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Lokesh Pal
October 29, 2025 03:25
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नैतिकता और कानून के मध्य संबंधी बहस ने दार्शनिकों और न्यायविदों को लंबे समय से आकर्षित किया है। यह बहस भारत के संवैधानिक विमर्श में “संवैधानिक नैतिकता” की अवधारणा के माध्यम से फिर से उभरी, जो नैतिक शासन को संवैधानिक सिद्धांतों के साथ संतुलित करती है।
संवैधानिक नैतिकता, नैतिक शासन के संचालन को संवैधानिक परिसीमाओं के भीतर संतुलित एवं स्थिर करती है, जिससे उत्तरदायित्व, न्याय तथा समावेशिता के आदर्श सुरक्षित रहते हैं। यह राजनीतिक स्वार्थों पर संविधान की सर्वोच्चता का संरक्षण करते हुए डॉ. भीमराव अंबेडकर की उस दार्शनिक दृष्टि का प्रतिरूप प्रस्तुत करती है, जिसमें संविधान की नैतिक आत्मा के दृष्टिकोण को सिद्धांतों में अडिग, किंतु लोकतांत्रिक परिवर्तन हेतु अनुकूलनशील बताया है।
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