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वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार

Lokesh Pal November 03, 2025 03:34 40 0

संदर्भ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि जाँच एजेंसियाँ वकीलों को समन नहीं कर सकतीं या उन्हें अपने मुवक्किलों द्वारा की गई गोपनीय व्यावसायिक संचार का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकतीं।

न्यायालय के प्रमुख अवलोकन

  • संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: वकीलों को उनके मुवक्किलों की गोपनीय बातचीत उजागर करने के लिए बाध्य करना अनुच्छेद-20(3) के अंतर्गत प्रदत्त स्व-अभियोग के अधिकार का उल्लंघन है।
  • न्यायालय ने कहा कि बिना सहमति या जानकारी के अपने ही मुवक्किलों के हितों के विरुद्ध कार्य करने के लिए वकील को विवश करना “घोर अन्यायपूर्ण” और “असंवैधानिक” है।
  • जाँच एजेंसियों का दायित्व: अपराध सिद्ध करने के लिए स्वतंत्र साक्ष्य एकत्रित करना जाँच एजेंसियों की जिम्मेदारी है। वकीलों को जाँच के विकल्प के रूप में नहीं देखा जा सकता।
  • व्यावसायिक गोपनीयता: वकील–मुवक्किल संबंध विश्वास पर आधारित होता है और यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023, की धारा 132 के अंतर्गत संरक्षित है। इस गोपनीयता का उल्लंघन न्याय व्यवस्था की अखंडता को कमजोर करता है।
  • मौलिक अधिकार:  न्यायालय ने कहा कि वकीलों की यह क्षमता कि वे ‘निर्भय होकर’ अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करें, अनुच्छेद-19(1)(g) (व्यवसाय का अधिकार) और अनुच्छेद-21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) का अंग है।
  • तुलनात्मक दृष्टिकोण: न्यायालय ने एक अमेरिकी निर्णय का हवाला दिया, जिसमें शेक्सपीयर का उद्धरण था ‘वकीलों को कमजोर करना, अधिनायकवादी शासन की दिशा में पहला कदम है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 के तहत वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार)

  • कानूनी आधार: धारा 132 (जिसने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 126 का स्थान लिया) वकील और मुवक्किल के बीच गोपनीय संचार की रक्षा करती है।
  • सुरक्षा का दायरा
    • कोई भी वकील अपने मुवक्किल द्वारा व्यावसायिक कार्यकाल के दौरान की गई किसी भी बातचीत-चाहे वह मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक हो का खुलासा नहीं कर सकता।
    • यह गोपनीयता व्यावसायिक संबंध समाप्त होने के बाद भी जारी रहती है।
    • वकील को ऐसी बातचीत के संबंध में किसी भी न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष गवाही देने से छूट प्राप्त है।
  • अपवाद:  प्रकटीकरण केवल तीन परिस्थितियों में ही मान्य है:-
    • मुवक्किल की स्पष्ट सहमति
    • अवैध उद्देश्य: जब संचार किसी अवैध कार्य के निष्पादन हेतु किया गया हो।
    • अपराध या धोखाधड़ी: यदि कोई वकील अपने व्यावसायिक कार्यकाल के दौरान किसी अपराध या धोखाधड़ी का साक्षी बनता है, तो उस पर विधि और व्यावसायिक आचार-संहिता के अनुरूप उचित सूचना या प्रकटीकरण दायित्व का पालन करने की नैतिक जिम्मेदारी होती है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय एवं निर्देश

  • गोपनीयता एवं जाँच में संतुलन:  न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 132 की गोपनीयता का सम्मान किया जाना चाहिए और वकीलों को मुवक्किल की जानकारी प्राप्त करने के लिए समन नहीं किया जा सकता।
  • समन केवल उन्हीं अपवादों के अंतर्गत जारी किए जा सकते हैं, जब सलाह अपराध के निष्पादन या छिपाने के लिए प्रयुक्त हो।
  • समन जारी करने की शर्तें:  कोई भी अधिकारी जो अपवाद का उपयोग करना चाहता है, उसे 
    • ऐसे तथ्यों का उल्लेख करना होगा जो इसे उचित ठहराते हैं, तथा
    • पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे के किसी वरिष्ठ अधिकारी से लिखित अनुमोदन करना होगा।
  • गोपनीयता का दायरा: यह सुरक्षा विवाद संबंधी, सलाहकार तथा पूर्व-विवाद कार्यों में संलग्न वकीलों पर लागू होती है।
    • इन-हाउस काउंसिल, जो किसी संगठन के कर्मचारी होते हैं, इस धारा के अंतर्गत प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं हैं, किंतु उनकी संचार सामग्री धारा 134 के तहत संरक्षित रहती है।
  • दस्तावेजों और डिजिटल उपकरणों का प्रबंधन: आपराधिक मामलों में दस्तावेज या उपकरणों की प्रस्तुति क्षेत्राधिकार प्राप्त न्यायालय के माध्यम से की जाएगी, जो पहले गोपनीयता संबंधी आपत्तियों पर विचार करेगा।
    • दीवानी मामलों में दस्तावेज सीधे जाँचकर्ताओं को नहीं, बल्कि न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए जाएँगे।
    • वकील और मुवक्किल दोनों को सूचित किया जाएगा तथा अन्य मुवक्किलों से संबंधित गोपनीय डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।

निर्णय का महत्त्व

  • कानूनी गोपनीयता का सुदृढ़ीकरण: यह निर्णय वकील–मुवक्किल गोपनीयता को न्याय व्यवस्था और निष्पक्ष सुनवाई के मूल स्तंभ के रूप में सुदृढ़ करता है।
  • जाँच एजेंसियों की अति-शक्ति पर नियंत्रण: यह सुनिश्चित करता है कि एजेंसियाँ अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर वकीलों पर अनुचित दबाव न डालें या गोपनीयता का उल्लंघन न करें।
  • संस्थागत विश्वास: यह निर्णय न्यायिक प्रणाली में वकील की गोपनीयता की नैतिक जिम्मेदारी को पुनः स्थापित करता है, जो न्याय वितरण प्रणाली की विश्वसनीयता का मूल तत्त्व है।
  • संतुलित दृष्टिकोण: इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने नए न्यायिक अवरोध नहीं, बल्कि प्रक्रियागत सुरक्षा को सुदृढ़ करते हुए संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की।

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