द्धन) एक OECD ढाँचा है, जो विदेशी निवेशकों द्वारा लाभांश, ब्याज या रॉयल्टी पर कर कटौती से राहत का दावा करने के तरीके को सरल बनाता है।
  • यह कैसे कार्य करता है: प्रमाणित मध्यस्थ (जैसे-संरक्षक) निवेशक की पहचान एवं संधि पात्रता सत्यापित करते हैं, जिससे विलंबित धन वापसी के स्थान पर स्वतः कम कर कटौती की अनुमति मिलती है।
  • यह क्यों महत्त्वपूर्ण है: कागजी कार्रवाई कम करता है, दोहरे कराधान को रोकता है एवं पारदर्शिता बढ़ाता है।
  • वैश्विक उपयोग: फिनलैंड एवं नीदरलैंड जैसे देशों में अपनाया गया।

कार्य-पत्र से कर निश्चितता एवं पूर्वानुमानशीलता बढ़ाने के लिए रणनीतिक सिफारिशें

  • विधायी स्पष्टता: PE परिभाषाओं एवं लाभ-निर्धारण सिद्धांतों को संहिताबद्ध करना (संयुक्त राष्ट्र/OECD के अनुरूप), पृथक-उद्यम नियम को शामिल करना एवं पूर्वव्यापी संशोधनों के विरुद्ध सुरक्षा उपाय अपनाना (केवल सीमित मामलों को छोड़कर, उचित प्रक्रिया के साथ)।
  • मजबूत विवाद समाधान एवं सहकारी अनुपालन: शीघ्र निपटान के लिए अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौते (APA) एवं पारस्परिक समझौता प्रक्रिया (MAP) का विस्तार करना।
    • अनसुलझे सीमा-पार मामलों में बाध्यकारी मध्यस्थता की संभावना तलाशना।
    • FPI के लिए ‘विदहोल्डिंग-टैक्स’ प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए OECD ट्रेस प्रणाली को अपनाना।
  • क्षमता निर्माण, हितधारक जुड़ाव, चार्टर-आधारित प्रशासन: आधुनिक अंतरराष्ट्रीय-कर एवं डिजिटल-अर्थव्यवस्था के मुद्दों में कर अधिकारियों को प्रशिक्षित करना।
    • अधिकारों को संस्थागत बनाने एवं पूर्वानुमानितता लाने के लिए बड़े कर परिवर्तनों से पहले अनिवार्य सार्वजनिक परामर्श को प्रोत्साहित करना।
    • जवाबदेही एवं विश्वास को मजबूत करने के लिए करदाता चार्टर लागू करना।

भारत की सफल प्रकल्पित व्यवस्थाएँ

  • भारत की सफल प्रकल्पित व्यवस्थाओं जैसे शिपिंग (44B), तेल-क्षेत्र सेवाएँ (44BB) को प्रतिबिंबित करती हैं।
  • वित्त अधिनियम 2024 में 44BBC (क्रूज ऑपरेटर) को जोड़ा गया एवं वित्त विधेयक 2025 में 44BBD (इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवाएँ) का प्रस्ताव रखा गया, जो प्रशासनिक व्यवहार्यता तथा दृष्टिकोण की निरंतरता को दर्शाता है।

  • वैकल्पिक प्रकल्पित कराधान योजना लागू करना: विदेशी कंपनियाँ उद्योग के आधार पर भारत से प्राप्त राजस्व के पूर्व-निर्धारित प्रतिशत पर कर का भुगतान करने का विकल्प चुन सकती हैं। एक बार विकल्प चुनने के बाद, कर अधिकारी इस बात पर दोबारा विचार नहीं कर सकते कि उस गतिविधि के लिए कोई PE मौजूद है या नहीं (सुरक्षित बंदरगाह संरक्षण)।
    • वैकल्पिक एवं खंडन योग्य: यदि वास्तविक लाभ कम है, तो फर्म इससे बाहर निकल सकती है एवं सामान्य रिटर्न दाखिल कर सकती है।
    • यह क्यों महत्त्वपूर्ण है: इससे PE/एट्रिब्यूशन विवाद कम हो जाते हैं, जो अन्यथा 6-12 वर्षों तक चलते हैं।

विदेशी निवेशकों के लिए भारत के कर परिवेश में चुनौतियाँ

  • FDI में वृद्धि, लेकिन और संभावना: भारत का FDI इक्विटी प्रवाह 5,856 मिलियन अमेरिकी डॉलर (2005-06) से बढ़कर अनंतिम रूप से 50,018 मिलियन अमेरिकी डॉलर (2024-25) हो गया, जो मजबूत आकर्षण के साथ-साथ अस्थिरता को भी दर्शाता है।
  • मुकदमेबाजी की लागत एवं समय: प्रमुख PE विवादों को अंतिम रूप लेने में आमतौर पर 6-12 वर्ष लगते हैं (उदाहरण के लिए, मोटोरोला/एरिक्सन/नोकिया, रोल्स रॉयस, हयात) जिससे ब्याज/आकस्मिक देनदारियाँ बढ़ती हैं एवं प्रबंधकीय बैंडविड्थ बाधित होती है।
  • विकसित होते, बहुस्तरीय नियम अनिश्चितता बढ़ाते हैं: कर संबंध घरेलू कानून (धारा 9 “व्यावसायिक संबंध”, SEP), दोहरे कर परिहार समझौतों (Double Tax Avoidance Agreements- DTAAs) (संयुक्त राष्ट्र-मॉडल झुकाव), एवं वैश्विक सुधारों (जैसे आधार क्षरण तथा लाभ स्थानांतरण) द्वारा आकार लेते हैं।
  • डिजिटल युग की कमियाँ: कई डिजिटल कंपनियाँ बिना भौतिक कार्यालयों वाले भारतीय उपयोगकर्ताओं से कमाई करती हैं, जिससे यह स्पष्ट नहीं होता कि लाभ पर कहाँ कर लगाया जाना चाहिए।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था का अंतर: भारत ने बिना भौतिक उपस्थिति वाली डिजिटल फर्मों से मूल्य प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (Significant Economic Presence- SEP) (वित्त वर्ष 2021-22 से) लागू की है, लेकिन एट्रिब्यूशन के लिए अभी भी पूर्वानुमान के स्पष्ट नियमों की आवश्यकता है।

अनुमानित कर व्यवस्था के बारे में

  • एक सरलीकृत कर योजना, जिसमें आय की गणना वास्तविक आय के बजाय लाभ की अनुमानित दर के आधार पर की जाती है। इसे छोटे व्यवसायों एवं पेशेवरों के लिए अनुपालन बोझ को कम करने तथा कर दाखिल करने को सरल बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।

महत्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (Significant Economic Presence- SEP)

  • वित्त अधिनियम, 2018 (अप्रैल 2021 से प्रभावी) में प्रस्तुत, SEP भारत के कर संबंधों को भौतिक उपस्थिति से आगे बढ़ाता है।
  • यह भारत को उन डिजिटल एवं ऑनलाइन व्यवसायों पर कर लगाने की अनुमति देता है, जो भारतीय उपयोगकर्ताओं से राजस्व अर्जित करते हैं, भले ही उनका यहाँ कोई कार्यालय या शाखा न हो।

प्रकल्पित कर व्यवस्था के प्रत्याशित लाभ

  • कम विवाद: स्पष्ट कर नियम PE एवं लाभ निर्धारण पर विवादों को कम करते हैं, जिससे कंपनियों तथा कर अधिकारियों दोनों के समय एवं संसाधनों की बचत होती है।
  • निवेशक विश्वास: पूर्वानुमानित कर विदेशी फर्मों को बेहतर योजना बनाने में मदद करते हैं, जिससे भारत में व्यापार करने में आसानी होती है एवं प्रौद्योगिकी तथा बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित होता है।
  • प्रशासनिक दक्षता: सरलीकृत प्रकल्पित नियम लेखा परीक्षा की जटिलता एवं अनुपालन लागत को कम करते हैं, जिससे कर अधिकारी उच्च जोखिम वाले मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
  • राजस्व स्थिरता: कंपनियाँ निश्चितता के लिए एक निश्चित दर का भुगतान करना पसंद कर सकती हैं, जिससे स्थिर या उससे भी अधिक कर संग्रह होता है। यह पहले से अपंजीकृत फर्मों को भी कर के दायरे में लाता है।
  • “मेक इन इंडिया” के लिए समर्थन: तकनीकी एवं सेवा क्षेत्रों के लिए सरलीकृत नियम विदेशी सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा विनिर्माण साझेदारी को प्रोत्साहित करते हैं।
  • उच्च स्वैच्छिक अनुपालन: वैकल्पिक योजना ईमानदार करदाताओं को सुविधा प्रदान करती है, जबकि कर चोरी एवं मनमाने कर निर्धारण को हतोत्साहित करती है।

आगे की राह

  • विधायी परिवर्तन: प्रत्येक क्षेत्र के लिए नई धाराएँ (अन्य अनुमानित कर कानूनों की तरह) जोड़ी जानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अन्य प्रावधान एक-दूसरे से ओवरलैप न हों।
  • संधि अनुकूलता: इस योजना को भारत की कर संधियों के अनुरूप होना चाहिए। इसकी वैकल्पिक प्रकृति टकराव से बचने में मदद करती है, लेकिन भारत प्रमुख भागीदारों के साथ नए प्रावधानों पर बातचीत कर सकता है।
  • दर निर्धारण: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes- CBDT) को अधिसूचनाओं के माध्यम से क्षेत्रवार दरें तय करने एवं उनकी समीक्षा करने का अधिकार देना, ताकि व्यावसायिक मॉडल विकसित होने के साथ-साथ लचीलापन सुनिश्चित हो सके।
  • दुरुपयोग-रोधी नियम: बहु-वर्षीय ‘लॉक-इन’ एवं विभिन्न व्यवस्थाओं के बीच बार-बार बदलाव पर सीमा जैसे उपायों के माध्यम से दुरुपयोग को रोकना।
  • जागरूकता एवं मार्गदर्शन: सुचारू क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए करदाताओं एवं अधिकारियों, दोनों के लिए स्पष्ट परिपत्र, प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न तथा प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रकाशित करना।
  • आवधिक समीक्षा: परिणामों का आकलन करने एवं आवश्यकता पड़ने पर योजना के कुछ हिस्सों को पुनर्निर्धारित या बंद करने के लिए 5-10 वर्ष का ‘सनसेट क्लॉज’ शामिल करना।

भारत एवं वैश्विक कर सुधार

वैश्विक कराधान नियम बदल रहे हैं क्योंकि कई कंपनियाँ बिना किसी भौतिक कार्यालय के, विशेष रूप से डिजिटल अर्थव्यवस्था (जैसे, गूगल, नेटफ्लिक्स, अमेजन) वाले देशों में, लाभ कमा रही हैं।

  • OECD-G20 BEPS परियोजना: इस समस्या से निपटने के लिए, भारत समेत 130 से अधिक देश आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)-G20 BEPS परियोजना (आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण) के तहत कार्यरत हैं।
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कम कर वाले देशों में अपना लाभ स्थानांतरित करने से रोकना है। इसमें 15 “कार्रवाई” (सिफारिशें) हैं एवं इनमें से एक प्रमुख है- कार्रवाई 7।
    • कार्रवाई 7: कंपनियों को यह दावा करके करों से बचने से रोकती है कि उनका कोई स्थायी प्रतिष्ठान (PE) नहीं है। यहाँ तक कि अप्रत्यक्ष या डिजिटल संचालन पर भी कर लगाया जा सकता है।
  • स्तंभ एक एवं स्तंभ दो: वर्ष 2019 में, देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि और अधिक सुधारों की आवश्यकता है, विशेष रूप से गूगल, फेसबुक, अमेजन जैसी डिजिटल कंपनियों के लिए। इसलिए स्तंभ एक एवं दो की शुरुआत की गई।
    • स्तंभ एक: बाजार वाले देशों (जहाँ उपभोक्ता हैं) को अधिक कर लगाने के अधिकार देता है, भले ही कंपनियों का वहाँ कोई कार्यालय न हो।
    • स्तंभ दो: 15% वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट कर लागू करता है, जिससे बहुत कम या शून्य कर वाले कर-मुक्त देशों में लाभ स्थानांतरित होने से रोका जा सके।
  • भारत के शुरुआती कदम: भारत पहले ही इसी तरह के विचार प्रस्तुत कर चुका है:
    • महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (SEP): भारत को उन डिजिटल फर्मों पर कर लगाने की अनुमति देता है, जो भारतीय उपयोगकर्ताओं से कमाई करती हैं, भले ही उनका यहाँ कोई कार्यालय न हो।
    • समानीकरण शुल्क (2%): विदेशी कंपनियों द्वारा अर्जित ऑनलाइन विज्ञापन एवं ई-कॉमर्स आय पर कर।

निष्कर्ष

NITI आयोग के प्रस्तावों का उद्देश्य भारत की कर प्रणाली को स्पष्ट, पूर्वानुमानित एवं निवेशक-अनुकूल बनाना है। PE नियमों को सरल बनाकर, वैकल्पिक अनुमानित कराधान लागू करके तथा वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ तालमेल बिठाकर, भारत मुकदमेबाजी में कमी ला सकता है, निवेशकों का विश्वास बढ़ा सकता है एवं अपने विकसित भारत @2047 विजन के और करीब पहुँच सकता है।

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