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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal October 08, 2025 03:24 51 0

डूमस्क्रॉलिंग

बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बीच, विशेष रूप से युवा पेशेवरों में, नकारात्मक समाचारों के निरंतर संपर्क या ‘डूमस्क्रॉलिंग’ (Doomscrolling) को तनाव, चिंता और उत्पादकता में गिरावट का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।

डूमस्क्रॉलिंग क्या है? 

  • डूमस्क्रॉलिंग वह मनोवैज्ञानिक व्यवहार है, जिसमें व्यक्ति लगातार नकारात्मक समाचारों को ऑनलाइन पढ़ता या देखता रहता है।
  • यह व्यवहार मस्तिष्क के रिवार्ड सिस्टम को सक्रिय करता है, एमिग्डाला को अधिक उत्तेजित करता है और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स को कमजोर करता है, जिसके परिणामस्वरूप चिंता में वृद्धि, ध्यान में कमी, और निर्णय लेने की क्षमता में गिरावट आती है।
  • यह प्रवृत्ति मानव मस्तिष्क की नकारात्मकता की प्रवृत्ति और समाचार शीर्षकों की अनिश्चित प्रकृति के कारण और भी मजबूत होती जाती है।

डूमस्क्रॉलिंग से बचने के उपाय

  • डिजिटल सीमाएँ निर्धारित करना: ऐप उपयोग पर टाइमर लगाना, पुश नोटिफिकेशन बंद करना और नियमित रूप से समाचार देखने के लिए निश्चित समय तय करना, ताकि लगातार स्क्रॉलिंग की आदत कम की जा सके।

जागरूकता संबंधी आदतों को अपनाना:  ध्यान, गहरी साँस लेने के अभ्यास या योग करना,  और नकारात्मक समाचारों के साथ सकारात्मक या तटस्थ सामग्री का संतुलन बनाना, जिससे मस्तिष्क को स्वस्थ एकाग्रता और भावनात्मक नियंत्रण की दिशा में पुनः प्रशिक्षित किया जा सके।

BRO द्वारा विश्व की सबसे ऊँची मोटर योग्य सड़क का निर्माण

प्रोजेक्ट हिमांक (Project Himank) सीमा सड़क संगठन (BRO) की एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जिसने पूर्वी लद्दाख के ‘मिग ला पास’ (Mig La Pass) में 19,400 फीट की ऊँचाई पर विश्व की सबसे ऊँची मोटर योग्य सड़क का निर्माण कर इतिहास रच दिया है।

प्रोजेक्ट के बारे में

  • यह सड़क उमलिंग ला पास (Umling La Pass) की सड़क (19,024 फीट, निर्मित 2021) के पिछले विश्व रिकॉर्ड से  भी अधिक है।
  • इंजीनियरिंग उपलब्धि: सड़क निर्माण में उन्नत निर्माण सामग्री और शीत-प्रतिरोधी तकनीक का प्रयोग किया गया ताकि प्रत्येक मौसम में सड़क की स्थिरता और संपर्कता बनी रहे।
  • संपर्कता: ‘मिग ला’ पास लद्दाख, भारत में भारत–चीन सीमा के पास स्थित है, जो हानले क्षेत्र को फुकचे सीमा गाँव से जोड़ता है।
  • यह सड़क रक्षा तैयारियों को मजबूत करती है और स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देती है, क्योंकि यह सीमा क्षेत्रों तक रणनीतिक पहुँच  प्रदान करती है।

प्रोजेक्ट हिमांक के बारे में

  • स्थापना: 4 दिसंबर, 1985 को लेह (Leh) में सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा की गई।
  • उद्देश्य: लद्दाख क्षेत्र में सड़क संचार (Road Connectivity) विकसित करना, जहाँ मौसम अत्यंत कठोर और भू-भाग अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है।

शीत-प्रतिरोधी प्रौद्योगिकी (Cold Resistant Technology): रेजुपेव (REJUPAVE)

  • केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CSIR-CRRI) द्वारा विकसित, इस जैव-तेल-आधारित डामर संशोधक का उपयोग बिटुमिनस सड़क निर्माण में कम और शून्य से नीचे के तापमान पर काम करने के लिए किया जाता है।
  • यह बिटुमिनस मिश्रण के लिए आवश्यक तापन को काफी कम कर देता है और परिवहन के दौरान ऊष्मा को बनाए रखता है, जिससे बर्फबारी में भी निर्माण कार्य संभव हो पाता है।
  • REJUPAVE से बनी सड़कें अधिक सतत् होती हैं और तापीय दरारों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं।

NOSDCP और NATPOLREX

हाल ही में भारतीय तटरक्षक बल (ICG) ने चेन्नई तट (तमिलनाडु) के पास 10वाँ राष्ट्रीय स्तरीय प्रदूषण प्रतिक्रिया अभ्यास (National Level Pollution Response Exercise-NATPOLREX-X) तथा 27वीं राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना (National Oil Spill Disaster Contingency Plan-NOSDCP) बैठक का आयोजन किया।

राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना (National Oil Spill Disaster Contingency Plan – NOSDCP)

  • प्रारंभ: यह योजना भारतीय तटरक्षक बल (ICG) द्वारा तैयार की गई थी और वर्ष 1993 में अनुमोदित की गई।
  • मुख्य उद्देश्य:  समुद्री तेल रिसाव के प्रति समन्वित, त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करना। इसके लिए केंद्रीय मंत्रालयों, तटीय राज्य सरकारों, प्रमुख बंदरगाहों और तेल-प्रबंधन उद्योगों के बीच सहयोगात्मक तंत्र स्थापित किया गया है।
  • प्रतिभागिता: इस बैठक में 105 राष्ट्रीय प्रतिनिधियों और 32 देशों के 40 विदेशी पर्यवेक्षकों ने भाग लिया,  जिससे प्रदूषण नियंत्रण एवं प्रतिक्रिया तंत्र पर ज्ञान-विनिमय और नीतिगत संवाद  को प्रोत्साहन मिला।

राष्ट्रीय स्तरीय प्रदूषण प्रतिक्रिया अभ्यास (National Level Pollution Response Exercise-NATPOLREX-X)

  • परिचय:  NATPOLREX भारतीय तटरक्षक बल का एक द्विवार्षिक (Biennial) प्रमुख अभ्यास है, जिसका उद्देश्य NOSDCP योजना को व्यावहारिक रूप से लागू करना है।
  • उद्देश्य: समुद्र और तट-आधारित सिमुलेशन के माध्यम से प्रभावी समुद्री तेल रिसाव प्रतिक्रिया के लिए राष्ट्रीय तैयारियों, परिचालन तत्परता का परीक्षण करना और अंतर-एजेंसी समन्वय को बढ़ाना।
  • NATPOLREX- X में प्रतिभागी: ICG ने प्रदूषण नियंत्रण पोत, अपतटीय गश्ती पोत, तीव्र गश्ती पोत, चेतक और डोर्नियर विमान तैनात किए और तमिलनाडु के अधिकारियों, केंद्रीय एजेंसियों और प्रमुख बंदरगाहों के साथ मिलकर कार्य किया।

भारत की 75% से अधिक ऊर्जा आवश्यकताएँ समुद्री तेल आयात से पूरी होती हैं। इसलिए एक मजबूत और समन्वित तेल रिसाव प्रतिक्रिया प्रणाली  बनाए रखना राष्ट्रीय रणनीतिक हित का विषय है।

वन्यजीव सप्ताह 2025

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने देहरादून में ‘वन्यजीव सप्ताह’ 2025 के उत्सव की अध्यक्षता की।

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • कार्यक्रम के दौरान, मंत्री ने प्रजाति संरक्षण और संघर्ष प्रबंधन के लिए 5 राष्ट्रीय स्तर की परियोजनाओं का उद्घाटन किया।

वन्यजीव सप्ताह 2025 के बारे में

  • परिचय: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (WII), इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE), इंदिरा गांधी नेशनल फॉरेस्ट अकादमी (IGNFA) और फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (FRI) के साथ मिलकर आयोजित किया गया।
  • उद्देश्य: संस्थानों के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देना, वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के लिए समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करना।
  • वार्षिक उत्सव: प्रत्येक वर्ष 2 से 8 अक्टूबर तक भारत में वन्यजीव सप्ताह मनाया जाता है। यह वर्ष 1952 में शुरू हुआ था और वर्तमान में  भी पीढ़ियों को प्रकृति की रक्षा और उसके संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित करता है।
  • वर्ष 2025 की थीम: ‘मानव-वन्यजीव सहअस्तित्व’ (Human-Wildlife Coexistence)

परियोजनाओं और पहलों के बारे में 

राष्ट्रीय स्तर की प्रजाति संरक्षण और संघर्ष प्रबंधन परियोजनाएँ

  • प्रोजेक्ट डॉल्फिन (Phase-II): पूरे भारत में नदी और समुद्री सिटेशियंस (Cetaceans) के संरक्षण को मजबूत करना।
  • प्रोजेक्ट स्लॉथ बियर: स्लॉथ बियर के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय ढाँचा लागू करना।
  • प्रोजेक्ट घड़ियाल: घड़ियाल संरक्षण और जनसंख्या प्रबंधन के लिए कार्य योजना।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष के लिए उत्कृष्टता केंद्र (CoE-HWC) सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) में स्थापित किया गया है, जो नीति, अनुसंधान और क्षेत्र-आधारित संघर्ष शमन का समर्थन करेगा।
  • बाघ अभयारण्यों के बाहर बाघ (Tigers Outside Tiger Reserves) संरक्षण: संरक्षित क्षेत्रों के बाहर संघर्षों को प्रौद्योगिकी, सामुदायिक भागीदारी और परिदृश्य दृष्टिकोण से संबोधित करना।

अन्य पहल

  • चार राष्ट्रीय स्तर की कार्य योजनाओं का शुभारंभ।
    • डॉल्फिन और अन्य सिटेशियंस की जनसंख्या के दूसरे चरण का अनुमान, जिसमें पुस्तिका और फील्ड गाइड का प्रकाशन शामिल है।
    • ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन साइकिल–6: फील्ड गाइड का आठ क्षेत्रीय भाषाओं में विमोचन।
    • हिम तेंदुआ संख्या अनुमान के दूसरे चक्र की कार्य योजना।
    • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन की संख्या के अनुमान पर प्रगति रिपोर्ट।
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष सहअस्तित्व पर राष्ट्रीय हैकाथॉन: इसमें 120 टीमों और 420 युवाओं ने भाग लिया, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्थानिक विश्लेषण (Spatial Analytics) समाधानों को बढ़ावा देता है।
  • महत्त्व: वन्यजीव सप्ताह, 2025 संस्थागत सामंजस्य, सामुदायिक भागीदारी और तकनीकी नवाचार के माध्यम से भारत की जैव विविधता की रक्षा करने की दिशा में एक प्रमुख कदम है।

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नई पहल

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने बिहार विधानसभा चुनावों से पहले 17 नई पहलें शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना, मतदाताओं की सुविधा सुनिश्चित करना और चुनावी प्रक्रिया में तकनीकी एकीकरण को सशक्त बनाना है।

निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई प्रमुख पहलें 

  • 100% वेबकास्टिंग (Webcasting) सभी मतदान केंद्रों पर: पहली बार, बिहार के सभी मतदान केंद्रों को लाइव वेबकास्टिंग की सीमा में लाया जाएगा। इससे रियल टाइम निगरानी संभव होगी और चुनावी पारदर्शिता में उल्लेखनीय सुधार होगा।
  • मतदाता सुविधा में वृद्धि
    • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर उम्मीदवारों के रंगीन फोटो: अब उम्मीदवारों के नाम के साथ रंगीन फोटो भी प्रदर्शित होंगे,  जिससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति कम होगी।
    • मतदाता पर्चियों पर बड़ा फॉन्ट: मतदाता सूची में नाम बड़े और स्पष्ट अक्षरों में मुद्रित किए जाएँगे, ताकि मतदाताओं को अपने मतदान केंद्र को ढूँढ़ने में आसानी हो।
  • ECI नेट एप्लिकेशन की शुरुआत:  यह एक एकीकृत डिजिटल मंच (One-stop Digital Platform) के रूप में कार्य करेगा,  जो मतदाताओं, चुनाव अधिकारियों और राजनीतिक दलों — तीनों को एक ही नेटवर्क से जोड़ेगा।

कोरल लार्वा क्रायोबैंक

फिलीपींस ने दक्षिण-पूर्व एशिया का पहला कोरल लार्वा क्रायोबैंक स्थापित किया है ताकि कोरल ट्रायंगल में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण तथा आवासीय क्षरण से खतरे में पड़े कोरल रीफ्स को संरक्षित और पुनर्स्थापित किया जा सके।

कोरल लार्वा के बारे में 

  • कोरल लार्वा छोटे, मुक्त-तैरने वाले “सीड” होते हैं, जो कोरल स्पॉनिंग के दौरान उत्पन्न होते हैं; ये समुद्र तल पर नई कोरल कॉलोनियाँ स्थापित करते हैं।
    • वे रीफ पुनर्जनन और समुद्री जैव विविधता को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
  • कोरल रीफ्स कोरल ट्रायंगल में मत्स्यपालन, पर्यटन और तटीय संरक्षण के माध्यम से 12 करोड़ से अधिक लोगों का समर्थन करते हैं।
  • कोरल ट्रायंगल एक समुद्री क्षेत्र है, जो पश्चिमी प्रशांत महासागर और पूर्वी हिंद महासागर में स्थित है, जिसमें इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन द्वीप और तिमोर-लेस्ते शामिल हैं।
    • यह समुद्री जैव विविधता का वैश्विक केंद्र है, जिसमें कोरल रीफ प्रजातियों की सर्वाधिक विविधता पाई जाती है।

कोरल लार्वा क्रायोबैंक के बारे में

  • एक कोरल लार्वा क्रायोबैंक एक ऐसी सुविधा है, जो कोरल लार्वा को अत्यंत निम्न तापमान पर संरक्षित करती है ताकि आनुवंशिक विविधता सुरक्षित रहे और भविष्य में रीफ पुनर्स्थापन और अनुसंधान को सक्षम बनाया जा सके।
  •  यह प्रक्रिया विट्रिफिकेशन का उपयोग करती है, जिसमें लार्वा को सुरक्षात्मक मिश्रण के संपर्क में लाया जाता है और फिर –196°C पर तरल नाइट्रोजन में जमाया जाता है।
    • लेजर वॉर्मिंग तेजी से नमूनों को पिघलाती है, जिससे बर्फ द्वारा होने वाली क्षति को रोका जा सके ।
  •  यह सुविधा कोरल लार्वा को अत्यंत निम्न तापमानों पर जमाकर और संरक्षित करके आनुवंशिक हानि को रोकती है।
  • संरक्षित लार्वा को बाद में क्षतिग्रस्त रीफ्स को बहाल करने या वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रजनन के लिए पुनर्जीवित किया जा सकता है।
  • यह एक “आनुवंशिक बीमा पॉलिसी” के रूप में कार्य करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य में भी कोरल पुनर्जनन संभव हो, भले ही प्रजातियाँ घट जाएँ।

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