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ऑनलाइन कंटेंट विनियमन

Lokesh Pal December 02, 2025 03:02 9 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपयोगकर्ता द्वारा निर्मित अवांछित डिजिटल ‘कंटेंट’ के लिए एक मजबूत नियामक ढाँचे की माँग की, और कहा कि इसका स्व-नियमन विफल हो गया है। इसने तेजी से प्रसारित हो रहे, अपरिवर्तनीय ऑनलाइन नुकसान को रोकने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी निकाय और एन्क्रिप्टेड आधार/स्थायी खाता संख्या (PAN) आधारित आयु सत्यापन की सिफारिश की।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाई गई चिंताएँ

  • अवांछित ‘कंटेंट’ का तीव्र प्रसार: अवांछित डिजिटल कंटेंट’ इतनी तीव्रता से प्रसारित होता है कि उसे हटाने की प्रक्रिया से भी तीव्र गति से प्रसारित किया जा सकता है, जिससे मनोवैज्ञानिक क्षति होती है जिसे प्रतिक्रियाशील प्रणालियाँ प्रभावी रूप से ठीक नहीं कर सकतीं।
  • अनियमित ‘कंटेंट’ निर्माताओं का उदय: बड़े ऑनलाइन प्रभावशाली व्यक्तित्व भी प्रायः किसी सार्थक जवाबदेही तंत्र के अभाव में कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्लेटफॉर्म पर भ्रामक, अपमानजनक अथवा सामाजिक रूप से विघटनकारी सामग्री का व्यापक प्रसार होता है।
  • नाबालिगों के लिए कमजोर सुरक्षा: आवश्यक ‘18+ अस्वीकरण’ बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं, जिससे नाबालिगों को खराब सत्यापन तंत्र के कारण स्पष्ट, हिंसक या मनोवैज्ञानिक रूप से अवांछित ‘कंटेंट’ तक आसानी से पहुँच प्राप्त हो जाती है।
  • स्व-नियमन की अप्रभावीता: वर्तमान प्लेटफॉर्म-संचालित स्व-नियामक प्रणालियाँ असंगत बनी हुई हैं, उनमें प्रवर्तन शक्ति का अभाव है और वे समय पर अवांछित ‘कंटेंट’ पर अंकुश लगाने में विफल हैं।
  • डीपफेक और AI-चालित दुरुपयोग: AI-जनित डीपफेक और हस्तक्षेप ‘कंटेंट’ का विकास, सत्य और भ्रामक बातों में अंतर न कर पाने के कारण व्यक्तिगत गरिमा, लोकतांत्रिक संवाद और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रमुख निर्देश

  • स्वायत्त डिजिटल नियामक: डिजिटल कंटेंट की निगरानी और राजनीतिक या व्यावसायिक दबाव के अलावा निष्पक्ष विनियमन सुनिश्चित करने के लिए एक वैधानिक, स्वतंत्र और प्रभाव-मुक्त प्राधिकरण की स्थापना करना।
  • मजबूत आयु-सत्यापन प्रणालियाँ: नाबालिगों की संवेदनशील सामग्री तक पहुँच रोकने के लिए गोपनीयता-संरक्षण आधारित आयु-सत्यापन तंत्र लागू किया जाए, जिसकी व्यवस्था एन्क्रिप्टेड आधार/PAN के उपयोग से की जा सकती है।
  • सक्रिय शमन की ओर परिवर्तन: प्लेटफॉर्म को प्रतिक्रियात्मक शिकायत-निवारण के स्थान पर पूर्व-निर्धारित पहचान प्रणालियाँ अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, विशेषकर उस सामग्री के संदर्भ में जो गंभीर, अपरिवर्तनीय या सम्मान-संबंधी हानि उत्पन्न कर सकती है।
  • गरिमा का संरक्षण: ऑनलाइन दुर्व्यवहार, अपमान और डीपफेक हमलों का समयबद्ध एवं प्रभावी राज्य-समर्थित सुरक्षा उपायों के माध्यम से समाधान सुनिश्चित करके अनुच्छेद-21 के संरक्षण को सुदृढ़ किया जाए।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संतुलित प्रवर्तन: ऐसे नियामक मानक तैयार करना, जो अनुच्छेद-19(1)(a) की स्वतंत्रताओं को संरक्षित रखना और साथ ही नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और मानहानि से संबंधित अनुच्छेद-19(2) के सुरक्षा उपायों को भी कायम रखना।

भारत के ऑनलाइन विनियमन का विकास

  • IT अधिनियम 2000, पहला डिजिटल ढाँचा: IT अधिनियम ने भारत में मध्यस्थ दायित्व के लिए प्रारंभिक मानक स्थापित किए, हालाँकि अब यह डीपफेक और AI हस्तक्षेप जैसी आधुनिक चुनौतियों का समाधान करने में संघर्ष कर रहा है।
  • श्रेया सिंघल (2015) और स्वतंत्र अभिव्यक्ति का संरक्षण: इस निर्णय ने धारा 66A को निरस्त कर दिया, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा हुई, लेकिन ऑनलाइन दुरुपयोग से निपटने के लिए एक नियामक शून्यता बनी रही।
  • IT नियम 2021 और प्लेटफॉर्म जवाबदेही: नियमों में उचित परिश्रम, पता लगाने की क्षमता और शिकायत निवारण अनिवार्य था, हालाँकि मुकदमेबाजी ने एकसमान कार्यान्वयन को धीमा कर दिया है।
  • 2020 के दशक के डिजिटल बदलाव: सोशल मीडिया, फेक न्यूज, साइबर धमकी और डीपफेक तकनीक के तेजी से विकास ने मौजूदा कानूनी सुरक्षा उपायों में बड़ी खामियों को उजागर किया है।
  • आधुनिक विनियमन के लिए न्यायिक प्रयास: न्यायालय का हस्तक्षेप संरचित, निवारक और आनुपातिक डिजिटल शासन की ओर बदलाव को दर्शाता है।
  • कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) निर्णय: पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-21 में गैर-राज्यीय तत्वों द्वारा ऑनलाइन दुरुपयोग से सुरक्षा शामिल है और कहा कि “किसी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे को अपमानित करने की स्वतंत्रता नहीं बन सकती।”
  • दूरसंचार अधिनियम, 2023 (धारा 20): यह केंद्र को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए OTT और इंटरनेट सेवाओं को विनियमित/अधिग्रहण करने का अधिकार देता है, लेकिन IT अधिनियम के साथ इसके अतिव्यापन का जोखिम बना रहता है।

संवैधानिक संदर्भ

  • अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: नियमन से नागरिकों, पत्रकारों या कलाकारों को वैध राय व्यक्त करने से हतोत्साहित करने वाला कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
  • अनुच्छेद-19(2) के तहत उचित सीमाएँ: प्रतिबंधों को संकीर्ण तथा सटीक रूप से तैयार किया जाना चाहिए और उन्हें शालीनता, नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था तथा राज्य की सुरक्षा जैसे संवैधानिक आधारों से स्पष्ट रूप से संबद्ध होना चाहिए।
  • अनुच्छेद-21 के तहत गरिमा का अधिकार: ऑनलाइन उत्पीड़न, डीपफेक और साइबरबुलिंग, सम्मानजनक जीवन की संवैधानिक गारंटी को कमजोर करते हैं, जिसके लिए राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
  • नियामक मानक के रूप में आनुपातिकता: किसी भी ढाँचे को उपयुक्तता, आवश्यकता और न्यूनतम प्रतिबंधात्मकता के संवैधानिक मानकों पर खरा उतरना चाहिए।

भारत के डिजिटल शासन को मजबूत करने का महत्त्व

  • बेहतर नागरिक सुरक्षा: कठोर नियमन साइबरबुलिंग, डॉक्सिंग, डीपफेक हमलों और घृणा अभियानों, विशेषतः संवेदनशील समूहों के विरुद्ध, को रोकने में मदद करता है।
  • लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाना: गलत सूचना और ऑनलाइन धमकी से निपटना स्वस्थ सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देता है और लोकतांत्रिक विश्वास को मजबूत करता है।
  • डिजिटल कानून के शासन का विस्तार: एक संरचित ढाँचा संवैधानिक मूल्यों (गरिमा, समानता, जवाबदेही) को डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में समाहित करने में मदद करता है।
  • भारत को एक डिजिटल नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करना: अधिकार-आधारित नियमन भारत को लोकतांत्रिक डिजिटल शासन के लिए एक विश्व स्तर पर विश्वसनीय मॉडल प्रस्तुत करने में सक्षम बनाता है।
  • बेहतर बाल सुरक्षा मानक: सशक्त आयु नियंत्रण, कंटेंट विनियमन  और सत्यापन प्रणालियाँ नाबालिगों की सुरक्षा में सुधार करती हैं।

भारत में ऑनलाइन ‘कंटेंट’ को विनियमित करने में प्रमुख चुनौतियाँ

  • अति-विनियमन जोखिम और संवैधानिक चिंताएँ
    • अत्यधिक सेंसरशिप: अस्पष्ट या अतिव्यापक नियम असहमति, व्यंग्य और राजनीतिक आलोचना को दबा सकते हैं, जिससे वैध अभिव्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • आनुपातिकता उल्लंघन: जो प्रतिबंध उपयुक्तता, आवश्यकता और न्यूनतम प्रतिबंधात्मकता के संवैधानिक परीक्षणों पर खरे नहीं उतरते, वे श्रेया सिंघल मामले में तय मानकों का उल्लंघन करते हैं।
    • लोकतांत्रिक बहस के लिए खतरा: ‘आपत्तिजनक’ सामग्री की अस्पष्ट परिभाषा पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और छात्रों के विरुद्ध विनियमन को दुरुपयोग योग्य बनाकर इसे एक दमनकारी उपकरण में परिवर्तित कर सकती है।
    • BNS 2023: भारतीय न्याय संहिता 2023 ऑनलाइन मानहानि और उत्पीड़न को शामिल करती है, लेकिन डीपफेक पोर्नोग्राफी, ऑनलाइन स्टॉकिंग, डॉक्सिंग और ब्रिगेडिंग के लिए विशिष्ट प्रावधानों का अभाव है; इसमें प्रौद्योगिकी-सुगम दुर्व्यवहार पर एक समर्पित अध्याय की आवश्यकता है।
  • तकनीकी सीमाएँ
    • AI का अनुचित वर्गीकरण: स्वचालित उपकरण प्रायः वैध अभिव्यक्ति को गलत तरीके से चिह्नित कर देते हैं, क्षेत्रीय संदर्भों को समझने में विफल रहते हैं तथा भारत की व्यापक भाषायी विविधता के साथ प्रभावी रूप से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं।
    • एल्गोरिदमिक’ पूर्वाग्रह: कंटेंट मॉडरेशन प्रणालियाँ लैंगिक, जातिगत या धार्मिक पूर्वाग्रहों को उत्पन्न कर सकती हैं और हाशिए पर स्थित समुदायों को अनुचित रूप से लक्षित कर सकती हैं।
    • डीपफेक संबंधी जटिलता: AI द्वारा उत्पन्न डीपफेक की बढ़ती संख्या पहचान संबंधी जटिलता स्थापित करती है, जिससे सम्मान, विश्वास और सार्वजनिक संवाद के लिए जोखिम बढ़ जाता है।
  • संस्थागत, न्यायिक और प्रवर्तन अंतराल
    • राज्य क्षमता की बाधाएँ: साइबर-फोरेंसिक विशेषज्ञों, विशिष्ट नियामकों और उन्नत तकनीकी अवसंरचना की कमी प्रभावी निगरानी में बाधा डालती है।
    • न्यायिक विलंब: विशिष्ट तंत्रों के अभाव के कारण साइबर अपराधों का निर्णय धीमा होता है, जिससे हानि और बढ़ जाती है।
    • विखंडित विनियमन: कई एजेंसियों के बीच अधिकार क्षेत्र के अतिव्यापी होने से असंगत प्रवर्तन और नियामक भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • केंद्र-राज्य संघर्ष और संघीय शासन संबंधी मुद्दे
    • समवर्ती सूची तनाव: ऑनलाइन कंटेंट प्रविष्टि 31 (डाक और तार) के अंतर्गत आती है, फिर भी तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों का तर्क है कि IT नियम 2021 केंद्र सरकार के अतिक्रमण को दर्शाते हैं।
    • असमान राज्य प्रवर्तन: राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक प्राथमिकताएँ और क्षमताएँ नियामक असंगति उत्पन्न करती हैं।
    • कमजोर स्थानीय प्रतिक्रिया प्रणालियाँ: राज्य-स्तरीय डिजिटल सुरक्षा तंत्रों का अभाव क्षेत्र-विशिष्ट नुकसानों के प्रति आधारभूत स्तर पर प्रतिक्रिया को सीमित करता है।
  • पारदर्शिता की कमी और जवाबदेही संबंधी चिंताएँ
    • अस्पष्ट अवरोधन आदेश: MeitY और CERT-In द्वारा धारा 69A और धारा 70B के तहत जारी किए गए निष्कासन आदेश प्रायः सार्वजनिक प्रकटीकरण से रहित होते हैं, जिससे लोकतांत्रिक निगरानी कम हो जाती है।
    • सार्वजनिक विश्वास में कमी: सामग्री हटाए जाने के कारणों में पारदर्शिता का अभाव गोपनीयता बढ़ाता है और राजनीतिक पूर्वाग्रह की धारणाओं को प्रबल करता है।
    • अपर्याप्त प्लेटफॉर्म प्रकटीकरण: प्लेटफॉर्म’ प्रायः मॉडरेशन कार्रवाइयों पर न्यूनतम या अत्यंत सामान्यीकृत डेटा ही प्रदान करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रणालीगत विफलताएँ छिपी रह जाती हैं।
  • आर्थिक और नवाचार दुविधा
    • स्टार्ट-अप्स पर अनुपालन का बोझ: अति-विनियमन छोटी कंपनियों की लागत बढ़ा सकता है, जिससे क्रिएटर इकोनॉमी और डिजिटल उद्यमिता को नुकसान पहुँच सकता है।
    • पूँजी पलायन के जोखिम: कठोर विनियामक अपेक्षाएँ वैश्विक प्लेटफॉर्म को अपने परिचालन को कम करने पर विचार करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं, जैसा कि ट्विटर के वर्ष 2021 से संबंधित विनियमों में देखा जा सकता है।
    • अनियमित विनियमन विश्वास को नुकसान पहुँचाता है: कमजोर सुरक्षा उपाय उपयोगकर्ताओं और विज्ञापनदाताओं के विश्वास को कम करते हैं, जैसा कि कैंब्रिज एनालिटिका मामले में उजागर हुआ है।
    • असमान अनुपालन प्रभाव: एकसमान मानक छोटी फर्मों पर बोझ डालते हैं, जबकि प्रमुख प्लेटफॉर्म द्वारा उत्पन्न असमान जोखिमों का समाधान करने में विफल रहते हैं।
  • पहचान-आधारित हानियाँ और सामाजिक कमजोरियाँ
    • अनुपातहीन उत्पीड़न: अध्ययनों से पता चलता है कि 59% शहरी महिलाएँ और 38% ग्रामीण महिलाएँ ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना करती हैं; दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक कार्यकर्ताओं को जातिवादी दुर्व्यवहार और डॉक्सिंग का सामना करना पड़ता है।
    • अदृश्य संरचनात्मक पैटर्न: पहचान-विशिष्ट रिपोर्टिंग का अभाव प्रणालीगत भेदभाव को छुपाता है और उच्च जोखिम वाले समूहों की पहचान को दबा देता है।
    • बढ़ी हुई सुभेद्यता: हाशिये पर स्थित समुदायों को लक्षित फेक न्यूज, घृणा अभियानों और समन्वित ट्रोलिंग के अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।
    • WEF वैश्विक जोखिम, 2024: WEF की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट, 2024 में  भारत के संदर्भ में फेक न्यूज और दुष्प्रचार को सर्वाधिक प्रभावशाली अल्पकालिक जोखिम के रूप में मान्यता दी गई है, यह जलवायु, ऋण या युद्ध संबंधी जोखिमों से भी आगे है, जो अवांछित ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • चुनावी अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा
    • समन्वित प्रभाव संचालन: डीपफेक, बड़े पैमाने पर फैलाई गई फेक न्यूज और लक्षित प्रचार चुनावी अखंडता के लिए खतरा हैं।
    • हानि: राजनीतिक ‘कंटेंट’ अधिकारियों की प्रतिक्रिया से पहले ही तीव्र गति से प्रसारित हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के प्रति गंभीर जोखिम उत्पन्न होता है।
    • सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान: ‘फेक न्यूज’ नागरिकों तक सुधारात्मक संदेश पहुँचने से पहले ही सांप्रदायिक तनाव या हिंसा भड़का सकती है।

आगे की राह

  • कानूनी, संवैधानिक और संस्थागत सुधार
    • ऑनलाइन दुरुपयोग की स्पष्ट परिभाषा: लक्षित ऑनलाइन दुरुपयोग की एक वैधानिक परिभाषा लागू करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि इसका दुरुपयोग व्यंग्य, असहमति या राजनीतिक आलोचना के विरुद्ध न हो।
    • आनुपातिकता-आधारित प्रतिबंध: श्रेया सिंघल (2015) मामले में पुष्टि किए गए आनुपातिकता परीक्षण को सुदृढ़ करते हुए सुनिश्चित करना कि सभी नियामक कार्रवाइयाँ उपयुक्तता, आवश्यकता और न्यूनतम प्रतिबंधात्मकता के संवैधानिक मानकों को पूरा करती हैं।
    • वैधानिक डिजिटल मानक प्राधिकरण: वर्तमान शिकायत अपील समिति (GAC) को कानून, प्रौद्योगिकी, मनोविज्ञान, बाल अधिकार और नागरिक समाज से न्यायिक और तकनीकी विशेषज्ञता वाले एक डिजिटल मानक प्राधिकरण में परिवर्तित करना।
    • जोखिम-आधारित स्तरीय विनियमन: जोखिम-आधारित मॉडल अपनाना, वेरी लार्ज ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (VLOP) पर सबसे कठोर दायित्व लागू करना और साथ ही छोटे भारतीय प्लेटफॉर्म और ‘क्रिएटर इकोनॉमी’ के बीच नवाचार की रक्षा करना।
    • अंतर-एजेंसी समन्वय: सुसंगत और एकसमान डिजिटल शासन सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी ब्यूरो, कानून प्रवर्तन, DPDP प्राधिकरण और बाल संरक्षण निकायों के बीच निर्बाध सहयोग का निर्माण करना।
  • संघवाद, विकेंद्रीकरण और पारदर्शिता
    • समवर्ती सूची का समन्वय: ऑनलाइन कंटेंट प्रशासन को समवर्ती सूची के विषय के रूप में मान्यता देना (प्रविष्टि 31—डाक और तार), साझा केंद्र-राज्य उत्तरदायित्व को अनिवार्य बनाना।
    • केंद्र-राज्य संघर्ष कम करना: तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों द्वारा IT नियम 2021 को दी गई चुनौतियों से उत्पन्न तनावों का समाधान करना, नीतिगत स्पष्टता और सहयोगात्मक निगरानी सुनिश्चित करना।
    • सहकारी संघवाद संरचना: स्थानीय प्रवर्तन, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील कार्यान्वयन और समय पर शिकायत निवारण को सक्षम करने के लिए राज्य इंटरनेट सुरक्षा अधिकारियों द्वारा समर्थित एक राष्ट्रीय नियामक ढाँचा तैयार करना।
    • अनिवार्य पारदर्शिता रिपोर्टिंग: MeitY को यूरोपीय संघ-शैली के लोकतांत्रिक पारदर्शिता मानदंडों का पालन करते हुए, धारा 69A और 70B के सभी अवरोधन आदेशों पर एक वार्षिक सार्वजनिक रिपोर्ट जारी करने की आवश्यकता है।
  • प्लेटफॉर्म जवाबदेही और देखभाल का कर्तव्य
    • सशर्त सुरक्षित-आश्रय प्रतिरक्षा: यदि प्लेटफॉर्म, न्यायालयों या नियामक के आदेश के 24-36 घंटों के भीतर स्पष्ट रूप से अवैध कंटेंट को हटाने में विफल रहते हैं, तो धारा 79 के तहत सुरक्षा वापस ले ली जाएगी, जो यूरोपीय संघ के डिजिटल सेवा अधिनियम के अनुरूप है।
    • श्रेणीबद्ध उत्तरदायित्व तंत्र: गैर-अनुपालन, प्रणालीगत मॉडरेशन विफलताओं या अवांछित ‘कंटेंट’ को संबोधित करने में अनियमितता दर्शाने वाले प्लेटफॉर्म के लिए बढे हुए दंड लागू करना।
    • पहचान रिपोर्टिंग द्वारा सुरक्षा: समानता सुनिश्चित करने और भेदभावपूर्ण नुकसान को रोकने के लिए वार्षिक पहचान-संवेदनशील मॉडरेशन रिपोर्ट अनिवार्य करना, जिसमें यह विवरण दिया गया हो कि दुरुपयोग विभिन्न समूहों जाति, जनजाति, जातीयता को कैसे प्रभावित करता है।
  • प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा और AI शासन
    • अनिवार्य सक्रिय AI उपकरण: पारदर्शिता मानदंडों और स्वतंत्र ऑडिट के समर्थन से AI/ML-आधारित पूर्व-फिल्टरिंग, डीपफेक पहचान प्रणालियों और पूर्व-चेतावनी तंत्रों की तैनाती आवश्यक है।।
    • ह्यूमन-इन-द-लूप निरीक्षण: भारतीय भाषाओं में एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह, वर्गीकरण संबंधी त्रुटियाँ और भाषायी अशुद्धियों को कम करने हेतु AI प्रणालियों को प्रशिक्षित मानव मॉडरेटरों के सहयोग से संयोजित किया जाना चाहिए।।
    • डिजिटल मॉडरेशन: यूरोपीय संघ के कृत्रिम बुद्धिमत्ता अधिनियम, 2024 का पालन करते हुए, मॉडरेशन में उपयोग किए जाने वाले उच्च-जोखिम युक्त AI प्रणालियों के लिए ऊर्जा ऑडिट और हरित कंप्यूटिंग मानकों को लागू करना।
  • गोपनीयता, एन्क्रिप्शन तथा उपयोगकर्ता सुरक्षा
    • एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का संरक्षण: सुनिश्चित करना कि विनियामक शक्तियाँ E2E एन्क्रिप्शन को कमजोर न करना, जो न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (2017) मामले में मान्यता प्राप्त निजता के मौलिक अधिकार के अनुरूप है।
    • निजता-सुरक्षात्मक आयु सत्यापन: व्यक्तिगत डेटा संगृहीत किए बिना आयु सत्यापित करने के लिए शून्य-ज्ञान प्रमाण प्रणाली, एन्क्रिप्टेड आयु टोकन, या आधार/पैन कार्ड आधारित ब्लाइंड टोकन का उपयोग करना, जो DPDP अधिनियम, 2023 का पूर्णतः अनुपालन करता है।
    • पता लगाने संबंधी उल्लंघनों का निषेध: ऐसे पहचान या आयु-सत्यापन तंत्रों से बचना, जो पता लगाने संबंधी खामियाँ, निगरानी जोखिम, या न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति द्वारा चिह्नित सामूहिक निगरानी संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।
  • डिजिटल साक्षरता, न्यायिक सहायता और नैतिक पारिस्थितिकी तंत्र
    • राष्ट्रव्यापी डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: ऑनलाइन सुरक्षा, सूचना साक्षरता, तथ्य-जाँच और डिजिटल नागरिकता को स्कूली पाठ्यक्रमों और सामुदायिक कार्यक्रमों में एकीकृत करके सूचित उपयोगकर्ता तैयार करना।
    • विशेष साइबर न्यायालय: ऑनलाइन दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और डीपफेक से संबंधित अपराधों का समय पर निर्णय सुनिश्चित करने के लिए POCSO न्यायालयों की तर्ज पर फास्ट-ट्रैक’ साइबर न्यायालयों की स्थापना करना।
    • डिजिटल सहानुभूति को बढ़ावा देना: सार्वजनिक अभियानों के माध्यम से नैतिक और सहानुभूतिपूर्ण डिजिटल व्यवहार को बढ़ावा देना, ऑनलाइन विषाक्तता को कम करना और ‘फेक न्यूज’ के विरुद्ध सामाजिक अनुकूलन स्थापित करना।
  • समानता, लोकतंत्र और आर्थिक संतुलन
    • हाशिए पर स्थित समूहों के लिए सुरक्षा: महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और कार्यकर्ताओं के ऑनलाइन दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील होने के प्रमाणों को पहचानना तथा सुनिश्चित करना कि नीतियाँ इन पहचान-आधारित नुकसानों को स्पष्ट रूप से संबोधित करें।
    • पहचान-संवेदनशील मानक: जवाबदेही और समानता सुनिश्चित करने के लिए शिकायतों, निष्कासन और जोखिम आकलन पर पहचान-आधारित डेटा प्रकाशित करने के लिए प्लेटफॉर्म की आवश्यकता होती है।
    • चुनाव अखंडता तंत्र: चुनाव अवधि में फेक न्यूज और डीपफेक की वास्तविक समय निगरानी के लिए ECI, MeitY और DSA को शामिल करते हुए एक स्थायी चुनाव कंटेंट निरीक्षण बोर्ड का गठन करना।
    • आर्थिक-नवाचार संतुलन: डिजिटल विनियमन को भारत के 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य के साथ संरेखित करना।
    • भारतीय संदर्भ के साथ वैश्विक संरेखण: भारत के सामाजिक और कानूनी परिवेश के अनुरूप कार्यान्वयन तैयार करते समय EU DSA और UNESCO ढाँचों से सर्वोत्तम प्रथाओं को समाविष्ट किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष 

भारत को एक ‘गोल्डीलॉक्स समाधान’ की आवश्यकता है— न तो अत्यधिक अराजकता, न अत्यधिक सेंसरशिप। नियामक ढाँचा ऐसा होना चाहिए, जो संतुलित, पारदर्शी और मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाला हो। ईमानदार आलोचकों को दबाए बिना दुर्व्यवहार करने वालों को दंडित करने वाली प्रणाली को सावधानीपूर्वक डिजाइन करके, भारत डिजिटल युग में अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुच्छेद-21 के तहत अनिवार्य गरिमा और सुरक्षा के साथ सफलतापूर्वक जोड़ सकता है।

अभ्यास प्रश्न

स्व-नियमन की असफलता के प्रकाश में, क्या डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर कंटेंट मॉनिटरिंग के लिए एक स्वायत्त, स्वतंत्र नियामक निकाय स्थापित करना आवश्यक है? विवेचना कीजिए।

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