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राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC)

Lokesh Pal November 08, 2025 03:30 94 0

संदर्भ

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) ने पिछले दशक में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है तथा इसका ऋण वितरण लगभग 17 गुना बढ़ गया है। 

अमूल – गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (GCMMF)

  • स्थापना: वर्ष 1946 में, सरदार वल्लभभाई पटेल और मोरारजी देसाई के मार्गदर्शन में, त्रिभुवनदास पटेल द्वारा, गुजरात के आणंद में कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड के रूप में।
  • शुरुआत: ‘अमूल’ की शुरुआत वर्ष 1950 में हुई; अब यह भारत का सबसे बड़ा खाद्य उत्पाद ब्रांड है।
  • संरचना: त्रि-स्तरीय सहकारी मॉडल [ग्राम समितियाँ → जिला संघ → राज्य संघ (GCMMF)]।
  • प्रभाव: भारत की श्वेत क्रांति का नेतृत्व किया, किसानों को उचित लाभ तथा उपभोक्ताओं के लिए किफायती डेयरी उत्पाद सुनिश्चित किए।

इफको (भारतीय कृषक उर्वरक सहकारी लिमिटेड)

  • स्थापना: वर्ष 1967, मुख्यालय नई दिल्ली।
  • स्वरूप: विश्व की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी संस्था; यूरिया, DAP, NPK और नैनो यूरिया का निर्माण तथा विपणन करती है।
  • सदस्यता: लगभग 35,000-36,000 सहकारी समितियाँ, 5 करोड़ से अधिक किसानों को सेवा प्रदान करती हैं।
  • नवाचार: नैनो उर्वरक प्रौद्योगिकी, इफको किसान ऐप जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म और हरित ऊर्जा पहलों में अग्रणी है।
  • शासन: बिना लाभांश, पुनर्निवेश मॉडल पर संचालित, ग्रामीण कल्याण और स्थिरता परियोजनाओं को वित्तपोषित करती है।

संबंधित तथ्य 

  • भारत के सहकारी क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में, भारत की दो अग्रणी सहकारी संस्थाओं (अमूल और IFFCO) ने सहकारी समितियों की वैश्विक रैंकिंग में क्रमशः प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त किया है।
  • कार्यक्रम: अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (ICA) द्वारा विश्व सहकारी मॉनिटर 2025 की घोषणा ICA CM50 सम्मेलन, दोहा, कतर में की गई।
  • स्तर: ICA की रिपोर्ट में दुनिया की शीर्ष 300 सहकारी संस्थाओं को शामिल किया गया है, जिनका संयुक्त कारोबार 2.79 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (2023) है।
    • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष कारोबार के आधार पर, भारत की अमूल और इफको वैश्विक सूची में शीर्ष पर हैं, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सहकारी समितियों की मजबूती को दर्शाता है।

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम के बारे में (NCDC)

  • यह एक वैधानिक निकाय है, जो कृषि, ग्रामीण उद्योगों और संबद्ध क्षेत्रों में सहकारी विकास को बढ़ावा देता है और उसका वित्तपोषण करता है।
    • यह भारत के सहकारी आंदोलन के लिए शीर्ष वित्तीय संस्थान के रूप में कार्य करता है, जो ऋण, अनुदान और तकनीकी सहायता के माध्यम से कृषि और गैर-कृषि दोनों गतिविधियों का समर्थन करता है।
  • स्थापना: राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम अधिनियम, 1962 के तहत वर्ष 1963 में स्थापित किया गया।
  • कार्य: सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली में अवस्थित है।
  • उद्देश्य
    • कृषि और ग्रामीण उद्योगों में आत्मनिर्भर, टिकाऊ और समावेशी सहकारी समितियों को बढ़ावा देना।
    • सहकारी समितियों को दीर्घकालिक ऋण, कार्यशील पूँजी और आधुनिक बुनियादी ढाँचे तक पहुँच प्रदान करना।
    • वित्तीय समावेशन के माध्यम से महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति सहकारी समितियों सहित हाशिए के समूहों को सशक्त बनाना।
  • मुख्य कार्य: NCDC राज्य सरकारों, राज्य स्तरीय सहकारी संघों और पात्र सहकारी समितियों को सीधे ऋण और अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इसकी प्रमुख गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:
    • कृषि और संबद्ध क्षेत्र: फसल उत्पादन, डेयरी, मत्स्यपालन, पशुधन, बागवानी और रेशम उत्पादन।
    • ग्रामीण उद्योग: हथकरघा, हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्करण और शीत शृंखला अवसंरचना।
    • अवसंरचना निर्माण: भंडारण, सिंचाई, विपणन यार्ड और स्वच्छता।
    • सामाजिक समावेशन: महिला सहकारी समितियों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति सहकारी समितियों और युवा-नेतृत्व वाली सहकारी समितियों को समर्थन प्रदान करना।
    • नीतिगत समर्थन और नवाचार: युवा सहकार, डेयरी सहकार, आयुष्मान सहकार और डिजिटल सहकार जैसी विशिष्ट योजनाओं का कार्यान्वयन।
  • हाल की उपलब्धियाँ
    • वित्त वर्ष 2024-25 में, NCDC ने ₹95,182.88 करोड़ का ऋण वितरित किया, जो वर्ष 2014-15 के ₹5,735.51 करोड़ से एक बड़ी छलांग है।
    • अक्टूबर 2025 तक, वित्त वर्ष 2025-26 के लिए ऋण वितरण पहले ही ₹49,799.06 करोड़ तक पहुँच चुका था, जो निरंतर वृद्धि को दर्शाता है।
    • वित्त वर्ष 2021-22 और वर्ष 2024-25 के बीच, NCDC ने महिला सहकारी समितियों को ₹4,823.68 करोड़ और अनुसूचित जाति/चित जनजाति सहकारी समितियों को ₹57.78 करोड़ प्रदान किए।

सहकारी समितियों के बारे में

  • सहकारी समितियाँ व्यक्तियों के स्वैच्छिक संघ हैं, जो अपनी समान आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एकजुट होते हैं।
  • ये समितियाँ पारस्परिक सहायता और स्व-सहायता के सिद्धांत पर कार्य करती हैं तथा लाभ-अधिकतम करने की अपेक्षा अपने सदस्यों के कल्याण को प्राथमिकता देती हैं।
  • भारत में सहकारी समितियों की स्थिति
    • वर्तमान में आवास, डेयरी, कृषि, वित्त आदि विभिन्न क्षेत्रों में 8 लाख से अधिक सहकारी समितियाँ पंजीकृत हैं।
    • भारत सरकार द्वारा वर्ष 2021 में ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन को साकार करने के लिए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया।
  • अधिकार क्षेत्र: संविधान के अंतर्गत सहकारी समितियाँ राज्य का विषय हैं।
    • ‘सहकारी समितियाँ’ विषय का उल्लेख संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि 32 में किया गया है।

भारत में सहकारी समितियों की स्थिति

  • वर्तमान आँकड़े: भारत में 8.3 लाख सहकारी समितियाँ हैं।
  • विविध गतिविधियाँ: 4,000 से अधिक पैक्स को प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने की मंजूरी दी गई है।
    • अन्य सहकारी समितियाँ ईंधन खुदरा, LPG वितरण, और ग्रामीण जल एवं सौर ऊर्जा योजनाओं में शामिल हैं।

भारत में सहकारी समितियों के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • 97वाँ संविधान संशोधन: संविधान में भाग IXB (सहकारी समितियाँ) जोड़ा गया।
    • सहकारी समितियाँ बनाने के अधिकार को अनुच्छेद-19(1) के अंतर्गत स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में शामिल किया गया।
    • सहकारी समितियों के संवर्द्धन से संबंधित अनुच्छेद-43 (B) को भी राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में से एक के रूप में शामिल किया गया।
  • बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2023: शासन को सुदृढ़ बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने, जवाबदेही बढ़ाने, चुनावी प्रक्रिया में सुधार लाने और बहु-राज्य सहकारी समितियों में 97वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को शामिल करने के लिए बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2002 में संशोधन लाया गया है।

सहकारी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए NCDC द्वारा लक्षित योजनाएँ

नीचे NCDC की कुछ प्रमुख योजनाएँ दी गई हैं और बताया गया है कि वे सहकारी समितियों के विभिन्न वर्गों को किस प्रकार लक्षित करती हैं:

  1. युवा सहकार – सहकारी उद्यम समर्थन एवं नवाचार योजना
    • वित्त वर्ष 2019-20 में नवीन विचारों वाली युवा उद्यमी सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई।
    • पात्रता: नई सहकारी समितियाँ, सकारात्मक निवल मूल्य, कोई नकद हानि नहीं आदि।
    • स्थापना से अब तक: 32 समितियों को लगभग ₹49.35 करोड़ स्वीकृत, लगभग ₹3.71 करोड़ जारी। (अभी तक सीमित उपयोग)।
  2. आयुष्मान सहकार
    • वित्त वर्ष 2020-21 में प्रारंभ किया गया था।
    • यह सहकारी संस्थाओं के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाता है।
    • इसका उद्देश्य सहकारी समितियों की सहायता करना है:
      1. सहकारी समितियों द्वारा अस्पतालों/स्वास्थ्य सेवा/शिक्षा सुविधाओं के माध्यम से किफायती और समग्र स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना।
      2. सहकारी समितियों द्वारा आयुष सुविधाओं को बढ़ावा देना।
      3. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के उद्देश्यों को पूरा करना।
      4. राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन में भाग लेना।
      5. शिक्षा, सेवाओं, बीमा और उससे संबंधित गतिविधियों सहित व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना।
    • पात्रता: देश में किसी भी राज्य/बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत कोई भी सहकारी समिति, जिसके उपनियमों में अस्पताल/स्वास्थ्य देखभाल/स्वास्थ्य शिक्षा से संबंधित सेवाएँ प्रदान करने का उपयुक्त प्रावधान हो।
  3. डेयरी सहकार
    • प्रारंभ: वर्ष 2021-22
    • उद्देश्य: नई परियोजनाओं और मौजूदा बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण या विस्तार, दोनों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके डेयरी सहकारी समितियों को मजबूत बनाना।
    • डिजिटल रूप से सक्षम सहकारी समितियों को बढ़ावा देना: ऋण पहुँच, सरकारी अनुदान/सब्सिडी से जोड़ना।
    • पात्रता: देश में किसी भी राज्य/बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत कोई भी सहकारी समिति, जिसके उपनियमों में उपयुक्त प्रावधान हो।
  4. डिजिटल सहकार 
    • प्रारंभ: वर्ष 2021-22 से 
    • यह डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण के अनुरूप है। यह डिजिटल रूप से सशक्त सहकारी समितियों को बढ़ावा देने, बेहतर ऋण पहुँच सुनिश्चित करने और सरकारी अनुदानों, सब्सिडी और प्रोत्साहनों के साथ निर्बाध जुड़ाव की सुविधा प्रदान करने के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
    • पात्रता: राज्य/बहु-राज्य अधिनियम के अंतर्गत कोई भी सहकारी समिति, FPO, FFPO, SHG संघीय सहकारी समितियाँ।
  5. दीर्घावधि कृषक पूँजी सहकार योजना 
    • इस योजना को वर्ष 2022-23 में शुरू किया गया।
    • यह कृषि ऋण सहकारी समितियों को दीर्घकालिक वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • यह उन्हें NCDC के अधिदेश के अंतर्गत आने वाली कृषि गतिविधियों, वस्तुओं और सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला के लिए ऋण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
  6. महिला सहकारी समितियों को समर्थन (स्वयं शक्ति सहकार और नंदिनी सहकार)
    • स्वयं शक्ति सहकार योजना: वित्त वर्ष 2022-23 में शुरू की गई यह योजना, महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को ऋण और अग्रिम प्रदान करने के लिए कृषि ऋण सहकारी समितियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • नंदिनी सहकार: इसका उद्देश्य सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देकर उन्हें सशक्त बनाना है। यह महिलाओं के नेतृत्व वाली सहकारी समितियों को व्यवसाय नियोजन, उद्यम विकास, क्षमता निर्माण और अन्य सरकारी योजनाओं से ऋण, सब्सिडी और ब्याज सहायता के माध्यम से वित्त तक पहुँच प्रदान करके सहायता प्रदान करती है।

‘NCDC’ को अनुदान सहायता योजना के बारे में

  • उद्देश्य: डेयरी, मत्स्यपालन, वस्त्र और महिला-नेतृत्व वाली सहकारी समितियों जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहकारी समितियों के लिए दीर्घकालिक तथा कार्यशील पूँजी वित्तपोषण को सक्षम करके सहकारी क्षेत्र को मजबूत करना।
  • उद्देश्य: नई परियोजनाएँ स्थापित करने, मौजूदा इकाइयों का विस्तार करने, बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करने और कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहकारी समितियों का समर्थन करना, जिससे उत्पादकता, लाभप्रदता और रोजगार में वृद्धि हो।
  • बजट परिव्यय: NCDC को 4 वर्षों (वर्ष 2025-26 से वर्ष 2028-29) के लिए ₹500 करोड़ प्रति वर्ष की दर से कुल ₹2000 करोड़ की सहायता प्रदान की जाएगी।
    • इससे NCDC को चार वर्षों में सहकारी ऋणों के वित्तपोषण के लिए खुले बाजार से ₹20,000 करोड़ जुटाने में मदद मिलेगी।
  • लाभार्थी: इस योजना से 13,288 सहकारी समितियों के 2.9 करोड़ सदस्य लाभान्वित होंगे।
  • कार्यान्वयन
    • कार्यान्वयन एजेंसी: NCDC ऋण वितरण, परियोजना निगरानी, ​​अनुवर्ती कार्रवाई और वसूली के लिए जिम्मेदार कार्यान्वयन एजेंसी होगी।
    • वित्तपोषण तंत्र: NCDC के प्रत्यक्ष वित्तपोषण दिशा-निर्देशों के तहत पात्रता के आधार पर, सहकारी समितियों को सीधे या राज्य सरकारों के माध्यम से ऋण प्रदान किए जाएँगे।
    • ऋण उपयोग और लक्षित क्षेत्र: ऋण सहकारी समितियों को आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकी उन्नयन, क्षमता विस्तार और डेयरी, पशुधन, चीनी, भंडारण तथा महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों जैसे क्षेत्रों के लिए कार्यशील पूँजी में सहायता प्रदान करेंगे।

भारत में सहकारिता की भूमिका

  • भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, सहकारी समितियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने लाखों लोगों को सशक्त बनाया है, उनकी आजीविका में सुधार किया है और राष्ट्रीय विकास में योगदान दिया है।

ग्रामीण विकास

  • ऋण उपलब्धता में वृद्धि: सहकारी बैंक और ऋण समितियाँ किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को किफायती ऋण प्रदान करती हैं, जिससे वे अपने व्यवसायों में निवेश कर सकते हैं तथा उत्पादकता बढ़ा सकते हैं।
    • सहकारी समितियाँ देश के कुल कृषि ऋण का 20% प्रदान करती हैं, जिससे किसानों के लिए वित्तीय पहुँच सुनिश्चित होती है।

  • कृषि इनपुट आपूर्ति: सहकारी समितियाँ उचित मूल्य पर बीज, उर्वरक और कीटनाशक जैसी गुणवत्तापूर्ण कृषि इनपुट खरीदती और वितरित करती हैं, जिससे किसानों को समय पर उनकी पहुँच सुनिश्चित होती है।
    • उदाहरण के लिए, भारतीय कृषक उर्वरक सहकारी (IFFCO) लाखों किसानों को उचित मूल्य पर उर्वरक और कृषि उत्पाद उपलब्ध कराता है।
  • कृषि उपज तक बाजार पहुँच: सहकारी समितियाँ किसानों की उपज को एकत्रित करके, बेहतर कीमतें प्रदान करके और उन्हें घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़कर उनके लिए बाजार पहुँच को सुगम बनाती हैं।
    • उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के सह्याद्री फार्म्स ने सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया है कि सहकारी समितियाँ किसानों की बाजार पहुँच कैसे बढ़ा सकती हैं।
  • ग्रामीण अवसंरचना विकास: सहकारी समितियाँ अक्सर ग्रामीण अवसंरचना, जैसे सिंचाई प्रणाली, सड़कें और भंडारण सुविधाओं में निवेश करती हैं, जिससे पूरे समुदाय को लाभ होता है।
    • उदाहरण के लिए, नाबार्ड शीत भंडारण और प्रसंस्करण इकाइयों जैसी सहकारी अवसंरचना परियोजनाओं के लिए पुनर्वित्त प्रदान करता है।

गरीबी में कमी

  • आय सृजन: सहकारी समितियाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में लोगों को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं।
    • उदाहरण के लिए, अमूल डेयरी सहकारी समिति ने गुजरात में लाखों डेयरी किसानों को आजीविका प्रदान की है।
  • कौशल विकास: सहकारी समितियाँ अक्सर अपने सदस्यों के कौशल को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और आय में सुधार होता है।
    • SEVA (स्व-नियोजित महिला संघ) एक सहकारी संस्था है, जो महिलाओं को हस्तशिल्प, परिधान निर्माण आदि में कौशल विकसित करने में मदद करती है, जिससे उनकी आय और आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ती है।
  • सामाजिक सुरक्षा जाल: सहकारी समितियाँ सामाजिक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य कर सकती हैं, आर्थिक कठिनाई या प्राकृतिक आपदाओं के समय अपने सदस्यों को सहायता प्रदान करती हैं।

सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण

  • महिला सशक्तीकरण: महिला स्वयं सहायता समूह, जो प्रायः सहकारिता-आधारित होते हैं, महिलाओं को वित्तीय संसाधन, प्रशिक्षण और अपनी समस्याओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाते हैं।
    • वर्ष 1959 में स्थापित लिज्जत पापड़ महिलाओं के रोजगार पर एक सफल केस स्टडी है, जो दर्शाती है कि कैसे एक सहकारी व्यवसाय मॉडल महिलाओं को सशक्त बना सकता है और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दे सकता है।
  • सामुदायिक विकास: सहकारी समितियाँ शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य सामाजिक कल्याण गतिविधियों में निवेश करके सामुदायिक विकास में योगदान देती हैं।
    • उदाहरण के लिए, कृषक भारती सहकारी लिमिटेड (कृभको) ने अपने सदस्यों और व्यापक समुदाय के जीवन स्तर में सुधार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और अस्पताल बनवाए हैं।

खाद्य सुरक्षा

  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: सहकारिताएँ आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने को बढ़ावा देती हैं, जिससे उपज में वृद्धि और गुणवत्ता में सुधार होता है।
    • देश में कुल चीनी उत्पादन में सहकारी समितियों का योगदान 31% और भारत में उत्पादित कुल दूध उत्पादन में 10% से अधिक है।
    • वे मछुआरों के व्यवसाय में 21% से अधिक का योगदान करते हैं और मछली पकड़ने के उद्योग तथा तटीय समुदायों को सहायता प्रदान करते हैं।
  • कुशल खाद्य वितरण: सहकारिताएँ खाद्यान्नों और अन्य कृषि उत्पादों का कुशल वितरण सुनिश्चित करती हैं, बर्बादी को कम करती हैं और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।
  • मूल्य स्थिरीकरण: सहकारिताएँ कृषि उत्पादों के क्रेता और विक्रेता दोनों के रूप में कार्य करके कीमतों को स्थिर करने में मदद कर सकती हैं।
    • सहकारिताएँ देश में उत्पादित गेहूँ का 13% और धान का 20% से अधिक खरीदती हैं, जिससे किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित होता है। 
      • उदाहरण: भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED)।

राष्ट्रीय सहकारिता नीति (NCP)-2025

  • दूरदर्शी सुधार: यह नीति ‘सहकार से समृद्धि’ के दृष्टिकोण को मूर्त रूप देती है, जो सहकारी प्रयासों के माध्यम से समृद्धि को बढ़ावा देती है।
  • निर्माण प्रक्रिया: पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के नेतृत्व में 40 सदस्यीय समिति द्वारा तैयार की गई, जिसमें RBI और NABARD जैसे हितधारक शामिल हैं।

  • उद्देश्य: एक समावेशी, तकनीक-संचालित और भविष्य के लिए तैयार सहकारी क्षेत्र का निर्माण करना, जो वर्ष 2047 तक भारत के विकसित भारत विजन का समर्थन करे।
  • राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 के लक्ष्य
    • पैमाने और प्रभाव का विस्तार: वर्ष 2034 तक 50 करोड़ सक्रिय सदस्यों को एकीकृत करके सहकारी समितियों की संख्या में 30% की वृद्धि और उनके सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को तीन गुना बढ़ाना।
    • सार्वभौमिक कवरेज प्राप्त करना: जमीनी स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक पंचायत में कम-से-कम एक प्राथमिक सहकारी इकाई स्थापित करना।
  • सहकारी क्षेत्र के लिए लक्ष्य प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 के छह स्तंभों को भी शामिल किया गया। (चित्र में देखें)

NCDC की वास्तविक क्षमता को साकार करने में चुनौतियाँ

  • सहकारी समितियों का पुनर्भुगतान जोखिम और स्थायित्व: बड़े पैमाने पर ऋण वितरण अक्सर कमजोर वित्तीय स्थिति या पुराने व्यावसायिक मॉडल वाली सहकारी समितियों को जाता है। कई सहकारी समितियाँ नई उत्पादक संपत्तियाँ बनाने के बजाय परिचालन घाटे को पूरा करने के लिए उधार लेती हैं, जिससे दीर्घकालिक ऋण और पुनर्भुगतान जोखिम बढ़ जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: वित्त वर्ष 2024-25 में, महाराष्ट्र की 46 सहकारी चीनी मिलों को NCDC से लगभग ₹7,618 करोड़ का ऋण प्राप्त हुआ, जो मुख्यतः कार्यशील पूँजी के लिए था, न कि क्षमता निर्माण के लिए – जिससे स्थायित्व संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • असमान क्षेत्रीय प्रसार और संकेंद्रण जोखिम: NCDC का पोर्टफोलियो चीनी और डेयरी जैसे पारंपरिक क्षेत्रों की ओर अत्यधिक झुका हुआ है, जबकि उभरती गैर-कृषि और नवाचार सहकारी समितियों को सीमित समर्थन मिलता है, जिससे संकेंद्रण और प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न होता है।
    • उदाहरण के लिए: विशेषज्ञों ने बताया कि NCDC की ₹10,005 करोड़ की चीनी क्षेत्र सहायता का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय रूप से संकटग्रस्त मिलों को गया, जो एक कमजोर उद्योग पर अत्यधिक निर्भरता को दर्शाता है।
  • कमजोर निगरानी और परिणाम अभिविन्यास: NCDC की रिपोर्टिंग मुख्यतः वितरित धनराशि पर केंद्रित है और उत्पादकता वृद्धि, रोजगार सृजन या आय वृद्धि जैसे मापनीय परिणामों पर पर्याप्त जोर नहीं देती।
    • उदाहरण के लिए: वित्त वर्ष 2024-25 में ₹95,182 करोड़ वितरित होने के बावजूद, वित्तपोषित सहकारी समितियों की आय या रोजगार पर प्रभाव पर कोई प्रकाशित निष्पादन लेखापरीक्षा नहीं है।
  • शासन और संस्थागत क्षमता अंतराल: कई सहकारी समितियाँ राजनीतिक हस्तक्षेप, खराब आंतरिक लेखापरीक्षा और पेशेवर प्रबंधन की कमी से ग्रस्त हैं, जिससे परियोजना निष्पादन तथा जवाबदेही कमजोर होती है।
  • सीमित बाजार और मूल्य शृंखला संबंध: कई सहकारी समितियाँ आधुनिक मूल्य शृंखलाओं, ब्रांडिंग और प्रौद्योगिकी अपनाने से अलग-थलग रहती हैं, जिससे निजी हितधारकों के मुकाबले उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता सीमित हो जाती है।
  • वित्तीय उतार-चढ़ाव और सामर्थ्य संबंधी बाधाएँ: रियायती ब्याज दरों के बावजूद, सहकारी समितियों को उच्च उतार-चढ़ाव, कम मार्जिन और मौसमी आय चक्रों का सामना करना पड़ता है, जिससे ऋण चुकाना मुश्किल हो जाता है।
  • क्षेत्रीय एवं संरचनात्मक असमानताएँ: राज्यों में सहकारी समितियों की ताकत में भारी अंतर है। महाराष्ट्र और गुजरात में सहकारी समितियाँ मजबूत हैं, लेकिन पूर्वोत्तर और आकांक्षी जिलों में कमजोर हैं, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर परिणामों में एकरूपता सीमित हो जाती है।
    • नागालैंड के लोक स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि देश के अन्य हिस्सों के विपरीत, पूर्वोत्तर की सहकारी समितियाँ प्रबंधकीय और वित्तीय रूप से कमजोर हैं और विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों के लिए सरकारी सहायता, विशेष रूप से NCDC के वित्तपोषण पर निर्भर हैं।

NDDB का ‘उत्पादक कंपनी’ मॉडल

  • यह एक मिश्रित कानूनी संरचना है, जो एक निजी लिमिटेड कंपनी के लाभों को सहकारी समिति के सिद्धांतों के साथ जोड़ती है और किसान-स्वामित्व वाले तथा पेशेवर रूप से प्रबंधित उद्यमों को बढ़ावा देती है।
  • यह कम-से-कम 10 डेयरी किसानों या सहकारी समितियों को एक कंपनी के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति देता है, लेकिन शेयरधारिता की परवाह किए बिना, ‘एक सदस्य, एक वोट’ की प्रमुख विशेषता के साथ, लोकतांत्रिक नियंत्रण सुनिश्चित करता है।
  • यह मॉडल उत्पादकों को सहकारी मूल्यों को बनाए रखते हुए और उन्हें बाहरी हस्तक्षेप से बचाते हुए बाजार में कार्य करने की अधिक स्वतंत्रता देता है।

आगे की राह

  • संस्थागत और शासन सुधार
    • सहकारी समितियों का व्यवसायीकरण: NCDC से बड़े ऋण प्राप्त करने वाली सहकारी समितियों में पेशेवर प्रबंधकों और लेखाकारों की अनिवार्य नियुक्ति लागू करना।
      • उदाहरण: सदस्य स्वामित्व और कॉरपोरेट प्रशासन के बीच संतुलन बनाने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के ‘उत्पादक कंपनी’ मॉडल का पालन करें।
    • पारदर्शी लेखा परीक्षा और प्रकटीकरण: ₹10 करोड़ से अधिक के ऋण वाली सहकारी समितियों के लिए स्वतंत्र तृतीय-पक्ष लेखा परीक्षा लागू करना।
      • बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2023 सभी बहु-राज्य सहकारी समितियों (MSCS) के लिए स्वतंत्र तृतीय-पक्ष लेखा परीक्षा अनिवार्य करता है और विशेष रूप से 500 करोड़ रुपये से अधिक वार्षिक कारोबार या जमा राशि वाली समितियों के लिए अनिवार्य समवर्ती लेखा परीक्षा लागू करता है।
    • गैर-राजनीतीकरण: योग्यता-आधारित प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए सहकारी समितियों के बोर्डों में राजनीतिक नियुक्तियों को सीमित करने वाले दिशा-निर्देशों को लागू करना।
  • परिणाम-आधारित निगरानी और मूल्यांकन
    • प्रभाव लेखा परीक्षा: NCDC को ऋण वितरण को आय वृद्धि, रोजगार, उत्पादकता जैसे ठोस परिणामों से जोड़ते हुए वार्षिक निष्पादन लेखा परीक्षा प्रकाशित करनी चाहिए।
    • डिजिटल MIS डैशबोर्ड: पीएम-गतिशक्ति निगरानी प्रणालियों के समान, क्षेत्रवार ऋण, पुनर्भुगतान और परियोजना परिणामों पर नजर रखने वाला एक वास्तविक समय डिजिटल डैशबोर्ड विकसित करना।
    • स्वतंत्र समीक्षा तंत्र: बड़े उधारकर्ताओं (जैसे- चीनी, डेयरी संघ) की वित्तीय स्थिति की जाँच के लिए NCDC + सीएजी + नाबार्ड का एक संयुक्त निगरानी प्रकोष्ठ गठित करना।
  • पोर्टफोलियो का विविधीकरण और जोखिम न्यूनीकरण
    • क्षेत्रीय कवरेज का विस्तार: चीनी और डेयरी के अलावा मत्स्यपालन, खाद्य प्रसंस्करण, नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रामीण सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
    • ऋण जोखिम बीमा: लघु और स्टार्ट-अप सहकारी समितियों को NCDC ऋण सुरक्षित करने के लिए ऋण गारंटी और जोखिम बीमा कोष (CGTMSE की तर्ज पर) शुरू करना।
  • बाजार एकीकरण और मूल्य शृंखला सुदृढ़ीकरण
    • ब्रांडिंग और निर्यात संवर्द्धन: NCDC के विपणन कोष से समर्थित, भू-विशिष्ट ब्रांड और प्रमाणन (जैसे- “अमूल”, “सह्याद्री फार्म्स”) विकसित करने में सहकारी समितियों का समर्थन।
    • प्रौद्योगिकी उन्नयन: रियायती NCDC ऋणों के माध्यम से AI-संचालित कोल्ड चेन और लॉजिस्टिक्स प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • नीति अभिसरण और समन्वय
    • राष्ट्रीय सहकारी डेटा ग्रिड: सभी सहकारी समितियों (सदस्यता, ऋण और प्रभाव) का एक एकीकृत डेटाबेस बनाएँ, जो सहकारिता मंत्रालय के सहकार से समृद्धि पोर्टल से जुड़ा हो।
    • राज्य-केंद्र समन्वय: राज्य सहकारी नीतियों को राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 के साथ संरेखित करना, जिससे लेखा परीक्षा, चुनाव और वित्तपोषण में एक समान मानक सुनिश्चित हों।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग
    • वैश्विक मॉडलों से सीखना: डिजिटलीकरण, शासन और जलवायु परिवर्तन के प्रति सर्वोत्तम प्रथाओं के लिए ICA (अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन) और एफएओ के सहकारी विकास कार्यक्रम के साथ सहयोग करना।
    • निर्यात-उन्मुख सहकारी समितियाँ: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहकारी ब्रांडों के साथ संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

NCDC भारत में सहकारी पुनरुत्थान के मूल में है, जो वित्त, समावेशिता और ग्रामीण उद्यम को सहकार से समृद्धि के दृष्टिकोण से जोड़ती है। अपनी पूर्ण क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए, भारत को अब ऋण विस्तार से संस्थागत परिवर्तन की ओर बढ़ना होगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि सहकारी समितियाँ समतापूर्ण विकास के वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी चालक बनें।

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