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भूजल संदूषण की छिपी लागत

Lokesh Pal November 20, 2025 05:15 9 0

संदर्भ:

600 मिलियन से अधिक लोग भूजल पर निर्भर हैं, भूजल संदूषण का स्तर और गहराई तत्काल राष्ट्रीय कार्रवाई की माँग करता है।

संकट का स्तर

  • भूजल में बढ़ती विषाक्तता: वर्ष 2024 की वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, भूजल संदूषण, जो 440 ज़िलों में जाँचे किये गये नमूनों में से लगभग पाँचवें हिस्से को प्रभावित करता है सुरक्षित संदूषण सीमा से अधिक हैं।
    • पंजाब में यूरेनियम, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आर्सेनिक का स्तर स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक है।
  • भूजल पर राष्ट्रीय निर्भरता: लगभग 60 करोड़ लोग पीने और सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भर हैं। प्रदूषण ने इस निर्भरता को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल में बदल दिया है।

भूजल प्रदूषण का प्रभाव

  • आर्थिक प्रभाव:
    • भारी वित्तीय नुकसान: प्रदूषित जल और मृदा के कारण होने वाले पर्यावरणीय क्षरण से भारत को प्रतिवर्ष लगभग 80 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है, जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6% है।
    • उत्पादकता में कमी: जलजनित रोगों के कारण प्रत्येक वर्ष लाखों कार्य दिवस बर्बाद हो जाते हैं।
    • मानव पूँजी का क्षरण: मेहसाणा (गुजरात) जैसे जिलों में फ्लोरोसिस ने श्रमिकों की कमाई क्षमता को कम कर दिया है और घरेलू चिकित्सा ऋण में वृद्धि की है।
  • कृषि परिणाम:
    • कम पैदावार: भारत की एक तिहाई भूमि दूषित सिंचाई जल से जुड़ी मृदा क्षरण से प्रभावित है।
    • मृदा क्षरण: भारी धातुएं और रासायनिक अवशेष कृषि उत्पादकता और कृषि आय को कम करते हैं।
    • कृषि निर्यात के लिए ख़तरा: वैश्विक खरीदार लगातार ट्रेसेबिलिटी और सख्त खाद्य सुरक्षा मानकों की मांग कर रहे हैं। संदूषण के कारण निर्यात अस्वीकृति से भारत के 50 अरब डॉलर के कृषि निर्यात क्षेत्र को नुकसान पहुँचने का ख़तरा है।
  • सामाजिक असमानताएँ:
    • सुरक्षित जल तक असमान पहुँच: संपन्न परिवार बोतलबंद जल या फिल्टरेशन प्रणाली का उपयोग करते हैं, लेकिन गरीब परिवार इन सुरक्षा उपायों को वहन नहीं कर सकते।
    • जेब से किया जाने वाला व्यय: स्वास्थ्य पर होने वाला उच्च खर्च ग्रामीण परिवारों को गरीबी की ओर धकेलता है।
    • अंतर-पीढ़ीगत क्षति: आर्सेनिक और फ्लोराइड के संपर्क में आने वाले बच्चों को दीर्घकालिक संज्ञानात्मक और विकासात्मक हानि का सामना करना पड़ता है।
    • गरीबी का जाल: परिवार रोग, कर्ज और कम उत्पादकता के चक्र में फंस जाते हैं।
  • बिगड़ता प्रदूषण:
    • असंवहनीय भूजल उपयोग: पंजाब जैसे राज्य अपनी स्थायी भूजल सीमा से 1.5 गुना अधिक भूजल का दोहन करते हैं।
    • एक दुष्चक्र: खराब जल गुणवत्ता के कारण उर्वरक का उपयोग बढ़ जाता है, जिससे मृदा तथा जल का और अधिक क्षरण होता है तथा कृषि की दीर्घकालिक व्यवहार्यता खतरे में पड़ जाती है।

आगे की राह

  • वास्तविक समय निगरानी: समुदायों को सूचित करने के लिए राष्ट्रव्यापी, सार्वजनिक भूजल डेटा।
  • कठोर प्रवर्तन: पर्यावरणीय लागतों को बाह्यकृत होने से रोकने के लिए औद्योगिक उत्सर्जन और सीवेज उपचार को विनियमित करना।
  • कृषि प्रोत्साहन में बदलाव: जैविक खेती, फसल विविधीकरण, सूक्ष्म सिंचाई (जैसे, पंजाब और हरियाणा पायलट परियोजनाएं) को बढ़ावा देना।
  • सामुदायिक स्तर पर उपचार: विकेन्द्रीकृत शुद्धिकरण इकाइयाँ (जैसे, नलगोंडा मॉडल ) स्थानीय स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करती हैं।
  • निर्यात की सुरक्षा: वैश्विक विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए किसान प्रशिक्षण और गुणवत्ता संबंधी जाँच को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

भूजल प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टि से एक बड़ा ख़तरा बन गया है। इस छिपे हुए संकट को राष्ट्रीय आपदा बनने से रोकने के लिए विज्ञान-आधारित, समन्वित कार्रवाई अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत की भूजल पर निर्भरता प्रदूषण को मानव पूंजी और खाद्य सुरक्षा दोनों के लिए एक ख़तरा बनाती है। इस संकट के पीछे प्रणालीगत शासन की विफलताओं का विश्लेषण कीजिए और लचीली, प्रदूषण-मुक्त जलभृत प्रणालियाँ बनाने के लिए दीर्घकालिक संरचनात्मक उपाय सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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