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वन्य जीव संरक्षण (केरल संशोधन) विधेयक 2025

Lokesh Pal October 10, 2025 05:15 29 0

संदर्भ:

वन्य जीव संरक्षण (केरल संशोधन) विधेयक 2025 राज्य को वे शक्तियां प्रदान करने का प्रयास करता है जो अब तक केंद्र सरकार के लिए आरक्षित थीं।

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में संशोधन करने का केरल का निर्णय पर्यावरण शासन पर संघीय चर्चा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

पृष्ठभूमि:

  • WPA 1972: यह केंद्रीय अधिनियम वन्यजीवों की घटती संख्या को रोकने के लिए बनाया गया था। 2022 के संशोधन के तहत, इसमें चार अनुसूचियाँ शामिल हैं, जिनमें अनुसूची 1 सर्वोच्च सुरक्षा प्रदान करती है।
  • धारा 62: यह धारा केंद्र सरकार को किसी पशु को पीड़क(वर्मिन) जन्तु घोषित करने का अधिकार देती है, यदि उसकी संख्या अत्यधिक बढ़ गई हो, या वह मनुष्यों या फसलों को व्यापक स्तर पर नुकसान पहुंचा रहा हो (जैसे, जंगली सूअर, चूहे)।
    • किसी भी वन्यजीव को पीड़क(वर्मिन) घोषित करने से निर्धारित क्षेत्र में सीमित अवधि के लिए उसे मारने की वैधता प्राप्त हो जाती है।
  • केरल की समस्या: केरल में जंगली सूअरों की आबादी में काफी वृद्धि हुई है, जो फसलों को नष्ट कर रहे हैं, मानव बस्तियों पर आक्रमण कर रहे हैं और उन्हें घायल कर रहे हैं।
  • केरल संशोधन विधेयक 2025: केरल सरकार ने केंद्र सरकार से जंगली सूअर को हिंसक पशु घोषित करने का बार-बार अनुरोध किया, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया।
    • यह तर्क देते हुए कि ‘वन्यजीव’ समवर्ती सूची में है, केरल ने अपना स्वयं का कानून पेश किया।
    • केरल का तर्क है कि राज्य को जमीनी हकीकत पता है और स्थानीय स्तर पर कार्रवाई करने के लिए उसे निर्णय लेने की शक्ति की आवश्यकता है।

विधेयक के मुख्य प्रावधान:

  • पीड़क जन्तु घोषित करने की शक्ति: यह राज्य सरकार को WPA की अनुसूची 2 में सूचीबद्ध पशुओं को एक विशिष्ट क्षेत्र में और एक विशिष्ट समय के लिए पीड़क जन्तु घोषित करने की शक्ति प्रदान करने का प्रयास करता है।
    • वर्तमान में यह शक्ति धारा 62 के अंतर्गत केंद्र के पास है।
  • मुख्य वन्यजीव वार्डन की शक्तियां: इसमें मुख्य वन्यजीव वार्डन (CWW) को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी वन्यजीव को मारने का आदेश दे सके, जो मानव आबादी वाले क्षेत्रों में किसी व्यक्ति पर हमला करता है।
  • विधेयक से संबंधित चिंताएँ:
    • केंद्र का तर्क: केंद्र सरकार देश में एकरूपता बनाए रखने और संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसक पशु घोषित करने की शक्ति को अपने पास रखने पर बल देती है, तथा तर्क देती है कि पशु एक राज्य से दूसरे राज्य में आते-जाते रहते हैं।
    • समवर्ती विषयों पर केन्द्रीय कानून की कानूनी सर्वोच्चता: यद्यपि विषय समवर्ती है, यदि राज्य और केन्द्रीय कानून में टकराव होता है, तो संसद द्वारा बनाया गया कानून मान्य होता है।
      • चूंकि केरल विधेयक, कीट-पतंगों की घोषणा से संबंधित केन्द्रीय अधिनियम को रद्द करने का प्रयास करता है, इसलिए इसे कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

चाहे सरकार के किसी भी स्तर के पास सत्ता हो, पशु को पीड़क घोषित करने के लिए प्रक्रियागत पारदर्शिता और उचित आंकड़ों का उपयोग किया जाना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: केरल सरकार ने हाल ही में वन्य जीव संरक्षण (केरल संशोधन) विधेयक 2025 पेश किया है, जो एक ऐतिहासिक कदम है तथा जिसका उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण से संबंधित महत्वपूर्ण अधिकार राज्य को सौंपना है। भारत में पर्यावरण शासन पर ऐसी शक्तियों के हस्तांतरण के प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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