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UNFCCC COP30-बेलेम, ब्राजील

Lokesh Pal November 26, 2025 01:22 6 0

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (COP-30) के पक्षकारों के सम्मेलन का 30वाँ संस्करण, 22 नवंबर को ब्राजील के बेलेम में संपन्न हुआ।

संबंधित तथ्य 

  • ब्राजील की अध्यक्षता में इस वर्ष के सम्मेलन को ‘कार्यान्वयन COP’ के रूप में तैयार किया है- जिसका उद्देश्य इस बात पर कम ध्यान केंद्रित करना था कि दुनिया को क्या करना चाहिए, बल्कि इस बात पर कि यह सब कैसे किया जाए?

PWOnlyIAS विशेष

COP के बारे में

  • COP का अर्थ है:- “पक्षकारों का सम्मेलन”। पक्षकार वे देश हैं, जिन्होंने वर्ष 1992 में UNFCCC का अनुसमर्थन किया था।
    • COP, सम्मेलन का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, जिसमें सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व होता है।
  • इतिहास: पहला COP मार्च 1995 में बर्लिन में आयोजित किया गया था।
  • अध्यक्षता: COP की अध्यक्षता संयुक्त राष्ट्र के पाँच क्षेत्रों (अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन, मध्य और पूर्वी यूरोप, पश्चिमी यूरोप तथा अन्य) के बीच चक्रीय रूप से वितरित होती रहती है और आयोजन स्थल प्रायः इसी तरह बदलता रहता है, मेजबान का चयन क्षेत्रीय सहमति से होता है, मतदान से नहीं।
  • आगामी COPs के मेजबान देश
    • COP-31 (2026): तुर्किए 
    • COP-32 (2027): इथियोपिया (आदिस अबाबा)
    • COP-33 (2028): भारत (प्रस्तावित; यदि चयनित हुआ, तो वर्ष 2002 में COP-8 के बाद दूसरी बार)।
  • आवृत्ति एवं स्थान: वार्षिक बैठक (जब तक अन्यथा निर्णय न लिया जाए), आमतौर पर बॉन, जर्मनी में; अन्य पक्षों द्वारा भी आयोजित की जा सकती है।
    • कार्य: सम्मेलन के कार्यान्वयन की समीक्षा करता है, कानूनी उपायों को अपनाता है और संस्थागत एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं सहित प्रभावी कार्यान्वयन के लिए निर्णय लेता है।
  • मुख्य कार्य: सम्मेलन के उद्देश्यों की दिशा में प्रगति का आकलन करने के लिए पक्षों द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय संचार और उत्सर्जन सूची की जाँच करता है।

 30वाँ पक्षकारों का सम्मेलन (COP-30) ब्राजील में क्यों आयोजित किया गया?

  • क्षेत्रीय नामांकन (GRULAC): ब्राजील का चयन क्षेत्रीय रोटेशन प्रक्रिया के माध्यम से किया गया था, जिसमें लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों के समूह (GRULAC) ने इसे मेजबान के रूप में नामित किया था।
  • पहली बार ब्राजीलियाई COP: COP-30, ब्राजील द्वारा पहली बार सम्मेलन की मेजबानी का प्रतीक था, जिसने जलवायु कूटनीति में एक मजबूत नेतृत्वकारी भूमिका का संकेत दिया।
  • अमेजन-केंद्रित स्थल (बेलेम): अमेजन वर्षावन के प्रवेश द्वार पर स्थित बेलेम को इसके वैश्विक जलवायु और जैव विविधता महत्त्व को प्रदर्शित करने के लिए चुना गया था।
  • संचालन और लागत संबंधी चुनौतियाँ: सीमित बुनियादी ढाँचे और उच्च आवास लागत के कारण इस स्थल की आलोचना हुई।
  • पर्यावरण और नीतिगत विवाद: बुनियादी ढाँचे के लिए अमेजन भूमि की सफाई और ब्राजील द्वारा नए तेल तथा गैस अन्वेषण लाइसेंसों को मंजूरी देने पर चिंताएँ उठीं, जिन्हें जलवायु लक्ष्यों के साथ असंगत माना गया।

COP-30 के मुख्य परिणाम 

परिणाम / पहल मुख्य विवरण 
बेलेम स्वास्थ्य कार्य योजना
  • जलवायु-स्वास्थ्य जोखिमों पर पहली वैश्विक योजना; जलवायु-अनुकूल स्वास्थ्य प्रणालियों, जूनोटिक निगरानी, ​​स्वास्थ्य समानता, जलवायु न्याय और समुदाय-नेतृत्व वाली लचीलापन को प्राथमिकता देती है।
ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फैसिलिटी (TFFF)
  • परिणाम-आधारित, प्रदर्शन सह भुगतान तंत्र उपग्रह निगरानी द्वारा सत्यापित; 125 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य; ब्राजील ने 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता जताई; उष्णकटिबंधीय वनों के संरक्षण का समर्थन करता है।
बेलेम राजनीतिक पैकेज
  • जीवाश्म ईंधन के चरणबद्ध उन्मूलन से बचा गया; अनुच्छेद-9.1 के दायित्वों सहित दो वर्षीय जलवायु वित्त वार्ता को अनिवार्य बनाया गया; वित्तीय वितरण पर जोर दिया गया, 1.5°C ताप सीमा का संरेखण किया गया, CBAM के प्रभाव बढ़ाए गए और पारदर्शिता बढ़ाई गई।
    • पेरिस समझौते का अनुच्छेद-9.1 एक आधारभूत प्रावधान है, जो कानूनी रूप से जलवायु वित्त की जिम्मेदारी मुख्य रूप से विकसित देशों पर डालता है।
सांता मार्टा सम्मेलन (2026)
  • कोलंबिया और नीदरलैंड द्वारा प्रस्तावित; जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के कानूनी, आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी आयामों की जाँच करना।
ओपन प्लैनेटरी इंटेलिजेंस नेटवर्क (OPIN)
  • वैश्विक जलवायु गोपनीय मंच, जो डेटासेट, उपग्रह प्रणालियों, मॉडलिंग उपकरणों और ‘ओपन-एक्सेस एनालिटिक्स’ को एकीकृत करता है।
ग्लोबल एथिकल स्टॉकटेक (GES)
  • नैतिक, सांस्कृतिक, नागरिक समाज के दृष्टिकोणों को एकीकृत करता है; एशियाई संस्करण नई दिल्ली में (सितंबर 2025)।
बेलेम 4× सतत् ईंधन प्रतिज्ञा
  • वर्ष 2035 तक जैव ईंधन, बायोगैस, हरित हाइड्रोजन सहित सतत् ईंधन उपयोग को चौगुना करने की प्रतिबद्धता।
भूख, गरीबी और जन-केंद्रित जलवायु कार्रवाई पर बेलेम घोषणा
  • 43 देशों एवं यूरोपीय संघ द्वारा समर्थित; अनुकूलन, सामाजिक संरक्षण, फसल बीमा, महिला-नेतृत्व वाली लचीलापन, सामुदायिक शासन को प्राथमिकता देता है।
NAP कार्यान्वयन गठबंधन
  • राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (NAP) के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए समाधान में तेजी लाने की योजना (PAS) के तहत बहु-हितधारक गठबंधन।
वैश्विक कार्यान्वयन त्वरक
  • कार्यान्वयन अंतराल को पाटने के लिए दो-वर्षीय त्वरक, राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को 1.5°C पथ के साथ संरेखित करना।
बेलेम मिशन 1.5
  • COP29-31 ट्रोइका के अंतर्गत कार्रवाई-उन्मुख मंच, जो शमन, अनुकूलन, प्रौद्योगिकी और निवेश में सहयोग को सक्षम बनाता है।
ग्लोबल मुतिराओ डिसीजन
  • उच्च-स्तरीय वार्ता, जिसमें पक्षकारों को निम्नलिखित के लिए प्रतिबद्ध किया गया है:
    • वर्ष 2035 तक प्रतिवर्ष 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का जलवायु वित्त
    • वर्ष 2025 तक अनुकूलन वित्त को दोगुना करना; वर्ष 2035 तक तिगुना करना।
    • 60 संकेतकों के साथ अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA) को अपनाना।
ग्लोबल मुतिराओ प्लेटफॉर्म
  • प्रतिबद्धता संबंधी अंतराल को कम करने के लिए ब्राजील के नेतृत्व आधारित ‘डिजिटल मोबिलाइजेशन टूल’, जो मुतिराओ सामुदायिक सहयोग से प्रेरित है।
न्यायोचित संक्रमण तंत्र
  • श्रम समावेशन पर ध्यान केंद्रित करते हुए सहयोग, क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और न्यायसंगत बदलाव के लिए रूपरेखा।
वन एवं जलवायु रोडमैप
  • वित्त, वन प्रशासन और स्वदेशी प्रबंधन के माध्यम से वनोन्मूलन को रोकने के लिए वैश्विक योजना।
जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को हतोत्साहित करने हेतु रोडमैप
  • ऊर्जा प्रणाली परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार, भंडारण और जीवाश्म ईंधन में समान कमी के लिए मार्ग प्रदान करता है।
निवेश योग्य राष्ट्रीय कार्यान्वयन को बढ़ावा देना (FINI)
  • इस पहल का लक्ष्य तीन वर्षों के भीतर लगभग 20% निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की अनुकूलन पाइपलाइन को सक्रिय करना है।
लैंगिक कार्य योजना
  • लैंगिक संवेदनशील बजट, जलवायु वित्त तक पहुँच, तथा स्वदेशी, अफ्रीकी और ग्रामीण महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देना।

COP-30 में भारत की पहल

पहल मुख्य विवरण / मुख्य अंश
जलवायु वित्त और समता
  • अनुच्छेद-9.1 के अनुपालन, पूर्वानुमानित जलवायु वित्त, अनुदान-आधारित समर्थन के लिए मजबूत प्रयास; CBAM और एकतरफा व्यापार उपायों का विरोध।
वन और प्रकृति-आधारित समाधान
  • TFFF का समर्थन किया, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, स्वदेशी अधिकारों, LiFE सिद्धांतों को बढ़ावा दिया।
स्वास्थ्य और अनुकूलन
  • बेलेम स्वास्थ्य योजना के साथ संरेखित, वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिक्रिया टीम का समर्थन किया।
सतत् ईंधन और जैव ऊर्जा
  • बेलेम 4× प्रतिज्ञा का समर्थन किया, ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस (GBA) नेतृत्व का लाभ उठाया।
अनुकूलन और NAPs
  • अनुकूलन वित्त के विस्तार पर जोर दिया गया, NAP कार्यान्वयन में तेजी लाई गई।

COP-30 का महत्त्व 

  • कार्यान्वयन-केंद्रित परिवर्तन: COP-30 ने प्रतिबद्धता से कार्यान्वयन की ओर एक बदलाव को चिह्नित किया, जिसमें पेरिस समझौते को क्रियान्वित करने, विशेष रूप से जलवायु वित्त संरचना, अनुकूलन तंत्र और निगरानी ढाँचों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • अमेजन क्षेत्र में पहला COP: बेलेम में शिखर सम्मेलन की मेजबानी ने अमेजन वर्षावन की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया, जिसमें वनों, जैव विविधता और स्वदेशी समुदायों को वैश्विक जलवायु स्थिरता के स्तंभों के रूप में रेखांकित किया गया।

  • जलवायु न्याय पर पुनः ध्यान केंद्रित करना: शिखर सम्मेलन ने समानता, CBDR-RC (साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व और संबंधित क्षमताएँ) पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया और जलवायु-संवेदनशील आबादी के अधिकारों और आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी।
  • प्रकृति आधारित जलवायु एजेंडा का उन्नयन: ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फैसिलिटी (TFFF) के शुभारंभ ने वैश्विक जलवायु रणनीतियों में प्रकृति-आधारित समाधानों, वन प्रशासन और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के महत्त्व को सुदृढ़ किया।
  • मानव-केंद्रित जलवायु दृष्टिकोण: बेलेम स्वास्थ्य कार्य योजना और भूख, गरीबी एवं जन-केंद्रित जलवायु कार्रवाई पर बेलेम घोषणा-पत्र के माध्यम से, COP-30 ने स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा तथा सामाजिक संरक्षण को जलवायु नीति के केंद्र में रखा।
  • अनुकूलन और गरीबी उन्मूलन को मजबूत करना: बेलेम घोषणा-पत्र ने जलवायु अनुकूलन को गरीबी उन्मूलन, सामाजिक सुरक्षा जाल और भुखमरी उन्मूलन से जोड़ा, जिससे अनुकूलन-विकास संबंध मजबूत हुआ।
  • जलवायु वित्त सुधार पर गति: हालाँकि नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) की राशि अभी भी अनिश्चित है, फिर भी COP-30 ने दो-वर्षीय संरचित वार्ता शुरू की, जिससे “अरबों नहीं, खरबों” के वित्तीय अंतराल को पाटने के प्रति गंभीरता का संकेत मिलता है।

चुनौतियाँ जिनका सामना करना आवश्यक है: 

  • जीवाश्म ईंधन के प्रति कमजोर प्रतिबद्धता: जीवाश्म ईंधन के चरणबद्ध उन्मूलन पर सहमति न बन पाना और बेलेम राजनीतिक पैकेज से रोडमैप को हटाना यह दर्शाता है कि ऊर्जा सुरक्षा और भू-राजनीतिक हित किस प्रकार 1.5°C तापमान-सीमा के लक्ष्य को प्रभावित करते हैं।
  • जलवायु वित्त अंतराल: विकसित देशों ने अनुच्छेद-9.1 के तहत बाध्यकारी जलवायु वित्त दायित्वों का विरोध किया, जिससे प्रमुख माँगें पूरी नहीं हो पाईं और विश्वास की कमी बढ़ती गई।
  • हरित संरक्षणवाद: कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) जैसे उपायों से विकासशील देशों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का खतरा है, क्योंकि COP-30 में कोई ठोस समाधान नहीं प्राप्त हुआ है।
  • स्वैच्छिक मंचों का सीमित कानूनी भार: सांता मार्टा सम्मेलन और अन्य स्वैच्छिक रोडमैप जैसी पहल, UNFCCC के औपचारिक निर्णय लेने के दायरे से बाहर होने के कारण, जवाबदेही, प्रवर्तनीयता और निगरानी के मुद्दों का सामना करती हैं।
  • राजनीतिक पैकेज में ठोस कार्यान्वयन कदमों की अनदेखी की गई: अंतिम वार्ता में समयबद्ध, कार्यान्वयन योग्य उपायों का अभाव था, जो बाध्यकारी कार्यान्वयन मार्गों के प्रति प्रतिबद्धता में संकोच को दर्शाता है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: तीव्र वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों ने आम सहमति निर्माण को कमजोर किया और प्रमुख वार्ता क्षेत्रों में प्रगति को अवरुद्ध कर दिया।
  • “बिग फोर” ट्रैक पर गतिरोध: वित्त, व्यापार, जीवाश्म ईंधन/1.5°C, और पारदर्शिता पर वार्ता अप्रभावी रही, जिससे उत्तर-दक्षिण ध्रुवीकरण लगातार जारी रहा।

जलवायु परिवर्तन से निपटने में COP की भूमिका

  • निर्णयन और वार्ता: COP एक प्रमुख वैश्विक मंच है, जहाँ सरकारें जलवायु समझौतों पर वार्ता करती हैं, नियम निर्धारित करती हैं और वैश्विक लक्ष्य तय करती हैं।
    • क्योटो प्रोटोकॉल (1997) और पेरिस समझौते (2015) जैसी प्रमुख संधियों को COP बैठकों में अंतिम रूप दिया गया था।
  • प्रगति का आकलन: COP नियमित रूप से समीक्षा करता है कि देश अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को कैसे लागू कर रहे हैं, विशेष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के माध्यम से।
    • COP-28 में संपन्न ग्लोबल स्टॉकटेक (GST), वैश्विक प्रगति को मापने की औपचारिक प्रक्रिया है।
  • जलवायु महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाना: COP बैठकें देशों को अपने NDCs की महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं ताकि वैश्विक कार्रवाई तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के अनुरूप बनी रहे।
  • जलवायु वित्त जुटाना: COP विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता पर वार्ता करने का प्रमुख मंच है। इसमें नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG), अनुकूलन वित्त और हानि एवं क्षति कोष जैसी व्यवस्थाओं पर निर्णय शामिल हैं।
  • अनुकूलन और लचीलेपन का समर्थन: COP देशों, विशेष रूप से संवेदनशील देशों को चरम मौसम की घटनाओं, बढ़ते समुद्र स्तर और पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन जैसे जलवायु प्रभावों के लिए योजना बनाने और इन प्रभावों का सामना करने में मदद करता है।

COP और वर्ष मुख्य परिणाम  महत्त्व 
COP-3 (1997) क्योटो प्रोटोकॉल विकसित देशों के लिए पहला कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य।
COP-21 (2015) पेरिस समझौता तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित करने के लिए वैश्विक संधि, 1.5°C का लक्ष्य; NDCs की शुरुआत।
COP-26 (2021) ग्लासगो जलवायु समझौता पेरिस नियम पुस्तिका को अंतिम रूप दिया गया; कोयला चरणबद्ध कटौती और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी चरणबद्ध समाप्ति का उल्लेख करने वाला पहला COP निर्णय।
COP-27 (2022) शर्म अल-शेख कार्यान्वयन योजना निम्न विकासशील देशों के लिए ऐतिहासिक ‘लॉस एंड डैमेज’ फंड स्थापित किया गया।
COP-28 (2023) UAE की आम सहमति और वैश्विक समीक्षा सभी जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिए पहला वैश्विक समझौता।
COP-30 (2025) बेलेम राजनीतिक पैकेज NCQG के लिए दो वर्षीय वित्त प्रक्रिया शुरू की गई; ‘जस्ट ट्रांजिशन’ मैकनिज्म की स्थापना की गई।

COP30 के बाद वर्तमान वैश्विक प्राथमिकताएँ

  • जलवायु वित्त प्रदान करना: देशों को अब नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) को अंतिम रूप देना होगा (यह वित्त लक्ष्य पुराने 100 अरब अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता से कहीं अधिक है) और इस पर सहमत होना होगा कि इसे कैसे प्राप्त किया जाएगा।
  • NDC को मजबूत करना: सभी देशों को अधिक महत्त्वाकांक्षी और अद्यतन NDCs प्रस्तुत करने होंगे, जो शमन और अनुकूलन दोनों को शामिल करें, ताकि 1.5°C के लक्ष्य को पहुँच में रखा जा सके।
  • जीवाश्म ईंधन का प्रयोग न करना: देशों को जीवाश्म ईंधन का प्रयोग न करने की COP28-COP30 प्रतिबद्धता को न्यायसंगत, व्यवस्थित और समतापूर्ण तरीके से लागू करने के लिए स्पष्ट राष्ट्रीय तथा वैश्विक योजनाएँ विकसित करनी होंगी।

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आगे की राह

  • NCQG को क्रियान्वित करना: देशों को एक स्पष्ट, पूर्वानुमानित, अनुदान-आधारित जलवायु वित्त लक्ष्य को अंतिम रूप देना होगा, जिसमें अनुकूलन और पारदर्शी वितरण तंत्रों पर जोर दिया जाएगा।
  • एक पारदर्शी जीवाश्म ईंधन संक्रमण ढाँचा स्थापित करना: विकासात्मक आवश्यकताओं और जलवायु संबंधी अनिवार्यताओं के बीच संतुलन बनाते हुए, जीवाश्म ईंधनों से उचित बदलाव लाने के लिए एक संरचित, समता-आधारित संक्रमण रोडमैप की आवश्यकता है।
  • ‘लॉस एंड डैमेज’ फंड को मजबूत करना: सबसे कमजोर देशों की सहायता के लिए पूर्वानुमानित पुनःपूर्ति, सरलीकृत पहुँच और मजबूत शासन तंत्र सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • विकासशील देशों को हरित संरक्षणवाद से बचाना: CBAM जैसे उपायों को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर अनुचित प्रभाव डालने से रोकने के लिए विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप ढाँचे विकसित करना।
  • प्रकृति-आधारित समाधानों में तेजी लाना: TFFF के लिए समर्थन का विस्तार करना, वन प्रशासन को मजबूत करना, पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन का विस्तार करना और स्वदेशी नेतृत्व को सशक्त बनाना।
  • डेटा और निगरानी प्रणालियों को बेहतर बनाना: पारदर्शिता, ट्रैकिंग और साक्ष्य-आधारित कार्रवाई को मजबूत करने के लिए ‘ओपन प्लैनेटरी इंटेलिजेंस नेटवर्क’ (OPIN) और अन्य ‘ग्लोबल मॉडलिंग टूल’ जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।
  • जलवायु अभिसरण को बढ़ावा देना: सार्वजनिक स्वास्थ्य और जलवायु अनुकूलन के एकीकरण को संस्थागत बनाने के लिए बेलेम स्वास्थ्य कार्य योजना का वैश्वीकरण करना।
  • एकीकृत रणनीतिक दिशा: उपरोक्त कार्यवाहियाँ (वित्त, शमन, अनुकूलन, व्यापार और शासन) एक समतामूलक, न्याय-संचालित, कार्यान्वयन-केंद्रित वैश्विक जलवायु व्यवस्था की ओर परिवर्तन की माँग करती हैं, जो जलवायु महत्त्वाकांक्षा को विकासात्मक अधिकारों के साथ संतुलित करती है।

निष्कर्ष

COP-30 ने कार्यान्वयन, न्याय और समुदाय-केंद्रित जलवायु कार्रवाई की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दर्ज किया। वित्त, जीवाश्म ईंधन और व्यापार से जुड़े अनसुलझे मतभेदों के बावजूद, सम्मेलन ने समतापूर्ण वित्त, वन संरक्षण, स्वास्थ्य तथा गरीबी-केंद्रित अनुकूलन पर वैश्विक गति को सुदृढ़ किया तथा जलवायु शासन के केंद्र में संवेदनशील आबादी को स्थापित किया।

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