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विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2025

Lokesh Pal November 26, 2025 01:51 5 0

संदर्भ

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2025 का मसौदा जारी किया, जिसका उद्देश्य भारत के विद्युत वितरण ढाँचे का आधुनिकीकरण करना है।

संशोधन की आवश्यकता क्यों है?

  • संरचनात्मक अक्षमताएँ: वितरण कंपनियों में कम बिलिंग दक्षता तथा उच्च समेकित तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानियों के कारण लगातार वित्तीय  घाटा हो रहा है।
    • पुराना एकाधिकार आपूर्ति मॉडल उपभोक्ता विकल्प और नवाचार को सीमित करता है।
  • ‘क्रॉस-सब्सिडी’ संबंधी विकृतियाँ: अत्यधिक ‘क्रॉस-सब्सिडी’ उद्योगों पर बढ़े हुए टैरिफ का बोझ डालती है, जो विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा को बाधित करती है।
  • गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता संबंधी चिंताएँ: सीमित प्रतिस्पर्द्धा से सेवा सुधार, नेटवर्क उन्नयन तथा जवाबदेही हेतु प्रोत्साहन कमजोर रहता है।

समेकित तकनीकी एवं वाणिज्यिक (AT&C) हानियाँ 

  • ये कुल विद्युत हानियाँ हैं, जो वितरण कंपनी को तकनीकी अक्षमताओं तथा वाणिज्यिक कारणों दोनों से होती हैं।
  • घटक
    • तकनीकी हानियाँ: पुराने उपकरण, कमजोर नेटवर्क, अधिभार, खराब अनुरक्षण, लंबी लाइनें।
    • वाणिज्यिक हानियाँ: विद्युत चोरी, मीटर में छेड़छाड़, मीटर के बिना आपूर्ति, बिलिंग त्रुटियाँ, बिलों का भुगतान न होना।

विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2025 के मुख्य बिंदु 

संरचनात्मक सुधार

  • वितरण में विनियमित प्रतिस्पर्द्धा: यह विधेयक साझा बुनियादी ढाँचे का उपयोग करके एक ही वितरण क्षेत्र में कई लाइसेंसधारियों को कार्य करने की अनुमति देकर बिजली वितरण में विनियमित प्रतिस्पर्द्धा को सक्षम बनाता है।
    • प्रतिस्पर्द्धा का विनियमन राज्य विद्युत विनियामक आयोगों द्वारा, ताकि चयनात्मकता को रोका जा सके तथा भेदभाव रहित पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
  • सार्वभौमिक सेवा दायित्व: यह सभी लाइसेंसधारियों के लिए निष्पक्ष पहुँच और आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु सार्वभौमिक सेवा दायित्व (USO) को अनिवार्य बनाता है।
    • राज्य विद्युत विनियामक आयोग, राज्य सरकार के परामर्श से, ओपन एक्सेस (1 मेगावाट से अधिक) के लिए पात्र बड़े उपभोक्ताओं के लिए वितरण लाइसेंसधारियों को USO से छूट प्रदान कर सकता है।

टैरिफ और क्रॉस-सब्सिडी युक्तीकरण

  • लागत-प्रतिबिंबित शुल्क: यह विधेयक वास्तविक आपूर्ति लागत के अनुरूप तर्कसंगत और पारदर्शी शुल्कों को बढ़ावा देता है।
  • सब्सिडी प्राप्त समूहों के लिए संरक्षण: सब्सिडी सीधे राज्य बजट द्वारा प्रदान की जाएगी, जिससे औद्योगिक उपभोक्ताओं पर बोझ कम होगा।
  • उद्योग के लिए क्रॉस-सब्सिडी समाप्ति: यह विधेयक 5 वर्षों के भीतर विनिर्माण उद्योग, रेलवे और मेट्रो के लिए ‘क्रॉस-सब्सिडी’ को समाप्त करने का प्रयास करता है।

बुनियादी ढाँचा और नेटवर्क दक्षता

  • विनियमित व्हीलिंग शुल्क: यह विधेयक उपयुक्त आयोगों को नेटवर्क उपयोग के लिए उचित लागत-साझाकरण सुनिश्चित करते हुए एकसमान ‘व्हीलिंग शुल्क’ निर्धारित करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • दोहराव को रोकना: मौजूदा नेटवर्क के कुशल उपयोग को बढ़ावा देता है; समानांतर नेटवर्क निर्माण से बचाता है।
  • ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ (ESS): ESS के लिए प्रावधान प्रस्तुत करता है और विद्युत पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी भूमिका को परिभाषित करता है।

शासन और विनियामक सुदृढ़ीकरण

  • विद्युत परिषद: केंद्र–राज्य समन्वय एवं नीतिगत सहमतियाँ सुनिश्चित करने हेतु विद्युत परिषद की स्थापना।
  • विधेयक राज्य विद्युत विनियामक आयोगों को प्रदर्शन मानक लागू करने, दंडित करने और आवेदन विलंबित होने पर स्वतः संज्ञान लेकर शुल्क निर्धारण करने की शक्ति देता है।

सतत् विकास एवं बाजार संवर्द्धन

  • यह विधेयक गैर-जीवाश्म ऊर्जा खरीद के दायित्वों को बढ़ाता है और अनुपालन न करने पर दंड का प्रावधान करता है।
  • विद्युत बाजार संबंधी सुधार: यह नए उपकरणों और व्यापारिक प्लेटफॉर्मों के माध्यम से विद्युत बाजारों के विकास का समर्थन करता है।

भारत में विद्युत क्षेत्र

  • भारत का विद्युत क्षेत्र विश्व के सबसे बड़े और तीव्रता से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है, जिसमें उत्पादन, संचरण, वितरण एवं व्यापार सभी शामिल हैं।
    • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विद्युत उत्पादक एवं उपभोक्ता है।
    • IRENA द्वारा प्रकाशित नवीकरणीय ऊर्जा आँकड़े, 2025 के अनुसार, भारत नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में विश्व में चौथे, पवन ऊर्जा में चौथे और सौर ऊर्जा में तीसरे स्थान पर है।
  • यह मुख्य रूप से विद्युत अधिनियम, 2003 द्वारा निर्देशित, केंद्र-राज्य साझा क्षेत्राधिकार के तहत कार्य करता है।
    • विद्युत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में केंद्र एवं राज्य दोनों विधि निर्माण कर सकते हैं।

भारत की ऊर्जा परिदृश्य स्थिति

  • जून 2025 तक कुल स्थापित विद्युत क्षमता 476  गीगावाट थी
  • गैर-जीवाश्म स्रोत 235.7 GW (49%), जिनमें 226.9 गीगावाट नवीकरणीय तथा 8.8 गीगावाट परमाणु ऊर्जा है।
  • ताप विद्युत अभी भी प्रमुख है, जो 240 गीगावाट या स्थापित क्षमता का 50.52% है।

अन्य प्रमुख सुधार

  • उज्ज्वल वितरण कंपनी आश्वासन योजना (उदय): यह केंद्रीय विद्युत मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा नवंबर 2015 में शुरू की गई एक योजना है, जिसका उद्देश्य राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) के परिचालन और वित्तीय सुधार करना है।
  • पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना (RDSS)
    • भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय द्वारा जून 2021 में पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना (RDSS) प्रारंभ की गई थी।
    • इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2024-25 तक समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (AT&C) घाटे को 12-15% तक कम करना है।
    • इसका उद्देश्य आपूर्ति की औसत लागत (ACS) और औसत प्राप्त राजस्व (ARR) के बीच के अंतर को समाप्त करना है।
    • यह सभी उपभोक्ताओं को 24×7 विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
  • अंतर-राज्य संचरण तंत्र (ISTS): इसे साझा अवसंरचना मॉडल पर विकसित किया गया है, जहाँ सार्वजनिक और निजी दोनों ट्रांसमिशन सेवा प्रदाता (TSP), जिसमें पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एक CPSU) भी शामिल है, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) की नियामक निगरानी के तहत ISTS परिसंपत्तियों के निर्माण में भाग लेते हैं।

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