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भारत में दवा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ

Lokesh Pal October 10, 2025 03:11 32 0

संदर्भ

हाल ही में संदूषित कफ सिरप के सेवन से 20 बच्चों (जिनमें से अधिकतर की आयु पाँच वर्ष से कम थी) की मृत्यु ने भारत की दवा सुरक्षा निगरानी में गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है।

डायएथिलीन ग्लाइकॉल (Diethylene Glycol-DEG) के बारे में

  • यह एथिलीन ऑक्साइड हाइड्रोलिसिस का एक उप-उत्पाद है, जिसका उपयोग प्रायः वहाँ किया जाता है, जहाँ जल के साथ मिश्रित, कम-अस्थिरता वाले तरल पदार्थों की आवश्यकता होती है।
  • यह एक रंगहीन और गंधहीन रासायनिक यौगिक है।
  • यह एक सिंथेटिक औद्योगिक विलायक है, जो ग्लाइकॉल फैमिली से संबंधित है और इसे दवा या खाद्य उपयोग के लिए अनुमोदित नहीं किया गया है।
  • औद्योगिक अनुप्रयोग
    • एंटीफ्रीज और शीतलक: वाहनों और विमानों में जमने से रोकने और द्रव की स्थिरता बनाए रखने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
    • पेंट और प्लास्टिक: पेंट, रेजिन, प्लास्टिसाइजर और पॉलीयूरेथेन फोम में विलायक के रूप में कार्य करते हैं।
    • हाइड्रोलिक और ब्रेक सिस्टम: मशीनों में श्यानता बनाए रखते हैं और द्रव के क्षरण को रोकते हैं।
  • दवा संदूषण: यह तब होता है, जब दवा निर्माण के दौरान औद्योगिक-ग्रेड DEG को अनभिज्ञता से फर्मास्यूटिकल-ग्रेड ग्लिसरीन या प्रोपिलीन ग्लाइकॉल से बदल दिया जाता है।
    • अत्यधिक विषैला: यह गुर्दे की विफलता, चयापचय अम्लरक्तता और तंत्रिका संबंधी क्षति का कारण बनता है।

संबंधित तथ्य

  • परीक्षणों से पता चला कि सिरप में 48% डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (एक औद्योगिक विलायक) उपस्थित था, जो अनुमेय सीमा 0.1% से 480 गुना अधिक था।
  • DEG, जिसका उपयोग आमतौर पर एंटीफ्रीज और ब्रेक फ्लूइड में किया जाता है, अगर निगल लिया जाए तो जानलेवा हो सकता है, जिससे किडनी और लिवर संबंधी गंभीर विफलता हो सकती है।
  • यह घटना दवा की गुणवत्ता जाँच और आपूर्ति शृंखला की निगरानी में गंभीर खामियों को उजागर करती है, जिसके लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता है।

औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940

  • उद्देश्य: सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए भारत में दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के आयात, निर्माण, वितरण और बिक्री को विनियमित करना।
    • मिलावटी या नकली दवाओं को उपभोक्ताओं तक पहुँचने से रोककर जन स्वास्थ्य की रक्षा करना।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • लाइसेंसिंग: सभी दवा निर्माताओं, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के लिए अनिवार्य।
    • मानक और गुणवत्ता: गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP), कच्चे माल के लिए मानक और परीक्षण प्रक्रियाएँ निर्धारित करती हैं।
    • निषेध: मिलावटी, नकली, गलत ब्रांड वाली या असुरक्षित दवाओं पर प्रतिबंध लगाता है।
    • दंड: उल्लंघन के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने, जुर्माना लगाने और लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान करता है।
    • अनुसूची ‘M’: अधिनियम का वह भाग, जिसमें दवा निर्माण के लिए GMP संबंधी रूपरेखा दी गई है, जिसमें उपकरण, स्वच्छता, दस्तावेजीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण शामिल हैं।
  • हालिया अपडेट: संशोधित अनुसूची M (वर्ष 2023-24) WHO-GMP मानकों के अनुरूप है, यह गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन, ALCOA+ डेटा अखंडता और फार्माकोविजिलेंस प्रणालियों का प्रावधान करती है।
    • इसका उद्देश्य दवा सुरक्षा निगरानी को मजबूत करना और संदूषित कफ सिरप निर्माण जैसी घटनाओं को रोकना है।

औषध सुरक्षा से जुड़े मुद्दे

  • नियामक चुनौतियाँ: भारत की दोहरी नियंत्रण प्रणाली, जिसमें केंद्र में राष्ट्रीय नीति निर्धारित करने वाला केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और प्रवर्तन का कार्य राज्य औषधि नियंत्रकों द्वारा किया जाता है, के कारण कार्यान्वयन खंडित हो जाता है।
    • राज्यों में असंगत निरीक्षण प्रोटोकॉल कुछ निर्माताओं को जाँच से बचने का अवसर देते हैं।
    • अंतर-एजेंसियों के बीच कमजोर समन्वय संदूषित औषधियों पर समय पर अलर्ट/चेतावनी जारी करने में बाधा पहुँचाता है।
  • गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) का कमजोर अनुपालन: सरकार द्वारा कई बार विस्तार दिए जाने के बावजूद, कई इकाइयाँ अभी भी औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत संशोधित GMP मानदंडों (अनुसूची ‘M’) के तहत पंजीकरण के बिना कार्य कर रही हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: वर्ष 2023 की एक संसदीय समीक्षा से पता चला है कि भारत की लगभग आधी राज्य औषधि परीक्षण प्रयोगशालाओं में प्रभावी निगरानी के लिए उचित उपकरण या योग्य विश्लेषकों का अभाव है।
    • संशोधित अनुसूची ‘M’ मानदंडों के अनुपालन के लिए बुनियादी ढाँचे, आधुनिक प्रयोगशालाओं और प्रशिक्षित कर्मियों में निवेश की आवश्यकता है।
    • पुरानी या कम सुसज्जित प्रयोगशालाएँ DEG और EG जैसे विषाक्त पदार्थों का विश्वसनीय रूप से पता लगाने में कठिनाई का सामना करती हैं, जिससे संदूषण संबंधी अनदेखी का जोखिम बढ़ जाता है।
    • वित्तीय सहायता तंत्र (सब्सिडी, कम ब्याज दर वाले ऋण) का अभाव गुणवत्ता मानकों को अपनाने में देरी करता है।
  • विनिर्माण संबंधी समस्याएँ: कच्चे माल के खराब परीक्षण से संदूषित सामग्री उत्पादन में प्रवेश कर जाती है।
    • आपूर्ति शृंखला में खामियों के कारण घटिया या गलत लेबल वाली सामग्री का उपयोग होता है।
    • उपकरणों की अपर्याप्त सफाई से अलग-अलग बैचों (निर्माण समूहों) के बीच संदूषण हो सकता है।
    • कुछ विनिर्माता लागत कम करने के लिए जानबूझकर फार्मास्यूटिकल-ग्रेड सॉल्वेंट्स को सस्ते औद्योगिक विकल्पों से परिवर्तित कर देते हैं।
  • असंतोषजनक फार्माकोविजिलेंस: ये घटनाएँ फार्माकोविजिलेंस, प्रतिकूल दवा रिपोर्टिंग और गुणवत्ता आश्वासन तंत्र में व्यापक कमियों को उजागर करती हैं।
    • कमजोर विपणन-पश्चात् निगरानी अन्य दवाओं से नुकसान होने का जोखिम बढ़ाती है, जिससे एक मजबूत राष्ट्रीय दवा सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता पर बल मिलता है।

सरकार और अन्य संस्थानों की प्रतिक्रिया

  • संशोधित अनुसूची ‘M’ मानदंडों का कठोरता से पालन: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के अंतर्गत संशोधित अनुसूची ‘M’ के अनुपालन को अनिवार्य कर दिया है, जो औषधि उत्पादन के लिए गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) और गुणवत्ता मानक निर्धारित करती है।
    • यह संशोधन (वित्त वर्ष2023-24) भारतीय GMP को विश्व स्वास्थ्य संगठन और PIC/S मानकों के अनुरूप बनाते हैं, जिनमें शामिल हैं:-
      • औषधि गुणवत्ता प्रणाली (Pharmaceutical Quality System-PQS): सभी विनिर्माण चरणों में एक संरचित गुणवत्ता और जोखिम प्रबंधन ढाँचे को अनिवार्य रूप से अपनाना।
      • सभी उत्पादन चरणों के लिए गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन (Quality Risk Management-QRM): वैज्ञानिक और साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन के माध्यम से उत्पाद जोखिमों की पहचान और शमन।
      • ALCOA+ सिद्धांतों के अंतर्गत डेटा अखंडता: सभी रिकॉर्ड प्रमाण-योग्य, सुपाठ्य, समसामयिक, मूल, सटीक, पूर्ण, सुसंगत, स्थायी और उपलब्ध होने चाहिए।
      • प्रक्रिया सत्यापन: जीवनचक्र-आधारित सत्यापन (डिजाइन, स्थापना, संचालन, प्रदर्शन योग्यता)।
  • राज्य स्वास्थ्य नियामक उत्कृष्टता सूचकांक (State Health Regulatory Excellence Index-SHRESTH): केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय/CDSCO द्वारा राज्य औषधि नियामक प्राधिकरणों में सुधार लाने और मानक स्थापित करने के लिए एक नई पहल शुरू की गई है।
    • उद्देश्य: राज्यों में एकरूपता, जवाबदेही और गुणवत्ता को बढ़ाना।
    • SHRESTH के अंतर्गत, राज्यों का उनके प्रदर्शन, क्षमता, नियामक मानकों आदि के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है, जिससे सहायता और सुधार को निर्देशित करने में सहायता मिलती है।
  • फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (Pharmacovigilance Programme of India- PvPI): केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत जुलाई 2010 में शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य प्रतिकूल औषधि प्रतिक्रिया (ADR) रिपोर्ट एकत्रित और उनका विश्लेषण करके औषधि सुरक्षा की निगरानी और सुधार करना है।
    • PvPI पूरे भारत में ADR निगरानी केंद्रों के नेटवर्क से ADR रिपोर्ट एकत्रित, संकलित और उनका विश्लेषण करता है।
    • यह नियामक कार्रवाई के लिए CDSCO को सिफारिशें/सलाह/चेतावनी भेजता है।

व्यापक निहितार्थ

  • कानूनी और संवैधानिक आयाम: अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत सुरक्षा के अधिकार की गारंटी देता है, जो सुरक्षित दवाओं तक पहुँच तक विस्तृत है।
    • विषाक्त दवाओं से होने वाली मौतों को रोकने में विफलता संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिससे राज्य कानूनी जाँच के दायरे में आ जाता है।
  • वैश्विक प्रतिष्ठा और व्यापार पर प्रभाव: ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ कहे जाने वाले भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विश्वसनीयता का संभावित नुकसान हो सकता है।
    • गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भारतीय सिरप से जुड़ी बच्चों की मौतों जैसी पिछली घटनाओं ने पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को चेतावनी जारी कर दी है।
    • दीर्घकालिक विश्वसनीयता में गिरावट, विशेष रूप से अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में जेनेरिक दवाओं के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की स्थिति को प्रभावित कर सकती है।
  • आर्थिक और क्षेत्रीय परिणाम: विश्वसनीयता में कमी से दवा कंपनियों को वित्तीय नुकसान हो सकता है और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उनका योगदान कम हो सकता है (फार्मा क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2% से अधिक का योगदान देता है)।
    • नियामक जाँच में वृद्धि के लिए परीक्षण अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता हो सकती है, जिससे छोटी कंपनियों की लाभप्रदता प्रभावित हो सकती है।
  • मानवीय संकट और जनता के विश्वास में कमी: संदूषित दवाओं के सेवन से बार-बार होने वाली घटनाएँ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में विश्वास को कम करती हैं, जिससे माता-पिता अपने बच्चों के लिए समय पर चिकित्सा देखभाल लेने में संकोच करते हैं।
    • ऐसी घटनाएँ टीकाकरण की प्रवृत्ति और नियमित बाल चिकित्सा देखभाल में विश्वास को कम कर सकती हैं, जिससे स्वास्थ्य जोखिम बढ़ सकते हैं।

आगे की राह

  • एकीकृत नियामक प्राधिकरण: प्रवर्तन को केंद्रीकृत करने, राज्यों में मानकों में सामंजस्य स्थापित करने और निरीक्षणों एवं बैच परीक्षणों का एक वास्तविक समय डेटाबेस बनाए रखने के लिए एकल, स्वायत्त राष्ट्रीय औषधि प्राधिकरण की स्थापना करना।
  • संशोधित GMP (अनुसूची ‘M’) का सख्त प्रवर्तन: सुनिश्चित करना कि सभी विनिर्माण इकाइयाँ संशोधित अनुसूची ‘M’ मानदंडों का अनुपालन करना, जिसमें गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन, ALCOA+ डेटा अखंडता और सुदृढ़ फार्माकोविजिलेंस शामिल हैं।
  • जोखिम-आधारित और औषध निरीक्षण: कदाचार को रोकने और गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए दवा इकाइयों का अघोषित ऑडिट करना।
  • त्वरित अभियोजन और कठोर दंड: लापरवाह विनिर्माताओं और दवा लिखने वाले डॉक्टरों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा, जुर्माना और लाइसेंस रद्दीकरण के साथ कानूनी कार्रवाई में तेजी लाना।
  • रियल टाइम फार्माकोविजिलेंस: असुरक्षित दवाओं का शीघ्र पता लगाने के लिए अस्पतालों, फार्मेसियों और नियामकों को जोड़ने वाली एक राष्ट्रव्यापी प्रतिकूल घटना रिपोर्टिंग प्रणाली लागू करना।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: नियामक तंत्रों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों, PIC/S मानकों और अंतरराष्ट्रीय परीक्षण प्रोटोकॉल के साथ संरेखित करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी बैच (घरेलू या निर्यात) रिलीज से पहले स्वतंत्र रूप से सत्यापित किए जाएँ।
  • परीक्षण अवसंरचना का आधुनिकीकरण: DEG और EG जैसे संदूषकों का कुशलतापूर्वक पता लगाने के लिए उन्नत विश्लेषणात्मक उपकरणों और प्रशिक्षित कर्मियों के साथ राज्य प्रयोगशालाओं का उन्नयन करना।
  • जन जागरूकता और दवाएँ लिखने के दिशा-निर्देश: माता-पिता और चिकित्सकों को सुरक्षित बाल चिकित्सा पद्धतियों के बारे में शिक्षित करना और पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में कफ सिरप के अतार्किक उपयोग को हतोत्साहित करना।

निष्कर्ष

भविष्य में होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए सुदृढ़ प्रवर्तन, केंद्रीकृत निगरानी और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है; ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ के रूप में भारत की विश्वसनीयता, रोके जा सकने वाले नशीली दवाओं से संबंधित जोखिमों से नागरिकों की सुरक्षा पर निर्भर करती है।

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