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चार श्रम संहिताएँ

Lokesh Pal November 24, 2025 01:59 12 0

संदर्भ

भारत सरकार ने घोषणा की है कि 21 नवंबर 2025 से चार श्रम संहिताएँ लागू हो गई हैं, जिनके माध्यम से 29 वर्तमान श्रम कानूनों को सरल और सुव्यवस्थित किया जाएगा।

संबंधित तथ्य

  • द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग ने सिफारिश की थी कि मौजूदा श्रम कानूनों को कार्यात्मक आधार पर मोटे तौर पर चार/पाँच श्रम संहिताओं में बाँटा जाना चाहिए।

  • वर्ष 2015 से 2019 के दौरान सरकार, नियोक्ताओं, उद्योग प्रतिनिधियों और विभिन्न ट्रेड यूनियनों की त्रिपक्षीय बैठक में हुए विचार-विमर्श के बाद चारों श्रम संहिताएँ अधिनियमित की गईं।
  • वेतन संहिता, 2019 को 8 अगस्त, 2019 को और शेष तीन संहिताओं को 29 सितंबर, 2020 को अधिसूचित किया गया।
  • चार श्रम संहिताओं में शामिल हैं:-
    • वेतन संहिता, 2019
    • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
    • उपजीविका जन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता, 2020।

समवर्ती क्षेत्राधिकार और राज्यों द्वारा कार्यान्वयन

  • श्रम समवर्ती सूची में है: इसमें केंद्र और राज्य दोनों की भूमिकाएँ हैं।
    • केंद्र सरकार संहिताओं का निर्माण कर व्यापक नीतिगत ढाँचा निर्धारित करती है, जबकि राज्य सरकारें नियमों को अधिसूचित कर उन्हें लागू करती हैं और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलित करती हैं।
    • प्रवर्तन प्रायः राज्य श्रम विभागों, निरीक्षणालयों आदि के माध्यम से होता है।

मौजूदा 29 श्रम कानूनों के संहिताकरण के पीछे तर्क

29 मौजूदा श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में संहिताबद्ध करने का कार्य दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करने तथा प्रणाली को अधिक कुशल एवं समसामयिक बनाने के लिए किया गया।

  • उद्देश्य: संहिताकरण का उद्देश्य व्यवसाय को सुगम बनाना, रोजगार सृजन को बढ़ावा देना और प्रत्येक श्रमिक के लिए सुरक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक और वेतन सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • अनुपालन को सरल बनाना: कानूनों की बहुलता के कारण अनुपालन में कठिनाई होती है।
    • संहिताकरण के माध्यम से श्रम कानूनों को युक्तिसंगत बनाने से एकल पंजीकरण, एकल लाइसेंस और एकल रिटर्न की अवधारणा को लागू करके पंजीकरण और लाइसेंसिंग ढाँचे को सरल बनाया जा सकता है, जिससे रोजगार को बढ़ावा देने के लिए समग्र अनुपालन बोझ कम हो सकता है।
  • प्रवर्तन को सुव्यवस्थित करना: विभिन्न श्रम कानूनों में प्राधिकारियों की बहुलता के कारण प्रवर्तन में जटिलता और कठिनाई आई।
  • पुराने कानूनों का आधुनिकीकरण: अधिकांश श्रम कानून स्वतंत्रता-पूर्व काल में बनाए गए थे, जिससे वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं और तकनीकी प्रगति के साथ उनका संरेखण आवश्यक हो गया।

श्रम पारिस्थितिकी तंत्र की तुलना

श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन से पहले और बाद में श्रम पारिस्थितिकी तंत्र की तुलना इस प्रकार है:

श्रम सुधारों से पूर्व श्रम सुधारों के पश्चात्
रोजगार का औपचारिकीकरण अनिवार्य नियुक्ति-पत्र नहीं। सभी कर्मचारियों को अनिवार्य नियुक्ति-पत्र।
सामाजिक सुरक्षा दायरा सीमित सामाजिक सुरक्षा कवरेज
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत, गिग और प्लेटफॉर्म कर्मचारियों सहित सभी कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा कवरेज मिलेगी।
  • सभी कर्मचारियों को PF, ESIC, बीमा और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलेंगे।
न्यूनतम मजदूरी न्यूनतम मजदूरी केवल अनुसूचित उद्योगों/रोजगारों पर लागू होती है।

  • श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग इससे अछूता रह गया।
वेतन संहिता, 2019 के तहत, सभी श्रमिकों को न्यूनतम वेतन भुगतान प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त होगा।

 

निवारक स्वास्थ्य सेवा नियोक्ताओं के लिए श्रमिकों को निःशुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जाँच उपलब्ध कराना कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है। नियोक्ताओं को 40 वर्ष से अधिक आयु के सभी श्रमिकों को निःशुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जाँच उपलब्ध करानी होगी।
समय पर वेतन नियोक्ताओं द्वारा मजदूरी भुगतान के लिए कोई अनिवार्य अनुपालन नहीं।
  • नियोक्ताओं के लिए समय पर वेतन प्रदान करना अनिवार्य है।
  • प्रभाव: इससे वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होती है, कार्य तनाव कम होता है और कर्मचारियों का समग्र मनोबल बढ़ता है।
महिला कार्यबल भागीदारी नाइट शिफ्ट और कुछ व्यवसायों में महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • महिलाओं को उनकी सहमति और आवश्यक सुरक्षा उपायों के अधीन, सभी प्रतिष्ठानों में रात में तथा सभी प्रकार के कार्य करने की अनुमति है।
  • प्रभाव: महिलाओं को उच्च वेतन वाली नौकरियों में उच्च आय अर्जित करने के समान अवसर मिलेंगे।
ESIC कवरेज
  • ESIC कवरेज अधिसूचित क्षेत्रों और विशिष्ट उद्योगों तक ही सीमित था।
  • 10 से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को आम तौर पर इससे बाहर रखा गया था और खतरनाक प्रक्रिया इकाइयों के लिए पूरे भारत में एक समान अनिवार्य ESIC कवरेज उपलब्ध नहीं था।
  • ESIC कवरेज और लाभ पूरे भारत में विस्तारित हैं।
    • 10 से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों के लिए स्वैच्छिक।
    • खतरनाक प्रक्रियाओं में संलग्न एक  कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों के लिए भी अनिवार्य।
अनुपालन बोझ
  • विभिन्न श्रम कानूनों के अंतर्गत अनेक पंजीकरण, लाइसेंस और रिटर्न।
  • एकल पंजीकरण, अखिल भारतीय एकल लाइसेंस और एकल रिटर्न।
  • प्रभाव: सरलीकृत प्रक्रियाएँ और अनुपालन भार में कमी।

श्रम संहिताओं में कई और सुधार शामिल हैं

ये सुधार श्रमिक सुरक्षा को मजबूत करेंगे और नियोक्ताओं के लिए अनुपालन को सरल बनाएँगे:

  • राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन यह सुनिश्चित करेगा कि किसी भी कर्मचारी को न्यूनतम जीवन स्तर निर्वाह से कम वेतन न मिले।
  • लैंगिक रूप से तटस्थ वेतन और रोजगार के अवसर, भेदभाव पर स्पष्ट रूप से रोक लगाना, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभाव भी शामिल है।
  • दो-सदस्यीय औद्योगिक न्यायाधिकरणों के साथ तेज और पूर्वानुमानित विवाद समाधान तथा सुलह के पश्चात् सीधे न्यायाधिकरणों से संपर्क करने का विकल्प।
  • सुरक्षा और कार्य-स्थितियों की आवश्यकताओं के लिए एकल पंजीकरण, एकल लाइसेंस और एकल रिटर्न, कई अतिव्यापी दाखिलों का स्थान लेगा।
  • राष्ट्रीय OSH बोर्ड सभी क्षेत्रों में सामंजस्यपूर्ण सुरक्षा और स्वास्थ्य मानक निर्धारित करेगा।
  • 500 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में अनिवार्य सुरक्षा समितियाँ, कार्यस्थल की जवाबदेही में सुधार लाएँगी।
  • उच्च कारखाना प्रयोज्यता सीमाएँ, छोटी इकाइयों के लिए नियामक बोझ को कम करते हुए कर्मचारियों के लिए पूर्ण सुरक्षा उपाय बनाए रखेंगे।

प्रथम संहिता: वेतन संहिता, 2019

  • इसका उद्देश्य चार मौजूदा कानूनों के प्रावधानों को सरल, समेकित और तर्कसंगत बनाना है:-
    • मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936
    • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948
    • बोनस भुगतान अधिनियम, 1965
    • समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य नियोक्ताओं के लिए वेतन-संबंधी अनुपालन में सरलता और एकरूपता को बढ़ावा देते हुए श्रमिकों के अधिकारों को सुदृढ़ करना है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन: यह संहिता संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन का वैधानिक अधिकार स्थापित करती है।
      • इससे पहले, न्यूनतम वेतन अधिनियम केवल अनुसूचित रोजगारों पर लागू होता था, जिसमें लगभग 30% कर्मचारी शामिल होते थे।
    • न्यूनतम वेतन का परिचय: सरकार द्वारा न्यूनतम जीवन स्तर के आधार पर एक वैधानिक न्यूनतम वेतन निर्धारित किया जाएगा, जिसमें क्षेत्रीय भिन्नता की संभावना होगी।
      • कोई भी राज्य इस स्तर से कम न्यूनतम वेतन निर्धारित नहीं कर सकता, जिससे देश भर में एकरूपता और पर्याप्तता सुनिश्चित हो सके।
    • ओवरटाइम मुआवजा: नियोक्ता को सभी कर्मचारियों को नियमित कार्य घंटों से अधिक किए गए किसी भी कार्य के लिए सामान्य दर से कम-से-कम दोगुना ओवरटाइम वेतन देना होगा।
    • गैर-अपराधीकरण: यह संहिता कुछ पहली बार किए गए अपराधों के लिए कारावास के स्थान पर मौद्रिक जुर्माने (अधिकतम जुर्माने के 50% तक) का प्रावधान करती है, जिससे यह ढाँचा कम दंडात्मक और अधिक अनुपालन-उन्मुख हो जाता है।

द्वितीय संहिता: औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (IR कोड)

  • यह ट्रेड यूनियनों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों या उपक्रमों में रोजगार की शर्तों, औद्योगिक विवादों की जाँच और निपटान से संबंधित कानूनों को सरल बनाता है।
  • भारतीय औद्योगिक संबंध संहिता के प्रासंगिक प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाने के बाद तैयार किया गया है।
    • ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926
    • औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946
    • औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947
  • प्रमुख तथ्य
    • निश्चित अवधि का रोजगार (FTE): मजदूरी और लाभों में पूर्ण समानता के साथ प्रत्यक्ष, समयबद्ध अनुबंधों की अनुमति देता है; एक वर्ष के बाद ग्रेच्युटी की पात्रता।
      • यह प्रावधान अत्यधिक संविदाकरण को कम करता है और नियोक्ताओं को लागत दक्षता प्रदान करता है।
    • पुनः कौशलीकरण निधि: छँटनी किए गए कर्मचारियों के कौशल उन्नयन और पुनःप्रशिक्षण के लिए यह निधि स्थापित की गई है। इसके लिए प्रत्येक औद्योगिक प्रतिष्ठान को प्रति छँटनी-कर्मचारी 15 दिनों के वेतन के बराबर अंशदान करना होता है।
    • ट्रेड यूनियन मान्यता: 51% सदस्यता वाले यूनियनों को वार्ताकार संघ के रूप में मान्यता प्राप्त होती है;
      • अन्यथा, ट्रेड यूनियन की कम-से-कम 20% सदस्यता वाले यूनियनों से एक वार्ता परिषद का गठन किया जाता है।
      • ऐसी व्यवस्था सामूहिक सौदेबाजी को मजबूत बनाती है।
    • महिला प्रतिनिधित्व: लैंगिक रूप से संवेदनशील मामलों के निवारण के लिए शिकायत निवारण समितियों में महिलाओं का आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
    • औद्योगिक न्यायाधिकरण: शीघ्र विवाद समाधान के लिए न्यायिक और प्रशासनिक सदस्यों वाले दो सदस्यीय न्यायाधिकरण।
      • प्रत्यक्ष न्यायाधिकरण पहुँच: सुलह विफल होने पर पक्षकार 90 दिनों के अंदर सीधे न्यायाधिकरणों से संपर्क कर सकते हैं।
    • हड़ताल/तालाबंदी के लिए सूचना: संवाद को बढ़ावा देने और व्यवधानों को कम करने के लिए सभी प्रतिष्ठानों के लिए 14 दिन का अनिवार्य नोटिस।
      • हड़ताल की विस्तारित परिभाषा: अचानक हड़तालों को रोकने और वैध कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए “सामूहिक आकस्मिक अवकाश” को भी इसके दायरे में शामिल किया गया है।

श्रम बल के बारे में

  • श्रम बल, या वर्तमान में सक्रिय जनसंख्या, में वे सभी व्यक्ति शामिल हैं, जो नियोजित (नागरिक रोजगार और सशस्त्र बल) या बेरोजगारों में शामिल होने की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

तृतीय संहिता: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020

  • इसमें मौजूदा नौ सामाजिक सुरक्षा अधिनियमों को शामिल किया गया है:-
    • कर्मचारी प्रतिपूर्ति अधिनियम, 1923
    • कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948
    • कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम, 1952
    • रोजगार कार्यालय (रिक्तियों की अनिवार्य अधिसूचना) अधिनियम, 1959
    • मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961; उपदान भुगतान अधिनियम, 1972
    • ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972
    • सिनेमा-कर्मचारी कल्याण निधि अधिनियम, 1981
    • भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम, 1996
    • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008
  • प्रमुख तथ्य
    • यह संहिता असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म कर्मचारियों सहित सभी कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है – जिसमें जीवन, स्वास्थ्य, मातृत्व और भविष्य निधि लाभ शामिल हैं, साथ ही बेहतर दक्षता के लिए डिजिटल सिस्टम तथा सुविधा-आधारित अनुपालन की शुरुआत भी की गई है।
    • गिग और प्लेटफॉर्म कर्मचारियों का समावेशन: सामाजिक सुरक्षा कवरेज को सक्षम बनाने के लिए नई परिभाषाएँ शामिल की गई हैं – ‘एग्रीगेटर’, ‘गिग’ और ‘प्लेटफॉर्म कर्मचारी’।
      • एग्रीगेटर वार्षिक कारोबार का 1-2% योगदान करते हैं (ऐसे कर्मचारियों को दिए जाने वाले भुगतान के 5% तक सीमित)।
    • विस्तारित ESIC (कर्मचारी राज्य बीमा) कवरेज: ESIC अब पूरे भारत में लागू होता है, जिससे ‘अधिसूचित क्षेत्रों’ का मानदंड समाप्त हो जाता है।
      • 10 से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठान, नियोक्ताओं और कर्मचारियों की आपसी सहमति से स्वेच्छा से इसमें शामिल हो सकते हैं।
    • वेतन की एकरूप परिभाषा: ‘वेतन’ में अब मूल वेतन, महँगाई भत्ता और प्रतिधारण भत्ता शामिल है।
      • कुल पारिश्रमिक का 50% (या अधिसूचित प्रतिशत) वेतन की गणना में जोड़ा जाएगा, जिससे ग्रेच्युटी, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा लाभों की गणना में एकरूपता सुनिश्चित होगी।
    • नियत अवधि के कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी: नियत अवधि के कर्मचारी एक वर्ष की निरंतर सेवा (पहले पाँच वर्ष) के बाद ग्रेच्युटी के लिए पात्र हो जाते हैं।
    • समयबद्ध EPF (कर्मचारी भविष्य निधि) इनक्वयारी: EPF इनक्वयारी और वसूली कार्यवाही शुरू करने के लिए पाँच वर्ष की समय-सीमा निर्धारित की गई है। एक बार कार्यवाही आरंभ होने पर इसे दो वर्षों के भीतर पूरा करना अनिवार्य है, जिसे विशेष परिस्थितियों में अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
      • समयबद्ध समाधान की गारंटी के लिए मामलों के स्वतः संज्ञान संबंधी प्रावधान को समाप्त किया गया है।
    • सामाजिक सुरक्षा निधि: असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए जीवन, दिव्यांगता, स्वास्थ्य और वृद्धावस्था लाभों को कवर करने वाली योजनाओं के वित्तपोषण के लिए एक समर्पित निधि का प्रस्ताव किया गया है।
      • अपराधों के शमन से एकत्रित राशि इस कोष में जमा की जाएगी और सरकार द्वारा उपयोग की जाएगी।

चतुर्थ संहिता: उपजीविका जन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियाँ संहिता 2020

  • यह संहिता 13 केंद्रीय श्रम अधिनियमों के प्रासंगिक प्रावधानों के समामेलन, सरलीकरण और युक्तिकरण के बाद तैयार की गई है।
  • यह संहिता श्रमिक अधिकारों और सुरक्षित कार्य परिस्थितियों की रक्षा तथा व्यवसाय-अनुकूल नियामक वातावरण के निर्माण के दोहरे उद्देश्यों को संतुलित करती है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • एकीकृत पंजीकरण: इलेक्ट्रॉनिक पंजीकरण के लिए 10 कर्मचारियों की एक समान सीमा निर्धारित की गई है।
      • अधिनियमों में 6 बार पंजीकरण के स्थान पर एक प्रतिष्ठान के लिए एक पंजीकरण की परिकल्पना की गई है।
      • इससे एक केंद्रीकृत डेटाबेस तैयार होगा और व्यापार सुगमता को बढ़ावा मिलेगा।
    • खतरनाक कार्यों तक विस्तार: सरकार संहिता के प्रावधानों को किसी भी प्रतिष्ठान पर लागू कर सकती है, चाहे वह एक कर्मचारी ही क्यों न हो, जो खतरनाक व्यवसायों में संलग्न हो।
    • प्रवासी श्रमिकों की व्यापक परिभाषा: अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों (ISMW) की परिभाषा में अब सीधे, ठेकेदारों के माध्यम से नियोजित या स्वयं प्रवास करने वाले श्रमिक शामिल हैं।
      • प्रतिष्ठानों को ISMW की संख्या घोषित करनी होगी।
    • नियुक्ति-पत्रों के माध्यम से औपचारिकता: पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए नियुक्ति-पत्र में नौकरी का विवरण, वेतन और सामाजिक सुरक्षा का उल्लेख किया जाएगा।
    • महिलाओं को रोजगार: महिलाएँ सभी प्रकार के प्रतिष्ठानों में और रात के समय (सुबह 6 बजे से पूर्व, शाम 7 बजे के पश्चात्) सहमति और सुरक्षा उपायों के साथ कार्य कर सकती हैं, जिससे समानता तथा समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।
    • असंगठित श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस: प्रवासी श्रमिकों को रोजगार दिलाने, उनके कौशल का आकलन करने और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने में सहायता करने के लिए प्रवासियों सहित असंगठित श्रमिकों के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित किया जाएगा।
    • श्रम सुधार: अनुप्रयोगिता सीमा 20 से बढ़ाकर 50 निविदा श्रमिक कर दी गई है।
      • ठेकेदार को कार्य-आदेश आधारित लाइसेंस प्रदान किया जाएगा, जिसके विरुद्ध अखिल भारतीय लाइसेंस 5 वर्षों के लिए वैध होगा।
    • ठेका श्रमिक, बीड़ी और सिगार निर्माण और कारखाने के लिए: एक सामान्य लाइसेंस की परिकल्पना की गई है और निर्धारित अवधि की समाप्ति के बाद डीम्ड लाइसेंस का प्रावधान किया गया है।
      • इसके अलावा, लाइसेंस स्वतः ‘जनरेट’ होगा।
      • निविदा श्रम बोर्ड का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है और मुख्य तथा गौण गतिविधियों पर सलाह देने के लिए नामित प्राधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।
    • सुरक्षा समितियाँ: 500 या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठान नियोक्ता-श्रमिक प्रतिनिधित्व वाली सुरक्षा समितियाँ निर्मित करेंगे, जिससे कार्यस्थल सुरक्षा और साझा जवाबदेही बढ़ेगी।
    • राष्ट्रीय व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य सलाहकार बोर्ड: एक त्रिपक्षीय सलाहकार बोर्ड, विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वास्थ्य मानक निर्धारित करने और एकरूपता तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए पहले के छह बोर्डों का स्थान लेगा।
    • सामाजिक सुरक्षा कोष: असंगठित श्रमिकों के कल्याण और लाभ वितरण हेतु, दंड तथा चक्रवृद्धि शुल्क के माध्यम से वित्तपोषित एक कोष की स्थापना की जाती है।
    • ठेका श्रमिक – कल्याण एवं वेतन: प्रधान नियोक्ता ठेका श्रमिकों को स्वास्थ्य एवं सुरक्षा जैसी कल्याणकारी सुविधाएँ प्रदान करेंगे।
      • यदि ठेकेदार वेतन का भुगतान करने में विफल रहता है, तो प्रधान नियोक्ता को ठेका श्रमिक को बकाया वेतन का भुगतान करना होगा।
    • कार्य समय एवं ओवरटाइम: सामान्य कार्य समय 8 घंटे/दिन और 48 घंटे/सप्ताह तक सीमित है।
      • ओवरटाइम केवल श्रमिक की सहमति से ही दिया जाएगा और इसका भुगतान नियमित दर से दोगुना होगा।

चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • ट्रेड यूनियनों का विरोध और अधिकारों का हनन: प्रमुख ट्रेड यूनियनें नई श्रम संहिताओं का विरोध कर रही हैं, उनका तर्क है कि ये हड़ताल के अधिकारों को कम करती हैं, सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करती हैं और छँटनी/बंदी को आसान बनाती हैं।
    • यदि यूनियन स्वयं को अलग-थलग महसूस करती हैं या उनके अधिकारों में कटौती की जाती है, तो कार्यान्वयन को प्रतिरोध और वैधता के मुद्दों का सामना करना पड़ेगा।
  • राज्यों की क्षमताओं में विखंडन: डिजिटल बुनियादी ढाँचे, प्रशासनिक तत्परता, निरीक्षकों की संख्या, प्रशिक्षण और संसाधन आवंटन में राज्यों में बहुत अंतर है, जिससे कवरेज और प्रवर्तन में असमानताएँ पैदा होती हैं।
    • श्रम एक समवर्ती सूची का विषय होने का अर्थ है कि कार्यान्वयन में बाधाएँ अब मुख्य रूप से राज्यों के पास हैं; केंद्र के दबाव के बावजूद कई राज्यों ने अपने नियमों को एक समान नहीं बनाया है।
    • कुछ राज्य नियमों का मसौदा तैयार करने या संहिताओं के अनुकूल अपनी स्थानीय प्रणालियों में संशोधन करने में पिछड़ रहे हैं।
  • स्थायी नौकरियों की जगह निश्चित अवधि/अनुबंध रोजगार का जोखिम: संहिताएँ और समर्थन संबंधी टिप्पणियाँ इस चिंता को बढ़ाती हैं कि नियोक्ता निश्चित अवधि के अनुबंधों या आकस्मिक रोजगार का अधिकाधिक उपयोग कर सकते हैं, जिससे रोजगार की सुरक्षा कम हो सकती है।
    • रोजगार की असुरक्षा श्रमिक कल्याण, दीर्घकालिक योजना और कौशल निवेश को कमजोर करती है और अनौपचारिकीकरण को बढ़ा सकती है।
  • अस्पष्ट राष्ट्रीय वेतन न्यूनतम और कार्यप्रणाली संबंधी चुनौतियाँ: वेतन संहिता, 2019 राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की अवधारणा प्रस्तुत करती है, लेकिन कार्यप्रणाली, राज्य-संरेखण और प्रभावी प्रवर्तन तंत्र अभी भी अनिश्चित हैं।
    • असंगत वेतन न्यूनतम समानता के सिद्धांत को कमजोर करते हैं और राज्य-स्तरीय वेतन असमानताओं को और बढ़ा सकते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा में कानूनी प्रवर्तनीयता का अभाव: कई लाभ कल्याणकारी योजनाएँ ही रह जाते हैं, कानूनी अधिकार नहीं, जिससे दुर्बल वर्ग के कामगारों को गारंटी युक्त पहुँच नहीं प्राप्त हो पाती।
    • अनौपचारिक क्षेत्र, विशेष रूप से, औपचारिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज के दायरे से बाहर रहता है।
    • सामाजिक सुरक्षा में कानूनी प्रवर्तनीयता का अभाव
    • हालाँकि सामाजिक सुरक्षा संहिता अब 1 वर्ष (5 के स्थान पर) के बाद ग्रेच्युटी प्रदान करने का प्रावधान करती है, इसे लागू करने के लिए राज्य-स्तरीय नियम बनाने की आवश्यकता होगी, जो अभी तक लंबित है।
  • गिग, प्लेटफॉर्म और अनौपचारिक कामगारों के लिए कवरेज अंतराल: हालाँकि संहिताएँ कई श्रेणियों (गिग, अनुबंध, प्लेटफॉर्म कार्य) को परिभाषित करती हैं, व्यावहारिक समावेशन अपूर्ण है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का कहना है कि लगभग 90% भारतीय कामगारों को पेंशन, बीमा, सवेतन अवकाश जैसे पूर्ण सामाजिक सुरक्षा लाभों का अभाव है।
  • अतिव्यापी और असंबद्ध योजना संरचना: कई योजनाएँ (केंद्र + राज्य) अलग-अलग संचालित होती हैं, जिससे दोहराव, अंतराल और अस्पष्ट अधिकार क्षेत्र जिसे मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं।
    • कर्नाटक और राजस्थान ने एकल गिग कल्याण कानूनों को आगे बढ़ाया है, जबकि सामाजिक सुरक्षा संहिता के प्रावधान (जैसे 1-2% टर्नओवर का एग्रीगेटर योगदान) का कार्यान्वयन अभी भी लंबित हैं।
  • डेटा, पोर्टेबिलिटी और एकीकरण संबंधी मुद्दे: डेटाबेस प्रायः अलग-अलग और खंडित होते हैं, जिनमें एकीकृत पहचान, क्रॉस-लिंकिंग या रियल-टाइम सिंक्रोनाइजेशन का अभाव होता है।
    • इससे लाभ संचालनीयता (राज्यों/ज़िलों के बीच) जटिल हो जाती है और श्रमिकों की निर्बाध गतिशीलता बाधित होती है।
    • विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने (PLI, MSME विस्तार) के लिए एकीकृत श्रम प्रणालियों की आवश्यकता होती है; एकीकृत डेटा संरचना के बिना, श्रम गतिशीलता सीमित रहती है।

आगे की राह

  • एक स्पष्ट, समयबद्ध राज्य कार्यान्वयन रोडमैप का निर्माण करना: राज्यों के लिए नियमों को अधिसूचित करने हेतु एक अनिवार्य, केंद्रीकृत निगरानी आधारित समय-सीमा निर्धारित करना।
    • पिछड़े राज्यों के लिए तकनीकी, आदर्श नियम और वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • नियम-निर्माण, निरीक्षण, पंजीकरण और न्यायाधिकरण मामलों की वास्तविक समय स्थिति के साथ एक एकल राष्ट्रीय डैशबोर्ड स्थापित करना।
  • केवल मान्यता ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा प्रवर्तन को भी मजबूत बनाना: प्रमुख लाभों (PF, ESIC, स्वास्थ्य, मातृत्व) को वैकल्पिक योजनाओं के बजाय प्रवर्तनीय अधिकारों में परिवर्तित करना।
    • गिग और अनौपचारिक श्रमिकों को कानूनी कवरेज के लिए प्राथमिकता देना, न कि केवल वैकल्पिक लाभार्थियों के रूप में।
    • पोर्टेबिलिटी के लिए EPFO, ESIC, ई-श्रम, BOCW डेटा को जोड़ते हुए एक समान श्रमिक-ID प्रणाली स्थापित करना।
    • स्वचालित योगदान निगरानी के साथ गिग/प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए एक समर्पित सामाजिक सुरक्षा वितरण प्राधिकरण बनाना।
  • निश्चित अवधि के रोजगार (FTE) के दुरुपयोग को रोकना: जहाँ प्रतिस्थापन का जोखिम अधिक है (कपड़ा, रसद, इलेक्ट्रॉनिक्स) वहाँ FTE के उपयोग पर क्षेत्रवार सीमा लागू करना।
    • स्थायी, FTE और संविदा कर्मचारियों के अनुपात से संबंधित आँकड़ों का वार्षिक अनिवार्य प्रकटीकरण सुनिश्चित किया गया है।
    • शिकायत निवारण के माध्यम से यूनियनों को दुरुपयोग का ऑडिट करने में सक्षम बनाना।
  • राज्य क्षमता निर्माण और डिजिटल शासन: निरीक्षणालयों, स्थानीय श्रम विभागों, ICT अवसंरचना और विश्लेषण में कौशल विकास में निवेश करना।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए रियल-टाइम डैशबोर्ड, सार्वजनिक जवाबदेही और सामाजिक ऑडिट लागू करना।
  • संक्रमणकालीन सुरक्षा उपाय और विरासत संरक्षण: संक्रमण के दौरान मौजूदा कल्याणकारी अधिकारों की रक्षा करना (लाभ में कटौती से बचना)।
  • गिग और प्लेटफॉर्म कर्मचारी समावेशन में सुधार करना: एग्रीगेटर्स के लिए स्वचालित कटौती प्रणालियों के साथ सामाजिक सुरक्षा कोष का संचालन करना।
    • गिग कर्मचारियों को मोबाइल ऐप के माध्यम से योगदान देने और लाभ प्रदान करने में सक्षम बनाना।
    • गिग-कर्मचारी कानूनों (राजस्थान, कर्नाटक) को केंद्रीय ढाँचों के साथ संरेखित करने के लिए राज्यों के साथ साझेदारी करना।
  • सुरक्षा को कम किए बिना विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मजबूत करना: MSME के लिए अनुपालन में आसानी को सत्यापित सुरक्षा, वेतन तथा PF सुविधा से जोड़ेना।
    • नई सीमाओं में संक्रमण कर रहे छोटे कारखानों के लिए अनुपालन-सहायता प्रकोष्ठ प्रदान करना।
    • श्रम अनुपालन को PLI रेटिंग के साथ एकीकृत करके औपचारिकता को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

श्रम संहिताएँ आधुनिक, सरलीकृत श्रम ढाँचा प्रदान करती हैं, लेकिन उनकी सफलता अब पूरी तरह से राजनीतिक समन्वय, राज्य-स्तरीय क्षमता तथा कठोर, श्रमिक-केंद्रित कार्यान्वयन पर निर्भर करती है।

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