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भारत में विधिक सहायता तंत्र को मजबूत करना

Lokesh Pal November 12, 2025 03:14 96 0

संदर्भ 

प्रधानमंत्री ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आयोजित कानूनी सहायता वितरण तंत्र को सशक्त बनाना” विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया, जिसमें सभी नागरिकों के लिए सुलभ, समावेशी और प्रौद्योगिकी-संचालित न्याय की आवश्यकता पर बल दिया गया।

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • यह सम्मेलन राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा आयोजित किया गया था, जो NALSA की स्थापना के 30 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है और इसका उद्देश्य कानूनी सहायता प्रणाली, मध्यस्थता तथा जन कानूनी जागरूकता को सुदृढ़ करना है।
  • राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस: प्रत्येक वर्ष 9 नवंबर को राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की स्मृति में उन संगठनों की स्थापना को चिह्नित किया जा सके, जो जरूरतमंदों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करते हैं।
  • विधिक सहायता तंत्र की उपलब्धियाँ
    • भारत की कानूनी सहायता प्रणाली ने 44.22 लाख लोगों (वर्ष 2022-25) तक पहुँच बनाई है और 23.58 करोड़ मामलों को लोक अदालतों के माध्यम से सुलझाया है।
    • वर्ष 2022-23 से 2024-25 के बीच, राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय लोक अदालतों के माध्यम से 23.58 करोड़ मामलों का निपटारा किया गया।
    • लगभग 2.10 करोड़ लोगों (28 फरवरी 2025 तक) को DISHA योजना के अंतर्गत वाद-पूर्व सलाह, नि:शुल्क सेवाएँ और कानूनी प्रतिनिधित्व तथा जागरूकता प्रदान की गई।

कानूनी सहायता के बारे में 

  • निःशुल्क कानूनी सहायता का अर्थ है, उन गरीब और वंचित वर्गों को निःशुल्क कानूनी सेवाएँ प्रदान करना, जो किसी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकरण में किसी वाद या कानूनी कार्यवाही के संचालन हेतु वकील की फीस वहन करने में सक्षम नहीं हैं।
  • कानूनी सहायता कोई दान या कृपा नहीं, बल्कि राज्य का दायित्व और नागरिकों का अधिकार है।
  • राज्य का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए- सभी के लिए समान न्याय”
  • ये सेवाएँ विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत संचालित होती हैं और इसका संचालन राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा किया जाता है।
  • कानूनी सहायता में शामिल सेवाएँ
    • न्यायालय में प्रतिनिधित्व: न्यायालयों, अधिकरणों या अन्य विधिक निकायों के समक्ष निःशुल्क कानूनी प्रतिनिधित्व।
    • कानूनी सलाह: विभिन्न विषयों पर कानूनी परामर्श प्रदान करना।
    • दस्तावेज तैयार करना: याचिकाओं और शपथ-पत्रों जैसे कानूनी दस्तावेजों की तैयारी में सहायता।
    • अदालती शुल्क में छूट: पात्र व्यक्तियों के लिए राज्य द्वारा अदालती शुल्क का वहन किया जाना।
  • कौन कानूनी सहायता के पात्र हैं? 
    • अनुसूचित जातियाँ (SC) और अनुसूचित जनजातियाँ (ST)।
    • महिलाएँ और बच्चे।
    • मानसिक रूप से बीमार या दिव्यांग व्यक्ति।
    • शोषण का सामना करने वाले व्यक्ति (जैसे तस्करी के शिकार, भिक्षुक आदि)।
    • कैदी या हिरासत में रहने वाले व्यक्ति।
    • औद्योगिक श्रमिक और सामूहिक आपदाओं के पीड़ित।
    • वे व्यक्ति, जिनकी वार्षिक आय निर्धारित सीमा से कम है।

कानूनी सहायता के लिए संवैधानिक ढाँचा 

  • अनुच्छेद-14: विधि के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण की गारंटी देता है, जो कानूनी सहायता का आधार बनता है।
  • अनुच्छेद-21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार न्याय तक पहुँच को शामिल करता है; निष्पक्ष मुकदमे के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता इसका अंतर्निहित हिस्सा है।
  • अनुच्छेद-22(1): गिरफ्तारी की स्थिति में अपने चुने हुए विधिक अधिवक्ता से परामर्श करने और उसकी सहायता प्राप्त करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद-39(A) [42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया] 
    • राज्य को समान अवसरों के साथ न्याय सुनिश्चित करने हेतु निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने का निर्देश देता है।
    • यह इस बात पर जोर देता है कि न्याय को आर्थिक या अन्य अक्षम्यताओं के कारण नकारा नहीं जाना चाहिए।

कानूनी सहायता के लिए विधायी ढाँचा 

  • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (संशोधित: वर्ष 1994 और 2002)
    • भारत में कानूनी सहायता के लिए वैधानिक ढाँचा प्रदान करता है।
    • यह राष्ट्रीय, राज्य, जिला, तालुका स्तर की संस्थाओं और विधिक सहायता क्लीनिक (जैसे NALSA, SLSA आदि) के माध्यम से कानूनी सहायता के वितरण की पदानुक्रमित संरचना स्थापित करता है।
      • ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में, विधिक सहायता क्लीनिक गाँव समूहों की सेवा करते हैं।
      • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट, 2025 के अनुसार, प्रत्येक 163 गाँवों पर एक विधिक सेवा क्लीनिक स्थापित है।
    • मुख्य प्रावधान 
      • पात्र व्यक्तियों (जैसे- SC/ST, महिलाएँ, बच्चे, दिव्यांग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) को निःशुल्क कानूनी सेवाएँ।
      • कानूनी सलाह, न्यायालय में प्रतिनिधित्व और वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) में सहायता शामिल है।
      • विवादों के त्वरित और मैत्रीपूर्ण निपटान के लिए लोक अदालतों की स्थापना करता है।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023
    • धारा 341:  उन मामलों में जहाँ अभियुक्त व्यक्ति अपने बचाव के लिए वकील का खर्च नहीं उठा सकता, राज्य के व्यय पर कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रावधान करती है।

भारत में कानूनी सहायता की संस्थागत संरचना

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)

  • NALSA की स्थापना विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत की गई थी।
    • यह पूरे देश में कानूनी सहायता कार्यक्रमों के नीति निर्माण और कार्यान्वयन की निगरानी के लिए केंद्रीय निकाय है।
  • भूमिका और कार्य
    • नीति निर्माण: देशभर में कानूनी सहायता के लिए नीतियाँ, सिद्धांत और दिशा-निर्देश तय करना।
    • समन्वय: राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSA), जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (DLSA) और अन्य संस्थाओं के साथ समन्वय करना ताकि सेवाओं का समान रूप से कार्यान्वयन हो सके।
    • निगरानी और मूल्यांकन: कानूनी सहायता कार्यक्रमों की प्रभावशीलता की निगरानी करना और उपभोक्ता संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण जैसे सामाजिक न्याय के मामलों में याचिका दायर करना।
    • जागरूकता अभियान: नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों और सेवाओं की उपलब्धता के बारे में शिक्षित करने के लिए विधिक साक्षरता कार्यक्रम आयोजित करना।
    • लोक अदालतें: विवादों के मैत्रीपूर्ण निपटान हेतु लोक अदालतों के आयोजन और प्रोत्साहन की जिम्मेदारी।
  • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSAs)
    • प्रत्येक राज्य में NALSA द्वारा निर्धारित नीतियों और निर्देशों को लागू करने के लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) की स्थापना की गई है।
  • अध्यक्ष: संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
  • कार्य
    • NALSA की नीतियों के अनुरूप राष्ट्रीय विधिक सहायता योजनाओं को लागू करना।
    • राज्य स्तर पर लोक अदालतों और विधिक जागरूकता अभियानों का आयोजन करना।
    • जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (DLSA) और तालुका विधिक सेवा समितियों (TLSC) के कार्य का निरीक्षण और मूल्यांकन करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पात्र व्यक्तियों को कानूनी सहायता सेवाएँ आसानी से उपलब्ध हों।
  • जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSAs)
    • DLSA जिला स्तर पर कानूनी सहायता सेवाओं को लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये उन व्यक्तियों के लिए पहला संपर्क बिंदु होते हैं, जो कानूनी सहायता चाहते हैं।
    •  अध्यक्ष: जिला न्यायाधीश।
  • तालुका विधिक सेवा समितियाँ (TLSCs)
    • ये समितियाँ तालुका/मंडल (उप-जिला) स्तर पर स्थापित की जाती हैं, ताकि ग्रामीण स्तर पर लोगों को कानूनी सहायता प्रदान की जा सके।
    •  अध्यक्ष: तालुका के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश।
  • सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (SCLSC)
    • यह समिति उन व्यक्तियों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सहायता चाहते हैं।
  • लोक अदालतें
    • लोक अदालतें एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र हैं, जिनकी स्थापना विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत की गई है।
      • ये औपचारिक न्यायिक प्रणाली के बाह्य विवादों के मैत्रीपूर्ण निपटान को मंच प्रदान करती हैं।
      • इनके निर्णय सिविल न्यायालयों के डिक्री के समान होते हैं, जो अंतिम और बाध्यकारी होते हैं।
  • भूमिका और कार्य
    • लोक अदालतें पूर्व-विवाद और विवादोत्तर  दोनों चरणों में मामलों का निपटारा करती हैं।
    • वे सिविल, आपराधिक, और पारिवारिक मामलों का प्रबंधन करती हैं-जैसे पारिवारिक विवाद, संपत्ति विवाद, विवाह संबंधी मुद्दे आदि।
    • इनका आयोजन NALSA, SLSA, DLSA, और TLSC द्वारा राष्ट्रीय, राज्य, जिला, और तालुका स्तर पर किया जाता है।

फास्ट ट्रैक न्यायालय (FTCs)

  • इनकी स्थापना गंभीर अपराधों और महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांग व्यक्तियों तथा पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित संपत्ति मामलों के शीघ्र निपटान के लिए की गई थी।
    • 14वें वित्त आयोग ने 2015-20 के दौरान 1,800 FTCs की सिफारिश की थी, जिनमें से 30 जून, 2025 तक 865 FTCs कार्यरत हैं।
    • अक्टूबर 2019 में एक केंद्रीय प्रायोजित योजना शुरू की गई थी, जिसके अंतर्गत फास्ट ट्रैक न्यायालय (FTSCs) स्थापित किए गए हैं, जो POCSO अधिनियम के अंतर्गत गंभीर यौन अपराधों के पीड़ितों को न्याय प्रदान करने के लिए समर्पित हैं।

अन्य न्यायालय 

  • ग्राम न्यायालय: ये ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए आधारभूत स्तर की अदालतें हैं।
    • ये ग्रामीणों को समयबद्ध, सुलभ, और वहनीय न्याय प्रदान करती हैं।
    • ये अदालतें स्थानीय स्तर पर विवादों को शीघ्रता से हल करके ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाती हैं।
  • नारी’ अदालत: यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की मिशन शक्ति योजना के तहत संचालित एक योजना है।
    • उद्देश्य: महिलाओं की सुरक्षा, संरक्षा और सशक्तीकरण के लिए पहलों को मजबूत करना, जो ग्राम पंचायत स्तर पर कार्यरत हैं।
    • इन अदालतों का दायित्व घरेलू हिंसा और अन्य लैंगिक हिंसा से जुड़े मामलों को वार्ता, मध्यस्थता और पारस्परिक सहमति से निपटाना है।
    • ये अदालतें 7–9 महिलाओं द्वारा संचालित होती हैं और महिलाओं को उनके संवैधानिक एवं कानूनी अधिकारों के बारे में शिक्षित करती हैं, साथ ही उन्हें कानूनी सहायता और अन्य सेवाएँ प्राप्त करने में मदद करती हैं।
  • 211 विशेष न्यायालय: इनकी स्थापना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अंतर्गत अपराधों से निपटने के लिए की गई है।

भारत में निःशुल्क कानूनी सहायता का महत्त्व 

  • समान न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करता है: निःशुल्क कानूनी सहायता यह सुनिश्चित करती है कि आर्थिक बाधाएँ न्याय तक पहुँच में रुकावट न बनें।
    • यह संविधान के अनुच्छेद-14 के अनुरूप है, जो सभी नागरिकों के लिए कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है।
  • संवैधानिक अधिकार और दायित्व: अनुच्छेद-39(A) राज्य को समान न्याय हेतु निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने का निर्देश देता है।
    • यह प्रत्येक नागरिक के लिए अनुच्छेद-21 के अंतर्गत निष्पक्ष मुकदमे के संवैधानिक वादे को पूरा करता है।
  • वंचित और कमजोर समूहों को सशक्त बनाता है: कानूनी सहायता महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति और तस्करी के शिकार व्यक्तियों जैसे समूहों को अपने अधिकारों की रक्षा में सहयोग देती है।
    • यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करती है, जिससे ये समूह शोषण और भेदभाव को चुनौती दे सकें।
  • कानूनी असमानता को कम करती है: निःशुल्क कानूनी सहायता उन लोगों को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है, जो वकील का खर्च नहीं उठा सकते।
    • भारत की लगभग 40% जनसंख्या कानूनी सहायता का खर्च वहन नहीं कर सकती, जो न्याय की सुलभता की आवश्यकता दर्शाता है।
  • विधि के शासन को मजबूत करती है: कानूनी सहायता यह सुनिश्चित करके कानून के शासन को बढ़ावा देती है कि हर व्यक्ति को, उसकी आर्थिक स्थिति के बावजूद, न्याय मिले।
    • यह न्यायिक प्रणाली में विश्वास निर्माण करती है और न्याय प्रक्रिया की निष्पक्षता को बनाए रखती है।
  • न्यायिक लंबित मामलों को कम करती है: लोक अदालतें और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र अदालतों में लंबित मामलों की संख्या घटाने में मदद करते हैं।
    • लाखों मामलों का निपटारा लोक अदालतों के माध्यम से हुआ है, जिससे औपचारिक न्यायिक प्रणाली पर भार कम हुआ है।
  • कानूनी जागरूकता को बढ़ावा देती है: कानूनी सहायता विधिक साक्षरता को प्रोत्साहित करती है और नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करती है।
    • NALSA और SLSA द्वारा संचालित कार्यक्रम विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को कानूनी अधिकारों और सहायता सेवाओं के बारे में जानकारी देते हैं।

भारत में कानूनी सहायता के लिए सरकारी योजनाएँ और पहलें 

  • लीगल एड डिफेंस काउंसल (LADC) योजना: LADC योजना अभियुक्त व्यक्तियों के लिए समर्पित अभिरक्षा पक्ष के वकीलों को नियुक्त करती है, ताकि जिनके पास वकील की सेवाएँ प्राप्त करने की क्षमता नहीं है, उन्हें भी गुणवत्तापूर्ण कानूनी बचाव प्राप्त हो सके।
    • यह योजना भारत के 670 में से 610 जिलों में संचालित है और वित्तीय वर्ष 2023-24 में ₹200 करोड़ की धनराशि प्राप्त हुई थी, हालाँकि वर्ष 2024-25 में इसका आवंटन घट गया है।
  • पैरा-लीगल वॉलेंटियर्स (PLVs): PLVs जमीनी स्तर की कानूनी सहायता प्रणाली के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
    • वे समुदाय-आधारित व्यक्ति होते हैं, जिन्हें कानूनी जागरूकता बढ़ाने, मूल कानूनी सेवाएँ प्रदान करने और कमजोर वर्गों को औपचारिक कानूनी संस्थानों से जोड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  • कार्य
    • समुदाय और कानूनी संस्थानों (जैसे- पुलिस स्टेशन, न्यायालय, विधिक सेवा प्राधिकरण) के बीच सेतु का कार्य करना।
    • कानूनी दस्तावेज तैयार करने, शिकायत दर्ज करने और लोक अदालतों में मामलों का प्रतिनिधित्व करने में मदद करना।
    • कानूनी सलाह देना और विवाद समाधान में सहायता करना।
    • PLVs कानूनी सहायता क्लीनिकों का एक अभिन्न हिस्सा हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में और कानूनी सहायता के प्रथम संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करते हैं।
  • डिजाइनिंग इनोवेटिव सॉल्यूशन फॉर होलिस्टिक एक्सेस टू जस्टिस (DISHA) योजना (2021): DISHA योजना का उद्देश्य पूर्व-मुकदमे (Pre-litigation) तंत्र को मजबूत करना है, ताकि व्यक्ति विवादों को औपचारिक न्यायिक कार्यवाही से पहले ही हल कर सकें।
    • न्याय बंधु-प्रो बोनो कानूनी सेवा कार्यक्रम: न्याय बंधु कार्यक्रम वकीलों को प्रेरित करता है कि वे गरीब वादकारियों के लिए स्वैच्छिक सेवाएँ प्रदान करें।
      • न्याय बंधु को DISHA योजना के अंतर्गत टेली-लॉ (Tele-Law) सेवाओं के साथ एकीकृत किया गया है, जो मुकदमा पूर्व सलाह प्रदान करती हैं।
    • टेली-लॉ: टेली-लॉ कार्यक्रम के माध्यम से राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSAs) में तैनात विशेषज्ञ वकीलों के पैनल द्वारा कानूनी सलाह दी जाती है।
      • यह कानूनी परामर्श को अधिक सुलभ और किफायती बनाता है, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिए पर स्थित जनसंख्या के लिए।
    • कानूनी साक्षरता और जागरूकता कार्यक्रम:  NALSA, SLSA, और DLSA नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों और कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में शिक्षित करने के लिए व्यापक जागरूकता कार्यक्रम संचालित करते हैं।
  • न्याय मित्र कार्यक्रम:  न्याय मित्र कार्यक्रम उन मामलों के शीघ्र निपटारे पर केंद्रित है, जो 10 से 15 वर्षों से उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित हैं।
    • उद्देश्य: मामलों के लंबित रहने की समस्या को कम करना और वादियों को समय पर न्याय दिलाना।
  • वीर परिवार सहायता योजना, 2025: इस योजना को NALSA ने जुलाई 2025 में श्रीनगर में प्रारंभ किया, जिसमें सैनिक भवन, गुवाहाटी जैसे केंद्रों पर क्लीनिक स्थापित किए गए।
    • उद्देश्य: सशस्त्र बलों के जवानों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना।

न्याय तक समग्र पहुँच के लिए नवाचार समाधान 

भारत में कानूनी सहायता प्रणाली से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ 

  • कानूनी सहायता निधियों का अपर्याप्त उपयोग: धन में कमी और अपर्याप्त उपयोग से प्रणाली की प्रभावशीलता पर प्रभाव पड़ा है।
    • हालाँकि कानूनी सहायता के कुल बजट में वृद्धि हुई, NALSA की निधि ₹207 करोड़ से घटकर ₹169 करोड़ हो गई और उपयोग दर 75% से घटकर 59% रह गई।
  • कानूनी सहायता सेवाओं की सीमित पहुँच: कानूनी सहायता की पहुँच सीमित है और यह केवल उन लोगों तक पहुँच पाती है, जिनके पास संसाधन हैं।
    •  हालाँकि भारत की 80% आबादी निःशुल्क कानूनी सहायता के लिए पात्र है, फिर भी वर्ष 2023-24 में केवल 15.5 लाख लोगों को कानूनी सेवाएँ प्राप्त हुईं, जो लक्ष्य से बहुत कम है।
  • पैरा-लीगल वॉलेंटियर्स (PLVs) की कमी: वर्ष 2019 से वर्ष 2024 के बीच PLVs की संख्या में 38% की गिरावट आई।
    • वर्ष 2023-24 में 53,000 PLVs को प्रशिक्षित किया गया, लेकिन केवल 14,000 तैनात किए गए, जिससे आधारभूत स्तर पर प्रशिक्षित संसाधनों की कमी बनी हुई है।
  • राज्य स्तर पर असमान आवंटन: कुछ राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, और मध्य प्रदेश ने अपने बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की, जबकि अन्य राज्यों ने बहुत कम व्यय किया।
    • हरियाणा ने ₹16 प्रति व्यक्ति का जबकि पश्चिम बंगाल ने केवल ₹2 आवंटन किया, जो राज्यों के बीच वित्तीय असमानता को दर्शाता है।
  • PLVs के लिए कम मानदेय: अधिकांश राज्यों में PLVs को न्यूनतम वेतन से भी कम भुगतान किया जाता है, केवल केरल ₹750 प्रति दिन का भुगतान करता है।
    • अधिकांश राज्यों में भुगतान ₹250 से ₹500 प्रति दिन के बीच है, जो न्यूनतम खर्च के लिए अपर्याप्त है और स्वयंसेवकों के मनोबल को प्रभावित करता है।
  • नई लीगल एड डिफेंस काउंसल (LADC) योजना से जुड़ी चुनौतियाँ: यह योजना अभियुक्तों को गुणवत्तापूर्ण कानूनी बचाव सहायता देने का लक्ष्य रखती है, इसकी निधि ₹200 करोड़ (वर्ष 2023-24) से घटकर ₹147.9 करोड़ (वर्ष 2024-25) हो गई।
    • यह योजना 610 जिलों में सक्रिय है, लेकिन यह अभी प्रारंभिक चरण में होने के कारण इसकी प्रभावशीलता अनिश्चित है।
  • सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही में असमानता: कानूनी सहायता सेवाओं में गुणवत्ता की असमानता और जवाबदेही तंत्र की कमी देखी गई है, जिससे प्रणाली में विश्वास कम होता है, भले ही राज्यों में वित्त और संसाधनों में सुधार के प्रयास हुए हों।

भारत में कानूनी सहायता प्रणाली के लिए आगे की राह 

  • कानूनी सहायता के लिए धन में वृद्धि: देशभर में प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए कानूनी सहायता के बजट में उल्लेखनीय वृद्धि आवश्यक है।
  • जागरूकता अभियानों का विस्तार: 80% पात्र आबादी तक पहुँचने के लिए विधिक साक्षरता कार्यक्रमों का व्यापक प्रसार किया जाना चाहिए।
    • टेली-लॉ और न्याय बंधु कार्यक्रमों का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों तक किया जाना चाहिए।
  • पैरा-लीगल वॉलेंटियर्स की तैनाती बढ़ाना: PLVs की कमी को दूर करने के लिए उन्हें बेहतर प्रशिक्षण और अधिक मानदेय प्रदान किया जाना चाहिए, ताकि वे जमीनी स्तर पर अधिक प्रभावी रूप से काम कर सकें।
  • PLVs के लिए संशोधित मानदेय:  वर्तमान में PLVs को अधिकांश राज्यों में न्यूनतम वेतन से कम भुगतान मिलता है, केवल केरल ₹750 प्रतिदिन देता है।
    • मानदेय को न्यूनतम वेतन के अनुरूप बढ़ाने से उनकी भागीदारी और प्रेरणा बढ़ेगी।
  • लीगल एड डिफेंस काउंसल (LADC) योजना को सुदृढ़ बनाना: अभियुक्तों को कानूनी बचाव प्रदान करने वाली यह योजना पूर्ण रूप से वित्तपोषित और विस्तारित की जानी चाहिए।
  • कानूनी सहायता सेवाओं में जवाबदेही सुनिश्चित करना: सेवाओं की गुणवत्ता में असमानता को दूर करने के लिए जवाबदेही तंत्र विकसित किया जाना आवश्यक है।
    • NALSA और SLSA द्वारा नियमित निगरानी और मूल्यांकन यह सुनिश्चित करेगा कि न्यूनतम मानक पूरे हों।
  • कानूनी सहायता ढाँचे की क्षमता बढ़ाना: कानूनी सहायता क्लीनिकों और लोक अदालतों की क्षमता, विशेष रूप से दूरदराज और पिछड़े क्षेत्रों में बढ़ाई जानी चाहिए। क्लीनिकों की संख्या और अधोसंरचना में सुधार से सुलभता और दक्षता बढ़ेगी।

निष्कर्ष

भारत की कानूनी सहायता प्रणाली, जो NALSA और DISHA तथा LADC जैसी योजनाओं पर आधारित है, न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फिर भी, इसकी सीमित पहुँच और वित्तीय बाधाएँ इसके पूर्ण प्रभाव को रोकती हैं। अवसंरचना, जागरूकता और जवाबदेही को मजबूत करना आवश्यक है, ताकि सभी के लिए समान न्याय के संवैधानिक लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

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