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संवैधानिक इतिहास के संशोधनवाद का एक पाठ

Lokesh Pal October 17, 2025 05:00 84 0

संदर्भ:

भारत के संवैधानिक इतिहास में एक सूक्ष्म संशोधनवाद उभर रहा है, जो डॉ. बी.आर. अंबेडकर के बजाय सर बेनेगल नरसिंह राव को संविधान का वास्तविक लेखक बताने का प्रयास कर रहा है।

संविधान निर्माण में सर बी.एन. राव की भूमिका:

  • प्राविधिक/पारिभाषिक तैयारी: जुलाई 1946 में नियुक्त बी.एन. राव का कार्य प्रारंभिक था – उन्होंने विभिन्न समिति रिपोर्टों और वैश्विक संविधानों के आधार पर एक कार्यकारी मसौदा तैयार किया।
  • तुलनात्मक अध्ययन: उन्होंने फेलिक्स फ्रैंकफर्टर और हेरोल्ड लास्की जैसे कानूनी दिग्गजों से परामर्श करके अमेरिकी, कनाडाई, आयरिश, ऑस्ट्रेलियाई और वीमर संविधानों की जाँच की।
  • मसौदा प्रस्तुत करना: अक्टूबर 1947 में पूरा हुआ उनका मसौदा, जिसमें 243 अनुच्छेद और 13 अनुसूचियाँ शामिल थीं, विचार-विमर्श के लिए आधार के रूप में उपयोग किया जा कर रहा था।
  • योगदान की प्रकृति: बी.एन. राव के पास संविधान सभा में कोई सीट नहीं थी और इस प्रकार कोई प्रतिनिधि जनादेश भी नहीं था, उनका अधिकार पूरी तरह से विद्वानों/ अध्ययनशील और सलाहकार प्रकृति का था।

संविधान निर्माण में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की भूमिका:

  • प्रारूप समिति के अध्यक्ष: अम्बेडकर की भूमिका राजनीतिक और नैतिक थी – उन्होंने राव के तकनीकी मसौदे को एक जीवंत सामाजिक अनुबंध में परिवर्तित किया।
  • संकट के बीच नेतृत्व: उन्होंने विभाजन और गांधीजी की हत्या के दौरान संविधान के निर्माण में मार्गदर्शन किया तथा संविधान सभा में इसके प्रत्येक खंड का बचाव किया।
  • आम सहमति का निर्माण: अंबेडकर ने विविध हितों के बीच संघर्षों में मध्यस्थता की, तथा गणतंत्र की नींव में एकता और समावेशिता सुनिश्चित की।
  • नैतिक आधार: उन्होंने संविधान में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों को समाहित किया और इसे सामाजिक क्रांति के साधन में बदल दिया।
    • मौलिक अधिकार, नीति निर्देशक सिद्धांत और आरक्षण प्रावधानों पर अंबेडकर की बौद्धिक और नैतिक छाप है।
  • नैतिक चेतावनी: अम्बेडकर ने चेतावनी दी थी कि सामाजिक और आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक लोकतंत्र गणराज्य की स्थिरता को खतरे में डाल देगा।

डॉ. अम्बेडकर द्वारा सर बी.एन. राव के योगदान की मान्यता:

  • सार्वजनिक श्रेय: अपने अंतिम संबोधन (25 नवंबर, 1949) में, अंबेडकर ने राव को एक “रफ ड्राफ्ट” तैयार करने का श्रेय दिया, लेकिन स्पष्ट किया कि यह आगे के शोधन के लिए केवल एक आधार होगा।
  • टीम प्रयास: उन्होंने मुख्य प्रारूपकार एस.एन. मुखर्जी और प्रारूप समिति के अन्य सदस्यों की भी उनके सावधानीपूर्वक कार्य के लिए सराहना की।
  • ‘रफ ड्राफ्ट’ की व्याख्या: अम्बेडकर के विवरण से यह पता चलता है कि राव का मसौदा प्रारंभिक था, जबकि अंतिम दस्तावेज व्यापक विचार-विमर्श और पुनः प्रारूपण के बाद निर्मित हुआ था।

संविधान निर्माण में अंबेडकर को शामिल करने में गांधी की भूमिका:

  • प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना: विभाजन के कारण अम्बेडकर के बंगाल सीट हारने के बाद, गांधीजी ने बॉम्बे प्रेसीडेंसी से उनका पुनः निर्वाचन सुनिश्चित किया।
  • दूरदर्शी कदम: गांधीजी का मानना था कि किसी भी संविधान को उसके प्रारूपण में अनुसूचित जाति की भागीदारी के बिना वैधता का दावा नहीं किया जा सकता।
  • राष्ट्रीय एकता: उनके हस्तक्षेप ने गहरे सामाजिक विभाजन को रोका और यह सुनिश्चित किया कि संविधान भारत के समावेशी और बहुलवादी लोकाचार को प्रतिबिंबित करे।

संविधान के लेखकत्व को पुनः परिभाषित करने के जोखिम:

  • कट्टरपंथी स्मृति का क्षरण: बी.एन. राव को बी.आर. अंबेडकर से ऊपर रखने से संविधान का क्रांतिकारी और सुधारवादी सार नष्ट हो जाता है, तथा यह एक तकनीकी मैनुअल बन जाता है।
  • परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की अनदेखी: स्थापना प्रक्रिया को महज कानूनी मसौदा तैयार करने के रूप में पुनः प्रस्तुत करना, न्यायपूर्ण और समान समाज के निर्माण के नैतिक मिशन की अनदेखी करता है।
  • दलित केन्द्रीयता को मिटाना: अंबेडकर की जगह राव को महिमामंडित करना, आधुनिक भारत को आकार देने में एक दलित नेता के बौद्धिक और नैतिक नेतृत्व के प्रति असहजता को दर्शाता है।
  • विशेषाधिकार पुनः प्राप्त करना: इस तरह के आख्यान उच्च जाति के लेखकत्व को पुनः स्थापित करते हैं, तथा भारत की संवैधानिक विरासत पर प्रतीकात्मक शक्ति पुनः प्रदान करते हैं।
  • सामाजिक चार्टर का अराजनीतिकरण: इस तरह की पुनर्व्याख्याएं संविधान को एक परिवर्तनकारी सामाजिक दस्तावेज से नौकरशाही प्रक्रिया में बदल देती हैं।
  • नैतिक आधार को कमजोर करना: संविधान, जिसकी परिकल्पना न्याय, समानता और समावेशन को कायम रखने के लिए की गई थी, को अंबेडकर के नेतृत्व में सत्ता को प्रतिनिधिक और जवाबदेह बनाने के लिए आकार दिया गया था, इसके लेखन को बदलने से यह नैतिक आधार कमजोर हो सकता है।

निष्कर्ष:

जहाँ राव द्वारा प्रारंभिक मसौदा तैयार किया, वहीं अंबेडकर ने इसे एक नैतिक, समावेशी और सामाजिक रूप से परिवर्तनकारी संविधान में रूपांतरित किया। उनकी केंद्रीयता को बनाए रखने से ऐतिहासिक सत्य, दलित नेतृत्व और गणतंत्र की नैतिक नींव सुरक्षित रहती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय संविधान की एक कानूनी रूपरेखा और एक सामाजिक घोषणापत्र, दोनों के रूप में चर्चा कीजिए। मौलिक अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक शासन में आंबेडकर का योगदान संविधान के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को किस प्रकार मूर्त रूप देता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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