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इंदौर यौन उत्पीड़न की घटना ने फिर दिखाया कि कैसे व्यवस्था भारत में महिलाओं को निराश करती रहती है

Lokesh Pal October 29, 2025 05:15 43 0

संदर्भ:

दो ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेटरों से संबंधित इंदौर यौन उत्पीड़न की घटना भारत की लगातार शहरी सुरक्षा विफलताओं, लैंगिक असंवेदनशीलता और संस्थागत उदासीनता को रेखांकित करती है, तथा आधुनिकीकरण के बावजूद सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा की नाजुक स्थिति को उजागर करती है।

घटना का समग्र अवलोकन:

  • इंदौर में सार्वजनिक उत्पीड़न: दो ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेटरों को इंदौर में एक मोटरसाइकिल सवार द्वारा परेशान किया गया, जिससे शहरी क्षेत्रों में भी महिलाओं की सुरक्षा में विद्यमान खामियों का खुलासा हुआ।
  • त्वरित पुलिस कार्रवाई, प्रतिगामी राजनीतिक प्रतिक्रिया: हालाँकि पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए त्वरित कार्रवाई की, लेकिन एक मंत्री द्वारा की गई टिप्पणी कि महिलाएँ “बाहर जाने से पहले हमें सूचित करें” सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने के बजाय पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को मजबूत करती है।
  • स्वच्छता से परे – सुरक्षा और संवेदनशीलता की आवश्यकता: यह घटना इस बात पर प्रकाश डालती है कि स्वच्छ शहर सुरक्षित शहरों की गारंटी नहीं देते; शहरी प्रशासन को बुनियादी ढाँचे की सुरक्षालिंग संवेदनशीलता और सार्वजनिक जवाबदेही को प्राथमिकता देनी चाहिए
  • पुलिस व्यवस्था में संस्थागत कमियां: अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (J-PAL) के अध्ययन में पाया गया कि महिला अधिकारियों ने केस पंजीकरण में सुधार किया, लेकिन दृष्टिकोण में बदलाव और जनता का विश्वास सीमित रहा, जिससे लैंगिक संवेदनशीलता और पुलिस सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया

प्रणालीगत विफलताएँ:

  • असुरक्षित सार्वजनिक स्थान: महिलाओं को बस स्टॉप, सार्वजनिक परिवहन और खराब रोशनी वाली सड़कों पर नियमित रूप से उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है
    • कई लोग भय और विश्वास की कमी के कारण घटनाओं की रिपोर्ट करने के बजाय अपना मार्ग बदल देते हैं या यात्रा करने से बचते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की उपेक्षा: अपर्याप्त स्ट्रीट लाइटिंग, असुरक्षित सार्वजनिक परिवहन, तथा कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावासों की कमी असुरक्षा को बढ़ाती है।
    • स्थानीय निकाय, नगर निगम और पंचायतें – भ्रष्टाचार और उदासीनता के कारण अक्सर सुरक्षित, गड्ढा मुक्त और अच्छी रोशनी वाली सड़कें सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं।
  • पुलिस व्यवस्था में विद्यमान खामियां: महिलाओं के लिए शिकायत दर्ज कराना एक कठिन और डराने वाला कार्य है।
    • महिला सहायता डेस्क (जैसा कि मध्य प्रदेश में J-PAL द्वारा अध्ययन किया गया) से केस पंजीकरण में वृद्धि हुई, लेकिन व्यापक पुलिस या जनता के दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं आया
    • बदला लेने और सामाजिक कलंक के डर से पीड़ित FRI दर्ज कराने से कतराते हैं।
  • न्यायिक विलंब और कम दोषसिद्धि: 3-4 वर्षों तक मुकदमे में देरी से पीड़ितों को मानसिक कष्ट होता है।
    • पांच करोड़ से अधिक लंबित मामलों और न्यायाधीश-जनसंख्या के खराब अनुपात के कारण न्याय से प्रभावी रूप से इनकार किया जा रहा है।
    • NCRB 2023 के अनुसार, “महिलाओं के लज्जा/शील का अपमान” के अंतर्गत:
      • 2% मामले लंबित हैं।
      • दोषसिद्धि दर केवल 9% है
    • यह न्यायिक जड़ता अपराधियों को प्रोत्साहित करती है तथा रिपोर्टिंग को हतोत्साहित करती है।

व्यापक सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ:

  • लैंगिक असुरक्षा भागीदारी को सीमित करती है: लगातार भय और असुरक्षा महिलाओं को शिक्षा और रोजगार तक पहुंचने से हतोत्साहित करती है, जिससे भारत की मानव पूंजी और आर्थिक उत्पादकता सीमित हो जाती है।
  • लिंग समानता की आर्थिक क्षमता: विश्व बैंक (2018) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि कार्यबल भागीदारी में लिंग समानता प्राप्त कर ली जाए तो भारत की GDP 1.5% तक बढ़ सकती है।
  • आर्थिक और नैतिक अनिवार्यता के रूप में सुरक्षा: महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना न केवल एक सामाजिक या नैतिक कर्तव्य है, बल्कि समावेशी राष्ट्रीय विकास के लिए एक रणनीतिक आर्थिक आवश्यकता भी है।

आगे की राह:

  • बुनियादी ढाँचे में सुधार: शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अच्छी तरह से रोशनी वाली सड़कें,सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन और पर्याप्त महिला छात्रावास सुनिश्चित करना।
    • सभी स्मार्ट सिटी और शहरी नियोजन मिशनों में महिला सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य बनाना।
  • पुलिस और न्यायिक सुधार: महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित करना तथा लंबित मामलों के निपटारे के लिए न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाना।
    • पुलिस व्यवस्था में लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण और जवाबदेही को संस्थागत बनाना।
    • मापन योग्य परिणामों के साथ सामुदायिक पुलिसिंग और महिला सहायता डेस्क को मजबूत बनाना।
  • शहरों में “सुरक्षित गतिशीलता क्षेत्र” निर्मित करना: शहरों में “सुरक्षित गतिशीलता क्षेत्र” को परिभाषित करना – प्रकाश व्यवस्था, सीसीटीवी कवरेज और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणालियों को एकीकृत करना।
  • सामाजिक मानसिकता में बदलाव: महिला अधिकारों और लैंगिक संवेदनशीलता पर राष्ट्रीय जागरूकता अभियान चलाना।
    • सड़क पर उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रत्यक्षदर्शियों के हस्तक्षेप और सामुदायिक सतर्कता को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष:

इंदौर की घटना यह दर्शाती है कि तकनीक और शहरी प्रगति लैंगिक न्याय की जगह नहीं ले सकते। भारत को सुरक्षा सुनिश्चित करने होंगे और पितृसत्तात्मक मानसिकता को बदलना होगा, क्योंकि महिलाओं की सुरक्षा ही एक विकसित समाज का सच्चा पैमाना है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: शासन में सुधार और आर्थिक विकास के बावजूद, सार्वजनिक स्थानों पर लिंग-आधारित हिंसा अभी भी महिलाओं की गतिशीलता को बाधित करती है। भारत में महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण को कमजोर करने वाली संस्थागत और सामाजिक बाधाओं का विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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