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ऑस्ट्रेलिया-भारत स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी

Lokesh Pal October 16, 2025 03:05 50 0

संदर्भ

ऑस्ट्रेलिया के जलवायु एवं ऊर्जा मंत्री क्रिस बोवेन भारत की यात्रा पर हैं ताकि भारत–ऑस्ट्रेलिया अक्षय ऊर्जा साझेदारी (REP) को सुदृढ़ किया जा सके।

संबंधित तथ्य 

  • यह यात्रा उस समय संपन्न हो रही है, जब वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ संरचनात्मक दुर्बलताओं का सामना कर रही हैं तथा भारत और ऑस्ट्रेलिया स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के मार्ग पर उल्लेखनीय प्रगति कर रहे हैं। यह संवाद महत्त्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में चीन पर निर्भरता में क्रमिक कमी लाने की दोनों देशों की साझा रणनीतिक पहल का भी अभिन्न अंग है।

सहयोग की आवश्यकता

  • इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में जलवायु प्रभाव
    • यह क्षेत्र गंभीर जलवायु प्रभावों का सामना कर रहा है, वर्ष 1970 से 2022 के बीच प्रति माह औसतन 10 जलवायु आपदाएँ आईं, जिससे लाखों लोग विस्थापित हुए।
    • वर्ष 2050 तक लगभग 89 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं, जिनमें से 80% जनसंख्या प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगी।
  • दोनों देशों के जलवायु लक्ष्य
    • भारत: वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता (सौर ऊर्जा से 280 गीगावाट) का लक्ष्य रखा गया है तथा जुलाई 2025 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 50% स्थापित क्षमता प्राप्त कर ली गई है।
    • ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया ने वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2035 तक 62 से 70 प्रतिशत तक उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो उसके नेट जीरो 2050 मार्ग के अनुरूप है।
  • चीन पर आपूर्ति शृंखला निर्भरता
    • चीन विश्व के 90% से अधिक दुर्लभ मृदा तत्त्वों का परिष्करण और लगभग 80% सौर मॉड्यूल का उत्पादन करता है।
    • भारत इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और पवन ऊर्जा में उपयोग होने वाले ‘रेयर अर्थ मैग्नेट्स’ एवं बैटरी सामग्रियों के लिए आयात पर निर्भर है।
    • ऑस्ट्रेलिया, यद्यपि लीथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ्स से समृद्ध है, लेकिन परिष्करण और निर्माण क्षमता की कमी है।
    • इससे भारत–ऑस्ट्रेलिया सहयोग को वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में विविधता लाने का अवसर प्राप्त होता है।

भारत–ऑस्ट्रेलिया अक्षय ऊर्जा साझेदारी (REP)

  • प्रारंभ:  नवंबर 2024 में दूसरे भारत–ऑस्ट्रेलिया वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान (G20, रियो डी जनेरियो) आरंभ की गई।
  • केंद्रबिंदु: व्यावहारिक सहयोग के माध्यम से कार्यान्वयन की ओर बढ़ना।
  • उद्देश्य
    • ऊर्जा संक्रमण को तीव्र करना: दोनों देशों के नेट–जीरो लक्ष्यों (भारत वर्ष  2070, ऑस्ट्रेलिया वर्ष  2050) के अनुरूप कार्य करना।
    • प्रौद्योगिकी साझेदारी एवं अनुसंधान–विकास को बढ़ावा देना: सौर PV, बैटरी भंडारण, और हाइड्रोजन तकनीक में संयुक्त नवाचार।
    • निवेश प्रवाह को प्रोत्साहित करना: सीमा–पार अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश को सक्षम बनाना।
    • आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ बनाना: सौर ऊर्जा एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षित और विविध आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • क्षमता निर्माण एवं कौशल विकास: मानव संसाधन प्रशिक्षण और ज्ञान विनिमय को प्रोत्साहित करना।
  • प्राथमिक सहयोग क्षेत्र
    • सौर फोटोग्राफिक (Photovoltaic) तकनीक
    • हरित हाइड्रोजन
    • ऊर्जा भंडारण
    • सौर आपूर्ति शृंखलाएँ
    • अक्षय संसाधनों पर आधारित चक्रीय अर्थव्यवस्था
    • द्विपक्षीय निवेश
    • क्षमता निर्माण
    • नीति–निर्माताओं, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के बीच Track 1.5 संवाद।

संस्थागत ढाँचा

  • नोडल मंत्रालय
    • भारत: केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE)
    • ऑस्ट्रेलिया: जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, पर्यावरण और जल विभाग (DCCEEW)
  • शासन तंत्र
    • दोनों देशों के ऊर्जा मंत्रियों की अध्यक्षता में मंत्री–स्तरीय संचालन समिति
    • Track 1.5 संवाद तंत्र — सरकार, उद्योग, और अनुसंधान संस्थानों की भागीदारी से क्षेत्रीय परियोजनाओं को आगे बढ़ाना।

पूरक शक्तियाँ

ऑस्ट्रेलिया भारत
लीथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा के समृद्ध भंडार भारत का व्यापक विनिर्माण आधार और युवा कार्यबल
सतत् खनन एवं नियामक पारदर्शिता में विशेषज्ञता सौर, बैटरी एवं हाइड्रोजन क्षेत्रों में उत्पादन–लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ
नेट–जीरो जॉब्स प्लान के अंतर्गत प्रशिक्षित स्वच्छ ऊर्जा कार्यबल मजबूत घरेलू माँग से हरित तकनीकों का वहनीय पैमाना

यह समृद्धता भारत और ऑस्ट्रेलिया को केवल संसाधन साझेदार नहीं, बल्कि वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था के सह–विकासकर्ता के रूप में प्रस्तुत करती है।

सहयोग का महत्त्व

  • ऊर्जा सुरक्षा: आपूर्ति शृंखलाओं का विविधीकरण, एकल स्रोत पर निर्भरता में कमी।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: महत्त्वपूर्ण खनिज प्रसंस्करण एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकी निर्माण पर नियंत्रण।
  • ग्रीन इंडो–पैसिफिक विजन: नियम–आधारित, निम्न–कार्बन क्षेत्रीय व्यवस्था निर्माण में अग्रणी स्थान देता है।
  • आर्थिक लाभ: परिष्करण, प्रसंस्करण और अक्षय अवसंरचना में सह–निवेश को प्रोत्साहन।
  • भू-राजनीतिक प्रतीकात्मकता: क्वाड के सतत् विकास एजेंडा को सुदृढ़ करना, ऊर्जा परिवर्तन को रणनीतिक स्थिरता से जोड़ना।

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