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पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी (ECs)

Lokesh Pal November 21, 2025 03:40 10 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2025 के अपने उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी (Retrospective Environmental Clearances – ECs) को रद्द कर दिया गया था। साथ ही न्यायालय ने यह निर्णय सार्वजनिक हित और आर्थिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए लिया।

क्या है पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी

  •  पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी का अर्थ है, उन परियोजनाओं या गतिविधियों को मंजूरी प्रदान करना, जो बिना पूर्व स्वीकृति (EC) प्राप्त किए प्रारंभ या पूर्ण कर ली गई हों, जबकि यह प्रक्रिया पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना के अंतर्गत अनिवार्य होती है।
  • प्रभाव: पूर्वव्यापी मंजूरी में उचित पर्यावरणीय जाँच की अनदेखी हो जाती है, जिससे पर्यावरणीय क्षरण, जैव विविधता की हानि तथा पर्यावरणीय मानकों के उल्लंघन की आशंका बढ़ जाती है।
  • सरकार की स्थिति
    • वर्ष 2017 की अधिसूचना: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वर्ष 2017 में एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें पूर्वव्यापी मंजूरी  को केवल विशेष परिस्थितियों में अनुमति दी गई थी, जब परियोजना ने पर्यावरणीय मानकों का पालन किया हो।

भारत में पर्यावरण स्वीकृति तंत्र

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: यह अधिनियम और इसकी अधिसूचनाएँ (वर्ष 1994 एवं 2006) इस सिद्धांत पर आधारित हैं कि परियोजनाओं को पूर्व पर्यावरण स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही प्रारंभ किया जा सकता है। इसका उद्देश्य परियोजना के प्रारंभ से पहले पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन सुनिश्चित करना है।
  • न्यायिक निर्णय: पूर्व निर्णयों जैसे कॉमन कॉज (2017) और एलेंबिक फार्मास्युटिकल्स (2020) मामलों में न्यायालय ने पूर्वव्यापी मंजूरी को अवैध ठहराया था। इन निर्णयों ने यह स्पष्ट किया कि परियोजना प्रारंभ होने से पहले ही स्वीकृति प्राप्त की जानी चाहिए।

वनशक्ति संबंधी मामला 

  • मई 2025 का आदेश: न्यायालय ने कहा था कि अवैध निर्माणों के लिए पूर्वव्यापी मंजूरी प्रदान करना “गंभीर अवैधता” और पर्यावरण कानून के लिए प्रतिकूल है।
    •  इस आदेश में न्यायालय ने वर्ष 2017 की अधिसूचना और वर्ष 2021 के कार्यालय ज्ञापन (OM) को भी निरस्त कर दिया था, जिनमें पूर्वव्यापी मंजूरी को मान्यता दी गई थी।
  • सरकार एवं उद्योग प्रतिक्रिया: भारतीय रियल एस्टेट डेवलपर्स परिसंघ (CREDAI) और केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिकाएँ दायर कर तर्क दिया था कि इस निर्णय के परिणामस्वरूप हजारों करोड़ रुपये की सार्वजनिक और निजी परियोजनाएँ प्रभावित हो जाएँगी।

संवैधानिक और विधिक ढाँचा

  • अनुच्छेद-21: “जीवन के अधिकार” में स्वच्छ एवं प्रदूषण-मुक्त पर्यावरण में जीने का अधिकार भी शामिल है।
  • अनुच्छेद-51-A(g): प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्द्धन करे।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: यह अधिनियम इन संवैधानिक अधिकारों व कर्तव्यों को लागू करने का मुख्य साधन है।

प्रमुख पर्यावरणीय सिद्धांत

  • सावधानी सिद्धांत: हानि होने से पहले उसकी रोकथाम करना।
  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाला व्यक्ति उसकी क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होगा।
  • सतत् विकास सिद्धांत: विकास और पर्यावरणीय स्थिरता में संतुलन बनाए रखना।
  • सार्वजनिक न्यास सिद्धांत: प्राकृतिक संसाधन राज्य के पास जनता की न्यासिक संपत्ति के रूप में होते हैं।
  • पूर्व स्वीकृति सिद्धांत: किसी भी परियोजना को प्रारंभ करने से पहले उसका प्रभाव आकलन आवश्यक है।

सर्वोच्च न्यायालय का बहुमत आधारित निर्णय (नवंबर 2025)

  • सार्वजनिक हित तर्क: मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने कहा कि 16 मई का निर्णय व्यापक आर्थिक प्रभाव डालेगा, विशेषकर अस्पतालों और चिकित्सीय संस्थानों जैसी सार्वजनिक संरचनाओं पर।
  • पूर्वव्यापी स्वीकृति का औचित्य: न्यायालय ने कहा कि पूर्ण परियोजनाओं को विघटित करने की कोई तर्कसंगत आवश्यकता नहीं है। उनके अनुसार, पूर्वव्यापी स्वीकृतियों को पूर्णतः अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि अपवादस्वरूप उन मामलों में स्वीकार किया जाना चाहिए, जहाँ भारी निवेश पहले ही किया जा चुका हो।
  • अपवाद के रूप में स्वीकृति: बहुमत ने कहा कि पूर्वव्यापी ECs सामान्य नियम नहीं होने चाहिए, परंतु उच्च निवेश वाली परियोजनाओं के लिए इन्हें अपवादस्वरूप अनुमति दी जा सकती है, यदि सार्वजनिक हित सुरक्षित हो।

विरोधी मत

  • पर्यावरणीय कानून से विचलन: न्यायमूर्ति उज्जल भुयान ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायालय ने पर्यावरण कानून के सशक्त आधार से पीछे हटने का कार्य किया है, जिससे उल्लंघनकर्ताओं को लाभ पहुँच सकता है।।
    • उन्होंने कहा कि यह पर्यावरण बनाम विकास की द्वंदात्मक अवधारणा प्रस्तुत करता है।
  • पर्यावरण कानूनों के साथ असंगति: उनके अनुसार, पूर्वव्यापी स्वीकृतियाँ सावधानी सिद्धांत और सतत् विकास सिद्धांत के साथ असंगत हैं।
    • उन्होंने इस अवधारणा को “हानिकारक और बाह्य विचार” बताया, जिससे अप्रतिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षति होती है।
  • मौलिक पर्यावरणीय चिंताएँ: उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पारिस्थितिकी और विकास परस्पर अनन्य नहीं हैं और इन्हें सतत् विकास के संवैधानिक लक्ष्यों के साथ संरेखित किया जाना चाहिए।

पर्यावरणीय कानून पर प्रभाव

  • अपवादस्वरूप पूर्वव्यापी स्वीकृतियाँ: यह निर्णय स्पष्ट करता है कि पूर्व स्वीकृति प्रणाली पर्यावरण संरक्षण के लिए अब भी मूल तत्त्व है और पूर्वव्यापी  स्वीकृतियाँ केवल विशेष, उच्च निवेश वाले मामलों में स्वीकार्य होंगी।
  • पर्यावरण बनाम विकास बहस: यह निर्णय इस द्वंद्व को रेखांकित करता है कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास का संतुलन आवश्यक है, जो सतत् विकास की अवधारणा से निर्देशित हो।
  • जोखिम और चिंताएँ: यदि निगरानी कमजोर रही, तो यह निर्णय कुछ डेवलपर्स को नियमों के उल्लंघन के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे पर्यावरणीय कानूनों की निवारक शक्ति कमजोर हो सकती है।

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