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वामपंथी उग्रवाद (LWE) के खिलाफ भारत की लड़ाई: माओवाद-मुक्त राष्ट्र की ओर

Lokesh Pal October 29, 2025 03:31 51 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत माओवादी आतंक से मुक्त होने के करीब है और अब वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित केवल तीन जिले ही बचे हैं।

  • हाल ही में छत्तीसगढ़ के 210 माओवादियों सहित 303 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है।

वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों और विकास की वर्तमान स्थिति

  • राष्ट्रीय लक्ष्य: 31 मार्च, 2026 तक वामपंथी उग्रवाद का पूर्ण उन्मूलन।
  • उपलब्धि: आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2025 तक 1,600 से अधिक माओवादी कार्यकर्ताओं ने आत्मसमर्पण कर दिया है, जो उग्रवादियों के मनोबल में भारी गिरावट का संकेत है।
  • सबसे अधिक प्रभावित जिले: छत्तीसगढ़ में स्थित 6 से घटकर 3 (बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर) रह गए।
  • कुल वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिले: वर्ष 2025 तक 18 से घटकर 11 रह गए।
    • हिंसा की घटनाओं में 81% की गिरावट (2010-2024)
  • तुलना: वर्ष 2013 में, भारत के कई राज्यों में 126 जिले नक्सली हिंसा से प्रभावित थे।
  • पुलिस बलों का सम्मान: छत्तीसगढ़ पुलिस को असाधारण साहस और सेवा के लिए राष्ट्रपति ध्वज पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो राज्य पुलिस बलों के लिए भारत के सर्वोच्च सम्मानों में से एक है।

माओवाद के बारे में

  • परिभाषा: माओवाद, माओत्से तुंग की विचारधारा पर आधारित साम्यवाद का एक रूप है, जो सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और रणनीतिक ग्रामीण आधारों के माध्यम से राज्य सत्ता पर अधिकार करने की वकालत करता है।
  • भारतीय संदर्भ: इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी (1967) में चारु मजूमदार, कानू सान्याल और संथाल के नेतृत्व में सामंती शोषण के विरुद्ध एक किसान विद्रोह के रूप में हुई थी।
  • भाकपा (माओवादी) का गठन: वर्ष 2004 में, पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) का विलय होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन हुआ, जिससे आधुनिक वामपंथी उग्रवाद आंदोलन का उदय हुआ।

भारत में माओवाद का विकास

  • प्रारंभिक चरण (1967-1980 का दशक): पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और बिहार तक सीमित; राज्य के दमन ने माओवादियों को भूमिगत होने पर मजबूर कर दिया।
  • विस्तार (1980-2000 का दशक): ‘रेड कोरिडोर’ के माध्यम से फैला, आदिवासी असंतोष और दुर्बल शासन का लाभ उठाया।
  • चरम विस्तार (2000 का दशक) का समय: वर्ष 2010 के दंतेवाड़ा नरसंहार (76 सीआरपीएफ जवान मारे गए) जैसे घातक हमलों से चिह्नित।
  • गिरावट (वर्ष 2010 के बाद): सुरक्षा अभियानों और विकास कार्यक्रमों को एकीकृत करने वाली व्यापक सरकारी रणनीति के कारण माओवादी प्रभाव में उल्लेखनीय कमी आई।

माओवादी विचारधारा की मुख्य विशेषताएँ

  • सशस्त्र संघर्ष: माओवादी विचारधारा माओत्से तुंग की दीर्घकालिक जनयुद्ध’ की रणनीति का अनुसरण करती है, जो ग्रामीण आधार और गुरिल्ला युद्ध पर बल देती है।
  • हाशिये पर स्थित समुदायों पर केंद्रित: माओवादी हाशिये पर स्थित समुदायों, विशेषकर आदिवासियों और भूमिहीन किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन वे अपने आंदोलन को बनाए रखने के लिए बल प्रयोग का भी सहारा लेते हैं।
  • लोकतंत्र का विरोध: माओवादी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बुर्जुआ उत्पीड़न का माध्यम मानते हुए उन्हें अस्वीकार करते हैं।
    • उनका लक्ष्य मौजूदा व्यवस्था को माओवादी सिद्धांतों पर आधारित एक साम्यवादी राज्य से बदलना है।

माओवाद/वामपंथी उग्रवाद (LWE) में योगदान देने वाले कारक

  • भूमि हस्तांतरण और विस्थापन: भूमि सुधारों का अभाव और विकास परियोजनाओं के कारण आदिवासियों का विस्थापन माओवादी गतिविधियों के प्रमुख कारण हैं।
    • झारखंड और छत्तीसगढ़ में खनन परियोजनाओं के कारण बड़े पैमाने पर हुए विस्थापन ने आदिवासियों में आक्रोश को बढ़ावा दिया है।
    • जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 1951 और वर्ष 1990 के मध्य विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए लोगों में से 40% से अधिक आदिवासी थे, लेकिन केवल 25% का ही पुनर्वास सुनिश्चित हुआ।
  • गरीबी और विकास का अभाव: वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में प्रायः गरीबी का स्तर ऊँचा होता है और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच कम होती है।
    • बस्तर (छत्तीसगढ़) के आदिवासी क्षेत्रों में, साक्षरता और स्वास्थ्य सेवा जैसे विकास सूचकांक राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे हैं।
  • उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास चुनौतियाँ: योजना आयोग को सौंपी गई एक विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इन क्षेत्रों में गरीबी, अभाव और बुनियादी संसाधनों तक पहुँच का अभाव व्याप्त है, जो नक्सली आंदोलनों को बढ़ावा देता है।
  • शासन का अभाव: दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में राज्य की कम उपस्थिति और सार्वजनिक सेवाओं की अपर्याप्त आपूर्ति, शासन में एक शून्यता उत्पन्न करती है जिसका माओवादी लाभ उठाते हैं।
    • ओडिशा के सुदूर गाँवों में स्कूलों और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी ने माओवादियों के लिए स्थानीय समर्थन हासिल करना आसान बना दिया है।
    • कुछ वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में, सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण पंचायती राज के पद रिक्त हैं।
    • डी. बंदोपाध्याय समिति, 2006 ने निष्कर्ष निकाला कि नक्सलवाद शासन की विफलताओं और आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जीवन में आदिवासी समुदायों के विरुद्ध व्यापक भेदभाव के कारण प्रसारित हुआ।
  • जमींदारों और निगमों द्वारा शोषण: आदिवासी और हाशिए पर स्थित समुदायों को जमींदारों, साहूकारों और निगमों द्वारा शोषण का सामना करना पड़ता है, जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ और गहरी होती जाती हैं।
    • आंध्र प्रदेश में, आदिवासियों को खनन निगमों को अपनी जमीनें देने के लिए मजबूर किया गया, जिससे 1990 के दशक में माओवादी विद्रोह भड़क उठे।
  • सामाजिक और राजनीतिक रूप से वंचित वर्ग: आदिवासी और दलित, जो वामपंथी उग्रवाद के प्रमुख समर्थक हैं, प्रायः राजनीतिक प्रक्रिया से अलग-थलग महसूस करते हैं और न्याय पाने में असमर्थ होते हैं।
    • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के क्रियान्वयन में विफलता के कारण कई आदिवासी अपनी पैतृक भूमि के स्वामित्व से वंचित रह गए हैं।
    • जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2022 तक वन अधिकार अधिनियम के तहत केवल 19.8% दावों को ही मंजूरी दी गई।
  • संपर्क और बुनियादी ढाँचे का अभाव: खराब सड़क और दूरसंचार संपर्क वाले दूरस्थ क्षेत्र सरकारी पहुँच से अलग-थलग पड़ जाते हैं, जिससे वे माओवादी गतिविधियों के लिए उपजाऊ भूमि का रूप धारण कर लेते हैं।

वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए भारत सरकार की त्रि-आयामी पहल

  • सुरक्षा उपाय: UAV और मोबाइल टावरों सहित उन्नत हथियारों और तकनीक के साथ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) और राज्य पुलिस की तैनाती।
    • ऑपरेशन ‘समाधान’ जैसे समन्वित अभियान कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी और क्षमता निर्माण पर केंद्रित हैं।
    • संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए 610 किलेबंद पुलिस थानों और बेहतर संचार अवसंरचना का निर्माण।
  • विकास पहल: 47 वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के लिए पीएमजीएसवाई, सड़क संपर्क योजनाएँ और कौशल विकास योजनाएँ जैसी अवसंरचना परियोजनाएँ।
    • आकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, 100% गाँवों की संतृप्ति प्राप्त करना।
  • सशक्तीकरण और पुनर्वास: नागरिक कार्रवाई कार्यक्रम (CAP) और शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली समर्पण नीतियाँ।
    • वन अधिकार अधिनियम (2006) के कार्यान्वयन और जनसहभागिता तथा निष्पक्ष भूमि अधिग्रहण नीतियों के माध्यम से शिकायतों के समाधान पर ध्यान केंद्रित करना।

माओवाद, नक्सलवाद और वामपंथी उग्रवाद (LWE) के मध्य अंतर 

पहलू माओवाद नक्सलवाद वामपंथी उग्रवाद (LWE)
उत्पत्ति चीन में माओत्से तुंग की विचारधारा (1940 के दशक) से उत्पन्न। पश्चिम बंगाल में वर्ष 1967 में हुए नक्सलबाड़ी विद्रोह से उत्पन्न। यह एक व्यापक शब्द है, जो भारत में माओवादियों और नक्सलवादियों सहित सभी सशस्त्र वामपंथी आंदोलनों को शामिल करता है।
वैचारिक आधार पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए किसानों और श्रमिकों के नेतृत्व में सशस्त्र क्रांति की वकालत की। माओवाद का भारतीय संस्करण कृषि और जनजातीय असंतोष और भूमि पुनर्वितरण पर केंद्रित है। हिंसक उग्रवाद के माध्यम से माओवादी/नक्सली विचारधारा की व्यावहारिक अभिव्यक्ति को संदर्भित करता है।

भारत में वामपंथी उग्रवाद/माओवाद का मुकाबला करने के लिए सरकार के प्रयास

  • राष्ट्रीय नीति एवं कार्य योजना (2015): सरकार ने सुरक्षा, विकास और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाली एक बहुआयामी रणनीति अपनाई।
  • घटक: क्षमता निर्माण, शासन को सुदृढ़ बनाने और धारणा प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित।
  • समाधान (SAMADHAN) रणनीति: गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत, समाधान (SAMADHAN) वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए एक व्यापक नीति है। इसका अर्थ है:
    • S का अर्थ है स्मार्ट नेतृत्व, A का अर्थ है आक्रामक रणनीति, M का अर्थ है प्रेरणा और प्रशिक्षण, A का अर्थ है कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी, D का अर्थ है डैशबोर्ड-आधारित प्रमुख परिणाम क्षेत्र और प्रमुख प्रदर्शन संकेतक, H का अर्थ है प्रौद्योगिकी का उपयोग, A का अर्थ है प्रत्येक क्षेत्र के लिए कार्य योजना और N का अर्थ है-वित्तपोषण तक पहुँच न होना।
    • कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी के लिए ड्रोन और यूएवी के प्रयोग ने माओवादी विरोधी अभियानों की प्रभावशीलता में सुधार किया है।
  • पुनर्वास और आत्मसमर्पण नीतियाँ: आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों के लिए व्यापक पुनर्वास नीतियों में कौशल विकास, शिक्षा और वित्तीय पैकेज शामिल हैं।
    • छत्तीसगढ़ की नीति ने वर्ष 2023 में 837 माओवादियों के आत्मसमर्पण में मदद की।
    • सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना के अंतर्गत पुनर्वास योजनाओं में अनुग्रह राशि भुगतान और पुनः एकीकरण के लिए सहायता शामिल है।
  • स्थानीय शासन को सशक्त बनाना: वन अधिकार अधिनियम (2006) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से स्थानीय शासन को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • प्रभावित क्षेत्रों में विश्वास निर्माण और सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं के साथ जुड़ाव बढ़ाना।
  • नागरिक कार्रवाई कार्यक्रम (CAP): सुरक्षा बलों और स्थानीय आबादी के मध्य अंतराल को समाप्त करने के लिए चिकित्सा शिविर, खेल आयोजन और शैक्षिक अभियान जैसी कल्याणकारी गतिविधियाँ आयोजित करना।
    • वर्ष 2017 से वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में कल्याणकारी गतिविधियों के लिए ₹123 करोड़ मूल्य के CAP फंड का उपयोग किया गया है।
  • जागरूकता और मीडिया योजनाएँ: एक अंब्रेला योजना ‘पुलिस बलों का आधुनिकीकरण’ की एक उप-योजना के रूप में कार्यान्वित।
    • रेडियो जिंगल्स, वृत्तचित्रों, पर्चों और युवा आदान-प्रदान कार्यक्रमों के माध्यम से माओवादी दुष्प्रचार का मुकाबला करना।
    • छत्तीसगढ़ और झारखंड में माओवादी संबंधी समस्याओं का मुकाबला करने में आदिवासी बोलियों में संचालित रेडियो कार्यक्रम प्रभावी रहे हैं।
  • निगरानी और समन्वय: केंद्रीय गृह मंत्री, प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों की नियमित समीक्षा बैठकें।
    • केंद्र और राज्य के अधिकारियों द्वारा वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लगातार दौरों से बलों के समन्वय तथा मनोबल में सुधार हुआ है।

सरकारी उपायों का प्रभाव

  • समग्र प्रभाव और मापनीय गिरावट
    • भौगोलिक विस्तार में कमी: वामपंथी उग्रवाद (LWE) का प्रभाव वर्ष 2013 में 126 जिलों से घटकर वर्ष 2024 में 38 और वर्ष 2025 में 11 जिलों तक रह गया है। अब केवल बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर (छत्तीसगढ़) ही “सबसे अधिक प्रभावित” जिलों की सूची में हैं।
    • हिंसा और हताहतों की संख्या में कमी: LWE से संबंधित घटनाओं में 80% से अधिक की कमी आई है, जो वर्ष 2010 में 1,936 से घटकर वर्ष 2024 में 374 हो गई हैं। नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु दर वर्ष 2010 में 1,005 से घटकर वर्ष 2025 में लगभग 140 हो गई है, जो चार दशकों में सबसे कम है।
    • संचालनात्मक और वैचारिक संघर्ष: वर्ष 2025 में 1,040 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें वरिष्ठ नेता भी शामिल थे, जिससे आंदोलन के भीतर आंतरिक विभाजन, भर्ती में कमी और वैचारिक प्रेरणा में कमी का पता चला।
    • माओवादी क्षेत्रों पर पुनः अधिकार: पूर्व माओवादी क्षेत्र जैसे बूढ़ा पहाड़ (झारखंड) और बस्तर व दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) के कुछ हिस्सों को पुनः प्राप्त कर लिया गया है, और राज्य शासन को बहाल करने के लिए स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और पुलिस शिविर फिर से स्थापित किए गए हैं।
  • सुरक्षा और प्रवर्तन उपायों का प्रभाव
    • मजबूत सुरक्षा ढाँचा: किलेबंद पुलिस थानों, अग्रिम शिविरों की स्थापना और कोबरा, ग्रेहाउंड्स और DRG जैसे विशिष्ट बलों की तैनाती ने माओवादियों को सुरक्षित क्षेत्रों  से वंचित कर दिया है और उनकी परिचालन क्षमता को बढ़ाया है।
    • सटीक संचालन और प्रौद्योगिकी का उपयोग: ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट (2025) जैसे लक्षित अभियानों ने ड्रोन, यूएवी और उन्नत निगरानी का उपयोग करके शीर्ष माओवादी नेताओं को मार गिराया, जिससे वास्तविक समय की खुफिया जानकारी और समन्वय में सुधार हुआ।
    • वित्तीय व्यवधान: जाँच एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई ने धन जुटाने वाले नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया है, जबरन वसूली, अवैध खनन और प्रमुख गैर-सरकारी संगठनों की संपत्तियाँ जब्त कर ली हैं, जिससे माओवादियों के वित्तपोषण पर प्रभावी रूप से रोक लग गई है।
    • संवर्द्धित समन्वय: समाधान (SAMADHAN) सिद्धांत संयुक्त कमान, साझा खुफिया जानकारी और लगातार समीक्षाओं को बढ़ावा देता है, जिससे केंद्रीय और राज्य बलों के मध्य समन्वित संचालन सुनिश्चित होता है।
  • विकास और शासन पहल का प्रभाव
    • कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे का विस्तार: 14,600 किलोमीटर से अधिक सड़कें और 7,768 दूरसंचार टावरों ने सुदूर आदिवासी इलाकों को जोड़ा है, जिससे गतिशीलता, संचार और आर्थिक पहुँच में सुधार हुआ है।
    • सशक्तीकरण और आजीविका: आकांक्षी जिला कार्यक्रम, वन धन योजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजनाओं ने आजीविका संबंधी पहलों को बढ़ावा दिया है, जबकि एकलव्य मॉडल स्कूल और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शिक्षा और कौशल के माध्यम से आदिवासी युवाओं को सशक्त बना रहे हैं।
    • वित्तीय समावेशन: बैंकों, एटीएम और डाकघरों के विस्तार से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण संभव हुआ है और अनौपचारिक ऋण नेटवर्क पर निर्भरता कम हुई है।
    • जन विश्वास का निर्माण: स्वास्थ्य शिविरों, खेल प्रतियोगिताओं और बस्तर ओलंपिक के माध्यम से नागरिक कार्रवाई कार्यक्रम ने लोगों तथा सुरक्षा के मध्य संबंधों एवं सामुदायिक विश्वास को मजबूत किया है।
  • आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियों का प्रभाव
    • रिकॉर्ड आत्मसमर्पण: वर्ष 2025 में कुल 1,040 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जो बढ़ते पुनर्वास प्रयासों की सफलता को दर्शाता है।
    • समर्थन के माध्यम से पुनः एकीकरण: आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवदियों को ई-समाधान प्लेटफॉर्म के माध्यम से वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, शिक्षा और मनोवैज्ञानिक सहायता मिलती है, जिससे सामाजिक पुनः एकीकरण में मदद मिलती है।
    • घटता सामंजस्य: नेतृत्व की हानि, वैचारिक भटकाव और आंतरिक अविश्वास ने संगठनात्मक एकता को कमजोर किया है और माओवादी ढाँचे को बाधित किया है।

माओवाद/वामपंथी उग्रवाद को नियंत्रित करने में चुनौतियाँ

  • दुर्गम भूगोल और भू-भाग: माओवादियों के क्षेत्र घने जंगलों, पहाड़ियों और दंडकारण्य तथा सारंडा जैसे दूरदराज के इलाकों में हैं। ये क्षेत्र प्राकृतिक रूप से आच्छादित होते हैं, जिससे सैनिकों की आवाजाही सीमित होती है और रसद सहायता में बाधा आती है।
  • सामाजिक-आर्थिक अभाव: गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण और शिक्षा का अभाव स्थानीय समुदायों को माओवादियों की भर्ती के प्रति संवेदनशील बनाता है। कई युवा उग्रवाद को अपनी सामाजिक-आर्थिक कुंठाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम मानते हैं।
  • शासन का अभाव: स्थानीय भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में बाधा डाल सकती है, जिससे राज्य में जनता का विश्वास कम हो सकता है।
  • अपर्याप्त खुफिया जानकारी और समन्वय: केंद्र और राज्य एजेंसियों के मध्य खुफिया जानकारी साझा करने में अंतराल के कारण बड़ी खामियाँ उत्पन्न हुई हैं, उदाहरण के लिए, वर्ष 2013 में दरभा घाटी में हुए हमले के लिए खराब समन्वय को  जिम्मेदार ठहराया गया था।
  • आदिवासियों का अलगाव और सांस्कृतिक विक्षोभ: कई आदिवासी सरकारी बलों को बाहरी मानते हैं। आदिवासी रीति-रिवाजों का सम्मान न करने और वन अधिकार अधिनियम के धीमे क्रियान्वयन ने अलगाव को बढ़ावा दिया है।
  • पुनर्वास और पुनः एकीकरण में कठिनाई: आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को प्रायः सामाजिक उपेक्षा, मनोवैज्ञानिक आघात और सीमित आजीविका के अवसरों का सामना करना पड़ता है। आत्मसमर्पण के बाद निगरानी का अभाव पुनर्वास योजनाओं को कमजोर करता है।
  • बाहरी समर्थन और नेटवर्किंग: CPI (माओवादी) PLA (मणिपुर) जैसे पूर्वोत्तर के विद्रोही समूह नेपाल व फिलीपींस के अंतरराष्ट्रीय माओवादी संगठनों के साथ संबंध बनाए रखते हैं, जिससे हथियारों की खरीद और प्रशिक्षण में सहायता मिलती है।
  • विकास और सुरक्षा में संतुलन: अत्यधिक सैन्यीकरण से नागरिकों के अलग-थलग पड़ने का खतरा होता है, जबकि पर्याप्त सुरक्षा के बिना विकास को प्राथमिकता देने से परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है। संतुलन हासिल करना एक नीतिगत चुनौती बनी हुई है।

माओवाद/वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध प्रमुख अभियान

  • ऑपरेशन ग्रीन हंट (2009-10): मध्य और पूर्वी भारत में माओवादी-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने के लिए सीआरपीएफ, कोबरा और राज्य पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर अभियान; राज्य नियंत्रण बहाल किया गया और उग्रवादियों की गतिशीलता कम हुई।
  • ऑपरेशन समाधान (2017-वर्तमान): स्मार्ट नेतृत्व, आक्रामक रणनीति और कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी पर केंद्रित व्यापक सिद्धांत; माओवादी प्रभाव को समाप्त करने के लिए सुरक्षा, विकास और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करता है।
  • ऑपरेशन प्रहार (2021-2025): छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में बहु-चरणीय हमले; प्रमुख माओवादी नेताओं को निष्प्रभावी किया गया, आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित किया गया और दंडकारण्य के मुख्य क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया गया।
  • ऑपरेशन ब्लैक थंडर (2023-2025): झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा को निशाना बनाया गया; हथियार कारखानों को नष्ट किया गया और वरिष्ठ माओवादी कमांडरों का सफाया किया गया, जिससे नेतृत्व संरचना कमजोर हो गई।
  • ऑपरेशन मानसून (वार्षिक): वर्षा ऋतु के दौरान संचालित किया गया; इसका ध्यान जंगलों के अंदरूनी इलाकों में माओवादियों के ठिकानों को नष्ट करने, आवाजाही रोकने और हथियारों को जब्त करने पर केंद्रित है।
  • ऑपरेशन ऑक्टोपस (2022): सुकमा और बीजापुर (छत्तीसगढ़) पर केंद्रित; सिलगेर और तर्रेम जैसे मुख्य वन क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की उपस्थिति बढ़ाई गई, जिससे स्थायी सुरक्षा उपस्थिति का विस्तार हुआ।
  • ऑपरेशन ‘डबल बुल’ (2022): बुढ़ा पहाड़ (झारखंड) क्षेत्र में बड़ी सफलता; दशकों के माओवादी प्रभुत्व के बाद इस क्षेत्र पर पुनः अधिकार किया गया और शासन बहाल किया गया।
  • ऑपरेशन थंडरस्टॉर्म (2024): वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों के मध्य अंतर-राज्यीय समन्वय को मजबूत किया गया; गोपनीय जानकारी साझा करने और एक साथ जवाबी कार्रवाई में सुधार किया गया।
  • ऑपरेशन लोन वर्राटू (राज्य पहल-छत्तीसगढ़): सामुदायिक संपर्क और पुनर्वास प्रोत्साहनों के माध्यम से माओवादियों के आत्मसमर्पण को प्रोत्साहित करने वाला “घर वापसी” अभियान।
  • ऑपरेशन हिल विजय (राज्य पहल – झारखंड): पारसनाथ और नेतरहाट पहाड़ियों में माओवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया; सुरक्षा और प्रशासनिक पहुँच को फिर से स्थापित किया गया।

आगे की राह

  • स्थानीय शासन को मजबूत बनाना: पंचायती राज का सशक्तीकरण सुनिश्चित करना, रिक्त पदों को भरना और विकास संबंधी निर्णयों का विकेंद्रीकरण करना।
  • समावेशी विकास: सहकारी मॉडलों के माध्यम से जनजातीय अधिकारों, कौशल निर्माण और आजीविका सृजन को प्राथमिकता देना।
  • भ्रष्टाचार विरोधी उपाय: विकास निधि के दुरुपयोग को रोकने और भ्रष्ट अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने के लिए पारदर्शी निगरानी तंत्र और सामाजिक लेखा परीक्षा स्थापित करना।
  • वन अधिकार अधिनियम (2006) का प्रभावी कार्यान्वयन: राज्य संस्थाओं में विश्वास बहाल करने के लिए भूमि और वन अधिकार प्रदान करना।
  • उन्नत खुफिया ढाँचा: एजेंसियों के मध्य वास्तविक समय में सूचना साझा करने के लिए संयुक्त कमांड सेंटर स्थापित करना।
  • सम्मान के साथ पुनर्वास: आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों को शिक्षा, मनोवैज्ञानिक सहायता और निरंतर आय के विकल्प प्रदान करना।
  • सामुदायिक जुड़ाव: सांस्कृतिक सम्मान, पुलिस बलों में स्थानीय भर्ती और युवाओं तक पहुँच के माध्यम से विश्वास को बढ़ावा देना।
  • विचारधारा-विरोधी उपाय: माओवादी प्रचार को अवैध ठहराने के लिए शिक्षा, जागरूकता और मीडिया के माध्यम से प्रचार करना।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: दुर्गम इलाकों की प्रभावी निगरानी के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-सक्षम निगरानी, ​​उपग्रह और ड्रोन तैनात करना।

निष्कर्ष

माओवाद के विरुद्ध भारत का संघर्ष, मात्र सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण से विकसित होकर अब विकासोन्मुख, संवादात्मक तथा लोकतांत्रिक सशक्तीकरण की दिशा में अग्रसर है। समावेशी शासन एवं स्थानीय सहभागिता के माध्यम से माओवाद-मुक्त भारत की संकल्पना साकार होती प्रतीत हो रही है, जो न केवल स्थायी शांति का आश्वासन देती है, अपितु आदिवासी अंचलों की सामाजिक-आर्थिक संभावनाओं के उद्घाटन का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

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