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सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की वर्तमान प्रासंगिकता

Lokesh Pal October 14, 2025 05:30 114 0

संदर्भ:

भारत के नागरिक-नेतृत्व वाले पारदर्शिता आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि, सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम (2005) के 20 वर्ष पूरे होने पर इसकी मूल भावना को अब डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA), 2023 से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह सार्वजनिक सूचना तक पहुँच को कम करने और सरकारी जवाबदेही को कमजोर करने का जोखिम उत्पन्न करता है।

पृष्ठभूमि

  • जमीनी स्तर का संघर्ष: RTI अधिनियम, 2005 अरुणा रॉय और निखिल डे जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में एक लंबे आंदोलन का परिणाम था।
  • मेवाड़ में आरंभ: आंदोलन राजस्थान के मेवाड़ से शुरू हुआ, जिसे “RTI सिटी” के रूप में जाना जाता है।
  • लोगों की माँग: मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने “हमारा पैसा, हमारा हिसाब” (Our Money, Our Account) के नारे के तहत अभियान चलाया।
  • RTI का प्रभाव: इस अधिनियम ने नागरिकों को भ्रष्टाचार उजागर करने, सरकारी कार्यों में देरी में कमी और अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने के लिए सशक्त बनाया।
  • संग्रहालय निर्माण: इस संघर्ष का सम्मान करने और भावी पीढ़ियों को शिक्षित करने के लिए मेवाड़ में एक स्मारक/संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA), 2023 से संघर्ष

  • आधिकारिक उद्देश्य बनाम प्रभाव: जबकि DPDPA व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा का दावा करता है, यह तर्क दिया जाता है कि ये RTI अधिनियम को कमजोर करता है, उदाहरणस्वरूप RTI ‘घड़े’ में एक ‘छेद’ करता है, जिससे महत्त्वपूर्ण निजी जानकारी बाहर निकल सकती है।

RTI को कमजोर करने वाली प्रक्रियाएँ

  • व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण पर प्रतिबंध:
    • RTI अधिनियम [धारा 8(1)]: व्यक्तिगत जानकारी को केवल तभी रोका जा सकता था, जब वह सार्वजनिक गतिविधि या हित से असंबंधित हो। सार्वजनिक निविदाओं में अधिकारियों के नाम का खुलासा किया जा सकता था।
    • DPDPA [धारा 44(3)]: सार्वजनिक हित की चिंता किए बिना व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता है।
    • प्रभाव: लोक सूचना अधिकारी (PIO) अधिकारियों के नाम प्रदान करने से इनकार कर सकते हैं, जिससे जवाबदेही असंभव हो जाती है।
  • नागरिक समानता खंड:
    • मूल प्रावधान: नागरिकों को संसद या राज्य विधानसभाओं के संबंध में समान सूचना का अधिकार प्राप्त था।
    • DPDPA संशोधन: हालाँकि, संशोधन सरकार को चुने हुए प्रतिनिधियों तक सूचना को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है, जिससे सामान्य नागरिकों तक पहुँच में कमी आती है।
  • कठोर दंड:
    • लगाए गए जुर्माने: बिना अनुमति के व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करने पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना।
    • प्रभाव: पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के बीच डर पैदा करता है, भ्रष्ट अधिकारियों को सामने लाने से हतोत्साहित करता है।

आवश्यक परिणाम

  • जवाबदेही में बाधा: RTI को कमजोर करना नागरिकों की भ्रष्टाचार को उजागर करने की क्षमता में बाधा डालता है, भले ही अतीत में आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला और राष्ट्रमंडल खेल घोटाला जैसी सफलताएँ मिली हों।
  • परामर्श का अभाव: लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करते हुए, संशोधन सार्वजनिक या विपक्षी परामर्श के बिना किए गए थे।

आगे की राह

  • सार्वजनिक हित की सर्वोच्चता: उस खंड को पुनः स्थापित करना, जो भ्रष्टाचार या सत्ता के दुरुपयोग जैसे बड़े सार्वजनिक हित शामिल होने पर व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण की अनुमति देता है।
  • संतुलित डेटा ढाँचा: स्पष्ट नियमों के माध्यम से DPDPA और RTI अधिनियम में सामंजस्य स्थापित करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि निजता संरक्षण शासन में पारदर्शिता को प्रभावित न करे।
  • सूचना आयोगों का सशक्तीकरण: तीव्र शिकायत निवारण के लिए केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों को अधिक स्वायत्तता, स्टाफिंग और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के साथ मजबूत करें।
  • डिजिटल RTI पोर्टल: RTI ऑनलाइन का विस्तार करें और पहुँच विस्तार तथा नौकरशाही की देरी को कम करने के लिए वास्तविक समय की ट्रैकिंग, फीडबैक और डेटा एनालिटिक्स को एकीकृत करें।
  • नागरिक जागरूकता: सुशासन और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों से जोड़ते हुए, नागरिकों के सूचना के अधिकार पर सार्वजनिक शिक्षा का नवीनीकरण करें।

निष्कर्ष

RTI के कमजोर होने के बावजूद, पारदर्शिता के लिए नागरिकों की माँग बनी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण मामले (1975) में स्पष्ट रूप से कहा था, कि शासन को “कुछ ही रहस्य” बनाए रखने चाहिए। अर्थात निजता और जवाबदेही को संतुलित करना, लोकतांत्रिक सत्यनिष्ठा को बनाए रखने की कुंजी है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की घटती प्रभावशीलता संस्थागत अपारदर्शिता और कार्यकारी अनुत्तरदायित्व के गहन मुद्दों को दर्शाती है। भारत में पारदर्शिता और नागरिक सशक्तीकरण के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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