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CMS-03 (GSAT-7R)

Lokesh Pal November 04, 2025 02:30 78 0

संदर्भ

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भारतीय नौसेना के लिए GSAT-7R (CMS-03) संचार उपग्रह को LVM-3 M5 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3) के माध्यम से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है। 

  •  LVM3 का पिछला मिशन चंद्रयान-3 था, जिसमें भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश बना।

GSAT-7R (CMS-03) के बारे में

  • यह भारत की उन्नत रक्षा संचार उपग्रह शृंखला GSAT-7 का हिस्सा है।
  • लॉन्च व्हीकल: लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (LVM3)।
  • लॉन्च स्थल: सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC-शार), श्रीहरिकोटा।
  • कक्षा: GSAT-7R (CMS-03) उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित किया गया, जिसकी दीर्घवृत्तीय कक्षा लगभग 250 किमी. (पेरिजी) और 29,970 किमी. (एपोजी) है।
    • इस कक्षा से यह अपने प्रणोदन का उपयोग कर 35,786 किमी. ऊँचाई पर अंतिम भू-तुल्यकारी कक्षा (GEO) में पहुँचेगा।
    • GTO वह दीर्घवृत्तीय कक्षा होती है, जिसका उपयोग लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) से जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट (GEO) तक उपग्रह को स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है।
  • वजन: लगभग 4,400 किग्रा, जो भारत से प्रक्षेपित किया गया सबसे भारी संचार उपग्रह है।
    •  GSAT-11, वर्ष 2018 में 5,800 किग्रा था, लेकिन उसे यूरोपीय एरियन-5 (Ariane-5) रॉकेट से लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य: पुराने GSAT-7 (2013) के स्थान पर भारतीय नौसेना के सुरक्षित संचार नेटवर्क को सुदृढ़ करना।
  • कवरेज: पूरे भारत और आस-पास के समुद्री क्षेत्रों में रियल-टाइम, एन्क्रिप्टेड संचार प्रदान करता है।
  • संचालन समय: लगभग 15 वर्ष
  • पेलोड विशेषताएँ: इसमें मल्टी-बैंड ट्रांसपोंडर हैं, जो वॉयस, वीडियो और डेटा सेवाओं के लिए उच्च-बैंडविड्थ कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं।
  • उपयोग: रियल-टाइम संचार, आपदा प्रबंधन, नौसैनिक और तटीय सुरक्षा अभियानों के लिए सहायक।

CMS-03 प्रक्षेपण का महत्त्व

  • स्वदेशी क्षमता 
    • अब तक, भारत के भारी संचार उपग्रह जैसे जीसैट-11 (5,854 किलोग्राम) और जीसैट-24 (4,181 किलोग्राम) एरियनस्पेस द्वारा और जीसैट-20 (4,700 किलोग्राम) स्पेसएक्स द्वारा प्रक्षेपित किए गए थे।
    • CMS-03 का प्रक्षेपण भारत की भारी उपग्रह प्रक्षेपण में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम है।
  • कक्षा अनुकूलन 
    • 4,410 किग्रा के भारी पेलोड को समायोजित करने के लिए ISRO ने GTO की एपोजी (Apogee) संबंधी ऊँचाई 36,000 कि.मी. से घटाकर 29,970 किमी. की।
    • यह अनुकूल मिशन योजना (Adaptive Mission Planning) की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
  • भविष्य के मिशनों के लिए मंच 
    • LVM3 भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन “गगनयान” का भी प्रक्षेपण यान होगा।

रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव

  • रणनीतिकसामरिक स्वायत्तता: भारी उपग्रहों के लिए विदेशी अंतरिक्ष प्रक्षेपकों पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी।
    • इसरो अपने सभी भारी उपग्रहों, जिनका वजन 3,000 किलोग्राम से अधिक था, को भेजने के लिए यूरोपीय रॉकेट पर निर्भर था।
  • आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा:  वैश्विक वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाजार में भारत को प्रतिस्पर्द्धी स्थिति में लाना, जिस पर वर्तमान में स्पेसएक्स, एरियनस्पेस और चीन का प्रभुत्व है।
  • मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता: यह गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे आगामी मिशनों का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • प्रौद्योगिकीय नवाचार:  क्रायोजेनिक प्रणोदन, सेमी-क्रायोजेनिक इंजन, और रीयूजेबल लॉन्च सिस्टम के विकास से भारत की दीर्घकालिक अंतरिक्ष प्रतिस्पर्द्धा क्षमता बढ़ेगी।

लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) के बारे में

  • सारांश:  LVM3, जिसे “बाहुबली रॉकेट” कहा जाता है, ISRO का सबसे शक्तिशाली परिचालन रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों और अंतरग्रहीय मिशनों के लिए विकसित किया गया है।
  • पूर्व नाम:  जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क-III (GSLV Mk-III)।
  • क्षमता:  संचार, नेविगेशन और ‘डीप स्पेस मिशन’ (जैसे चंद्रयान और गगनयान) के लिए डिजाइन किया गया।
  • प्रकार:  तीन चरणों वाला रॉकेट, जिसमें ठोस, द्रव और क्रायोजेनिक ईंधन इंजन हैं।
  • चरण 
    • पहला चरण – ठोस प्रणोदक: दो बड़े ‘स्ट्रैप-ऑन बूस्टर’ जो ‘लिफ्ट-ऑफ’ प्रदान करते हैं।
    • दूसरा चरण – द्रव प्रणोदक: बूस्टर के अलग होने के बाद प्रारंभिक ‘थ्रस्ट’ प्रदान करता है।
    • तीसरा चरण – क्रायोजेनिक (तरल हाइड्रोजन + तरल ऑक्सीजन): उपग्रह को अंतिम कक्षा में स्थापित करता है।
  • पेलोड क्षमता
    • लो अर्थ ऑर्बिट (LEO): लगभग 8,000 किग्रा (ऊँचाई ~2,000 किमी)।
    • जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट (GEO): लगभग 4,000 किग्रा (ऊँचाई ~36,000 किमी)।
  • मुख्य उपलब्धियाँ 
    • चंद्रयान-2 (2019) और चंद्रयान-3 (वर्ष 2023) का सफल प्रक्षेपण।
    • क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश परीक्षण (वर्ष 2014) — गगनयान के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • वनवेब मिशन (वर्ष 2022–23) को सफलतापूर्वक LEO में भेजा, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण विदेशी लॉन्च बाधित हो गए थे।
    • इसके बाद इसे LVM3 नाम दिया गया क्योंकि यह GEO मिशनों के अलावा अन्य कक्षाओं (जैसे- 450 कि.मी. हेतु OneWeb मिशन) के लिए भी सक्षम सिद्ध हुआ।

उन्नयन योजनाएँ

  • क्रायोजेनिक स्टेज अपग्रेड (C25 → C32)
    • वर्तमान C25 क्रायोजेनिक ऊपरी चरण 28,000 किलोग्राम प्रणोदक ले जाता है, जो 20 टन प्रणोद उत्पन्न करता है।
    • विकासाधीन नया C32 चरण 32,000 किलोग्राम प्रणोदक ले जाएगा और 22 टन थ्रस्ट का उत्पन्न करेगा – जिससे पेलोड क्षमता में वृद्धि होगी।
  • सेमी-क्रायोजेनिक इंजन विकास
    • ISRO दूसरे चरण में इसे सेमी-क्रायोजेनिक इंजन (तरल ऑक्सीजन + रिफाइंड केरोसीन) से परिवर्तन करने की योजना बना रहा है।
  • लाभ
    • अधिक दक्षता और थ्रस्ट
    • कम लागत और पुनः उपयोग की संभावना
    • LEO पेलोड क्षमता 8 टन से बढ़कर लगभग 10 टन तक हो सकती है।
  • भविष्य के अनुप्रयोग
    • उन्नत LVM3 संस्करण से भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) का पहला मॉड्यूल प्रक्षेपित किया जा सकता है।
    • ISRO एक नया लूनर मॉड्यूल लॉन्च व्हीकल (LMLV) भी डिजाइन कर रहा है, जो 80,000 कि.ग्रा. तक के पेलोड को LEO तक ले जा सकेगा, जिससे भविष्य के चंद्र और मानव मिशन संभव होंगे।

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