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राष्ट्रीय श्रम एवं रोजगार नीति-श्रम शक्ति नीति, 2025 का मसौदा

Lokesh Pal October 13, 2025 02:05 23 0

संदर्भ

केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने सार्वजनिक परामर्श के लिए राष्ट्रीय श्रम और रोजगार नीति- श्रम शक्ति नीति, 2025 का मसौदा जारी किया है।

राष्ट्रीय श्रम एवं रोजगार नीति – श्रम शक्ति नीति, 2025 के मसौदे के बारे में

यह भारत के श्रम प्रशासन को विनियमन से सुविधा में परिवर्तित करने, संवैधानिक मूल्यों को डिजिटल नवाचार के साथ एकीकृत करने और ‘प्रत्येक श्रमिक के लिए सम्मान के साथ कार्य’ सुनिश्चित करने का एक ढाँचा है।

  • जारीकर्ता: श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार।
  • विजन: विकसित भारत@2047 के राष्ट्रीय लक्ष्य के अनुरूप कार्य की एक निष्पक्ष, समावेशी और भविष्य के लिए तैयार विश्व की स्थापना करना।
  • प्रेरित: भारत के श्रम धर्म की सभ्यतागत परंपराएँ कार्य की गरिमा, नैतिक मूल्य और सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणाओं को संरक्षित करने में निहित हैं।
  • उद्देश्य: एक संतुलित श्रम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना, जो उद्यम विकास और स्थायी आजीविका को बढ़ावा देते हुए सुरक्षा, उत्पादकता और भागीदारी सुनिश्चित करता है तथा श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
  • कार्यान्वयन ढाँचा
    • चरण I (वर्ष 2025-27): संस्थागत प्रणालियों, सामाजिक-सुरक्षा प्लेटफॉर्मों के समेकन तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित ‘इम्प्लॉइमेंट पायलट प्रोग्राम्स’ के माध्यम से समग्र श्रम पारिस्थितिकी में दक्षता और समावेशिता को बढ़ाया जा रहा है।
    • चरण II (वर्ष 2027-30): सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा खाता, कौशल क्रेडिट प्रणाली और जिला-स्तरीय रोजगार सुविधा कक्षों के चरणबद्ध रोलआउट के माध्यम से श्रमिकों के लिए समग्र सामाजिक सुरक्षा, कौशल प्रमाणन और स्थानीय स्तर पर रोजगार अवसरों की सुलभता सुनिश्चित की जा रही है।
    • चरण III (वर्ष 2030 से आगे): कागज रहित, पूर्वानुमानित और निरंतर अनुकूली शासन।

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियाँ (Occupational Safety, Health- OSH) संहिता, 2020

  • अवलोकन: OSH संहिता, 2020 कार्यस्थल सुरक्षा, स्वास्थ्य और स्थितियों पर 13 श्रम कानूनों को एक ढाँचे में समेकित करता है। इसका उद्देश्य अनुपालन को सरल बनाना और श्रमिक सुरक्षा को मजबूत करना है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • कारखानों, ठेकेदारों और प्रतिष्ठानों के लिए एकल पंजीकरण तथा लाइसेंस।
    • बड़ी इकाइयों में सुरक्षा समितियाँ और अधिकारी अनिवार्य।
    • महिला रोजगार: सुरक्षा प्रावधानों के साथ रात में कार्य करने की अनुमति है।
    • अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक: ऑनलाइन पंजीकरण और लाभ वहनीयता।
    • राष्ट्रीय OSH बोर्ड: समान सुरक्षा और स्वास्थ्य मानक निर्धारित करना।
  • महत्त्व: ‘वन नेशन, वन लाइसेंस’ दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है और ILO के सभ्य कार्य एजेंडे के साथ संरेखित होता है। श्रम शक्ति नीति, 2025 के जोखिम-आधारित, लैंगिक रूप से संवेदनशील कार्यस्थल मानकों के लक्ष्य का अभिन्न अंग।

मसौदा नीति की मुख्य विशेषताएँ

  • सात रणनीतिक उद्देश्य
    • सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा: इसमें कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO), प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY), ई-श्रम, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) जैसी प्रमुख योजनाओं को एकीकृत करके एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा खाता (USSA) बनाना शामिल है।
    • व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य (OSH): लैंगिक-संवेदनशील जोखिम-आधारित निरीक्षणों के साथ OSH कोड, 2020 का कार्यान्वयन।
    • रोजगार और भविष्य की तैयारी: रोजगार के लिए डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) के रूप में नेशनल कॅरियर सर्विस (NCS) का उपयोग करना, सभी क्षेत्रों में निर्बाध रोजगार, क्रेडेंशियल सत्यापन और कौशल संरेखण को सक्षम करना।
      • यह श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (MoLE) को एक सक्रिय रोजगार सुविधा प्रदाता के रूप में स्थापित करता है, जो विश्वसनीय, AI-संचालित प्रणालियों के माध्यम से श्रमिकों, नियोक्ताओं और प्रशिक्षण संस्थानों को जोड़ता है।
    • महिला एवं युवा सशक्तीकरण: वर्ष 2030 तक 35% महिला भागीदारी का लक्ष्य, युवा कॅरियर परामर्श और प्रशिक्षुता।
    • अनुपालन और औपचारिकता में आसानी: ‘सिंगल विंडो’ डिजिटल अनुपालन, स्व-प्रमाणन और MSME प्रोत्साहन।
    • प्रौद्योगिकी एवं हरित परिवर्तन: ग्रीन जॉब्स, AI-सक्षम शासन, कार्बन-सघन क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए उचित-संक्रमण।
    • अभिसरण एवं सुशासन: एकीकृत श्रम मूल्यांकन, साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण, वास्तविक समय डैशबोर्ड और सामाजिक अंकेक्षण।
  • संस्थागत वास्तुकला
    • त्रिस्तरीय प्रणाली
      • राष्ट्रीय: राष्ट्रीय श्रम एवं रोजगार नीति कार्यान्वयन परिषद (National Labour & Employment Policy Implementation Council- NLPI)।
      • राज्य: राज्य श्रम मिशन।
      • जिला: जिला श्रम संसाधन केंद्र (DLRC) – पंजीकरण, कौशल और शिकायत निवारण के लिए ‘वन-स्टॉप रोजगार केंद्र’।
    • एकीकृत श्रम एवं रोजगार स्टैक पोर्टेबिलिटी और समावेशन की दृष्टि से डेटाबेस एवं सामाजिक सुरक्षा अधिकारों के समेकित प्रबंधन को सुसंगठित करता है, जिससे श्रमिक पारिस्थितिकी में दक्षता, पारदर्शिता और समावेशिता को संवर्द्धित किया जा सके।

मुख्य चुनौती और आलोचना

  • प्रक्रियात्मक और लोकतांत्रिक चिंताएँ: ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (All India Trade Union Congress- AITUC) ने मसौदे को ‘एकतरफा आदेश’ बताते हुए रद्द कर दिया है।
    • इसमें त्रिपक्षीय प्रक्रिया के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है, जिसमें सेंट्रल ट्रेड यूनियनों (CTU) के साथ परामर्श एक संवैधानिक रूप से स्थापित प्रथा है।
    • परामर्श वैकल्पिक नहीं बल्कि ठोस श्रम नीति की आधारशिला है।
    • सेंट्रल ट्रेड यूनियन (CTU) त्रिपक्षीय परामर्श कन्वेंशन (नंबर 144) श्रमिकों और नियोक्ताओं के प्रतिनिधियों के साथ पूर्व परामर्श को अनिवार्य करता है, जो वैधता और सामान्य सहमति बनाने के लिए आवश्यक है।

वर्तमान / मौजूदा ढाँचा

वर्तमान श्रम और सामाजिक सुरक्षा ढाँचे की नींव श्रम संहिता (2019-2020) द्वारा निर्धारित की गई है, जो सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के प्रावधानों को सुदृढ़ करती है और आंशिक रूप से सामाजिक सुरक्षा संहिता एवं बहुविध योजनाओं के समेकन के माध्यम से कार्यान्वित होती है।

  • श्रम संहिताएँ मुख्य कानूनी ढाँचे के रूप में: भारत ने पहले ही कई पुराने, अतिव्यापी कानूनों को चार समेकित श्रम संहिताओं में समेकित करके श्रम कानून में बड़े परिवर्तन की शुरुआत कर दी है:
    • वेतन संहिता, 2019: न्यूनतम वेतन अधिनियम, वेतन भुगतान अधिनियम, बोनस अधिनियम और समान पारिश्रमिक अधिनियम का विलय।
    • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020: यह श्रम ढाँचा ट्रेड यूनियनों, सामूहिक सौदेबाजी, औद्योगिक विवाद, छँटनी, हड़ताल और अन्य श्रम-संबंधी गतिविधियों के नियमन की व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है। 
    • OSH (व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशाएँ) संहिता, 2020: श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित 13 केंद्रीय कानूनों का स्थान ग्रहण करता है; लेकिन कई प्रावधानों को लागू किया जाना शेष है।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: इसका उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं (पेंशन, बीमा, मातृत्व, ESIC, PF) को एकीकृत करना और अनौपचारिक/गिग क्षेत्रों में कवरेज का और अधिक विस्तार करना है।

सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण योजनाएँ

  • इससे पहले, असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008, असंगठित कर्मकारों के लिए स्वास्थ्य, जीवन, दिव्यांगता, मातृत्व और वृद्धावस्था संबंधी सुरक्षा प्रदान करने वाला प्राथमिक कानून था।
  • लाभों को व्यापक संहिता ढाँचे के भीतर एकीकृत करने के लिए अब इस अधिनियम को सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के अंतर्गत निरस्त/समाहित कर दिया गया है।
  • कई केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (प्रवासी कामगारों, निर्माण श्रमिकों, कौशल प्रशिक्षण, स्वास्थ्य बीमा आदि के लिए) और राज्य-स्तरीय कल्याण कार्यक्रम अभी भी संहिताओं के बाहर मौजूद हैं तथा प्रायः कवरेज में कमियों को पूरा करते हैं।

समवर्ती क्षेत्राधिकार और राज्यों द्वारा कार्यान्वयन

  • श्रम समवर्ती सूची में है: इसमें केंद्र और राज्य दोनों की भूमिकाएँ हैं।
    • केंद्र संहिताओं का निर्माण करता है और व्यापक नीतियाँ निर्धारित करता है; राज्य नियमों को अधिसूचित करते हैं, उन्हें लागू करते हैं और स्थानीय संदर्भों के अनुसार उन्हें अनुकूलित करते हैं।
    • प्रवर्तन प्रायः राज्य श्रम विभागों, निरीक्षणालयों आदि के माध्यम से होता है।

वर्तमान प्रणाली की कमियाँ, चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

  • कार्यान्वयन में देरी और आंशिक संचालन: हालाँकि संहिताएँ वर्ष 2019-2020 में पारित हो गई थीं, फिर भी कई प्रावधानों को अभी अधिसूचित या लागू किया जाना शेष है।
    • राज्य/केंद्रशासित प्रदेश अभी भी मसौदा नियम चरण में हैं और पूर्ण कार्यान्वयन लंबित है।
    • देरी को प्रायः कानूनी, प्रशासनिक, बुनियादी ढाँचे, राजनीतिक और आम सहमति की चुनौतियों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
  • सामाजिक सुरक्षा में कानूनी प्रवर्तनीयता का अभाव: अनेक लाभ केवल कल्याणकारी सुविधाओं तक सीमित रह जाते हैं, जबकि कानूनी अधिकारों के रूप में सुदृढ़ नहीं होते, जिससे कमजोर श्रमिक समूहों को गारंटीकृत पहुँच सुनिश्चित नहीं हो पाती।
    • अनौपचारिक क्षेत्र विशेष रूप से औपचारिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज के दायरे से बाहर रहता है।
  • राज्य क्षमताओं में विखंडन: डिजिटल बुनियादी ढाँचे, प्रशासनिक तत्परता, निरीक्षकों की संख्या, प्रशिक्षण और संसाधन आवंटन में राज्यों में बहुत अंतराल है, जिससे कवरेज और प्रवर्तन में असमानताएँ पैदा होती हैं।
    • कुछ राज्य, नियमों का मसौदा तैयार करने या संहिताओं के अनुकूल अपनी स्थानीय प्रणालियों को संशोधित करने में पिछड़ जाते हैं।
  • गिग, प्लेटफॉर्म और अनौपचारिक श्रमिकों के लिए कवरेज अंतराल: हालाँकि संहिताएँ कई श्रेणियों (गिग, अनुबंध, प्लेटफॉर्म कार्य) को परिभाषित करती हैं, व्यावहारिक समावेशन अपूर्ण है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का मानना ​​है कि लगभग 90% भारतीय श्रमिकों को पेंशन, बीमा, सवेतन अवकाश जैसे पूर्ण सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलते हैं।
  • अतिव्यापन और असंबद्ध योजना संरचना: कई योजनाएँ (केंद्रीय और राज्य) अलग-अलग तरीके से संचालित होती हैं, जिससे दोहराव, अंतराल और अस्पष्ट अधिकार क्षेत्र उत्पन्न होता है।
    • प्रणालियों (EPFO, ESIC, राज्य कल्याण निधि, योजनाएँ) के बीच अंतर-संचालन की कमी वहनीयता और एकीकरण में बाधा डालती है।
  • डेटा, पोर्टेबिलिटी और एकीकरण संबंधी समस्याएँ: डेटाबेस प्रायः अलग-अलग और खंडित होते हैं, जिनमें एकीकृत पहचान, क्रॉस-लिंकिंग या रियल-टाइम सिंक्रोनाइजेशन का अभाव होता है।
    • यह लाभ पोर्टेबिलिटी (राज्यों/जिलों के बीच) को जटिल बनाता है और श्रमिकों की निर्बाध गतिशीलता को कमजोर करता है।

आगे की राह

  • राज्य नियमों को अपनाने और एकरूपता में तेजी लाना: केंद्र सरकार को पिछड़ रहे राज्यों की सहायता के लिए आदर्श नियम, वित्तपोषण और क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करना चाहिए।
    • राज्यों को निर्धारित अनुदानों या प्रदर्शन संकेतकों (जैसे- श्रम एवं रोजगार नीति मूल्यांकन सूचकांक (LEPEI), मसौदा के माध्यम से नियमों को शीघ्र अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • सामाजिक सुरक्षा को केवल योजना नहीं, बल्कि एक अधिकार के रूप में कानून बनाना: महत्त्वपूर्ण लाभों, पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व को लागू करने योग्य अधिकारों में बदलने के लिए संहिताओं (या पूरक कानूनों) को मजबूत बनाना।
    • केवल वैकल्पिक लाभार्थियों के रूप में नहीं, बल्कि कानूनी कवरेज के लिए गिग और अनौपचारिक श्रमिकों को प्राथमिकता देना।
    • राज्य क्षमता और डिजिटल शासन का निर्माण: निरीक्षणालयों, स्थानीय श्रम विभागों, ICT अवसंरचना, विश्लेषण के कौशल विकास में निवेश करना।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए रियल-टाइम डैशबोर्ड का निर्माण, सार्वजनिक जवाबदेही, सामाजिक ऑडिट शुरू करना।
  • हितधारक जुड़ाव और त्रिपक्षीय ढाँचा: वैधता बनाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर त्रिपक्षीय परामर्श तंत्र को सुदृढ़ करना।
    • आवधिक समीक्षा, शिकायत निवारण (यूनियनों के माध्यम से भी) को संस्थागत बनाएँ।
    • संक्रमणकालीन सुरक्षा उपाय और विरासत संरक्षण: संक्रमण के दौरान मौजूदा कल्याणकारी अधिकारों की रक्षा करना।
  • निगरानी, ​​मूल्यांकन और फीडबैक तंत्र: वार्षिक श्रम रिपोर्ट, स्वतंत्र समीक्षा, तृतीय-पक्ष ऑडिट और बीच में ही सुधार को अनिवार्य बनाना।
    • राज्य और क्षेत्र के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए मसौदे में प्रस्तावित श्रम और रोजगार नीति मूल्यांकन सूचकांक (LEPEI) या इसी तरह के मानकों का उपयोग करना।

निष्कर्ष

श्रम शक्ति नीति, 2025 का उद्देश्य भारत के श्रम पारिस्थितिकी तंत्र को भविष्य हेतु सक्षम, डिजिटल और समावेशी बनाना है। तथापि, इसकी प्रभावशीलता मुख्यतः कमजोर कार्यान्वयन और संस्थागत आधारभूत पर निर्भर करेगी, जिसने पूर्ववर्ती सुधारों के प्रतिफल को सीमित कर दिया है।

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