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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 24, 2025 02:52 10 0

कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन  (CSC)

हाल ही में 7वें कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बैठक नई दिल्ली में आयोजित हुई।

कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) के बारे में

  • CSC भारतीय महासागर क्षेत्र के देशों के बीच समुद्री तथा अंतरराष्ट्रीय-सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ करने हेतु एक क्षेत्रीय सुरक्षा मंच है।
  • उद्भव: यह मूलतः वर्ष 2011 में भारत, श्रीलंका और मालदीव के बीच त्रिपक्षीय समुद्री सुरक्षा समूह के रूप में स्थापित हुआ था।
    • वर्ष 2020 में इसे विस्तारित किया गया और मॉरीशस को पूर्ण सदस्य बनाया गया, जबकि बांग्लादेश और सेशेल्स को प्रेक्षक राज्य का दर्जा दिया गया।
    • बांग्लादेश वर्ष 2024 में पूर्ण सदस्य बना।
    • अगस्त 2024 में श्रीलंका में CSC के संस्थापक दस्तावेजों  पर हस्ताक्षर समारोह आयोजित हुआ।
  • वर्ष 2025 CSC बैठक: सेशेल्स ने प्रेक्षक राज्य के रूप में भाग लिया तथा मलेशिया अतिथि के रूप में सम्मिलित हुआ।
    • CSC सदस्यों ने सेशेल्स के पूर्ण सदस्य बनने के निर्णय का स्वागत किया।
  • 6 पूर्णकालिक सदस्य (नवंबर 2025): भारत, मालदीव, मॉरीशस, श्रीलंका, बांग्लादेश और सेशेल्स।
  • CSC सचिवालय: कोलंबो, श्रीलंका।
  • उद्देश्य
    • समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी कार्रवाई, साइबर सुरक्षा और मानवीय सहायता पर सहयोग सुदृढ़ करना।
    • क्षेत्रीय खतरों के प्रति खुफिया साझेदारी और समन्वित प्रतिक्रिया को बढ़ावा देना।
    • संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण और संस्थागत ढाँचे के माध्यम से सामूहिक क्षमताएँ बढ़ाना।
  • महत्त्व: यह यात्रा भारत-बांग्लादेश संबंधों को स्थिर करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक संकेत है तथा क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) के माध्यम से और सुदृढ़ करती है।

तेजस लड़ाकू विमान

 

दुबई एयरशो, 2025 में प्रदर्शन के दौरान, तेजस लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें पायलट की मृत्यु हो गई।

  • यह दुर्घटना तकनीकी खराबी के कारण हुई, जिससे उड़ान के दौरान विमान पर नियंत्रण खो गया।

तेजस के बारे में

  • तेजस भारत का स्वदेशी 4.5-पीढ़ी का हल्का लड़ाकू विमान है, जिसे पुराने मिग-21 के स्थान पर विकसित किया गया है।
  • 4.5-पीढ़ी के विमान वे उन्नत लड़ाकू विमान होते हैं, जिनमें उन्नत एवियोनिक्स, सेंसर और आयुध क्षमताएँ होती हैं, परंतु पूर्ण स्टेल्थ क्षमता नहीं होती।
  • विकसितकर्ता: एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA), जो भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के अधीन है।
  • निर्माता: हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), जिसके अंतर्गत हल्का लड़ाकू विमान कार्यक्रम वर्ष 1984 में प्रारंभ हुआ।
  • प्रगति: तेजस ने अपनी पहली उड़ान वर्ष 2001 में भरी। इसे भारतीय वायु सेना में औपचारिक रूप से वर्ष 2016 में शामिल किया गया।
  • विशेषताएँ
    • तेजस एक एकल-इंजन, बहुद्देशीय लड़ाकू विमान है, जिसमें उच्च गतिशीलता और स्थिरता के लिए कनार्ड-डेल्टा विंग विन्यास है।
    • अधिकतम गति: मैक 1.8  (लगभग 2,200 किमी./घंटा)।
    • अधिकतम भार-वहन क्षमता: 5,300 किलोग्राम बाहरी आयुध/उपकरण।
    • इसे आक्रामक वायु समर्थन, समीप वायु-युद्ध तथा भू-आक्रमण अभियानों हेतु डिजाइन किया गया है।
  • संस्करण
    • HAL वर्तमान में तेजस Mk1A विकसित कर रहा है, जिसमें उन्नत एवियोनिक्स, बेहतर रडार, उन्नत EW प्रणालियाँ तथा रखरखाव क्षमता शामिल है।
      • दो सीटों वाला प्रशिक्षक संस्करण उन्नत पायलट प्रशिक्षण और परिचालन रूपांतरण हेतु विकसित किया गया है।
    • निर्यात: भारत ने अभी तक तेजस के लिए अंतिम निर्यात ऑर्डर प्राप्त नहीं किया है, परंतु नाइजीरिया, मिस्र, अर्जेंटीना और फिलीपींस सहित कई देशों के साथ वार्ताएँ जारी हैं।
    • भविष्य की खरीद: वर्ष 2025 में केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने 97 तेजस Mk1A विमानों के लिए ₹62,370 करोड़ का अनुबंध किया। इनकी आपूर्ति वर्ष 2027 से 2034 के बीच निर्धारित है।

COP31: तुर्किए 

तुर्किए वर्ष 2026 में COP-31 की मेजबानी करेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया COP-30 के दौरान ब्राजील में हुए समझौते के बाद अंतर-सरकारी जलवायु वार्ताओं का नेतृत्व करेगा।

विवाद की पृष्ठभूमि

  • प्रतिस्पर्द्धी दावे (2022): तुर्किए और ऑस्ट्रेलिया दोनों ने COP-31  की मेजबानी का दावा किया और किसी ने भी अपना दावा वापस नहीं लिया, जिससे दीर्घावधि तक गतिरोध बना रहा।

समझौते के प्रमुख तत्त्व

  • मेजबान देश: तुर्किए (आंटाल्या) में COP-31  की मेजबानी करेगा और औपचारिक रूप से शिखर सम्मेलन का अध्यक्ष होगा।
    • तुर्किए विकसित और विकासशील देशों के बीच एकजुटता पर बल देना चाहता है, जो एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में उसकी स्थिति को दर्शाता है।
  • वार्ताओं का नेतृत्व: ऑस्ट्रेलिया COP-31 की वार्ताओं की अध्यक्षता करेगा तथा उसे सह-समन्वयकों की नियुक्ति और निर्णयों के प्रारूप तैयार करने का अधिकार होगा।
  • प्रशांत क्षेत्र की भागीदारी: जलवायु-संवेदनशील द्वीपीय देशों पर ध्यान बनाए रखने हेतु प्रशांत क्षेत्र में एक COP पूर्व बैठक का आयोजन किया जाएगा।

ऑस्ट्रेलिया की स्थिति के पीछे तर्क

  • प्रशांत-केंद्रित दावा: ऑस्ट्रेलिया ने COP-31 को “प्रशांत COP” के रूप में प्रस्तावित किया था, जिसमें द्वीपीय देशों की समुद्र-स्तर वृद्धि से जुड़ी संवेदनशीलताओं को रेखांकित किया गया।
  • निवेश: ऑस्ट्रेलिया ने अपने दावे की तैयारी में A$7  मिलियन व्यय किए और व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन की अपेक्षा की।
  • असंतोष: पापुआ न्यू गिनी ने असंतोष व्यक्त किया, यह कहते हुए कि प्रशांत देशों को अत्यधिक जलवायु जोखिम के कारण केंद्र में रहना चाहिए था।

COP के बारे में 

  • COP: संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) की सर्वोच्च निर्णय-निर्माण संस्था है, जहाँ सदस्य देश वैश्विक जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए एकत्र होते हैं।
  • COP30 (वर्ष 2025): ब्राजील ने बेलेम में COP-30 की मेजबानी की, जो वैश्विक जलवायु वित्त और वनों (विशेषकर अमेजन) की सुरक्षा पर केंद्रित है।
  • COP32 (वर्ष 2027): अफ्रीकी समूह के सर्वसम्मत समर्थन से इथियोपिया आदिस अबाबा में COP-32 की मेजबानी करेगा।  यह पहला अवसर होगा, जब कोई पूर्वी अफ्रीकी देश शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा।

एकेंथोसिस निग्रिकेंस

एकेंथोसिस निग्रिकेंस को इंसुलिन प्रतिरोध और बढ़ते मधुमेह जोखिम के प्रारंभिक संकेतक के रूप में पहचाना जा रहा है।

एकेंथोसिस निग्रिकेंस के बारे में

  • एकेंथोसिस निग्रिकेंस (Acanthosis Nigricans) एक त्वचा संबंधी स्थिति है, जिसमें शरीर की परतों और सिलवटों में धीरे-धीरे काले धब्बे दिखाई देते हैं।
  • यह त्वचा में खुरदुरापन, खुजली या हल्की दुर्गंध भी उत्पन्न कर सकता है, विशेषकर तब जब इंसुलिन प्रतिरोध तेजी से बढ़ रहा हो।
  • निदान:  क्लिनिकल परीक्षण द्वारा गहरे धब्बों की पहचान की जाती है, जिसके बाद रक्त-परीक्षणों में ग्लूकोज, इंसुलिन और अन्य चयापचय मापदंडों की जाँच की जाती है।
    • अतिरिक्त मूल्यांकन में दुर्लभ घातक बीमारी से संबंधित कारणों का पता लगाने के लिए लिपिड प्रोफाइल और इमेजिंग शामिल हो सकते हैं।
  • उपचार: अंतर्निहित कारणों का प्रबंधन, जैसे कि वजन कम करना, बेहतर चयापचय स्वास्थ्य तथा इंसुलिन प्रतिरोध के लिए दवाएँ, त्वचा में होने वाले परिवर्तनों को दूर करने में मदद कर सकती हैं।
    • स्थानीय क्रीम, जीवाणुरोधी क्लीनजर और लेजर उपचार चयापचय सुधार के बाद रंजकता कम कर सकते हैं।

चयापचयिक विकृति का संकेत

  • एकेंथोसिस निग्रिकेंस प्रायः गर्दन के पीछे, बगल, जाँघ-जोड़, स्तनों के नीचे तथा कोहनी-घुटने के नीचे दिखता है, जो प्रायः किसी अंतर्निहित चयापचय विकार का संकेत होता है।
  • यह इंसुलिन प्रतिरोध, मोटापा, चयापचय-संलयन और मधुमेह से संबंधित है तथा दुर्लभ मामलों में आंतरिक घातक-रोगों से भी संबंधित हो सकता है।
  • महत्त्व
    • मधुमेह के प्रारंभिक चेतावनी-संकेत: यह उन प्रथम दृश्यमान संकेतों में से एक है, जो दर्शाता है कि शरीर रक्त-शर्करा नियंत्रण में संघर्ष कर रहा है, विशेषकर बच्चों और युवाओं में।
    • निवारक स्वास्थ्य में भूमिका: समय पर पहचान होने पर जीवन-शैली में सुधार, वजन-प्रबंधन और उपयुक्त चिकित्सकीय उपचार के माध्यम से इस स्थिति की रोकथाम संभव है, जिससे त्वचा का काला पड़ना कम या समाप्त हो सकता है और समग्र चयापचय स्वास्थ्य में सुधार होता है।
    • लोक-स्वास्थ्य प्रासंगिकता: इसे चयापचय-चेतावनी संकेत के रूप में पहचानना पूर्व-मधुमेह और मधुमेह के देर से होने वाले निदान को रोकने में सहायक है, जिससे दीर्घकालिक जटिलताएँ कम होती हैं।

‘सागर कवच’ अभ्यास

हाल ही में तटरक्षक बल ने तटीय खतरों के विरुद्ध बहु-एजेंसी तैयारी का आकलन करने हेतु दो-दिवसीय ‘सागर कवच’ अभ्यास आयोजित किया।

‘सागर कवच’ के बारे में

  • परिचय: ‘सागर कवच’ एक द्विवार्षिक, व्यापक तटीय सुरक्षा अभ्यास है, जिसे समुद्री एजेंसियों के नेतृत्व में भारत की बहु-स्तरीय तटीय सुरक्षा संरचना को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से आयोजित किया जाता है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य घुसपैठ, तटीय परिसंपत्तियों पर हमलों तथा राष्ट्र-विरोधी तत्त्वों द्वारा उत्पन्न समुद्री आपात स्थितियों की रोकथाम के लिए तैयारियों का मूल्यांकन करना है।
  • आयोजन: भारतीय तटरक्षक बल और राज्य तटीय सुरक्षा ढाँचे द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित, जिसमें भारतीय नौसेना तथा अनेक केंद्र तथा राज्य एजेंसियाँ भाग लेती हैं।
  • आयोजन स्थल: महाराष्ट्र और गोवा तटरेखा।
  • महत्त्व: यह तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा में संलग्न सुरक्षा, खुफिया, बंदरगाह तथा आपदा-प्रतिक्रिया तंत्रों के बीच वास्तविक आधारित समन्वय, पारस्परिक क्षमता और संचार को सुदृढ़ करता है।

सागर कवच के प्रमुख पहलू

  • भागीदारी का स्तर:  छह हजार से अधिक कर्मियों और 115 से अधिक समुद्री–वायु उपकरणों की तैनाती की गई, जिससे बहु-एजेंसी संचालन का व्यापक कवरेज सुनिश्चित हुआ।
  • तैनात परिसंपत्तियाँ: भारतीय नौसेना और तटरक्षक पोत, डोर्नियर विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, ACV, मरीन पुलिस नौकाएँ, सीमा-शुल्क–CISF नौकाएँ तथा मत्स्य–राज्य समुद्री इकाइयाँ तैनात की गईं।
  • संस्थागत समन्वय: संयुक्त तटीय प्रतिक्रिया तंत्र को मान्य करने के लिए 19 केंद्रीय और 13 राज्य एजेंसियों, एक प्रमुख बंदरगाह, 21 छोटे बंदरगाहों और जिला तटीय प्राधिकरणों को शामिल किया गया।

ट्रांसन्यूरॉन

वैज्ञानिकों ने एक नया “ट्रांसन्यूरॉन” विकसित किया है, जो मोटर, प्री-मोटर और दृश्य कार्यों के बीच स्विच कर सकता है तथा मस्तिष्क की तरह विद्युत स्पंदों के माध्यम से सूचना को संसाधित करता है।

ट्रांसन्यूरॉन के बारे में

  • परिचय: ट्रांसन्यूरॉन अगली पीढ़ी का कृत्रिम न्यूरॉन है, जिसे सॉफ्टवेयर आधारित गणना के स्थान पर विद्युत स्पंदों का उपयोग करके जैविक न्यूरोनल गतिविधि की प्रतिकृति हेतु बनाया गया है।
  • न्यूरॉन मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की मूल इकाइयाँ हैं, जो संवेदी इनपुट प्राप्त करने और मोटर कमांड भेजने के लिए उत्तरदायी होती हैं।
  • वर्तमान विकास: सॉल्क इंस्टिट्यूट, USC  और लॉफबरो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने योजना, गति और दृष्टि-संबंधी कार्यों के बीच वैकल्पिक कार्य करने के लिए ट्रांसन्यूरॉन का निर्माण किया।
    • इस उपकरण का परीक्षण इसके विद्युत आउटपुट की तुलना मैकाक न्यूरॉन रिकॉर्डिंग के साथ करके किया गया, जिससे मस्तिष्क के तीन क्षेत्रों में 100% तक सटीकता प्राप्त हुई।

मुख्य विशेषताएँ

  • ट्रांसन्यूरॉन विद्युत मापदंडों में परिवर्तन करके विभिन्न न्यूरोनल भूमिकाओं के बीच गतिशील रूप से स्विच करता है; इसके लिए अनेक कृत्रिम न्यूरॉन या जटिल सॉफ्टवेयर की आवश्यकता नहीं होती।
  • यह जैविक-सदृश सूचना प्रसंस्करण प्रदर्शित करता है, जिसमें फायरिंग दर समायोजित होती है और संकेतों के समयानुसार भिन्न प्रतिक्रिया मिलती है।
  • यह प्रणाली एक मेम्रिस्टोर (Memristor) पर आधारित है, जिसमें नैनोस्केल सिल्वर-एटम के सूक्ष्म पुल बनते और टूटते हैं, और इसी प्रक्रिया से मस्तिष्क जैसी विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं।
  • यह उपकरण दाब और तापमान जैसे पर्यावरणीय कारकों के प्रति संवेदनशीलता प्रदर्शित करता है तथा संभावित कृत्रिम संवेदी प्रणालियों को समर्थन प्रदान करता है।

ट्रांसन्यूरॉन के उपयोग

  • ट्रांसन्यूरॉन प्री-मोटर, मोटर और दृश्य व्यवहारों की प्रतिकृति कर सकता है, जिससे उन्नत रोबोटिक तंत्र विकसित हो सकते हैं, जो मानव-सदृश संवेदन और गति को न्यूनतम हार्डवेयर के साथ प्राप्त कर सकें।
  • यह ऊर्जा-कुशल, कॉम्पैक्ट न्यूरोमॉर्फिक चिपों के विकास को सक्षम बनाता है, जो अनेक जटिल कार्यों को करने में सक्षम हों।
  • यह ऐसे मस्तिष्क-सदृश कंप्यूटिंग हार्डवेयर की नींव रखता है, जो निश्चित प्रक्रियाओं के बजाय गतिशील रूप से सूचना का प्रसंस्करण करते हैं।

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