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Lokesh Pal
December 02, 2025 03:02
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हाल ही में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपयोगकर्ता द्वारा निर्मित अवांछित डिजिटल ‘कंटेंट’ के लिए एक मजबूत नियामक ढाँचे की माँग की, और कहा कि इसका स्व-नियमन विफल हो गया है। इसने तेजी से प्रसारित हो रहे, अपरिवर्तनीय ऑनलाइन नुकसान को रोकने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी निकाय और एन्क्रिप्टेड आधार/स्थायी खाता संख्या (PAN) आधारित आयु सत्यापन की सिफारिश की।
भारत को एक ‘गोल्डीलॉक्स समाधान’ की आवश्यकता है— न तो अत्यधिक अराजकता, न अत्यधिक सेंसरशिप। नियामक ढाँचा ऐसा होना चाहिए, जो संतुलित, पारदर्शी और मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाला हो। ईमानदार आलोचकों को दबाए बिना दुर्व्यवहार करने वालों को दंडित करने वाली प्रणाली को सावधानीपूर्वक डिजाइन करके, भारत डिजिटल युग में अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुच्छेद-21 के तहत अनिवार्य गरिमा और सुरक्षा के साथ सफलतापूर्वक जोड़ सकता है।
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